THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Monday, September 3, 2012

कर व्यवस्था को सरल, सुनिश्चित बनाने का मतलब है,कारपरेट इंडिया को और ज्यादा छूट,राहत और विदेशी निवेशकों के लिए खुल्ला द्वार, ताकि काले धन की व्यवस्था बैरोक टोक चलती रहे!

कर व्यवस्था को सरल, सुनिश्चित बनाने का मतलब है,कारपरेट इंडिया को और ज्यादा छूट,राहत और विदेशी निवेशकों के लिए खुल्ला द्वार, ताकि काले धन की व्यवस्था बैरोक टोक चलती रहे!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

करारोपण व्यवस्था भारत में बिष्कार और अलगाव की जड़ है। उन लोगों पर करों का सारा बोझ है, जो रोजमर्रे की जिंदगी चलाने में भी दिक्कत महसूस करते हैं। निनानब्वे  फीसद लोगों के साथ यही हालत है। बाकी एक फीसद को तमाम तरह की छूट मिलती है। आर्थिक अश्वमेध यज्ञ ​​में फिर निनानब्वे  फीसद की बलि की पूरी तैयारी है।कर व्यवस्था को सरल, सुनिश्चित बनाने का मतलब है,कारपरेट इंडिया को और ज्यादा छूट,राहत और विदेशी निवेशकों के लिए खुल्ला द्वार, ताकि काले धन की व्यवस्था बैरोक टोक चलती रहे। केंद्रीय वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने सोमवार को कहा कि सरकार कर नियमों में स्पष्टता लाएगा और एक स्थिर कर व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठाएगा। चिदंबरम ने आयकर मुख्य आयुक्तों और महानिदेशकों को सम्बोधित करने के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि हम यह सुनिश्चित करेंगे कि एक स्थिर कर व्यवस्था और कर कानूनों में स्पष्टता बनी रहे।यह खतरे की घंटी है। चिदंबरम के मुताबिक टैक्स वसूली सिस्टम में बदलाव करने की प्रक्रिया जारी है। सरकार की टैक्स कानून में सफाई और टैक्स वसूली में स्थिरता लाने की कोशिश है। साथ ही एडवांस टैक्स जमा करने वालों को बढावा देने की कोशिश जारी है। टैक्स देने वालों के लिए प्रक्रिया आसान बनाई जाएगी। वित्त मंत्री ने हिदायत दी कि टैक्स विभाग की जांच से किसी को डरने की जरूरत नहीं है। किसको आश्वस्त कर रहे हैं वित्तमंत्री?  वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने इस संबंध में विदेशी निवेशकों को फिर से आश्वस्त किया है।जाहिर है कि विवादास्पद टैक्स कानून जीएएआर के टलने के पूरे आसार बन गए हैं। कर संग्रह बढ़ाने के लिए सरकार अब उन क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान देगी, जिनमें टैक्स की औसत दर से कम कर राजस्व प्राप्त हो रहा है। पी चिदंबरम ने बताया कि शोम कमिटी की रिपोर्ट को अभी तक नहीं पढ़ा गया है। शोम कमिटी का ड्राफ्ट पढ़ना बाकी है और उम्मीद है कि सितंबर अंत तक अंतिम रिपोर्ट आ जाएगी, जिसके बाद ही जीएएआर पर अंतिम फैसला लिया जाएगा।लेकिन वित्त मंत्री ने जीएएआर टालने के संकेत दिए हैं। पी चिदंबरम ने कहा कि अगर जरूरी हुआ तो जीएएआर में तत्काल संशोधन किया जाएगा और नहीं तो जीएएआर का बजट में ऐलान होगा। साथ ही, वोडाफोन टैक्स मामले पर जल्दबाजी में फैसला नहीं लिया जाएगा।चिदंबरम ने कहा कि  मैंने सभी मुख्य आयुक्तों से कहा है कि वह विरोधी जैसा रवैया अपनाने से बचें, कर वसूली करते समय ऐसा नहीं होना चाहिये। मैंने सभी मुख्य आयकर आयुक्तों से कहा है कि यह संदेश सभी आयुक्तों, सहायक आयुक्तों, उपायुक्तों और आयकर अधिकारियों को दोहरायें।

भारत में 18वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भूमिकर के अतिरिक्त देश के भिन्न-भिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रत्यक्ष कर भी लगाए जाते थे। किंतु इन सब में भूमिकर ही प्रधान था। कुछ काल तक अंग्रेजों ने उनमें से अधिकांश उद्ग्रहणों को जारी रखा किंतु कालांतर में उन्हें बंद कर दिया। एक समय ऐसा भी था जब भूमिकर के अतिरिक्त देश में अन्य किसी प्रकार का प्रत्यक्ष कर नहीं ग्रहण किया जाता था। भारत में सन्‌ 1860 में प्रथम बार आयकर की व्यवस्था की गई। 1886 में इसे भारतीय करप्रणाली का स्थायी अंग बना दिया गया, किंतु इसके पूर्व यह शासनव्यवस्था में उत्पन्न हुई आर्थिक कठिनाइयों के निवारण के लिए समय समय पर अल्प मात्रा में ही लगाया जाता था। प्रथम विश्वयुद्ध के समय शासन का खर्च अत्याधिक बढ़ जाने के कारण इस कर का महत्व बढ़ गया और राजस्ववृद्धि का यह एक प्रमुख स्रोत बन गया। सन्‌ 1917 में क्रमानुपातिक अधिकार (सुपरटैक्स) तथा 1918 में अधिलाभकर (ऐक्सेस प्रॉफिट टैक्स) का प्रवर्तन किया गया।भारत में आयकर लगाने और वसूल करने की पद्धति को नियमित रूप देने के लिए सन्‌ 1922 में एक समेकित (कॉनसालिडेटेड) अधिनियम पारित किया गया था। भारतीय आयकर अधिनियम 1922 की संज्ञा से ज्ञात यह अधिनियम 31 मार्च, 1962 तक व्यवहार में रहा। समय-समय पर इसमें संशोधन किए जाते रहे और अंत में यह आवश्यक हो गया कि इसे बदल दिया जाए। सितंबर, 1961 में राष्ट्रपति ने आयकर अधिनियम 1961 को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी और 1 अप्रैल, 1962 से इस नए अधिनियम ने सन्‌ 1922 के अधिनियम का स्थान ले लिया।

