THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Thursday, April 30, 2015

राष्ट्र संकट में,संकट में मनुष्य और प्रकृति भी सारे झंडे,सारे रंग मई दिवस के मुक्ति महोत्सव पर राष्ट्रीय झंडे में मिला दें और मुकाबला करें इस केसरिया कारपोरेट कयामत का जो भारतीय जनता को गुलामी की जंजीरों में बांधकर भारत माला विदेशी पूंजी के गले में सजाने लगी कि मेहनतकशों,कर दो बाबुलंद ऐलान मई दिवस से फिर आजादी की लड़ाई जारी है पलाश विश्वास


राष्ट्र संकट में,संकट में मनुष्य और प्रकृति भी
सारे झंडे,सारे रंग मई दिवस के मुक्ति महोत्सव पर राष्ट्रीय झंडे में मिला दें और मुकाबला करें इस केसरिया कारपोरेट कयामत का
जो भारतीय जनता को गुलामी की जंजीरों में बांधकर भारत माला विदेशी पूंजी के गले में सजाने लगी
कि मेहनतकशों,कर दो बाबुलंद ऐलान
मई दिवस से फिर आजादी की लड़ाई जारी है
पलाश विश्वास
Appeal for May Day Celebration in Bengali



हम अंध राष्ट्रवादी नहीं हैं ठीक वैसे ही जैसे हम धर्मोन्मादी फासिस्ट नहीं हैं।लेकिन इस संकट की घड़ी में जब कारपोरेट मुनाफे के लिए बाकायदा संसदीय सहमति से वोटबैंक साधने की शर्त पूरी करके कारपोरेट राजनीति संसदीय सहमति से राज्यसभा में अल्पमत केसरिया कारपोरेट सरकार को दो तिहाई बहुमत की अनिवार्यता  के बावजूद संविधान संशोधन तक पास करके मुक्तबाजारी नरमेध राजसूय के तहत पूरे देश को वधस्थल बनाकर विदेशी पूंजी और विदेशी हितों के हवाले सोने की चिड़िया करने खातिर मनुस्मृति कायदे कानून पास कर रही है एक के बाद एक।

हमारे पास राष्ट्र के इस संकट पर राष्ट्रीय झंडा लेकर सड़क पर उतरने के सिवाय कोई और विकल्प अनिवार्य जन जागरण अभियान के जरिये आजादी की लड़ाई शुरु करने का नहीं है।क्योंकि पाखंडी राजनीति कारपोरेट फंडिंग के जरिये चलती है और कारपोरेट जनसंहार के खिलाफ उसे खड़ा नहीं होना है।यह लड़ाई आखिरकार आम जनता को ही अपनी आजादी के लिए सत्ता वर्ग के खिलाफ लड़नी है।

हम अंध राष्ट्रवादी नहीं हैं ठीक वैसे ही जैसे हम धर्मोन्मादी फासिस्ट नहीं हैं।लेकिन इस संकट की घड़ी में जब निरंकुश बेदखली अभियान जारी है।बाबासाहेब को ईश्वर बनाकर उनके संविधान की हत्या हो रही है रोज रोज और ब्रिटिश राज में बाहैसियत श्रमिक कानून जो पास कराये बाबासाहेब ने वे सारे एक मुश्त खत्म कर दिये गये संसदीय सहमति से।विदेशी निवेशकों को 6.4 बिलियन कर छूट,कारपोरेट टैक्स में कटौती ,कारपोरेट कर्ज और उनपर पिछला सारा कर्ज माफ और किसी की भी नौकरी स्थाई नहीं।डिजिटल इंडिया के आईटी सेक्टर में रोजाना हजारों युवाओं को रोजगार से बाहर करने के लिए पिंक स्लिप दिया जा रहा है।

देश बेचो का इतना पुख्ता इंतजाम है कि मेकिंग इन अब देशी विदेशी पूंजी की बहार के मध्य देश व्यापी सलवा जुड़ुम है या देश बेचो विशेष सैन्य अधिकार कानून है।जनता के मुद्दों पर कहीं जन सुनवाई किसी भी स्तर पर नहीं है।न लोकतंत्र हैं और न कानून का राज।मेहनतकश जनता को बंधुआ मजदूर बनाकर बहुराष्ट्रीय पूंजी के लिए सबसे सस्ता श्रम बाजार बनाया जा रहा है इस देश को,जहां मेहनतकश तबके को न रोजगार और न आजीविका का अधिकार है।

संगठित क्षेत्रों में भुखमरी के हालात पैदा किये जा रहे हैं।न स्थाई नौकरियां हैं,न नियुक्तियां है,भाड़े के मजदूर बन गये हैं हमारे बच्चे,जिनकी नौकरियां कभी भी खत्म की जा सकती है।

हमारी जमीन हमसे छिन सकती है।हमारे चारों ओर आपदाओं ने हमें घेर रखा है।

जल जंगल जमीन प्रकृति और पर्यावरण की नियामतों से बेदखल करने के लिए दुनियाभर के हथियारों का जखीरा है यह मुक्त बाजार और हमारे पास लड़ने के लिए राष्ट्रीय झंडा के अलावा कुछ भी नहीं है।

नेपाल में हम तक काठमाडू से खबरें आ रही है।ग्राउंडजीरों का हाल जानने के लिए आनंदस्वरुप वर्मा,अभिषेक श्रीवास्तव और अमलेंदु की अगुवाई में एक टीम नेपाल को जा रही है जबकि वहां पहुंच चुके इमरान इदरीस का आंखों देखा हाल ह लगा रहे हैं।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के आव्हान पर समाजवादी पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं की एक टोली राहत सामग्री लेकर नेपाल पहुंच गई है। इस दल में युवा नेता इमरान इदरीस भी शामिल हैं, जो ग्राउंड जीरो से लगातार अपडेट कर रहे हैं।

नेपाल में संचार नेटवर्क तहस नहस है और वहां का प्रमुक अखबार कांतिपुर समाचार भी अपडेट नहीं हो पा रहा है।हम कांतिपुर रेडियों से अपडेट ले रहे हैं।गुरखाली हिंदीभाषियों के लिए खासकर उत्तराखंड,सिक्किम और बंगाल के गोरखा इलाकों के लिए अभूझ नहीं है।मराठी और गुजराती की तरह लिपि देवनागरी है.एकबार पढना शुरु करें तो आपको हकीकत समझ में आने लगेगा।

हम भाषाओं की दीवारों को गिराने की मुहिम चला रहे हैं तो सारे माध्यम हमारे लिए जनसचार माध्यम हैं और सारी कलाओं और विधायों के बारे में हमारी एकमात्र कसौटी उसकी जनपक्षधरता है।बाकी कालजयी शस्त्रीय साहित्य कला से हमारा कुछ लेना देना नहीं है।

काठमांडु से बाहर हमारे जो मित्र नेपाल भर में है,वे कितने सकुशलहैं,हम बता नहीं सकते।उनसे हमारा संपर्क नहीं हो पा रहा है।मीडिया सिर्फ काठमांडु और पर्यचन स्तल में तब्दील एवरेस्ट तक फोकस कर रहा है।वैसे ही जैसे केदार जलसुनामी के बाद बाकी हिमालय को हाशिये पर रखकर केदार घाटी का युद्धक कवरेज होता रहा है।हूबहू नेपाल में इस वक्त वही पीपली लाइव है।

नेपाल में राहत और बचाव की राजनीति और राजनय का प्रचार खूब है लेकिन नेपाल ही नहीं,उत्तराखंड,सिक्किम और बंगाल के साथ साथ तिब्बत में मची तबाही की ओर किसी का ध्यान नहीं है।बाकी नेपाल की सिसकियां,कराहें किसी को सुनायी नहीं पड़ रही है,वे भी हमारे डूब में समाहित हैं।यह डूब आखिरकार यह महादेश मुक्तबाजार है।

बिहार और यूपी के मैदानी इलाकों में मरनेवालों की संख्या गिनते हुुए हम भूल रहे हैं कि भारत माला के जरिये यह कारपोरेट केसरिया सरकार सीमा सुरक्षा के नाम पर बिल्डर माफिया के हवाले करने जा रहा है देश के सबसे संवेदनशील इलाके ताकि वहां फिर टिहरी बांध और ब्रह्मपुत्र बांध जैसे परमाणु बम लगा दिये जाये भूकंप और आपदाओं के नये सिलसिले के लिए।

हम सुनामी,बाढ़,दुष्काल,भुखमरी,समुद्री तूफान की यादें साल गुजकरते न गुजरते भुला देने केअभ्यस्त हैं और केदार जलसुनामी में मरे लापता स्वजनों की स्मृतियां भी भुला चुके हैं।

काठमांडु की दिल दहलाने वाली तस्वीरे भी बहुत जल्दी परदे से उतर जाने वाली हैं और नया,और बड़ा भूकंप बिना आवाज मौत की तरह कभी न कभी हमें मोक्ष दिलाने वाला है क्योंकि इस सीमेंट के जंगल में भूकंप रोधक नया बिजनस शुरु होने के बावजूद इस बहुमंजिली सीमेंट की सभ्यता में नैसर्गिक कुछ भी बचा नहीं है।

अर्थशास्त्री और मीडिया जनसंहार के मोर्चे पर गोलबंद हैं और विध्वंसक एटमी पूंजीवादी विकास से प्रकृति और मनुष्य के सर्वनाश के इस जनसंहरी राजसूय के पुरोहित नये पुरोहित बन गये हैं भूगर्भ शास्त्री विशेषज्ञवृंद भी जो हजारों करोड़ साल का भूगर्भीय इतिहास तो बता रहे हैं,लेकिन हिमालय के उत्तुंग शिखरों और समुंदर की गहराइयों में,हवाओं पानियों में इस कायनात को तबाह करने के चाकचौबंद इंतजाम के तहत लगे परमाणु बमों और न्यूक्लियर रिएक्टरों के जनसंहारी कारपोरेट केसरिया फासिस्ट युद्धतंत्र के विकास के नाम विनाश आयोजन पर सिरे से सन्नाटा बुनते चले जा रहे हैं।

