THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Monday, July 2, 2012

मीडिया हो या जन आंदोलन, यह भाई न तो मनोरंजन है और न बिजनेस, टीम गेम है। तिकिताका और तिकिताकानेचिओ कोई तकनीक नहीं, प्रतिबद्धता का पर्याय है!

मीडिया हो या जन आंदोलन, यह भाई न तो मनोरंजन है और न बिजनेस, टीम गेम है।  तिकिताका और तिकिताकानेचिओ कोई तकनीक नहीं, प्रतिबद्धता का पर्याय है!

पलाश विश्वास

पहले से सोच रखा था कि घर न जा पाने के कारण पहाड़ और तराई में सेतुबंधन बतौर खेले जा रहे पुलिनबाबू मेमोरियल फुटबाल टूर्नामेंट न देख पाने और मीडिया फालोअप न होने के कारण उसके बारे में न जानने का गम यूरोकप फुटबाल टूर्नामेंट का फाइनल देखकर गलत करना है। दफ्तर में कह रखा था कि वक्त पर टीवी आन कर देना। लेकिन हुआ यह कि हमारे ब्लागर मित्र अविनाश की गिरफ्तारी के बहाने आपसी शिकवा शिकायतों की एसी तपिशभरी बयार चली दिनभर, कोलकतिया उमस से ज्यादा असहनीय हो गयी वह। सत्तावर्ग सोशल मीडिया पर हर किस्म की बंदिश लगाने की कोशिश में है और वैकल्पिक मीडिया की हत्या करने पर तुला है ताकि सूचना विस्पोट का इस्तमाल वह जनसंहार संस्कृति के फलने फूलने के लिए बखूबी कर सकें। पर इधर हर कोई मीर बनने के फिराक में अलग अलग द्वीप में सिमटकर अपनी अपनी ईमानदारी और प्रतिबद्धता साबित करने की अंधी दौड़ में खेल का नियम ही भूल ​​गया है। यशवंत के साथ खड़ा होने की फौरी जरुरत को समझते हुए मैं उसीकी तैयारी में लगा रहा और स्पानी कलाकारों ने पांवों के बुऱूंश से  तिकिताका और तिकिताकानेचिओ का चरमोत्कर्ष अभिव्यक्त करते हुए विश्वप्रसिद्ध गोलरक्षक बूंफो के कैनवास पर मध्यांतर से पहले दो दो गोल दाग दिये।

हालांकि मैंने सामने चल रहे टीवी पर पलभर के लिए देखा नहीं। कानों में आवाजें आती रहीं।हम इस तिकिताका और तिकिताकानेचिओ का मर्म डीएसबी के दिनों से ​​जानते रहे हैं। आप कितने बड़े निशानेबाज हों, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता , अगर आपकी टीम खड़ी तमाशबीन हो जाये।निजी महात्वाकांक्षा से कोई खेल जीता नहीं जाता। मारादोना हो या पेले, गुलित हो या प्लातिनि या फिर जिदान या रोनाल्डिनहो या गरिंचा. उनकी कला का जादुई कमल​ ​ आखिरकार टीमगेम के मानसरोवर में ही खिल पाया। एक के बाद एक , पुर्तगाल, जर्मनी और इटली जैसी टीमें  तिकिताका और तिकिताकानेचिओ के अबोध्य छंद पर नाचते हुए आत्मसमर्पण करने को मजबूर हो गये। रोनाल्डो और बालातोली जैसे स्ट्राइकर से कुछ करते नहीं बना। गोल का मुहाना खोलने ​​मंत्र   तिकिताका और तिकिताकानेचिओ उलके जेहन में ही नहीं था। एक बार बी वे बोल नहीं सकें, सिमसिम खुल जा!विडंबना यह है कि मीडिया और जन आंदोलन . जिनसे हमारी सामाजिक प्रतिबद्धता और व्यक्तिगत अस्तित्व, पहचान हैं, दोनों क्षेत्र में सूचना​ ​ विस्फोट , बाजार और तकनीक के धमाल से चारों तरफ रोनाल्डो और बोलातोली हैं। जो गोल का मुहाना तो खोल नहीं पाते, पर सुपरस्टार बने हुए हैं।