कोयला घोटाले में वित्तमंत्री का रवैया ही बता देते हैं कि कर व्यवस्था के बदलाव से उनका क्या आशय है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने साफ कर दिया है कि कोयला खदानों का आवंटन हालफिलहाल रद्द नहीं होगा। उन्होंने आवंटन की न्यायिक जांच की मांग भी खारिज कर दी। चिदंबरम ने कहा कि कोल ब्लॉक का आवंटन किसी एकपक्षीय आदेश से रद्द नहीं हो सकता। विपक्ष की कोयला खदानों के आवंटन को रद्द करने की मांग पर वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि ब्लॉक वापस लेने से अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। ब्लॉक वापस लेने से कोयले के उत्पादन में कमी आएगी।पी चिदंबरम के मुताबिक कोयला खदानों के आवंटन पर संसद में चर्चा होनी चाहिए। विपक्ष की प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग गलत है। साथ ही, सीबीआई की जांच चल रही है इसलिए दूसरी जांच संभव नहीं है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने वित्त वर्ष 2013 में डायरेक्ट टैक्स वसूली के लक्ष्य को हासिल करने का भरोसा जताया है। सरकार ने वित्त वर्ष 2013 में 5.7 लाख करोड़ रुपये डायरेक्ट टैक्स के जरिए वसूले जाने का लक्ष्य तय किया है।

सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह वोडाफोन जैसे टैक्स मामलों में कार्रवाई को लेकर हड़बड़ी में नहीं है। ऐसे सभी मामलों में विस्तृत विचार-विमर्श और शोम समिति की सिफारिशें मिलने के बाद ही कोई फैसला होगा। आयकर अधिकारी ऐसे मामलों में कार्रवाई करने की जल्दबाजी में नहीं हैं। इन मामलों में कोई छोटी-मोटी राशि नहीं जुड़ी है। यह पूछे जाने पर कि क्या वोडाफोन को टैक्स अदायगी के लिए नोटिस भेजा जाएगा, वित्तमंत्री ने कहा कि अभी सरकार को कोई जल्दी नहीं है।साल 2007 में हच एस्सार की हिस्सेदारी खरीदने के मामले में आयकर विभाग ने वोडाफोन पर 11,218 करोड़ रुपये का आयकर देने का नोटिस दिया था। आयकर विभाग के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने इस साल जनवरी में खारिज कर दिया था। शीर्ष अदालत के फैसले के बाद इस साल बजट में तब के वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने आयकर अधिनियम में संशोधन कर पुरानी तारीख से कर वसूली का रास्ता साफ करने का प्रस्ताव किया था।

आज भारत की अर्थव्यवस्था नवउदारवादी चिंतन से अनुप्राणित है। वर्ष 1991 में अपना पहला बजट पेश करते हुए तत्कालीन वित्तमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि नवउदारवाद वह विचारधारा है जिसका समय आ गया है इसलिए उसको कोई भी शक्ति रोक नहीं सकती। पिछले 21 वर्षों से यही विचारधारा देश की आर्थिक नीतियों को संचालित कर रही है। अनेक वैचारिक रंगों की सरकारें तब से आईं और गई हैं मगर वह यों की त्यों है। इतना ही नहीं, हमारे देश की अर्थव्यवस्था के संचालन की कमान संभाले हुए अधिकतर क्या सारे लोग, नवउदारवादी चिंतन में सराबोर हैं। मोंटेक सिंह अहलुवालिया हों या दिवंगत राजकृष्ण या नवनियुक्त आर्थिक सलाहकार रघुराम जी.राजन, सब शिकागो आर्थिक विचारधारा से औपचारिक रूप से जुड़े रहे हैं।इस विचारधारा के संस्थापक और नेता निर्विवाद रूप से मिल्टन फ्रिडमैन रहे हैं। फ्रिडमैन की जन्मशताब्दी के अवसर पर प्रकाशित एक लेख में 'दी इकॉनमिस्ट' ने रेखांकित किया है कि वे जनजीवन में सरकारी हस्तक्षेप के सख्त खिलाफ थे। इसीलिए उन्होंने नशीली दवाओं और वेश्यावृत्ति पर से पूरी तरह पाबंदी हटाने की मांग की थी। साथ ही उन्होंने कहा था कि अनिवार्य सैनिक सेवा का प्रावधान समाप्त किया जाना चाहिए। वे सरकारी नियंत्रण के इतने विरोधी थे कि उन्होंने कहा था कि यदि सहारा रेगिस्तान का प्रबंधन सरकार के हाथों में पूरी तरह आ जाए तो वहां निश्चित रूप से जल्द ही रेत की किल्लत हो जाएगी। उनके अन्य 'सुभाषित' हैं 1. पूंजीवाद राजनीतिक स्वतंत्रता की अनिवार्य शर्त है। 2. सरकारें कभी सबक नहीं लेतीं, सिर्फ जनता सबक लेती है। 3. मुद्रास्फीति बिना विधायी अनुमति के करारोपण है। 4. सरकारी नियम-कानूनों को तुरंत हटाएं क्योंकि दुनिया यही चाहती है।
फ्रिडमैन का मानना था कि बेरोजगारी को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता। यदि पूर्ण रोजगार आता है तो उसके कुपरिणाम स्वरूप मुद्रास्फीति बढ़ेगी। इसी कारण उन्होंने नैचुरल रेट ऑफ अनएम्पलायमेंट यानी बेरोजगारी की स्वाभाविक दर की अवधारणा प्रस्तुत की जिसको आगे बढ़ा एडमंड फेल्प्स ने नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया।