निजीकरण को विनिवेश के बाद अब पीपीपी माडल कहा जा रहा है।बैंकों के पढ़े लिखे महाप्रबंधक सत्र के अफसरान तक को मालूम नहीं है कि बाबासाहेब की वजह से बने रिजर्व बैंक के सारे अधिकार सेबी को स्थानांतरित हैं और रिजर्व बैंक के सभी स्ताइस विभागों का प्रबंधन कारपोरेट लोगों के हाथों में है।

बैंक कानून बदलने के बाद भूमि अधिग्रहण कानून,खनन अधिनियम,वनाधिकार कानून समेत  तमाम कायदे कानून बदलकर करीब दो हजार कानूनों को खत्म करने की कवायद करके बिजनेस फ्रेंडली सरकार जो केसरिया कारपोरेट कयामत ला रही है,उससे किसान और मजदूर ही तबाह नहीं होंगे,संगठित क्षेत्रों के मलाईदार लोगों की भी शामत आने वाली है।मसलन सरकारी सारे बैंकों को होल्डिंग कंपनी बनाने की तैयारी है।

दस पंद्रह साल पहले एअर इंडिया के जो अफसरान कर्मचारी हमें सुनने को तैयार नहीं है,थोड़ा उनका हाल जान लीजिये।एफडीआई विनिवेश राज में किसी सेक्टर में कोई कर्मचारी और बड़का तोप अफसर उतना ही सकुसल है,जितने बंधुआ मजदूर में तब्दील देश की बाकी आबादी।मेहनतकशो के सात लामबंद हुए बिना उनकी भी शामत बस अब आने ही वाली है।

रेलवे के कर्मचारियों को मालूम ही नहीं है कि पीपीपी विकास और आधुनिकीकरण के बहाने सारे के सारे बुलेटउन्हीके सीने में दागकर रेलवे का निःशब्द निजीकरण हो गया।

संपूर्ण निजीकरण के इस कारपोरेट केसरिया एजंडा में मारे जाएंगे वे बनिया सकल,खुदरा कारोबारी जिनकी हड्डियां और खून का कार्निवाल आईपीएल ईटेलिंग महमहा रहा है।अरबों जालर की विदेशी कंपनियों के मुकाबले बिजनेस और इंडस्ट्री एकाधिकारवादी बड़े औद्योगिक घरानों के अलावा किसी माई के लाल के लिए असंभव है और टैक्स होलीडे उन्हीं के लिए।आपके यहां तो छापे ही छापे।

महिलाओं के लिए समांती मध्ययुग की दस्तक है।हिंदूकोड बिल के विरोधी सत्ता में है जो बलात्कार को अपराध नहीं मानते,धर्म और संस्कृति मानते हैं मनुस्मृति के मुताबिक।मनुस्मृति के मुताबिक हर स्त्री शूद्र और यौनदासी है।हमने इस पर अंग्रेजी में विस्तार से लिखा है।कृपया हमारी माताें,बहनें जो अंग्रेजी जानकर,पेशेवर जिंदगी में महिला सशक्तीकरण की खुसफहमी हैं,वे गौर करें की यह फासीवाद कैसे बलात्कार संस्कृति का ही पर्याय है।

महानगरों की सेहत के लिए गांवों से लेकर घाटियों तक,किसानों मजदूरों से लेकर स्त्रियों,युवाओं,बच्चों और कारोबारियों और पढ़े लिखे कर्मचारियों तक को बलि चढ़ाया जा रहा है जबकि जनपक्षधर बंधुआ मजदूरों में तब्दील मीडिया के चूजा सप्लायक चूजा शौकीन तबके से अलग ईमानदार लोगों की उंगलियां काट ली गयी हैं और उनकी जुबान पर तालाबंद है।

यह अघोषित आपातकाल है और हम सभी लोग मनुस्मृति गैस चैंबर में सांस सांस के लिये मर मर कर जी रहे हैं।

तो मेहनकश तबके को अस्मिताओं के राजनीतिक तिलिस्म से बाहर निकालने के लिए,पूरे देश के देशभक्त जनगण को देश बचाने की मुहिम में शामिल करके देश बेचो केसरिया कारपोरेट माफिया राष्ट्रद्रोही गिरोह के साथ सड़क पर मोर्चा जमाने के लिए उनके पारमाणविक युद्ध तंत्र के खिलाफ भारत के राष्ट्रीय झंडे को अपना हथियार बनाने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प है ही नहीं।

हाथ कंगन को आरसी क्या,पढ़े लिखे को फारसी क्या,कृपया गौर करेंः

सेज अभियान अब स्मार्टसिटी अभियान है।इकोनामिक्स टाइम्स की इस रपट पर गौर करें ते समझ लीजियेगा ,किसके फायदे के लिए किसकी गरदनें दो दो इंच छोटी कर दी जा रही है और फिर भी कहा जा रहा है,दो बालिश्त और कम।
Apr 30 2015 : The Economic Times (Kolkata)
A Smart Boost for D-St




Investors perturbed over falling Sensex and Nifty may get some solace by focussing on another number likely to be of even greater interest in the coming months and years. This is the combined market cap of cos in cement, construction, consumer electronics, housing finance & cement. At `8.64 lakh crore, the combined value of these cos is about ten times the combined net profit of the Nifty for the year ended March 2015. And the reason why this is interesting should be obvious from the decision taken by the cabinet on Wednesday to clear a massive project to build smart cities.Analysts and fund managers believe that spending boost by govts & local bodies will benefit cos in these six sectors leading, in turn, to higher sales and earnings. Valuations of some of these stocks have become cheap in the recent ongoing stock market slide. Rajesh Mascarenhas brings you some stocks identified by brokerages as among the major beneficiaries of the smart cities programme.




http://epaperbeta.timesofindia.com/index.aspx?eid=31817&dt=20150430

Tuesday, April 28, 2015

Submission--CONSCIENCE KEEPER OF PAKISTAN SABEEN MAHMUD ASSASSINATED IN KARACHI

Submission--CONSCIENCE KEEPER OF PAKISTAN SABEEN MAHMUD ASSASSINATED IN KARACHI

The killing by the assassins at Karachi of a democrat, liberal and secular activist Sabeen Mahmud, a dear friend, is a great loss to the fraternity which is fighting state terrorism, totalitarianism and religious bigotry in the Indian sub-continent. Sabeen, a prominent Pakistani social and human rights activist was shot while she was returning home with her mother after hosting an event on Balochistan's "disappeared people".
Sabeen, 40, was the director of T2F [The Second Floor], a café and arts space that has been a mainstay of Karachi's activists since it opened its doors in 2007. She was one of the country's most outspoken human rights advocates. According to reports she was shot four times at close range, with bullets going through her shoulder, chest and abdomen. She was pronounced dead on arrival at the National Medical Centre hospital in Karachi. Her mother was also shot twice and is fighting for her life.
Sabeen was an outspoken critic of the "disappearance" of thousands of innocent Balochis for resisting the inhuman policies of the Pakistan government towards the Balochis. Sabeen had been present at the opening of a discussion called "Unsilencing Balochistan," hosted at T2F, where prominent Baloch rights activists Mama Qadeer, Farzana Majeed and Muhammad Ali Talpur had been speaking.
Qadeer and Majeed have long championed the cause of Balochistan's "disappeared," a term used to describe people who have been abducted in Balochistan, with their bodies often found years later. The Voice of Baloch Missing Persons organisation, which both activists belong to, says that more than 2,825 people have "disappeared" in this way since 2005. Sabeen was a moving spirit behind the campaign to unearth the truth behind these disappearances.
It is to be noted that "disappearances" or kidnappings by the state intelligence agencies is not confined to Pakistan only. In India's Jammu and Kashmir more than 9000 young Kashmiris are believed to have been kidnapped by the state agencies in last three decades. They remain untraced even today.  In Indian Punjab, thousands "disappeared" when police/military campaign was launched to cleanse Punjab of Sikh militancy. A noted crusader to find out the truth behind these disappearances, lawyer Jaswant Singh Khalra too disappeared on September 6, 1995 never to be found again.  
Sabeen Mahmud was a sane voice against militarization in Pakistan and state terrorism. She was a brave young activist who dared to challenge the evil forces and did not care for her safety. She used to say that what would be the use of surviving when justice, liberty and democracy cease to exist. Those who hired killers believe that by physically liquidating individuals like Sabeen they can win. They can kill an individual but cannot kill ideas. There will be many more Sabeens to carry forward the fight against fascism.  

Shamsul Islam
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मृत्यु हुनेको संख्या १९५२ पुग्योः गृह ६.७ रेक्टरस्केलको भुकम्प फेरि गयो भुगर्वविद्को आँखामा महाभुकम्प


मृत्यु हुनेको संख्या १९५२ पुग्योः गृह


६.७ रेक्टरस्केलको भुकम्प फेरि गयो


भुगर्वविद्को आँखामा महाभुकम्प

-श्रीकमल द्विवेदी


धेरै ठूलो राष्ट्रिय क्षतिको समयमा सबै  सतर्क रहनुपर्छ, तर डराएर भाग्ने र आत्तिने गर्नु हुँदैन। आकस्मिक कार्यमा जुटेका ठाउँमा अनाबश्यक रुपमा रमिते भएर जानु पनि हुँदैन, यस्तो बेलामा भीडले कार्यगर्ने मानिसहरुलाइ बाधा पुर्‍याउँछ। पुरिएका मानिसहरु झि​क्न र घरवारबिहिनहरुलाई सहयोग गर्नुपर्छ। मुख्य धक्का गईसकेको हुँदा चनाखो भई सुरक्षित बस्नु आबस्यक हुन्छ। यो राष्ट्रिय संकटको बेला हामीले गर्नुपर्ने सबै भन्दा ठूलो आपसी सहयोगको हो। विस्तृतमा