बाबा नागार्जुन के जन्मदिन पर हमारे विद्वान उत्तर आधुनिक जेएनय़ू पलट प्राध्यापक मित्र जगदीश्वर चतुर्वेदी ने सुबह से बाबा की कविताओं से ​​फेसबुक पर समां बांध दिया। मौसम का मिजाज ही बदल गया। हमें फिर गुलमोहर खिलते हुए दीखने लगे। हमने भी बाबा को याद करते हुए उनके साथ बिताये हमारे अंतरंग क्षणों को तुरत पुरत बाबा के साथ सविता और मेरी तस्वीर के जरिये फेसबुक पर शेयर कर दिया। लेकिन अगले ही दिन ​​पंडितजी तुलसीदास के अवतार में आ गये और स्वांतः सुखाय जपने लगे। दिनभर वे यह साबित करते रहे कि फेसबुक विचारधारा की जगह नहीं, मनोरंजन पार्क है। जाहिर है कि लव पार्क में विमर्श की अनुमति नहीं होनी चाहिए। यह किसका अभिमत और किसका अभियान हैय़ पंडित चतुर्वेदी जी ​​शायद विचारधारा की मृत्यु के बाद वैदिकी संगीत में ज्यादा रुचि लेते हों। लेकिन तब वे बाबा नागार्जुन की कविताएं लव पार्क की दीवारों पर किसलिए और किसके लिए टांग रहे थे?

इसी तरह हम पाते हैं कि हमारे की युवा और प्रतिष्ठित कवि, साहित्यकार मित्र, सामाजिक कार्यकर्ता किसी किसी दिन फिल्म संगीत का अलबम अपलोड करने में ही निष्णात हो जाते हैं।आध्यात्मिक और आशिकाना मिजाजा और मौसम से हमें कोई शिकायत नहीं है। पर विचारधारा की मृत्यु और विमर्श की​ ​ हत्या पर सख्त एतराज है।टीवी के टीआरपी की तरह सनसनीखेज लोकप्रियता से विमर्श का बाजा बजाना अब प्रतिबद्धजनों एवम विद्वतजनों का शगल हो गया है, हमारी विनम्र आपत्ति यही है।​
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​अभिव्यक्ति का मतलब ही सामाजिक सरोकार है। अगर आपके सामाजिक सरोकार नहीं है तो आखिर आप क्या अभिव्यक्त करना चाहते हैं या दीवारों पर आखिर आप क्या टांगना चाहते हैं, जहां पहले से ही बाजार का ब्लोशाइन वर्तस्व कायम है!