चिदंबरम के मुताबिक टैक्स वसूली सिस्टम में बदलाव करने की प्रक्रिया जारी है। सरकार की टैक्स कानून में सफाई और टैक्स वसूली में स्थिरता लाने की कोशिश है। साथ ही एडवांस टैक्स जमा करने वालों को बढ़ावा देने की कोशिश जारी है। टैक्स देने वालों के लिए प्रक्रिया आसान बनाई जाएगी।
वित्त मंत्री ने हिदायत दी कि टैक्स विभाग की जांच से किसी को डरने की जरूरत नहीं है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि भारत में दूसरे देशों के मुकाबले टैक्स की दरें काफी कम हैं। सरकार ने टैक्स-जीडीपी अनुपात को दोबारा 12 फीसदी पर लाने का लक्ष्य तय किया है। हालांकि जीडीपी ग्रोथ की धीमी रफ्तार का टैक्स वसूली पर असर पड़ने का अनुमान है।

वित्तमंत्री ने कहा कि कर संग्रह में ज्यादा दिक्कत कॉरपोरेट टैक्स के मामले में आ रही है। इस टैक्स की मौजूदा दर 30 प्रतिशत है, लेकिन कर संग्रह औसतन 24 प्रतिशत की दर पर हो रहा है। इसमें भी कई मामलों में तो कर की दर इससे भी कम रहती है। कर व्यय के चलते सरकार कभी भी निर्धारित दर पर टैक्स संग्रह नहीं कर पा रही है। चिदंबरम ने आयकर अफसरों से कहा कि टैक्स की औसत दर को 24 से बढ़ाकर 26 प्रतिशत भी कर लिया जाए तो 30,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर राजस्व प्राप्त करने में सफलता मिल जाएगी।

वर्तमान में कर संग्रह में 10 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है। वहीं, बजट का लक्ष्य पाने के लिए टैक्स वसूली में 15 फीसद की दर से वृद्धि की दरकार है। उम्मीद है कि वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में कर संग्रह की रफ्तार बढ़ेगी और सरकार कर संग्रह का लक्ष्य प्राप्त कर पाएगी। सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] में कर संग्रह का अनुपात 12 प्रतिशत तक पहुंचाने की आवश्यकता है। वर्तमान में यह दर 10.1 प्रतिशत है, जबकि 2007-08 में यह 11.9 फीसद तक पहुंच गई थी। चिदंबरम ने आयकर अधिकारियों को इस दर में वृद्धि के उपाय करने को कहा। अगर 12 प्रतिशत की दर हासिल हो जाती है तो भी भारत जीडीपी के अनुपात में बेहतर कर संग्रह वाले देशों से पीछे ही रहेगा।

वित्त मंत्री ने आयकर निर्धारकों से निर्धारित तिथि पर अग्रिम कर का भुगतान करने का सलाह देते हुये कहा कर का भुगतान करना देश के नागरिक होने का एहसास कराता है। यदि में अधिक कर देता हूं तो मुझे अधिक खुश होना चाहिये और ज्यादा गर्व होना चाहिये। मैं अधिक कमाता हूं और ज्यादा कर देता हूं।

कंपनियों को 15 सितंबर तक अग्रिम कर की दूसरी किस्त चुकानी है जबकि व्यक्तिगत आयकर दाताओं को इस तिथि तक आयकर की पहली किस्त का अग्रिम भुगतान करना है। वित्त मंत्री ने कहा यह हमारी मंशा है कि हम चालू वित्त वर्ष के लिये तय 5,70,257 करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष कर वसूली लक्ष्य को हासिल करें। हम इसे हासिल कर लेंगे। उन्होंने कहा कि प्रत्यक्ष कर वसूली फिलहाल 10.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है जबकि तय लक्ष्य हासिल करने के लिये 15 प्रतिशत वृद्धि की आवश्यकता है।

चिदंबरम ने विश्वास जताया कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कर वसूली में सुधार होगा। उन्होंने कहा कि भारत अभी भी कम कर लेने वाला देश है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के समक्ष कर का अनुपात 12 प्रतिशत तक बढ़ाने की आवश्यकता है। वर्ष 2007-08 में कर जीडीपी अनुपात 11.9 प्रतिशत पर था यह घटकर 10.1 प्रतिशत रह गया है।