 -श्रीकमल द्विवेदी


थ्रष्ट, मेन बाउन्ड्री थ्रस्ट र हिमालयन फ्रन्टल थ्रष्ट हिमालयको समानान्तर रूपमा छन्। ति थ्रष्टहरूबाट चट्टान चिप्लेर छिर्ने क्रममा कुनै क्षेत्रमा अड्केर बस्छ। 
नियमित रूपमा छिर्दा शक्ति सञ्चय हुँदैन भने धेरै घर्षणको कारण लामो समय अड्किएको ठाउँमा धेरै शक्ती सञ्चय हुन जान्छ। यसरी वरपर चिप्लिएर छिर्ने तर कतै अड्कन जाँदा शक्ति सञ्चय भएको ठाउँ अकस्मात फुटेर चलायमान हुँदा उत्पति हुने कम्पन नै भुकम्प हो।
साधारण उदाहरणबाट यो अनुभव गर्न सकिन्छ। एउटा दाह्री काट्ने ब्लेडलाई दुई हातले समाएर बङयाउँदै जाउँ। ब्लेड बाङ्गिदै जाँदा त्यसमा शक्ति सञ्चय हुँदै जान्छ। एउटा बिन्दुमा पुगेपछि ब्लेड भाँचिन्छ, र भाँचिने क्रममा थर्कदै हातमा कम्पन महसुस हुन्छ। यस्तै प्रकृया चट्टानमा हुँदा भुकम्प जान्छ।
नेपालको काठमाडौं पश्चिमको भागमा २०० वर्षभन्दा बढी समयदेखि ठूलो भुकम्प गएको थिएन। यसलाई साइस्मीक ग्याप भनिन्छ। पूर्वी नेपालमा केन्द्र बिन्दु(उदयपुर) भएको बि.सं. १९९० (सन १९३४) मा ठूलो भुकम्प आएको थियो।
यसै गरी सुदूर पश्चिममा वा सँगै जोडिएको गड्बालमा केन्द्रबिन्दु भएको सन् १८०३ मा पनि ७.५ रेक्टर स्केलको भुकम्प गएको थियो। यसै गरी सन १९०५मा कांगडामा पनि ठूलो भुकम्प गएको थियो। यस अवस्थामा पनि काठमाडौं पश्चिमको भागमा धेरै लामो समयसम्म ठूलो भुकम्प नजाँदा भुगर्भविदहरूले ठूलो विनासकारी भुकम्प जाने पूर्वानुमान गरेका थिए। अहिले गएको भुकम्प त्यही "साईस्मिक ग्याप" मा गएको भुकम्प भएको अनुमान छ।
भुकम्प जाँदा मुख्य धक्का, त्यस अगाडि जाने पूर्व धक्का र पछि जाने धक्का वा आफ्टर शक्स हुन्छन्। कहिले काही मुख्य धक्का आउनु अगाडि साना साना धक्काहरू जाने गर्छन्। तर, बिना पूर्व-धक्का एकै पटक मुख्य धक्का पनि जान्छ। तर मुख्य धक्का पछि साना साना छोटो समयका धक्काहरु केही अन्तरालमा गईरहनु स्बभाविक हो।
यो प्रकृया केहि घण्टादेखि केहि दिनसम्म गइरहन सक्छ। प्रायः मानिसहरू यसैलाई भुईँचालो फर्केको भन्ने गर्छन्। धेरै समय अड्केर फुटेपछि चलेको धाँजामा केही समयसम्म चलाएमान हुनु स्बभाबिक भौगर्भिक प्रकृया हो। योपछि जाने धक्का वा आफ्टर शक्सहरूको पनि कुनै पूर्वानुमान गर्न सकिँदैन। यति बजे फेरि भुकम्प जान्छ भन्ने हल्ला मात्र हो।
ठूलो भुकम्पले भत्काएको घर वा चर्केको छ भने त्यस्तोमा बस्नु हुँदैन। ठूलो धक्काले चर्काएका संरचनाहरू पछि आउने साना धक्काले पनि भत्काउन सक्छ। तर मुख्य धक्कामा केही पनि क्षति नभएको घर छ भने खस्ने ढल्ने सामान नभएका कोठाहरूमा बस्दा केही हुँदैन। आत्तिएर भाग्दा बरू दुर्घटना हुन सक्छ।
भुकम्पको मापन गर्ने रेक्टर स्केल 'लग स्केल' प्रणालीबाट नापिने हुँदा ७.८ र ५.५ को शक्तिमा सयौं गुणा फरक हुन्छ। त्यसैले कमजोर कम्पनले ठूलो कम्पनले क्षति नगरेको संरचना भत्काउने सम्भावना धेरै कम हुन्छ।
काठामाडौं उपत्यका हजारौं वर्ष अगाडि ताल पुरिएर बनेको थेग्रिनीबाट बनेको छ। माटो बालुवाको तहमुनि चट्टान कतै कतै ५०० मिटरभन्दा तल छ। जति मोटो माटो बालुवाको तह छ त्यती नै बढि म्याग्निफिकेशन हुन्छ। उदाहरणको लागि कल्पना गरौं हामी बसमा बसेको छौं, यदि स्प्रिङको सिटमा बस्नु भएको छ भने बस चल्दा बढी लचक-लचक गर्दै  हल्लिन्छ, तर काठको सिटमा बस्दाको थर्काई कम हुन्छ। यसै गरी उपत्यकामा पनि जुन क्षेत्रमा धेरै थिग्रेनी ( सेडिमेन्ट) को तह छ त्यहाँ क्षति धेरै हुन जान्छ।
यसैगरी संरचना बनाउँदाको गलत डिजाईन, निर्माण सामाग्रीहरुको न्युन  गुणस्तर र कर्मीहरूको न्युन सिपले पनि क्षति बढाउँछ। सानो जग्गामा धेरै अग्लो घरहरू जगैदेखि उखेलिएको पनि देखिएका छन्। धेरै पर्खालहरु लडेका छन्। संरचना बलियो भए पनि सामानहरू खसेर पनि क्षति हुन जान्छ।
भुकम्पले पहिरो ल्याउन पनि सक्छ। यस्ता पहिरोहरुले खोला नदि थुनिन पनि सक्छ। यदि नदि थुनिएर बाँध बनेको छ भने त्यो फुटेर तल्लो तटमा ठूलो बाढी आउन पनि सक्छ। यदि नदिको बहाब घटेको छ भने नदि थुनिएको अनुमान गर्न सकिन्छ। हिमाली क्षेत्रमा हिमपहिरो पनि आउन सक्छ। यस्ता हिम पहिरोबाट पनि ठूलो बाढी आउन सक्छ।
धेरै ठूलो राष्ट्रिय क्षतिको समयमा सबै  सतर्क रहनुपर्छ, तर डराएर भाग्ने र आत्तिने गर्नु हुँदैन। आकस्मिक कार्यमा जुटेका ठाउँमा अनाबश्यक रुपमा रमिते भएर जानु पनि हुँदैन, यस्तो बेलामा भीडले कार्यगर्ने मानिसहरुलाइ बाधा पुर्‍याउँछ। पुरिएका मानिसहरु झिक्न र घरवारबिहिनहरुलाई सहयोग गर्नुपर्छ। मुख्य धक्का गईसकेको हुँदा चनाखो भई सुरक्षित बस्नु आबस्यक हुन्छ। यो राष्ट्रिय संकटको बेला हामीले गर्नुपर्ने सबै भन्दा ठूलो आपसी सहयोगको हो।
लेखक भुगर्वविद् हुन्।
प्रमुख तस्विरः गिरीश गिरी/सेतोपाटी

प्रकाशित मिति: आइतबार, बैशाख १३, २०७२ ०९:४९:५०


धेरै ठूलो राष्ट्रिय क्षतिको समयमा सबै  सतर्क रहनुपर्छ, तर डराएर भाग्ने र आत्तिने गर्नु हुँदैन। आकस्मिक कार्यमा जुटेका ठाउँमा अनाबश्यक रुपमा रमिते भएर जानु पनि हुँदैन, यस्तो बेलामा भीडले कार्यगर्ने मानिसहरुलाइ बाधा पुर्‍याउँछ। पुरिएका मानिसहरु झि​क्न र घरवारबिहिनहरुलाई सहयोग गर्नुपर्छ। मुख्य धक्का गईसकेको हुँदा चनाखो भई सुरक्षित बस्नु आबस्यक हुन्छ। यो राष्ट्रिय संकटको बेला हामीले गर्नुपर्ने सबै भन्दा ठूलो आपसी सहयोगको हो। विस्तृतमा