अभिव्यक्ति अपने अपने एकांत निर्जन द्वीप में स्वांतः सुखाय आत्मरति का पर्याय नहीं है, यह सामाजिक कर्म या दुष्कर्म है, जिसका समाज पर गहरा असर होता है।तमाम जन आंदोलनों के मूल में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मूल मंत्र है। सामंती व्यवस्था के विरुद्ध विश्वव्यापी नवजागरण तो कुल मिलाकर विभिन्न विधाओं में विभिन्न माध्यम में अभिव्यक्ति का इंद्रधनुष रचना ही था, जिसका चरमोत्कर्ष विश्वव्यापी जन आंदोलनों के विस्पोट से हुआ जो परिवर्तनकारी ​​साबित हुए।इतिहास बोध के बिना न साहित्य संभव है और न राजनीति और न जीवन। हमारे लिए तो सौंदर्यबोध और प्रतिबद्धता का पर्याय ही इतिहासबोध है। पर लगता है कि हमारे मित्रों को इतिहास और खासतौर पर समकालीन इतिहास से कुछ ज्यादा ही एलर्जी है।​
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​हम यूरोकप में शुरु से ही आश्वस्त थे कि जीत अंततः तिकिताका और तिकिताकानेचिओ की ही होगी। स्पेन की पिछले यूरोकपसे वाया विश्वकप जीत की यह निरंतरता  न अनपेक्षित है और न जादुई, और न किसी आक्टोपसका अमोघ भविष्यदर्शन।इसलिए हमें कोई तनाव न था। आज सुबह जब रिपीट टेलीकास्ट में फाइनल मैच देख रहा था, तो हमारी नजर अनंत पासिंग और अनंत तालमेल की उस बुनियाद पर फोकस थी, जिसपर अब तक लातिन अमेरिका का वर्चस्व माना जाता रहा है और हम लोग जिसके लिए अबतक अर्जेंटीना और ब्राजील के दीवाना बनते रहे हैं।इनियास्ता ने कोई गोल नहीं किया, पर इस तालमेल के चक्र में मूल धूरी बना हुआ था वह। इटली की चमकदार विरासत मिट्टी में इसलिए मिल गयी कि उसले पिर्लो के बदले बरतोली को धूरी बनाने की कोशिश की जो न प्लातिनी है, न मारादोना और न पेले, वह गोल पर धमाका तो कर सकता है पर मैदान को छकाकर गोल मुहाने को खोलने के लिए चक्रव्यूह को तोड़ने का मंत्र नहीं जानता। रोनाल्डो के पतन का कारण भी यही है। उसकी कामयाबी का राज, उसकी निजी चमक नहीं , बल्कि रियाल माद्रिद का वही   तिकिताका और तिकिताकानेचिओ है, जिसके तमाम कलाकार पुर्तगाल टीम में नहीं, बल्कि स्पानी टीम में थे।

अगर मनोरंजन और बिजनैस ही आपके लिए मोक्ष है, तो किसी को क्या एतराज हो सकता है। मनोरंजन उद्योग बूमबूम है और बिजनैस के लिए अबाध पूंजी प्रवाह है, खुल्ला बादार है, सत्तावर्ग का बिनाशरत् समर्थन और संरक्षण है। तो फिर आप विचार, विमर्श और प्रतिबद्धता, समाज और इतिहास के चूतियापे में इस प्रतिद्वंद्विता के गला काटू बाजार में क्या कर रहे हैं? आपको बादशाह और शहंशाह या अरबपति होने से कौन माई का लाल रोक सकता है?

बशौक कीजिये कारोबार। लेकिन प्लीज दूसरों पर अपना ज्ञान न बघारें और सामाजिक सरोकार का सिक्का जमाने के लिए मीडिया और जन ांदोलन की जमीन को अंतर्घात से लहूलुहान न करें।​
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​अमडतप्रभात से लेकर आनंदबाजार, नई दुनिया से लेकर दिनमान और धर्मयुग, राजेंद्र माथुर के नवभारत टाइम्स और प्रभाष जोशी के जनसत्ता में हम टीमगेम का कमाल देख चुके हैं। एसपीसिंह ने टीवी पर भी यह कमाल दोहराया है। अब तकनीक सर्वस्व अननंतर उत्तरआधुनिक बाजारु पत्रकारित में वे टीमें नदारद हैं तो नतीजा क्या निकला?

जनांदोलनों का इतिहास देखें तो इसी भारत में गांधी, अंबेडकर, जयपर्काश नारायण ने तिकिताका और तिकिताकानेचिओ​
​ का जादू न दिखाया , बल्कि परिवर्तन के झंडावरदार बन गये!