दूसरी ओर, अर्थव्यवस्था के सुस्ती से उबरने को लेकर देसी-विदेशी संस्थाओं का भरोसा बहाल होता नहीं दिख रहा है।  अर्थव्यवस्था की विकास दर को लेकर देसी-विदेशी वित्तीय संस्थानों की चिंता लगातार बढ़ती जा रही है। अमेरिकी निवेश बैंकर मॉर्गन स्टैनले ने चालू वित्त वर्ष के लिए एक बार फिर से अपने अनुमान में कटौती कर दी है। अब इसने 2012-13 में सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] की दर 5.1 फीसद रहने का अनुमान जताया है। पहले 5.8 फीसद की वृद्धि दर का इसने अनुमान लगाया था। यह अब तक के अनुमानों में सबसे कम है। मॉर्गन स्टैनले का कहना है कि बढ़ते राजस्व घाटे और विदेशी मांग में कमी को देखते हुए अनुमान में संशोधन किया गया है।बैंक ने चेताया है कि अगर नीतियों को लेकर तत्काल कदम नहीं उठाया जाता है तो देश की विकास दर घटकर 4.3 फीसद के स्तर पर भी जा सकती है। सरकार को निजी निवेश बढ़ाने के उपाय करने चाहिए। नीतिगत सुस्ती का दौर लगातार जारी है जिसे खत्म किए जाने की जरूरत है। इसके चलते देश में स्टैगफ्लेशन [अवस्फीति] का माहौल बनता जा रहा है। मॉर्गन स्टैनले ने अगले वित्त वर्ष 2013-14 के विकास अनुमान को भी कम कर 6.1 फीसद कर दिया है। पहले इस वर्ष के लिए 6.6 फीसद वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया था।

इससे पहले रेटिंग एजेंसी मूडीज और क्रिसिल सहित सिटीग्रुप और सीएलएसए ने भी विकास दर अनुमान में कटौती की थी। इन संस्थानों के संशोधित अनुमान में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 5.5 फीसद तक रहने की संभावना जताई गई है। वैसे चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही [अप्रैल-जून] में विकास दर पिछले साल की इसी अवधि के आठ फीसद के मुकाबले घटकर 5.5 फीसद रह गई है।

कारोबारी हफ्ते के पहले दिन शुरुआती तेजी को खोते हुए बाजार गिरकर बंद हुआ। सेंसेक्स 72 अंक गिरकर 17357 पर और निफ्टी 12 अंक घटकर 5247 पर बंद हुआ। भारतीय शेयर बाजार में ये कमजोरी अर्थव्यवस्था की खस्ता होती हालत और सरकार के सुस्त रवैये को लेकर दर्ज हुई। उधर, मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में भी कमजोरी देखने को मिली। छोटे और मझोल शेयरों में भी सुस्ती का रुख दर्ज किया गया।अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के रुख के बीच डीजल की बिक्री पर नुकसान बढ़कर 19.26 रुपये प्रति लीटर पहुंच गया है। इससे सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों घाटे से उबरने के उपाय तलाशने में जुट गई हैं।सूत्रों ने कहा कि उत्पादन लागत करीब 28 प्रतिशत बढ़ने के बावजूद पिछले साल जून से डीजल, घरेलू रसोई गैस और केरोसिन के दाम नहीं बढ़ाए गए हैं। डीजल, घरेलू एलपीजी और केरोसिन की बिक्री, लागत से काफी नीचे करने की वजह से इंडियन आयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम को प्रतिदिन 560 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है।सूत्रों ने कहा कि डीजल की बिक्री 19.26 रुपये प्रति लीटर, केरोसिन 34.34 रुपये प्रति लीटर और घरेलू एलपीजी 347 रुपये प्रति सिलेंडर (14.2 किलो) नुकसान पर की जा रही है। डीजल पर नुकसान अब तक का सबसे अधिक है।इसके अलावा इन्हें पेट्रोल की बिक्री पर 4.85 रुपये प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है, जबकि पेट्रोल की कीमतें जून, 2010 में ही सरकारी नियंत्रण से मुक्त की जा चुकी हैं। वर्तमान दर पर, तीनों कपंनियों को 31 मार्च को समाप्त हुए वित्त वर्ष में करीब 1,92,951 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है।

इसी बीच उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक में खनन गतिविधियों पर लगाए गए प्रतिबंध में आंशिक ढील देते हुए 18 लीजों में लौह अयस्क के खनन को सोमवार को सशर्त हरी झंडी दे दी।राज्य में खनन पर साल भार पहले प्रतिबंध लगाया गया था। न्यायाधीश आफताब आलम की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) की वह रिपोर्ट स्वीकार कर ली जिसमें कहा गया था कि बेल्लारी, टुमकुर व चित्रदुर्ग में 18 लीजों को अपना कारोबार करने की अनुमति दी जाए क्योंकि इन्होंने किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया।हालांकि इसने कहा है कि खनन शुरू करने की अनुमति इन 18 खानों के खिलाफ किसी जांच आदि में आड़े नहीं आएगी। न्यायालय ने उक्त तीन जिलों में ए श्रेणी की 18 खानों में लगाए गए प्रतिबंध को हटाने का आदेश दिया है। खनन की यह मंजूरी कुछ शर्तों के साथ दी गई है।

सीईसी ने अपनी रिपोर्ट में खानों को तीन श्रेणी- ए, बी और सी में बांटा था। वे खानें जहां सबसे कम या कोई अनियमितताएं नहीं पाई गईं, उन्हें ए और जहां सबसे अधिक अनियमितताएं पाई गईं उन्हें सी श्रेणी में रखा गया।

जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि गरीबी रेखा तय करना योजना आयोग जैसे विशेषज्ञ निकाय का काम है और न्यायपालिका देश की आर्थिक नीतियां नहीं तय कर सकती। न्यायालय का यह आदेश इस बात का संकेत है कि न्यायपालिका को आगे बढ़कर कार्यपालिका और सरकार के कार्यक्षेत्र में दखल नहीं देना चाहिए।