 ट्विटर पर छबि देखें

भुगर्वविद्को आँखामा महाभुकम्प

श्रीकमल द्विवेदी 

थ्रष्ट, मेन बाउन्ड्री थ्रस्ट र हिमालयन फ्रन्टल थ्रष्ट हिमालयको समानान्तर रूपमा छन्। ति थ्रष्टहरूबाट चट्टान चिप्लेर छिर्ने क्रममा कुनै क्षेत्रमा अड्केर बस्छ। 
नियमित रूपमा छिर्दा शक्ति सञ्चय हुँदैन भने धेरै घर्षणको कारण लामो समय अड्किएको ठाउँमा धेरै शक्ती सञ्चय हुन जान्छ। यसरी वरपर चिप्लिएर छिर्ने तर कतै अड्कन जाँदा शक्ति सञ्चय भएको ठाउँ अकस्मात फुटेर चलायमान हुँदा उत्पति हुने कम्पन नै भुकम्प हो।
साधारण उदाहरणबाट यो अनुभव गर्न सकिन्छ। एउटा दाह्री काट्ने ब्लेडलाई दुई हातले समाएर बङयाउँदै जाउँ। ब्लेड बाङ्गिदै जाँदा त्यसमा शक्ति सञ्चय हुँदै जान्छ। एउटा बिन्दुमा पुगेपछि ब्लेड भाँचिन्छ, र भाँचिने क्रममा थर्कदै हातमा कम्पन महसुस हुन्छ। यस्तै प्रकृया चट्टानमा हुँदा भुकम्प जान्छ।
नेपालको काठमाडौं पश्चिमको भागमा २०० वर्षभन्दा बढी समयदेखि ठूलो भुकम्प गएको थिएन। यसलाई साइस्मीक ग्याप भनिन्छ। पूर्वी नेपालमा केन्द्र बिन्दु(उदयपुर) भएको बि.सं. १९९० (सन १९३४) मा ठूलो भुकम्प आएको थियो।
यसै गरी सुदूर पश्चिममा वा सँगै जोडिएको गड्बालमा केन्द्रबिन्दु भएको सन् १८०३ मा पनि ७.५ रेक्टर स्केलको भुकम्प गएको थियो। यसै गरी सन १९०५मा कांगडामा पनि ठूलो भुकम्प गएको थियो। यस अवस्थामा पनि काठमाडौं पश्चिमको भागमा धेरै लामो समयसम्म ठूलो भुकम्प नजाँदा भुगर्भविदहरूले ठूलो विनासकारी भुकम्प जाने पूर्वानुमान गरेका थिए। अहिले गएको भुकम्प त्यही "साईस्मिक ग्याप" मा गएको भुकम्प भएको अनुमान छ।
भुकम्प जाँदा मुख्य धक्का, त्यस अगाडि जाने पूर्व धक्का र पछि जाने धक्का वा आफ्टर शक्स हुन्छन्। कहिले काही मुख्य धक्का आउनु अगाडि साना साना धक्काहरू जाने गर्छन्। तर, बिना पूर्व-धक्का एकै पटक मुख्य धक्का पनि जान्छ। तर मुख्य धक्का पछि साना साना छोटो समयका धक्काहरु केही अन्तरालमा गईरहनु स्बभाविक हो।
यो प्रकृया केहि घण्टादेखि केहि दिनसम्म गइरहन सक्छ। प्रायः मानिसहरू यसैलाई भुईँचालो फर्केको भन्ने गर्छन्। धेरै समय अड्केर फुटेपछि चलेको धाँजामा केही समयसम्म चलाएमान हुनु स्बभाबिक भौगर्भिक प्रकृया हो। योपछि जाने धक्का वा आफ्टर शक्सहरूको पनि कुनै पूर्वानुमान गर्न सकिँदैन। यति बजे फेरि भुकम्प जान्छ भन्ने हल्ला मात्र हो।
ठूलो भुकम्पले भत्काएको घर वा चर्केको छ भने त्यस्तोमा बस्नु हुँदैन। ठूलो धक्काले चर्काएका संरचनाहरू पछि आउने साना धक्काले पनि भत्काउन सक्छ। तर मुख्य धक्कामा केही पनि क्षति नभएको घर छ भने खस्ने ढल्ने सामान नभएका कोठाहरूमा बस्दा केही हुँदैन। आत्तिएर भाग्दा बरू दुर्घटना हुन सक्छ।
भुकम्पको मापन गर्ने रेक्टर स्केल 'लग स्केल' प्रणालीबाट नापिने हुँदा ७.८ र ५.५ को शक्तिमा सयौं गुणा फरक हुन्छ। त्यसैले कमजोर कम्पनले ठूलो कम्पनले क्षति नगरेको संरचना भत्काउने सम्भावना धेरै कम हुन्छ।
काठामाडौं उपत्यका हजारौं वर्ष अगाडि ताल पुरिएर बनेको थेग्रिनीबाट बनेको छ। माटो बालुवाको तहमुनि चट्टान कतै कतै ५०० मिटरभन्दा तल छ। जति मोटो माटो बालुवाको तह छ त्यती नै बढि म्याग्निफिकेशन हुन्छ। उदाहरणको लागि कल्पना गरौं हामी बसमा बसेको छौं, यदि स्प्रिङको सिटमा बस्नु भएको छ भने बस चल्दा बढी लचक-लचक गर्दै  हल्लिन्छ, तर काठको सिटमा बस्दाको थर्काई कम हुन्छ। यसै गरी उपत्यकामा पनि जुन क्षेत्रमा धेरै थिग्रेनी ( सेडिमेन्ट) को तह छ त्यहाँ क्षति धेरै हुन जान्छ।
यसैगरी संरचना बनाउँदाको गलत डिजाईन, निर्माण सामाग्रीहरुको न्युन  गुणस्तर र कर्मीहरूको न्युन सिपले पनि क्षति बढाउँछ। सानो जग्गामा धेरै अग्लो घरहरू जगैदेखि उखेलिएको पनि देखिएका छन्। धेरै पर्खालहरु लडेका छन्। संरचना बलियो भए पनि सामानहरू खसेर पनि क्षति हुन जान्छ।
भुकम्पले पहिरो ल्याउन पनि सक्छ। यस्ता पहिरोहरुले खोला नदि थुनिन पनि सक्छ। यदि नदि थुनिएर बाँध बनेको छ भने त्यो फुटेर तल्लो तटमा ठूलो बाढी आउन पनि सक्छ। यदि नदिको बहाब घटेको छ भने नदि थुनिएको अनुमान गर्न सकिन्छ। हिमाली क्षेत्रमा हिमपहिरो पनि आउन सक्छ। यस्ता हिम पहिरोबाट पनि ठूलो बाढी आउन सक्छ।
धेरै ठूलो राष्ट्रिय क्षतिको समयमा सबै  सतर्क रहनुपर्छ, तर डराएर भाग्ने र आत्तिने गर्नु हुँदैन। आकस्मिक कार्यमा जुटेका ठाउँमा अनाबश्यक रुपमा रमिते भएर जानु पनि हुँदैन, यस्तो बेलामा भीडले कार्यगर्ने मानिसहरुलाइ बाधा पुर्‍याउँछ। पुरिएका मानिसहरु झिक्न र घरवारबिहिनहरुलाई सहयोग गर्नुपर्छ। मुख्य धक्का गईसकेको हुँदा चनाखो भई सुरक्षित बस्नु आबस्यक हुन्छ। यो राष्ट्रिय संकटको बेला हामीले गर्नुपर्ने सबै भन्दा ठूलो आपसी सहयोगको हो।
लेखक भुगर्वविद् हुन्।
प्रमुख तस्विरः गिरीश गिरी/सेतोपाटी

प्रकाशित मिति: आइतबार, बैशाख १३, २०७२ ०९:४९:५०


Blatant Attack on Democracy in West Bengal বাংলা বন‍্ধের দিকে এগোচ্ছে বামফ্রন্ট

Blatant Attack on Democracy in West Bengal


Press Statement



The Polit Bureau of the Communist Party of India (Marxist) has issued the
following statement:



Blatant Attack on Democracy in West Bengal



The elections to 91 municipalities including two corporations in West Bengal
held on April 25, 2015 constitute a total mockery of democracy. In these and
the election to the Kolkata Municipal Corporation a week earlier, there was
a high degree of people's enthusiasm and a large number of women turned out
to cast their vote. However, these innocent people were met with political
workers and armed hooligans representing the ruling party in the state, the
Trinamool Congress, who denied them the right to a free and fair election.
Polling booths were captured, opposition parties agents driven out and
voting manipulated. A small contingent of central forces sent on the eve of
the election were not deployed by the state government and instead sent for
sightseeing. This is a blot on Indian democracy.



In various parts of the state there was widespread people's resistance
against such display of muscle power and manipulation of the democratic
process. Many were injured and some are critical and are admitted to various
hospitals in the state.



The CPI(M) calls upon the people of West Bengal who have a tradition of
fighting against such authoritarian terror and who established a record of
restoring democracy through people's struggles to resist such attacks on
democracy by the Trinamool Congress in the state.



A large number of intellectuals and people who had served in high
constitutional positions in the country in the past have come together to
form a Save Democracy Forum. Leading lights of the movement were also denied
their legal right to vote.



The Election Commission of India must review these developments, though
these fall under the purview of the State Election Commission and the state
government. This is necessary to learn lessons and prepare for adequate
arrangements when the state assembly elections are held in 2016.