कभी भारतीय वामपंथ और मजदूर आंदोलन में भी दुरंत टीमगेम देखने को मिलता था। लेकिन अब तिकिताका और तिकिताकानेचिओ पर महज सत्ता वर्ग का वर्चस्व है। य़ूपीए और एनडीए में अनंत तालमेल है। बाजार और नीतिनिर्धारकों के खेल का क्या कहनाय़ मजदूर आंदोलन और पूंजीपतियों में तालमेल है। मीडिया और कारपोरेट में, कानून और अपराध में, अर्थव्यवस्था और कालाधन के कारोबार में तिकिताका और तिकिताकानेचिओ है।और हम लोग रोनाल्डो , बरतोली, पिरलो की तरह अपना अपना खेल चमकाने के जुगत में फंसे हुए हैं।​

तालमेल का अनंत सिलसिला है ग्लोबल हिंदुत्व के तमाम तत्वों में , जिसके फुठसोल्जर बनकर अंध राष्टट्रवाद में निष्णात हम समता और न्याय के विरुद्ध मोर्चाबंद हो जाते हैं अपने अनजाने में निरंतर युद्धरत रहते हैं अपने और अपने लोगों के विरुद्ध। तालमेल है दमन और नरसंहार की मशीनरी में जो निहत्था औरतों और बच्चों तक को भी माओवादी या आतंकवादी बताकर मार गिराती है, आदिवासी गांवों को बेदखल करके कारपोरेट के हवाले सौंपती है और शहरी विकास के बहाने बस्तीवालों को उखाड़ फेंकती है।मीडिया की सेना और सेनाधिपति तमाम सत्तावर्ग के वृंद गान में शामिल कदमताल करते हैं और प्रोमोटर बिल्डर माफियाराज के तोहफा पोस्तो और रैव पार्टी के उन्माद में जनसरोकार और विकास का वंदेमातरम गायल करने में चरितार्थ हैं। तालमेल है, कारपोरेट साम्राज्यवाद, युद्ध उद्योग और खुला बाजार, राजनीति और विचारधारा के धारकों वाहकों में जनता के विरुद्ध। इस अनंत तालमेल के उलट प्रतिवाद और प्रतिरोध की ताकतों में बिखराव अनंत है। इसीलिए हमरे गिरते पड़ते मरते कपते साथी का हाथ थामने के बजाय वक्त ौर मौका मिले तो उसके पिछवाड़े पर जोरदार लात मारने के उल्लास से हम वंचित होना नहीं चाहते। सीमा आजाद का मामला हो या ब्लागर यशवंत यह प्रवृत्ति हमारी आत्मवंचना का तिकिताका और तिकिताकानेचिओ है।

मीडिया और सोशल मीडिया, जनांदोलन और समाज में हमारे लोग निरंतर आक्रमण, विस्थापन और अन्याय , षड्यंत्र के शिकार इसलिए हैं कि हम बिखरे हुए हैं और एक दूसरे के विरुद्ध आत्मघाती लड़ाई में व्यस्त हैं , जबकि सत्तावर्ग पूरी टीम वर्क के साथ हमारे सफाये के  लिए सारे संसाधन और शक्ति और हमारे ही लोगों को हमारे विरुद्ध झोंकने में कामयाब हैं। इस सहज सत्य को समझने लायक बालिग कब होंगे हम?यूरो कप के फाइनल में स्पेन से मिली करारी शिकस्त के बाद इटली के कोच ने माना कि उनकी टीम शारीरिक चुस्ती-फुर्ती में स्पेन का सामना नहीं कर सकी। पूरे मैच के दौरान इटली की टीम संघर्ष करती नजर आई और अपने तीसरे स्थानापन्न खिलाड़ी के भी चोटिल हो जाने के बाद उसे मैच का आखिरी आधा घंटा 10 खिलाड़ियों से साथ खेलना पड़ा। जबकि स्पेन के खिलाड़ी काफी तरोताजा नजर आ रहे थे। हम भी लगातार इसी तरह के बहाने बनाकर सत्य को अर्द्धसत्य के रुप में पेश करने में पारंगत हैं।

स्पेन की जीत में आंदेस इनिएस्टा और जावी की भूमिका अहम रही।पर उनके नाम गोल दर्ज नहीं हैं। डेविड सिल्वा (14वें मिनट), जोर्डी अल्बा (41वें मिनट) और फर्नान्डो टोरेस (84वें मिनट) ने गोल दागे। जुआन मार्टा (88वें मिनट) ने टीम की ओर से चौथा गोल दागा!