न्यायालय ने पिछले सप्ताह एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि यह कार्य विशेषज्ञ निकायों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। गरीबी रेखा की समीक्षा करना बहुत कठिन है। हम आर्थिक नीति तय नहीं कर सकते।

न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलिफुल्ला की खंडपीठ ने यह बात तब कही जब पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज [पीयूसीएल] की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कोलिन गोंसाल्विस ने न्यायालय का ध्यान गरीबी रेखा के निर्धारण का आधार काफी कम यानी 32 रुपये प्रतिदिन की आय माने जाने की ओर आकृष्ट किया। यह एक ऐसा मुद्दा है जो देश में विचारणीय बहस की मांग करता है।

गोंसाल्विस ने दलील दी कि सरकार अपनी जवाबदेही से भाग नहीं सकती, खासकर समाज के कमजोर वर्ग के संदर्भ में। वहीं न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता को ऐसे सुझाव देने चाहिए जिन पर सरकार के कामकाज में दखल दिए बगैर अमल किया जा सके।

गोंसाल्विस की दलील पर असहमति जताते हुए न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा, संविधान में यह कहां लिखा है कि खाद्य सामग्री पर रियायत दी जानी चाहिए?

उन्होंने कहा, गरीबी रेखा काल्पनिक है। इसकी प्रासंगिकता केवल रियायत देने के संदर्भ में है।

इसके विपरीत, न्यायमूर्ति भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने कुछ दिन पूर्व सरकार को कठघरे में खड़ा किया था और उसे गरीबी रेखा से नीचे के मानदंड में संशोधन करते हुए शहरी इलाकों के लिए न्यूनतम आय 32 रुपये प्रतिदिन तथा ग्रामीण इलाकों के लिए 26 रुपये प्रतिदिन तय करने को विवश किया था। यहां तक कि इसी खंडपीठ ने बाद में योजना आयोग से सवाल किया था कि उसने किस आधार पर शहरी इलाकों के लिए 32 रुपये और ग्रामीण इलाकों के लिए 26 रुपये प्रतिदिन की आय पर गरीबी रेखा तय कर दी।

उल्लेखनीय है कि प्रधान न्यायाधीश एसएच कपाड़िया ने भी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम के दौरान और फिर बाद में न्यायाधीशों से कहा था कि वे सरकार एवं विधायिका के अधिकार क्षेत्र में दखल देने से पूर्व अच्छी तरह सोच-विचार लें।

उत्तरी अमेरिका और यूरोप में मांग में कमी होने के कारण जुलाई में देश का निर्यात 14.8 फीसदी घटकर 22.44 अरब डॉलर रहा। पिछले साल की समान अवधि में देश का निर्यात 26.34 अरब डॉलर था। मौजूदा कारोबारी साल के पहले चार महीने में देश का कुल निर्यात 97.64 अरब डॉलर का है, जो पिछले साल की समान अवधि के 102.85 अरब डॉलर निर्यात से 5.06 फीसदी कम है।

वाणिज्य मंत्रालय द्वारा सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक आलोच्य अवधि में आयात 7.61 फीसदी कम 37.93 अरब डॉलर रहा, जिसके कारण मासिक व्यापार घाटा 15.49 अरब डॉलर दर्ज किया गया।

मौजूदा कारोबारी साल के पहले चार महीने के कुल निर्यात से लगता है कि अगले कुछ महीने में भी निर्यात कम ही रहेगा और इसके कारण मौजूदा कारोबारी साल का निर्यात लक्ष्य हासिल करना कठिन होगा। सरकार ने मौजूदा कारोबारी साल में 360 अरब डॉलर निर्यात लक्ष्य तय किया है।
पिछले साल सरकार ने 300 अरब डॉलर निर्यात लक्ष्य तय किया था, जबकि कुल निर्यात इससे अधिक 303.71 अरब डॉलर का हुआ था। मौजूदा कारोबारी साल के पहले चार महीने का कुल आयात 153.19 अरब डॉलर रहा, जो पिछले साल की समान अवधि के 163.80 अरब डॉलर आयात से 6.47 फीसदी कम है।

प्रमुख कर
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF_%E0%A4%95%E0%A4%B0_%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE
आयकर के अतिरिक्त केंद्रीय शासन ने चार अन्य मुख्य उद्ग्रहणों की भी व्यवस्था की है जिनके नाम हैं : संपदा शुल्क 1953, धनकर 1957, उपहारकर 1958 तथा व्ययकर 1958.
[संपादित करें]अन्य कर
उपर्युक्त करों के अतिरिक्त कतिपय उपभोग करों की व्यवस्था है जो सामान्यत: उपभोक्ताओं को अधिक मूल्य के रूप में देने पड़ते हैं, यद्यपि आरंभिक रूप में ये कर उत्पादकों तथा वितरकों पर ही लगाए जाते हैं। इस प्रकार के करो को प्राय: 'अप्रत्यक्ष कर' कहा जाता है। उत्पादन की विभिन्न अवस्थाओं में स्थूल आय या मूल्य के आधार पर ये कर अधिकतर चल करों के रूप में लगाए जाते हैं, जैसे निर्माण की थोक तथा खुदरा अवस्थाओं में विक्रय एवं क्रय कर। अधिक सीमित रूपों में ये कर विलासिता की तथा बहुत सी अन्य वस्तुओं पर उत्पादन शुल्क के रूप में लगे दीख पड़ते हैं। भारतीय संघीय शासन अंतरप्रांतीय विक्रय पर केंद्रीय विक्रय कर तथा बहुत सी अन्य सामग्रियों पर उत्पादन शुल्क का उद्ग्रहण करता है। विभिन्न प्रांतीय शासन भी प्रदेश की सीमा के अंतर्गत विक्रय की गई वस्तुओं पर बिक्रीकर का उद्ग्रहण करते हैं।
[संपादित करें]सामान्य वर्गीकरण