For Central Committee Office

বাংলা বন‍্ধের দিকে এগোচ্ছে বামফ্রন্ট

বামফ্রন্টের নেতারা মিছিল করে রাজ্য নির্বাচন কমিশনের কাছে ডেপুটেশন দেন৷‌ আজ রবিবার বিকেলে ফের বামফ্রন্টের বৈঠক হবে৷‌ ঠিক হয়েছে বামফ্রন্ট এই প্রহসনের চূড়ান্ত প্রতিবাদ জানাবে৷‌ তা যে বাংলা বন‍্ধ পর্যন্ত যেতে পারে তার ইঙ্গিত মিলেছে৷‌ উল্লেখ্য, ৩০ এপ্রিল সর্বভারতীয় স্তরে সমস্ত শ্রমিক সংগঠন একসঙ্গে পরিবহণ ধর্মঘটের ডাক দিয়েছে৷‌ সেই দিনই বন‍্ধ ডাকা হবে, নাকি অন্যদিন, তা ঠিক হবে বামফ্রন্টের বৈঠকে৷‌ এদিন বিকেলে বামফ্রন্টের বৈঠকের পর বিমান বসু সাংবাদিকদের বলেন, এই সরকার ও প্রশাসনের লক্ষ্য ছিল ভোটকে প্রহসনে পরিণত করা৷‌ সেটাই হয়েছে৷‌ এই বাংলায় অনেক ভোট দেখেছি, এমন ভোট কখনও দেখিনি৷‌ তিনি বলেন, আমরা যেমন আশঙ্কা প্রকাশ করেছিলাম সেই মতোই ৯১টির মধ্যে অধিকাংশ পুরসভাতেই তৃণমূল কংগ্রেসের দুষ্কৃতীবাহিনী পুলিসের মদতে বুথ দখল, ই ভি এম লুট, ভাঙচুর, বিরোধী প্রার্থীদের ও পোলিং এজেন্টদের বোমা, গুলি, পিস্তল নিয়ে হামলা চালিয়েছে৷‌ সাধারণ ভোটারদের ভোটদানের অধিকারকে হরণ করেছে৷‌ এমনকী নির্বাচনী আধিকারিক এবং বুথ কর্মীরাও রেহাই পানিনি৷‌ বিমান বসু বলেন, কেন্দৃীয় বাহিনী শেষ মুহূর্তে যে কেন্দ্রীয় সরকার ভোটের জন্য পাঠিয়েছিল, তাদের দেখা গেছে হাজারদুয়ারিতে হাওয়া খাচ্ছেন৷‌ সব মিলিয়ে এ পর্যন্ত প্রায় ৩০০ বুথে পুনরায় ভোটের দাবি জানানো হয়েছে৷‌ বামফ্রন্টের বৈঠকে বিভিন্ন জেলা থেকে যে চিত্র এসেছে তাতে জানা গেছে, উত্তর ২৪ পরগনা জেলার ২৩টি পুরসভায় অধিকাংশ এলাকাতেই ভোট লুট হয়েছে বুথ দখল করে৷‌ বহু সাধারণ মানুষ দুষ্কৃতীদের আতঙ্কে ভোট দিতেই বের হননি৷‌ দক্ষিণ দিনাজপুরে প্রাক্তন মন্ত্রী নারায়ণ বিশ্বাস আক্রান্ত হয়েছেন৷‌ পুলিস সামনে থাকলেও উদ্ধার করেনি৷‌ বরং ৮০ বছরের এক বৃদ্ধ ভোটার তাঁকে বাঁচাতে এসে নিজে প্রাণ দ্যিয়েছেন৷‌ নদীয়ার কল্যাণী হরিণঘাটায় বহিরাগতদের দিয়ে বুথ দখল করে কার্যত ভোট লুট করেছে তৃণমূল৷‌ বর্ধমানের কাটোয়াতে পুলিস স্টেশন লাগোয়া বুথে অবাধ বুথ দখল ও হামলা চলেছে৷‌ হুগলির বাঁশবেড়িয়াতে ভোটগ্রহণে বাধা দিলে প্রার্থীরা রাস্তায় বসে বিক্ষোভ দেখান৷‌ দক্ষিণ ২৪ পরগনার সোনারপুর পুরসভায় বহিরাগত দুষ্কৃতীরা দেদার ছাপ্পা ভোট দিয়েছে৷‌ হাওড়ার উলুবেড়িয়াতে ১১টি ওয়ার্ড কার্যত দখল করে নেয় তৃণমূলের দুষ্কৃতীবাহিনী৷‌ কোথাও কোথাও বামপম্হীরা সাধারণ মানুষকে নিয়ে প্রতিরোধ করেছেন৷‌ প্রতিরোধ করার ফলেই বহু এলাকায় মানুষ রক্তাক্ত হয়েছেন৷‌ তবে সব চেয়ে খারাপ ভূমিকা নিয়েছে রাজ্যের পুলিস৷‌ কার্যত বহিরাগতদের ভোট লুটে সহায়তা করা ছাড়া তাদের কোনও কাজ ছিল না৷‌ দুষ্কৃতীরা তাদের সামনেই অস্ত্র হাতে লাফিয়ে বেড়িয়েছে৷‌ এদিন সকালে অবস্হানের সময়েই বামফ্রন্টের মঞ্চে একের পর এক এই সব খবর আসছিল৷‌ এরপর দুপুরে বিমান বসু, সূর্যকান্ত মিশ্র, ক্ষিতি গোস্বামী, মনোজ ভট্টাচার্য, হাফিজ আলম সাইরানি, রবীন দেবদের নেতৃত্বে একটি বড়সড় মিছিল নির্বাচন কমিশনারের অফিস পর্যন্ত যায়৷‌ সেখানে ডেপুটেশনও দেন তাঁরা৷‌ ৫ দফা দাবি জানিয়ে এসে বাইরে সাংবাদিকদের কাছে বিমান বসু বলেন, আমরা যতটুকু খবর জানি তা-ও জানেন না এই কমিশনার৷‌ তাঁকে নাকি কোনও রিপোর্টই দিচ্ছেন না অফিসাররা৷‌ কাটোয়াতে একটি বুথ থেকে ই ভি এম চলে যায় তৃণমূলের পার্টি অফিসে৷‌ সে খবরও নেই তাঁর কাছে৷‌ একজন যে মারা গেছেন কাটোয়াতে, তা-ও জানেন না তিনি৷‌ আশ্চর্য কমিশন! উত্তরবঙ্গে জলপাইগুড়ি ও শিলিগুড়ি পুরসভাতেও একই চিত্র৷‌ তবে সেখানকার সাধারণ মানুষ দুষ্কৃতীদের প্রতিরোধ করেছেন৷‌ ফলে সেখানে বেশ কিছু মানুষ তাঁদের ভোটাধিকার প্রয়োগ করেছেন৷‌ এদিন অবস্হানে সূর্যকান্ত মিশ্র জানান, বাঁকুড়ার সোনামুখীতে বহিরাগতদের ধরে সাধারণ মানুষই পুলিসের হাতে তুলে দেন৷‌ বুঝুন পুলিস কী করছিল! মুখ্যমন্ত্রী আসলে পুলিসকেই ঘরে ঢুকিয়ে দিয়েছিলেন৷‌ আমরা আগে থেকেই বলে আসছিলাম, এই কমিশন, পুলিস প্রশাসনের ওপর ভরসা রেখে লাভ নেই৷‌ মানুষকে তাঁর গণতান্ত্রিক অধিকার প্রয়োগ করতে হবে ঐক্যবদ্ধভাবে৷‌ মানুষের শক্তির ওপরেই ভরসা করছি৷‌ মানুষ যতটা পেরেছেন এর প্রতিরোধ করেছেন৷‌ এভাবেই গণ-প্রতিবাদ গণ-প্রতিরোধে পরিণত হবে৷‌ বিমান বসু এদিন জানিয়েছেন, মহিলারাও এই ভোটে ছাড় পাননি৷‌ তাঁরাও আক্রান্ত হয়েছেন৷‌ সাধারণ মানুষকে ধোঁকা দিয়ে আজ যে নজিরবিহীন সন্ত্রাসের পরিবেশে ভোটলুট হয়েছে তার জন্য দায়ী রাজ্য সরকার, প্রশাসন ও পুলিস৷‌ এই সন্ত্রাসের চেহারা জাতীয় স্তরেও প্রচারের উদ্যোগ নেওয়া হবে৷‌ বিমান বসু জানিয়েছেন, শ্রমিক সংগঠনগুলি ৩০ এপ্রিল যে সিদ্ধান্ত নেবে তাকে সমর্থন জানাবে বামফ্রন্ট৷‌ তবে বামফ্রন্টের বৈঠকে পরবর্তী কর্মসূচি ঠিক করা হবে৷‌


Press Release – JAAG condemns and protests the detention of Shri Lakhan Musafir in Gujarat

Press Release – JAAG condemns and protests the detention of Shri Lakhan Musafir in Gujarat


Jameen Adhikar Andolan – Gujarat (JAAG)
Khet Bhavan, Opp. Cargo Motors, Near Gandhi AshramAhmedabad
26th April 2015
PRESSNOTE
To,
Editor/Bureau Chief
Travesty of democracy and human rights 
JAAG condemns and protests the detention of Shri Lakhan Musafir 
Shri Sagar Rabari and Persis Ginwalla of JAAG, through a press release, have stated that:
Having turned human rights and democratic norms into rhetoric only, the Government of Gujarat is running scared of people's voice. There is a new form of suppression of people's voices which has now been fine tuned by the Gujarat police viz. whenever there is a public programme of the Chief Minister, the police affects detentions, house arrest-like conditions or preventive arrests of non-political grassroots activists and workers till the completion of the CM's programme. No reasons for these are ever given.
In view of the CM's programme in the area, the police have taken Shri Lakhan Musafir, the leader of the successful anti-KADA movement of the people of Kevadia area, into preventive custody. If the CM is so afraid of the people and wants to keep a distance from them, then why have a public programme at all? Do leaders who fear the people have any moral right to remain in public life?
We strongly condemn and oppose this undemocratic behaviour of the Government of Gujarat and the Gujarat Police of arresting Shri Lakhan Musafir and suppressing other voices of dissent in Gujarat.
Sagar Rabari                                                                                                  Persis Ginwalla
Jameen Adhikar Andolan – Gujarat

मगर हम चेतेंगे थोड़े ही. हम जल विद्युत् परियोजनाएँ भी बनायेंगे और परमाणु संयन्त्र भी. प्रकृति चाहे केदारनाथ के बहाने बताये, चाहे काठमांडू के, हमारा विकास हर विज्ञान पर भारी पड़ता है.

Rajiv Lochan Sah
कल दोपहर से अपने साढू भाई अशोक ब मल्ल और उनके परिवार की कुशल के लिये चिंतित रहा और याद करता रहा २ वर्ष पहले स्वयं पोस्ट किये डॉ. विनोद कुमार गौड़ के इस इंटरव्यू को, जिसमें उन्होंने हिमालय में भूकम्प के खतरे और जैंतापुर परमाणु संयन्त्र आदि पर बातचीत की है.
अशोक भिनाजू से लगभग 18 घण्टों की मशक्कत के बाद सम्पर्क हो पाया और उनसे सुना कि कल रात कैसे पूरा काठमांडू सड़कों पर खड़ा रहा. सुबह के वक़्त वर्षा शुरू हो जाने के बाद ही लोग घरों में जाने की हिम्मत कर पाए.
मगर हम चेतेंगे थोड़े ही. हम जल विद्युत् परियोजनाएँ भी बनायेंगे और परमाणु संयन्त्र भी. प्रकृति चाहे केदारनाथ के बहाने बताये, चाहे काठमांडू के, हमारा विकास हर विज्ञान पर भारी पड़ता है.

नैनीताल के सिर पर एक ‘वाटर बम’

अपने शीर्षक से यह लेख अत्यन्त दिलचस्प या सनसनीखेज लग रहा होगा, मगर यह एक खतरनाक सच्चाई है जो आपके आसपास भी घट रही होगी. अगर आप अपने आसपास ऐसी विकास योजनाओं को बनते देख रहे हों, जिनकी आप को जरूरत नहीं थी और जिनकी आपने कभी माँग भी नहीं की थी, तो पता लगाइए. जरूरत पड़ने पर RTI का सहारा लीजिये. वह जरूर ADB की परियोजना निकलेगी. जन कल्याण के नाम पर बनाई जा रही ऐसी परियोजनाएं शिक्षा, स्वास्थ्य, लोनिवि, पर्यटन और न जाने कहाँ-कहाँ घुसी हुई हैं. इनमें एक रुपये का काम चार रुपये में हो रहा है, हमारे मुख्यमंत्री, मंत्री, राजनेता, नौकरशाह, एनजीओ, देशी-विदेशी कम्पनियाँ और छोटे-बड़े ठेकेदार मालामाल हो रहे हैं और हम पर तथा हमारी आने वाली पीढ़ियों पर अरबों रुपये का क़र्ज़ थोपा जा रहा है.



