'मीडिया कंट्रोल: बहुजन ब्रेन बैंक पर हमला' लोकार्पित
Facebook में लिखने के कारण किसी सरकारी कर्मचारी (डॉक्टर मुसाफिर बैठा और अरुण नारायण) के निलंबन की देश में पहली और एकमात्र घटना के ठीक 30 दिन के अंदर 16 अक्टूबर, 2011 को पटना में 112 पेज की किताब "बिहार में मीडिया कंट्रोल : बहुजन ब्रेन बैंक पर हमला" का लोकार्पण संपन्न हुआ। लोकार्पण बिहार के अग्रणी सामाजिक चिंतक प्रेम कुमार मणि ने किया। कार्यक्रम में बहुजन डायवर्सिटी मिशन के संस्थापक एचएल दुसाध, राजनेता राघवेंद्र कुशवाहा, माननीय बुद्धशरण हंस, डॉक्टर विजय कुमार त्रिशरण भी थे : दिलीप मंडल
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संपादकीय
बिहार में सामाजिक प्रति-क्रांति के नायक नीतीश कुमार जिन सामाजिक शक्तियों की वजह से सत्ता में हैं, बिहार और देश के मेनस्ट्रीम मीडिया पर उनका ही कब्जा है। यह बात लोग पहले से जानते हैं कि भारतीय मीडिया में सवर्ण और इलीट वर्चस्व है लेकिन दिल्ली में अनिल चमड़िया, योगेंद्र यादव और जितेंद्र कुमार तथा पटना में प्रमोद रंजन के शोध कार्य और सर्वे के बाद यह बाद निर्विवाद रूप से सिद्ध हो गयी है। यह संरचना नीतीश कुमार के पक्ष में काम करती है। इमेज के प्रति सचेत होने की वजह से नीतीश कुमार ने मीडिया को दिये जाने वाले विज्ञापनों पर खर्च भी लालू प्रसाद-राबड़ी देवी शासनकाल के मुकाबले 700 फीसदी तक बढ़ा दिया। इन सबके ऊपर मीडिया मालिकों से सेटिंग और मीडिया मैनेजमेंट के जरिये उन्होंने बिहार के मीडिया में प्रतिरोध और बहुजन आवाज की आवाज की गुंजाइश ही खत्म कर दी।
ऐसे में सोशल मीडिया, इंटरनेट और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर लोग आपस में बात करने लगे हैं कि बिहार में हो क्या रहा है? विकास है या विकास की इमेज? अपराध कम हुए हैं या एक छवि की सृष्टि भर हुई है? बिहार में बहुजन आवाज को व्यक्त करने के मंच कम हैं। लघुपत्रिकाओं के अलावा इंटरनेट और मोबाइल एसएमएस के जरिये ही बहुजन अपने सवालों और चिंताओं को अभिव्यक्त कर सकता है। इंटरनेट अपेक्षाकृत पर्सनल स्पेस है और यही वजह है कि अब तक देश में किसी भी और सरकार ने इन मंचों पर लिखी बातों के आधार पर किसी सरकारी कर्मचारी पर कार्रवाई नहीं की है। लेकिन इमेज को लेकर पागलपन की हद तक सचेत नीतीश शासन को यह भी स्वीकार नहीं कि लोग पर्सनल स्पेस में समालोचनात्मक टिप्पणियां करें। इसी संदर्भ में बिहार विधान परिषद के कर्मचारियों डॉ मुसाफिर बैठा और अरुण नारायण के निलंबन को देखे जाने की जरूरत है। कुछ दिनों पहले सैयद जावेद हसन को हटाये जाने को भी हम इसी कड़ी में देखते हैँ।
नीतीश कुमार के शासन में जिन तीन आवाजों को खामोश करने की कोशिश हो रही है, उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि को देखें, तो उनमें एक दलित, एक पिछड़ा और एक मुसलमान है। इसे हम सिर्फ संयोग नहीं मानते। इसलिए इस पुस्तक का शीर्षक "बहुजन ब्रेन बैंक पर हमला" रखा गया है। शीर्षक माननीय एचएल दुसाध जी ने दिया है, जिसके लिए मैं उनके प्रति आभारी हूं।
♦ दिलीप मंडल, संपादक
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