करों के आधार वा स्रोतपरक वर्गीकरण के अतिरिक्त अत्यंत महत्वपूर्ण वर्गीकरणों में एक है - उत्कर्षपरक, आनुपातिक तथा अपकर्षपरक विभाजन। यह वर्गीकरण विशुद्ध आय की तुलना में प्रभावशाली अर्घ अनुपात में भी वृद्धि होती है अर्थात्‌ जब किसी व्यक्ति की आय में वृद्धि के साथ-साथ उस आय पर निर्धारित किए जानेवाले कर के प्रतिशत में भी वृद्धि होती चलती है, तब उस स्थिति में वह वृद्धिशील कर है। यह आयवृद्धि से कर के प्रतिशत पर कोई प्रभाव न पड़े तो कर आनुपातिक है। जब आयवृद्धि के साथ कर का प्रतिशत न्यून होता चले तब कर अपकर्षपरक है। ये संज्ञाएँ विशिष्ट कर एवं सामान्य कर व्यवस्था-दोनों में व्यवहार्य हैं। विशिष्ट करों में व्यक्तिगत आयकर, मृत्युकर तथा उपहारकर प्राय: सार्वत्रिक उत्कर्षपरक हैं। अधिकतर संपत्ति, विक्रय तथा उत्पादन सम्बंधी करों का आनुपातिक रूप में उद्ग्रहण किया जाता है किंतु व्यवहार में ये कर अपकर्षपरक होते हैं। उदाहरण के लिए अधिक आय की अपेक्षा कम आय पर लगा 7% कर राशि में अधिक है क्योंकि कम आय पर अधिक मर्दे करार्ह होती हैं बनिस्बत अधिक आय के।
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में दीख पड़नेवाला भेद ऐसा है जो बहुत प्रचलित है। सामान्यत: प्रत्यक्ष कर उस व्यक्ति को अदा करना पड़ता है जिसपर यह लगाया जाता है। अप्रत्यक्ष कर वह है जो वास्तविक करदाता या तो वस्तुओं का दाम बढ़ाकर दूसरों से इसे वसूलता है या फिर स्वयं वस्तुओं का कम मूल्य देकर इस कर से मुक्त रहता है। तब भी बहुत बार यह निश्चय कर पाना बड़ा कठिन हो जाता है कि कर प्रत्यक्ष है या अप्रत्यक्ष। व्यवहार में आय, मृत्यु, उपहार और भूमि से सम्बंधित करों को प्रत्यक्ष माना जाता है। उपभोग करों को सामान्यत: अप्रत्यक्ष माना जाता है। साधारणतया प्रत्यक्ष कर ही दानक्षमता के सिद्धांत पर आधारित होते हैं।
[संपादित करें]भारतीय केंद्रीय कर