पूरे देश को कर्ज में डुबा देने वाली जो संस्थायें भारत में सक्रिय हैं, उनमें विश्व बैंक तथा एशिया डेवलपमेंट बैंक (ए.डी.बी.) का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। जहाँ तक उत्तराखंड का सवाल है, यहाँ पिछ...
NAINITALSAMACHAR.COM|BY पूरन मेहरा

केदार का मौन

पेशावर का महानायकः वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली दिनेश ध्यानी

पेशावर का महानायकः वीरचन्द्र

 सिंह गढ़वाली

दिनेश ध्यानी 

आज हम जिस आजादी में संास ले रहे हैं वह हमें ऐसे ही नही मिल गई थी इसके लाखों लोगों को अनेकों कुर्वानिंया दी यातनायें सही। लोगों ने सोचा था कि देश आजाद होगा हम आजाद होगें हमें अपना विकास और अपने तरीके से जीवन जीने के अवसर मिलेंगे लेकिन आजादी के बाद जिस तरह से देश का विभाजन हुआ वह भारतीय इतिहास में सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण रहा। देश के विभाजन को दंश आजादी के छः दशक बाद भी लोगों को चैन से नही रहने दे रहा है। आजादी के बाद जो अल्पसंख्यक पाकिस्तान में रह रहे हैं जिन्हौने तब देश की आजादी के लिए जंग लड़ी थी वे अपने ही देश में बंधुवा मजदूरों से भी बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। जब-जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है उन लोगों का जीवन नरक हो जाता है। हाल ही के दिनों में मुम्बई बम धमाकों के बाद वहां रह रहे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को लूटा जा रहा है उनकी बहू बेटियां सुरक्षित नही हैं। उन्हें कहा जा रहा है कि या तो मजहब बदलो या देश बदलो। वे लोग किससे से पूछें कि हमारा क्या कसूर है? क्या यही हमारा दोष है कि हम अपने देश में ही रहे? दिल्ली में बैठकर बंटवारा करने वाले क्या जाने के बलूस्तिान व पेशावर में रह रहे हिन्दू किस हाल में हैं और इस बंटवारे के बाद उनपर क्या कहर बरपेगा। यही हाल हिन्दुस्तान में भी था। बंटवारे के बाद भी कुछ लोग थे जिन्हें अपना वतन प्यारा था और वे अपने ही देश में ही रह गये लेकिन समय के साथ-साथ उनके जीवन और अस्तित्व पर संकट गहराता जा रहा है।कश्मीर समस्या हो या पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद हो ये कुछ ऐसे मसले हैं जो आजादी के बाद से हमेशा से हमारे लिए सरदर्द बने हुए हैं। लोगों ने कभी नही सोचा था कि आजादी के बाद हमें इस प्रकार की समस्याओं से दशकांे बाद तक दो-चार होना पडेगा। भारतीय स्वाधीनका संग्राम के स्वतत्रंता सेनानियों ने अपनी सर्वस्व को दंाव पर लगाकर यह आजादी दिलाई थी लेकिन आजादी के बाद काले अंग्रेजों ने उन क्रान्तिकारियों को भी जलील करने में कोई कोर कसर नही छोड़ी। इसी प्रकार का दंश पेशावर की अमर क्रान्ति के जनक और प्रखर स्वतंत्रता सेनानी वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली को भी आजीवन झेलना पड़ा। लेकिन हिमालय का यह बेटा आजीवन अपने सिद्धान्तों के लिए लड़ता रहा लेकिन किसी के आगे झुका नही। वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली जिनका नाम आज देश से अधिक पेशावर और पाकिस्तान में बड़े सम्मान से लिया जाता है। लेकिन आजाद में उनके योगदान को काले शासकों ने अपनी राजनीति में बाधा समझकर हमेशा कम करके आंका और इस जांबाज सिपाही को कभी भी चैनी से नही रहने दिया। आज गढ़वाली जी इस संसार में नही हैं लेकिन आज भी उनके परिजन दर-दर की ठोकर खा रहे हैं किसी को उनकी सुध लेने की फुरसत नही है। उत्तराखण्ड में चन्द्रसिंह गढ़वाली के नाम से अनेकों सरकारी योजनायें चल रही हैं लेकिन गढ़वाली जी की अल्मोड़ा की पुस्तैनी जमीन के बदले कोटद्वार हल्ुदखत्ता में जो 60 बीघा जमीन लीज पर दी गई थी वह आज भी लीज पर है और कोटद्वार में होते हुए भी उसको परिसीमन में उत्तर प्रदेश में दिखाया गया है। उनके परिजनों की इस मांग को कि हमें इस जमीन के बदले में चाहे कम जमीन दे दो लेकिन हमें मालिकाना हक तो दो। इस बात पर किसी के कान पर जंू नही रेंगती है। अपने चेहतों को औने-पौंने दामों पर ऐकड़ों जमीन देने वाले राजनेता जानते हैं कि चन्द्रसिंह गढ़वाली के आज उनके लिए वोट बैंक नही हैं इसलिए उनके परिजनों की हालात को कौन समझे। गढ़वाली जी सहित कई वीर सैनिक हैं जिनके परिजनों को तथा जीवित स्वतत्रता सेनानियो ंको आज कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।लगभग 78 वर्ष पूर्व 23 अपै्रल 1930 को पेशावर में रायल गढवाल राइफल्स के वीर गढ़वाली सैनिकों ने अंग्रेजों के आदेश का उलंघन करते हुए पेशावर में अपनी मांगों के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे निहत्थे पठानों पर गोलियां चलाने से मना कर दिया था। गढ़वाली सैनिकों की अचानक इस बगावत से अंग्रेज शासकों की पांवों तले की जमीन खिसक गई। अंग्रेजी हुकूमत का हुक्म न मानकर गढ़वाली सैनिकों ने सैकड़ों निहत्थे पठानों की जान बचाई ही देश की आजादी के लिए लड़ रहे लोगों को एक दिशा भी दी। पेशावर की यह घटना देश के इतिहास में एक ऐसी घटना थी जिसके बारे में नेताजी सुभाषचन्द्र वोस ने कहा कि हमें आजाद हिन्द फौज सेना के गठन की प्रेरणा रायल गढ़वाल राईफल्स के जवानों की पेशावर की बगावत से मिला। अब देश को आजाद होने से कोई नही रोक सकता। तब महात्मा गांधी ने कहा था कि वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली यदि मुझे पहले मिल गया होता तो देश कब का आजाद हो गया होता। यह अलग बात है कि देश के आजाद होन के बाद कहते हैं कि गांधी जी से जब पेशावर की बगावत तथा उसके बन्दियों के बारे में पूछा गया तो तब गांधी जी ने कहा था कि पेशावर में 23 अपै्रल 1930 को गढ़वाली सैनिकों ने सर्वोंच्च सत्ता के खिलाफ बगावत की थी और बगावत बगावत होती है इसलिए हम इस बगावत को मान्यता नही देते हैं। यही कारण रहा कि सन् 1947 में देश आजाद हो गया लेकिन पेशावर के बहादुर सैनिकों को सरकार की तरफ से कुछ भी सहयोग या सम्मान नही मिला। सन् 1974 में जाकर इन वीर सैनिकों को स्वतत्रता सेनानियों का दर्जा दिया गया व 65 रूपये पेंशन तय की गई। तब तक कई वीर सैनिक दिवंगत हो चुके थे। वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली को जो पेंशन दी गई उन्हौंने उसे लेने से मना कर दिया था। असल में पेशावर में गढ़वाली वीर सैनिकों ने जो बगावत की उसकी योजना एकदम नही बनी। वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली 11 सितम्बर 1914 को घर से भागकर लैन्सडौंन में 2/18 गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हो गये थे। अगस्त 1915 ई. में चन्द्र सिंह प्रथम विश्व युद्ध में मित्र देशों की ओर से लड़ने के लिए फ्रांस गये वहंा जब फ्रांसीसी हिन्दुस्तानी सैनिकों को मिलने लगे पुलिस द्वारा उन्हें रोक दिया। पूछने पर पता चला कि अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को बता दिया था कि हिन्दुस्तानी हमारे गुलाम हैं इसलिए तुम्हारे से ऐसा व्यवहार किया जा रहा है। अंग्रेज सेना में हिन्दुस्तानी सैनिकों को कम वेतन देते थे और अंग्रेज सैनिकों को उनसे पांच गुना वेतन देते थे। हिन्दुस्तानी सैनिकों को गुलाम समझते थे यही कारण था कि हिन्दुस्तानी ओहदेदार मामूली अंग्रेज सैनिकों को सल्यूट मारते थे। 1920 में गढ़वाल में अकाल पडा अंग्रेजों ने सेना में जो ओहदेदार थे उन्हें कहा कि यदि सेना में रहना है तो आम सिपाही बनकर रहो तथा पन्द्रह साल से कम नौकरी जिसकी भी थी सबकों सेना से निकाल दिया। इन सभी बातों का चन्द्र सिंह के मन पर काफी गहरा असर पड़ा और वे अंग्रेजों की सेना में रहते हुए देश की आजादी के लिए सोचने लगे। कहते हैं जहां चाह वहां राह चन्द्र सिंह सेना में जहां भी रहे वे देशकाल की घटनाओं से जुड़े रहे और समय-समय पर वे अखबार और लोगों के माध्यम से देश की आजादी के बारे में जानते सुनते रहे। इस बीच चन्द्र सिंह 1929 में गांधी जी के अल्मोड़ा आगमन पर उनसे भी मिले थे गांधी जी से चन्द्र सिंह ने एक टोपी मांगी और उसे पहनते हुए कहा कि मैं इस टोपी की कीमत चुकाकर रहंूगा। मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, पं. गोविन्द बल्लभ पंत, सरदार बल्लभ भाई पटेल आदि नेताओं से मिले थे। 