विश्व चैंपियन स्पेन ने यूरो कप के फाइनल में इटली की एक न चलने दी और दोनों हाफ में दो-दो गोल दागकर अपनी ऐतिहासिक जीत पर मुहर लगा दी। विपक्षी टीम एक बार भी गोल नहीं कर सकी। यूरो कप फुटबाल के फाइनल में रविवार को इटली को 4-0 से परास्त कर स्पेन ने लगातार दूसरी बार इस प्रतियोगिता में अपनी जीत दर्ज कराई है। इसके साथ ही स्पेन ने तीन बड़ी प्रतियोगिताओं के फाइनल लगातार जीतकर इतिहास रच दिया है। स्पेन ने लगातार दूसरी बार यूरो कप का खिताब जीता है। उसे अब तक तीन यूरो कप मिल चुके हैं। स्पेन ने सबसे पहले 1964 में सोवियत संघ को 2-1 से हराकर और फिर 2008 में जर्मनी को 1-0 से हराकर यूरो कप जीता था।

यूरो कप 2012 के फाइनल में स्पेन ने इटली को 4-0 से पीटकर खिताब अपने पास बरकरार रखा है। स्पेन के सिल्वा, एल्बा, टोरेस और माटा ने मैच में गोल दागकर अपनी टीम को शानदार जीत दिलाई। एकतरफा मुकाबले में स्पेन ने इटली को पूरे मैच में कभी हावी नहीं होने दिया। स्पेन ने लगातार दूसरी बार यूरो का खिताब जीता है जो कि इससे पहले किसी भी टीम ने नहीं किया था।स्पेन ने लगातार तीसरी बार बड़ा खिताब जीतकर एक रिकॉ़र्ड कायम किया है। स्पेन ने 2008 में यूरो कप अपने कब्जे में किया उसके बाद 2010 में फुटबॉल का विश्व कप जीता था और अब तीसरी बार फिर से यूरो कप जीतकर साबित कर दिया कि फिलहाल उसके सामने दूसरी कोई टीम टिक नहीं सकती।बता दें कि इटली पर 4-0 से जीत दर्ज कर स्पेन ने एक और रिकॉर्ड दर्ज किया है। यूरो कप फाइनल में अब तक किसी भी टीम ने इतनी बड़ी जीत दर्ज नहीं की है। इससे पहले 1972 में तत्कालीन पश्चिमी जर्मनी ने सोवियत संघ को 3-0 से हराकर खिताब जीता था।

स्पेन का कुल मिलाकर ये तीसरा यूरो कप खिताब है। स्पेन ने सबसे पहले 1964 में सोवियत संघ को 2-1 से हराकर खिताब जीता था उसके बाद फिर 2008 में स्पेन ने जर्मनी को 1-0 से हराकर यूरो कप जीता था और तीसरी बार इटली को हराकर 2012 का खिताब अपनी झोली में डाला है।

आज से पहले स्पेन और इटली के इतिहास में पलड़ा अबतक इटली का भारी रहा है। 1920 ओलंपिक्स से लेकर 1994 के विश्व कप क्वार्टफाइनल तक इटली स्पेन पर हमेशा भारी रहता था लेकिन यूरो 2012 के फाइनल में साफ हो गया कि मौजूदा दौर में स्पेन की बादशाहत को चुनौती देना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हैं। 92 साल बाद स्पेन ने इटली पर किसी बड़े टूर्नामेंट के अहम मुकाबले में जीत दर्ज की है।

स्पेन की लगातार तीसरी बड़ी खिताबी जीत ने एक और बात साफ कर दी है। अब फुटबॉल का रंग पीला नहीं लाल हो गया है। अब तक विश्व फुटबॉल का रंग ब्राजील के पीले रंग से जोड़कर देखा जाता था लेकिन जिस आक्रामता से स्पेन के साथ पिछले कुछ सालों से खेल रहा है उससे साफ है कि अब फुटबॉल के सारे मानक टूटने वाले हैं।
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