भारत की तरह के संघीय संविधान में कराधान का अधिकार केंद्र में तथा प्रदेशों अथवा इकाइयों में विभक्त कर दिया जाता है। इन अधिकारों को दृष्टिगत रखते हुए कुछ वस्तुओं पर केंद्र कर लगा सकता है और कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनपर राज्य कर लगा सकते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान के अनुसार आय, उपहार, धन, व्यय और संपदा से सम्बंधित कर संघीय शासन द्वारा निर्धारित किए जाते हैं तथा राज्य शासन विक्रय, मनोरंजन और कृषि सम्बंधी उत्पादनों पर कर लगाते हैं।
[संपादित करें]आयकर
मुख्य लेख : भारत में आयकर
भारत में व्यक्ति, व्यवसाय संघ, संयुक्त हिंदू परिवार, व्यक्तियों के समुदाय, स्थानीय निकायों और कंपनियों पर आयकर अधिनियम 1961 के अधीन आयकर लगाने की व्यवस्था है। इन इकाइयों को कुछ विशेष स्थितियों के आधार पर स्थूल रूप से वसतिपरक और वसतिरहित इन दो श्रेणियों में विभक्त कर दिया गया है। दोनों पर निर्धारित किए जानेवाले कर में भी भेद है। वसतिपरक पर करनिर्धारण भारत या बाहर से हुई उसकी कुल आय पर कर लगता है जो उसे भारत के अंतर्गत हुई हो। व्यक्तिगत आय पर कर उत्कर्षपरक होता है; आय के प्रत्येक फलक (ब्लॉक) पर यह बढ़ता रहता है।
धारा 10 के अनुसार आय की कुछ मदें करदाता की पूर्ण आय में सम्मिलित नहीं की जातीं, इसलिये वे (मर्दे) करों से भी मुक्त हैं : जैसे : कृषि संबंधी आय, छात्रवृत्तियाँ आदि।
आय को छह 'मदों' वा श्रेणियों में विभक्त किया गया है - वेतनों से आय, जमा राशियों पर ब्याज, मकानों से आय, व्यापार तथा व्यवसाय में मुनाफा या लाभ, पूँजी से लाभ तथा अन्य साधनों से आय। इस विभाजन का उपयोग केवल इतना है कि तत्सम्बंधी नियम उनपर लागू किए जा सकें। विभिन्न श्रेणियों की आय एक साथ जोड़ ली जाती है और कुल आय पर वर्तुलाकार रूप से कर का निरूपण किया जाता है। कर की दरें करदाता की कुल आय को ध्यान में रखकर निर्धारित की जाती हैं। कुल आय से अभिप्राय करदाता की शुद्ध आय से है, निर्धारित छूटों को छोड़कर।
'कर निरूपण वर्ष' के लिए कर का निर्धारण करदाता को 'पूर्व वर्ष' में हुई आय के आधार पर किया जाता है। 'करनिरूपण वर्ष' से अभिप्राय उस वित्तीय वर्षपरिमाण से है जो 1 अप्रैल से प्रारंभ होता है और आनेवाले वर्ष में 31 मार्च को समाप्त होता है। 'पूर्व वर्ष' से अभिप्राय उस वित्तीय वर्ष से है जो 'निरूपण वर्ष' प्रारंभ होने के ठीक पूर्व समाप्त होता है।
अधिनियम के घाटे को अलग कर देने और आगे ले जाने की तथा अंतराष्ट्रीय दोहरे कराधान से बचाव की भी व्यवस्था है।
[संपादित करें]प्रशासन
आयकर प्रशासन की व्यवस्था के लिए आयकर अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है, जिनमें प्रारंभिक हैं निरीक्षक सहायक आयुक्त, अपीलीय सहायक आयुक्त तथा अपीलीय न्यायाधिकरण। अपीलीय न्यायाधिकरण के किसी निर्णय के सम्बंध में उच्च न्यायलय में अर्जी दी जा सकती है तथा जरूरत होने पर उच्चतम न्यायालय में भी अपील की जा सकती है।
सामान्यत: सभी करदाताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे कर निर्धारण वर्ष समाप्त होने के बाद 30 जून तक पूरा विवरण अधिकारियों के पास भेज दें। ये विवरण केवल सूचनापरक होते हैं। विवरणों में दी गई या उसके पास उपलब्ध किसी भी अन्य सूचना के आधार पर आयकर अधिकारी कर का निर्धारण करता है। यदि आयकर अधिकारियों को लगे कि किसी व्यक्ति ने वास्तविक आय को अथवा आय से सम्बंधित दस्तावेजों को छिपाया है, उस अवस्था में दस्तावेजों की जाँच या दस्तावेज एवं धनराशि अपने अधिकार में करने के लिए उन्हें अधिनियम में पर्याप्त अधिकार दिए गए हैं।
[संपादित करें]संपदा शुल्क (एस्टेट ड्यूटी)
सम्पत्ति और उत्तराधिकार विषयक करों के निर्धारण के लिए संविधान द्वारा केंद्रीय शासन को प्रदत्त विशेष अधिकारों के अधीन केंद्रीय शासन ने संपदा शुल्क अधिनियम पारित कर सन्‌ 1953 में प्रथम बार संपदा शुल्क का उद्ग्रहण किया था। यह शुल्क इंग्लैंड में निर्धारित संपदा शुल्क पर आधारित है।
किसी व्यक्ति की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी को मिली या मिलनेवाली सम्पूर्ण सम्पत्ति के 'प्रधान मूल्य' पर सम्पदा शुल्क का उद्ग्रहण किया जाता है। यह सम्पत्ति चल भी हो सकती है और अचल भी हो सकती है। प्रधान मूल्य से अभिप्राय उस मूल्य से है जितने में मृत व्यक्ति की मृत्यु के समय सम्पति को खुले बाजार में बेचा जा सके। यहाँ अचल सम्पत्ति को अंतर्ग्रहण महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे सम्पदा शुल्क के अंतर्गत अनेक ऐसी मर्दे आ जाती हैं जो अन्यथा इस कर के दायरे के बाहर मान ली जा सकती हैं। किसी व्यक्ति के लिए प्रत्यक्ष या प्रन्यास के माध्यम से उत्तराधिकार रूप में निश्चित सम्पत्ति अवस्थापित मानी गई है। संपदा शुल्क अधिनियम उन सभी व्यक्तियों पर लागू होता है ¾
1. जो भारत के अधिवासी हैं। उनकी मृत्यु के समय उनकी