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में एक वहां कांग्रेस के बैनर तले एक जलसे का आयोजन किया गया था जिसमें देश की आजादी के लिए लोग अपने नेताओं को सुनने के लिए हजारों की संख्या मंें उपस्थित थे। अंग्रेज फौजी शासकों ने अपनी पूर्व नियोजित षड़यंत्र के आधार पर पहले पेशावर में तैनात गढ़वाली सैनिकों को भड़काया कि यहां पेशावर में 98 प्रतिशत मुसलमान हैं और मात्र 2 प्रतिशत हिन्दू हैं। हिन्दू चूंकि व्यापारी हैं इसलिए मुसलमान उनकी दुकानें लूट लेते हैं तथा हिन्दुओं पर अत्याचार करते हैं। राम-कृष्ण को गालियां देते हैं गौ हत्या करते हैं।हिन्दुओं की बहू बेटियों को उठा ले जाते हैं गढ़वाली पल्टन को शहर जाकर हिन्दुओं की रक्षा करनी होगी और जरूरी हुआ तो मुसलमानों पर गोलियां भी चलानी पड़ेंगी। अंग्रेज अफसर के चले जाने के पर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने अपने साथियों को वस्तुस्थिति से अवगत कराया और कहा कि यह लड़ाई हिन्दू मुसलमान की नही है बल्कि यह अंग्रेजों और कांग्रेस की लड़ाई है। अंग्रेज हिन्दू-मुसलमानों के नाम पर पेशावर मंे दंगा कराना चाहते हैं। इसलिए चन्द्र सिंह ने अपनी कंम्पनी सहित तमाम गढ़वाली सैनिकों तक यह संन्देश पहुंचा दिया कि जब भी हमें पेशावर में निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाने के लिए आदेश दिया जाये हम उसे न मानें। इसके लिए सैनिकों को तैयार करने में चन्द्र सिंह को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जिन अंग्रेजों के अधीन वे नौकरी कर रहे थे उनके आदेश को खुद भी न मानना तथा बटालियनों को इसके लिए संयुक्त रूप से तैयार करना कितना जोखिम भरा काम था। जरा सी चूक होने पर कोर्ट मार्शल की सजा या गोली भी मारी जा सकती थी लेकिन चन्द्र सिंह के अन्दर तो देश की आजादी का जो जुनून उफन रहा था उसके मूल में कई कारण थे।22 अप्रैल को गढ़वाली सैनिकों को आदेश मिला कि उन्हें कल 23 अप्रैल को पेशावर जाना होगा। चन्द्र सिंह ने तत्काल पॉंचों कम्पनियों के पॉंच प्रमुख व्यक्तियों को बुलाया और उनके साथ विचार-विमर्श से गोली न चालने की योजना पास हो गई।23 अप्रैल, 1930 की सुबह कप्तान रिकेट 72 सैनिकों को लेकर पेशावर में किस्साखानी बाजार पहॅंुच गये। किसी व्यक्ति द्वारा शिकायत किये जाने पर चन्द्रसिंह पर सन्देह हो जाने के कारण कप्तान रिकेट उन्हें शहर नही ले गये। चन्द्र सिंह ने दूसरे अधिकारी से पेशावर में पहुॅंची सेना के लिए पानी ले जाने के बहाने पेशावर जाने की इजाजत ले ली और पानी लेकर पेशावर के लिए रवाना हो गये। पेशावर पहुॅंकर चन्द्रसिंह ने देखा कि पेशावर में हजारों की संख्या में लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। कैप्टेन रिकेट उन्हें वहां से हटने के लिए कह रहा है लेकिन कोई भी अपनी जगह से टस से मस नही हुआ। रिकेट चिल्ला रहा था कि हट जाओं नही तो गोलियों से मारे जाओगे। जनता उसकी धमकियों से भड़क गई और अंग्रेजों के ऊपर बोतलें आदि फेंकने लगी। रिकेट ने गढ़वाली सिपाहियों को आदेश देते हुए कहा गढ़वाली थ्री राउंड़ फायर, यानि गढ़वाली सैनिकों तीन राउंड़ गोली चलाओं तो तभी चन्द्र सिंह गढ़वाली ने कहा कि गढ़वाली सीज फायर यानि कि गढ़वाली सैनिकों फायर न करो। गढ़वाली सैनिकों ने अंग्रेजों अफसर के ऑर्डर को न मानते हुए अपने नेता चन्द्र सिंह गढ़वाली की बात को मानते हुए अपनी राइफलें नीचे रख दीं। चन्द्र सिंह ने कहा कि हम निहत्थे पठानों पर गोली नही चलायेंगे। हम देश की सेना में देश की रक्षा के लिए भर्ती हुए हैं न कि किसी निदोंर्ष की जान लेने के लिए। हम अपने पठान भाइयों पर किसी भी कीमत में गोली नही चलायेंगे चाहो तो हमें गोलियां से भून दो। तत्पश्चात गढ़वाली सैनिकों को छावनियों में लाया गया। 24 अप्रैल 1930 को पुनः इन सैनिकों को पेशावर में जाने के लिए कहा गया तो गढ़वाली सैनिकों ने अंग्रेजों के हुक्म को मानने से मना कर दिया था। तब पेशावर में अंग्रेज सैनिकों को बुलाकर निहत्थे प्रदर्शनकारियेां पर गोलियां चलवाई गई। पेशावर की इस बगावत में 67 गढ़वाली सैनिकों पर मुकदमा चलाया गया और उनमें से कईयों को काला पानी की सजा व आजीवन कारावास हुआ। 12 जून 1930 को रात में चन्द्र सिंह को एकटाबाद जेल में भेज दिया गया। चन्द्रसिंह कई जेलों में यातनाएॅं सहते रहे। नैनी जेल में उनकी भंेट क्रान्तिकारी राजबन्दियों से हुई। लखनऊ जेल में उनकी मुलाकात सुभाष चन्द बोस से हुई। चन्द्रसिंह कहते थे कि जेल में जो बेड़ियां हाथ पांवों में लगी हैं वे मर्दों के जेवर होते हैं। चन्द्र सिंह गढ़वाली को सबसे पहले कालापानी की सजा व कोड़ों की सजा हुई क्योंकि अंग्रेज मानते थे कि पेशावर की बगावत चन्द्र सिंह के ही कहने पर हुई थी। गढ़वाल के प्रसिद्ध वैरिस्टर मुकुन्दीलाल जिन्हौंने गढ़वाली सैनिकांे का केस लड़ा उनका कहना है कि कमांड़र-इन-चीफ स्वंय चाहते थे कि संसार को यह पता न लेगे कि भारतीय सेना अंग्रेजों के विरूद्ध हो गई है इसलिए उन्होंने मेरी ओर ध्यान न देकर चन्द्रसिंह की मौत की सजा को आजन्म कारावास की सजा में बदल दिया। 23 अप्रैल को सैनिक बगावत हुई लेकिन अंग्रेजों ने बगावत का केस दर्ज नही किया वे जानते थे कि यदि बगावत का केस दर्ज होगा तो देश में जो आन्दोलन चल रहा है उसमें यह आग में घी का काम करेगा। इसी आधार पर उन्हें बन्दी बनाया गया। लेकिन देश की जनता 23 अप्रैल 1930 की सैनिक बगावत के बारे में जान चुकी थी कई अखबारों में इस खबर को छापा। यह अलग बात है कि देश के इतिहास में पेशावर की बगावत को उतना महत्व नही दिया गया जिस प्रकार से यह कं्रान्ति हुई थी। पंड़ित जवाहर नेहरू ने अपनी एक पुस्तक मंे लिखा है कि पेशावर में गढ़वाली सैनिकों ने सैनिक बगावत इसलिए की थी कि वे जानते थे कि देश आजाद होने वाला है और उनके खिलाफ किसी प्रकार की कठोर कार्यवाही नही की जायेगी। इससे जाहिर होता है कि देश की लिए अपनी जान को दांव पर लगाने वाले वीर सैनिकांें की उस समय भी नेताओं की नजर में कोई कीमत नही थी। जो सैनिक अंग्रेजों के अधीर नौकारी कर रहे थे उनके खिलाफ सशस्त्र बगावत करना आम बात नही थी। अंग्रेज चाहते तो गढ़वाली सैनिकों को पेशावर में गोलियों से भून देते कोई उस समय पूछने वाला नही था। फिर गढ़वाली सैनिक जानते थे कि इस बगावत का अंजाम कुछ भी हो सकता था। लेकिन नेहरू जी की बातों से लगता है उस समय भी देश की आजादी को नेता राजनीति के चश्मे से देखने लगे थे। चन्द्र सिंह गढ़वाली को सन् 1945 में जेल से रिहा कर दिया गया लेकिन उनके गढ़वाल प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। जेल में क्रान्तिकारी यशपाल से परिचय होने से जेल से बाहर आने के बाद गढ़वाली जी कुछ दिन लखनऊ में उनके साथ रहे। उसके बाद वे हल्द्वानी आ गये।1946 में चन्द्र सिंह ने रानीखेत में भंयकर अकाल से पीड़ित लोगों की मदद से सरकारी गल्ले के भण्डार को जनता में बांट दिया। इससे स्थानीय प्रशासन नाराज हुआ लेकिन गढ़वाली जी ने कहा कि एक तरफ हमारी जनता भूख से मर रही है और तुम हमारे हिस्से के अनाज को ब्लैक में बेच रहे हो। रानीखेत में अंग्रेजों की बटालियनें थी उनके लिए पानी का समुचित प्रबन्ध था लेकिन स्थानीय लोगों को काफी परेशानी होती थी गढ़वाली जी ने लोगों की पानी की समस्या का भी समाधान कराया। दिसम्बर 1946 को चन्द्र सिंह ने गढ़वाल में प्रवेश किया गढ़वाल की जनता ने उन्हें सर ऑंखों पर स्थान दिया और जगह-जगह उनका भव्य स्वागत हुआ। चूंकि गढ़वाली जी 1944 में पक्के कम्युनिस्ट बन गये थे इसलिए गढ़वाल के कांग्रेसी उनके स्वागत सत्कार को पचा नही पाये इसलिए उनका विरोध करना शुरू कर दिया।सन् 1948 में टिहरी में राजशाही के खिलाफ लड़ने वाले अमर वीर नागेन्द्र दत्त सकलानी के शहीद हो जाने के बाद वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली जी ने टिहरी आन्दोलन का नेतृत्व भी किया। सरकार को आशंका हो गई थी कि चन्द्रसिंह जिला बोर्ड के चेयरमैन का चुनाव लड़ना चाहते हैं इसलिए सरकार ने उन्हें पेशावर का सजायाफ्ता बताकर जेल में ड़ाल दिया। कुछ माह बाद जेल से छूटने के बाद गढ़वाली जी ने गढ़वाल में शराब के खिलाफ आन्दोलन भी किया इसमें कोटद्वार की इच्छागिरि मांई जिन्हंे लोग टिंचरी मांई के नाम से जानते थे उनका भी अहम योगदान रहा। और इसमें उन्हें काफी सफलता भी मिली।सन् 1947 में देश आजाद हो गया। नेहरू जी आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बन गये थे, चन्द्र सिंह गढ़वाली उनके पास पेशावर के सैनिकों की पेंशन के बारें में मिलने आये और उनसे पेशावार के स्वतंत्रता सेनानियों की पेंशन के बारे में कुछ करने का आग्रह किया तथा कहा कि पेशावर की क्रान्ति को राष्ट्रीय पर्व समझा जाये जीवित सैनिकों को पेंशन तथा मृत सैनिकों के परिजनों को आर्थिक सहयोग दिया जाय, तो नेहरू जी क्रोध में उबल पड़े और बोले कि मान्यवर तुम यह कैसे भूल जाते हो कि तुम बागी हो। पंड़ित मोतीलाल नेहरू ने अपने अन्तिम दिनों में जवाहर लाल नहेरू से कहा था कि गढ़वाली सैनिको को मत भूलना। जवाहर लाल नेहरू ने जो टिप्पणी गढ़वाली सैनिकों के लिए की थी उसका विरोध वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने उनसे किया और उन्हंे बताया कि गढ़वाली सैनिकों ने वही काम किया जो उन्हें देश हित में अपना फर्ज दिखा इसके जो मतलब आप निकाल रहे हैं वह सरासर गलत और पेशावर की बगावत के महत्व को कम करना ही है।देश की अस्मिता और आजादी को नेताओं ने किस कदर अपनी कुंठा का शिकार बनाया इसका जीता जागता उदाहरण हमारे सामने आज कश्मीर है। आजादी के बाद जब देसी रियासतों का भारत में सरदार बल्लभ भाई पटेल द्वारा विलय कराया जा रहा था लेकिन कश्मीर को नेहरू जी ने आसानी से भारत में मिलाने नही दिया और कश्मीर का मसला आज भी देश के लिए नासूर बना हुआ है। इस बात को आम हिन्दुस्तानी जानता है कि अगर अन्य रियासतों की तरह उस समय कश्मीर को भी भारत में मिलाने दिया जाता तो आज हजारों निरीह लोगों की जान न गंवानी पड़ती तथा देश के लिए हमेशा का यह सरदर्द नही होता। सन् 1951-52 में देश में नये संविधान के अनुसार चुनाव कराये गये। वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली ने गढ़वाल से कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा तो उन्हें पेशावर का बागी होने के दोष में आजाद भारत की सरकार ने बंदी बना दिया तथा महीनों तक जेलों में यातनायें दी। जिस आदमी ने देश की आजादी के लिए अपने सर्वस्व को दॉंव पर लगा दिया उसे देश की आजादी के बाद भी यातनायें दी गईं उनको कई बार बे-वजह गिरफ्तार करके जेल में ड़ाला गया। अपने मित्रों के सहयोग से गढ़वाली जी ने चुनाव लड़ा और बिना संसाधनों के 7714 वोट लिये जबकि विजयी प्रत्याशी को 10000 वोट मिले।पेशावर की सैनिक बगावत को देश की आजादी के बाद भी उतना महत्व नही दिया गया जिस तरह से इसे दिया जाना चाहिए था यही कारण रहा कि अपनी राजनीति चमकाने वाले समय-समय पर वीर चन्द्र सिंह जैसे देश भक्तों के लिए नारे तो लगाते रहे लेकिन देश की आजादी के बाद भी पेशावर के बागी सैनिकों को दोयम दर्जे की जिन्दगी गुजारनी पड़ी। जिन वीरों ने देश की आजादी के लिए एक लौ जलाई और देश की आजादी को एक नई दिशा दी उन्हें दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया गया। चन्द्रसिंह गढ़वाली में ऐ सेनानायक के सभी गुण विद्यमान थे। उनका जीवन संर्घषमय रहा। उन्हौंने देश सेवा एंव समाज सेवा का कार्य बड़ी कर्तव्य-परायणता के साथ निभाया। गांधी जी ने उनके बारे मंे कहा कि अगर मुझे एक गढ़वाली और मिल गया होता तो देश कब का आजाद हो गया होता। चन्द्रसिंह गढ़वाली के पेशावर सैनिक विद्रोह ने हमें आजाद हिन्दे फौज को संगठित करने की प्रेरणा दी। वहीं बैरिस्टर मुकुन्दीलाल जी के शब्दों में चन्द्रसिंह गढ़वाली एक महान पुरूष हैं। आजाद हिन्द फौज का बीज बोने वाला वही है। पेशावर कांड का नतीजा यह हुआ कि अंग्रेज समझ गये कि भारतीय सेना में यह विचार गढ़वाली सिपाहियों ने ही पहले पहल पैदा किया कि विदेशियों के लिए अपने खिलाफ नही लड़ना चाहिए। यह बीज जो पेशावर में बोया गया था उसका परिणाम सन् 1942 में सिंगापुर में देशभक्त हजारो गढवाली नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने आ गये थे। प्रसिद्ध विचारक एवं महाने लेखक राहुल सांकृत्यायन के अनुसार पेशावर का विद्रोह विद्रोहों की एक श्रृंखला को पैदा करता है जिसका भारत को आजाद करने में भारी हाथ है। वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली इसी पेशावर-विद्रोह के नेता और जनक हैं।वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली आजीवन यायावर की भांति घूमते रहे। आजादी से पहले तो अंग्रेज शासकों ने उन्हें तरह-तरह की यातनायें दी लेकिन आजादी के बाद भी उनका कोई ठिकाना न रहा और वे समाज के कार्यों में सदा ही लगे रहे। देश के आजाद होने के बाद भी गढ़वाली जी कभी कोटद्वार कभी चौथान गढ़वाल में अनेकों योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए लड़ते रहे लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने हमेशा उन्हें परेशान ही किया। असल में कांग्रेसी चाहते थे कि गढ़वाली जी काग्रेस में रहें लेकिन गढ़वाली जी पहले तो साधारण आर्यसमाजी थे लेकिन बाद में वे पक्के कम्युनिस्ट बन गये। और आजीवन कम्ुयनिस्ट पार्टी के कार्ड़ होल्डर ही रहे। गढ़वाली जी के सामाजिक जीवन का खामियाजा उनके परिवार को उठाना पड़ा। जब जेल में थे देश गुलाम थ तब उनकी पत्नी भागीरथी देवी बच्चों को लिये दर-दर की ठोकरें खाती रहीं और तो और इतने बड़े स्वतत्रता सेनानी की पत्नी को कई बार लोगों के जूठे वर्तन तक साफ करने पड़े और लोगों दया पर आश्रित रहना पड़ा। आजादी के बाद भी गढ़वाली जी दिन रात देश और समाज के बारे मे ंसोचते रहेत थे। उनका सपना था कि कोटद्वार गढ़वाल में जहां कण्वऋर्षि का आश्रम था और जहां महाराजा भरत का जन्म हुआ वहां भरत नगर बसाया जाय और उनके गांव चौथान के गवणी में तहसील बने तथा चन्द्रनगर जिसे आज गैरसैंण कहा जाता है वहां उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी बने। गढ़वाली जी रामनगर से चौथान, दूधातोली रेलमार्ग बनाने के लिए भी प्रयासरत रहे लेकिन सत्ता की राजनीति तथा उनका कम्ुयनिस्ट होना ही उनके लिए एक तरह से अभिषाप रहा। कल तक नेहरू सहित जो नेता उन्हें बड़ा भाई कहते थे वे आज उनकी तरफ देखना भी नही चाहते थे। आज भारत का यह वीर योद्धा किसी के लिए वोट बैंक नही बन सका। यही कारण रहा कि आजादी के बाद भी चन्द्र सिंह गढ़वाली जी को दर-दर भटकना पड़ा। वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली का जन्म जिला पौड़ी गढ़वाल के चौथान पट्टी के रैणूसेरा गांव में 25 दिसम्बर 1891 में ठाकुर जाथल सिंह के घर हुआ। चन्द्रसिंह बचपन से शरारती तथा तेज स्वभाव के थे इसलिए लोग इन्हें भड़ कहकर पुकारते थे। चन्द्र सिंह ने गांव में ही दर्जा चार तक पढ़ाई की। चन्द्रसिंह गांव में सैनिकों को देखकर सेना में भर्ती होना चाहते थे लेकिन मां-बाप नही चाहते थे कि वे भर्ती हो इसलिए 3 सितम्बर सन् 1914 में घर से भागकर लैन्सड़ौन में सेना में भर्ती हो गये। 15 जून 1915 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान चन्द्रसिंह मित्र देशो की सेना के साथ फ्रांस के मोर्चे पर गये थे। 1917 को वे तुर्कों के खिलाफ सीरिया, रमादी तथा तथा बसरा के मोर्चों पर भी लड़ने के लिए गये। सन् 1920 में गढ़वाली जी की कम्पनी को वजीरिस्तान के बार्ड़र पर भी लड़ाई में भेजा गया। देश में तथा देश क बाहर गढ़वाली जी अनेकों बार अपने जौहर दिखा चुके थे। लेकिन इसबीच देश प्रेम का अंकुर भी अन्दर ही अन्दर पलता रहा जो 23 अपै्रल 1930 को पेशावर की सशस्त्र बगावत के रूप में सामने आया। प्रथम विश्व युद्ध में गढ़वाल राइफल्स से लगभग 13000 जवानों ने अपनी कुर्वानी दी, दो विक्टोरिया क्रास और बाद में फिर कहीं जाकर 1921 में इसे रॉयल गढ़वाल राइफल्स का खिताब मिला। पेशावर की बगावत के नायक वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली अपने सिद्धान्त के लिए हिमालय की तरह अटल थे। आजीवन उन्हौंने अपने सिद्धान्तों से समझौता नही किया। हिमालय का यह अटल सिद्धान्तवादी लौह पुरूष अपने सिद्धान्तों के लिए लड़ते हुए 1 अक्टूबर 1979 को दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में मानव देह को त्यागकर परमधाम को चला गया लेकिन उनके विचार और सिद्धान्त हमेशा देश और समाज को आगे बढ़ने तथा गरीब और लाचार लोगोें की आवाज बनने की प्रेरणा देते रहेंगे।
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