(अ) भारत में स्थित चल तथा अचल सम्पत्ति, एवं
(ब) भारत के बाहर स्थित चल सम्पत्ति करार्ह होगी।
2. जो भारत के अधिवासी नहीं हैं, उनकी मृत्यु के समय भारत में स्थित उनकी चल तथा अचल संपत्ति करार्ह होगी एवं-
(3) जो भारत के बाहर स्थित चल अवस्थापित सम्पत्ति का मृत्यु पर्यंत अभोगी रहा हो किंतु शर्त यह कि अवस्थापक अवस्थापन के समय भारत का अधिवासी रहा हो तो उसकी वह संपत्ति करार्ह होगी।
घरेलू सामान, परिधान, भारत के बाहर स्थित अचल सम्पत्ति आदि बहुत सी मर्दे धारा 33 के अनुसार शुल्क से मुक्त हैं। संपदा शुल्क की दर निर्धारित करते समय इन मदों की गणना नहीं की जाती। कुछ मदें ऐसी हैं जिन्हें यद्यपि संपदा शुल्क से मुक्त माना गया है, तथापि शुल्क की दर तै करते समय उन्हें कुल सम्पदा में गिनने की व्यवस्था है (धारा 34 (1))। कुल सम्पदा पर जिस दर से कर का निर्धारण किया जाता है, उसी अनुपात में मुक्त सम्पत्ति पर जितना कर बैठता है, उतना कर माफ कर दिया जाता है।
अधिनियम में सम्पदा के मान में से बहुत सी अन्य कटौतियों की भी व्यवस्था है, जैसे अंतिम संस्कार के लिए। यह कटौती सम्पत्ति के उस भाग पर लगनेवाले सम्पदा शुल्क में की जाती है जिस भाग पर मृत व्यक्ति की मृत्युतिथि से पाँच वर्ष पूर्व तक पूर्वाधिकारी की मृत्यु के समय कर का उद्ग्रहण किया जा चुका है (धारा 31); उदाहरण के लिए इस प्रकार की सम्पत्ति पर लगनेवाले कर में 100% कटौती कर दी जाती है यदि उत्तराधिकारी पूर्व मृत व्यक्ति से तीन महीने के अंदर अंदर मर जाता है तो कर में 50% की छूट दे दी जाती है (इसी प्रकार कुछ अन्य व्यवस्थाएँ भी हैं)।
केंद्रीय शासन को यह अधिकार है कि वह अन्य देशों के साथ इस प्रकार के पारस्परिक अनुबंध बना सके जिससे किसी व्यक्ति को भारतीय और विदेशी सम्पदा करों के अधीन दोहरा कर न देना पड़े (धारा 30)।
[संपादित करें]प्रशासन और प्रक्रिया
सम्पदा शुल्क का प्रशासन और उसे उगाहने का काम सम्पदा शुल्क नियंत्रकों द्वारा सम्पादित किया जाता हैं। केंद्रीय शासन द्वारा नियुक्त ये निंयत्रक राजस्व के केंद्रीय बोर्ड की सामान्य देखरेख में अपना काम करते हैं। अपीलीय नियंत्रकों को और अपीलीय न्यायधिकरण को अपीलें सुनने का अधिकार होता है। इसके बाद उच्च न्यायालय में भी अपील की जा सकती है।
मृतक के वैधानिक प्रतिनिधि, जिन्हें मृतक की मृत्यु के बाद सम्पत्ति मिलती है तथा प्रत्ययी, जो मृतक की मृत्यु के बाद सम्पत्ति के प्रबंधक बनते हैं अथवा सम्पत्ति के किसी हिस्से में भागीदार बनते हैं उनसे अपेक्षा की जाती है कि मृतक की मृत्यु के अनंतर छह महीनों के अंदर अंदर सम्पदा शुल्क नियंत्रक के पास 'खाते' प्रस्तुत कर दें (धारा 53)। विवरणों तथा लेखों से संतुष्ट होने पर नियंत्रक शुल्क का निर्धारण करेगा एवं संबद्ध व्यक्तियों को माँग की नोटिस देगा जिसमें उल्लिखित समय तथा स्थान पर उन्हें शुल्क की रकम जमा कर देनी चाहिए।
[संपादित करें]धनकर (वेल्थ टेक्स)
निकोलस काल्डोर की संस्तुतियों पर अप्रैल, 1957 में प्रथम बार भारत में शुद्ध धन पर कर की व्यवस्था की गई थी। कैंब्रिज विश्वविद्यालय के काल्डोर महोदय ने भारतीय शासन की प्रार्थना पर भारतीय करप्रणाली का अध्ययन करने के बाद उक्त संस्तुतियाँ की थीं।
'मूल्य निर्धारण तिथि' को करदाता के पास कुल जितना कर योग्य या करार्ह शुद्ध धन हो, उसी पर धनकर का वार्षिक उद्ग्रहण किया जाता है। शुद्ध धन से अभिप्राय है गणना के वर्ष के अंतिम दिन करदाता के पास जितनी परिसंपत्तियाँ हों, उन सबका कुल मूल्य। किसी भी परिसम्पत्ति का मूल्य वही माना जाएगा, जितने में पह परिसंपत्ति मूल्यनिर्धारण तिथि को खुले बाजार में बेची जा सके।
धनकर केवल व्यक्तियों को तथा अविभाजित हिंदू परिवारों को ही अदा करना पड़ता है और यह क्रमिक रूप से वृद्धिशील होता है। प्रारंभ में कंपनियों से भी इस कर का समान दर से उद्ग्रहण किया जाता था किंतु सन्‌ 1960-61 से कम्पनियों को इस से मुक्त कर दिया गया। करग्रहण के उद्देश्य से इन दोनों इकाइयों को स्थानिक और अनिवासी इन दो भागों में विभक्त कर दिया गया है। इस विभाजन का आधार वही है जो आयकर अधिनियम द्वारा निर्धारित है। करार्हता के निर्धारण में राष्ट्रीयता का भी विचार किया जाता है। सामान्यत: स्थानिक व्यक्तियों से उनके विश्वव्यापी शुद्ध धन के आधार पर कर ग्रहण किया जाता है। और अन्य लोगों से केवल उनके भारत में स्थित घन के आधार पर।
अधिनियम में कुछ इस प्रकार की परिसंपत्तियों की सूची दी गई है जो धनकर से मुक्त हैं और करार्ह धन के निर्धारण में जिन्हें बिल्कुल नहीं गिना जाता।
कोई इस ढंग की करसंधि वा समझौते की व्यवस्था नहीं है जिससे अंतरराष्ट्रीय दोहरा कराधान रोका जा सके अथवा करदाता को कुछ उन्मुक्ति दी जा सके और न ही अदा किए गए विदेशी शुद्ध धन सम्बंधी कर के लिए आकलन की ही कोई व्यवस्था है जैसी आयकर अधिनियम की धारा 91 में है। तब भी सामान्यत: स्थानिक नागरिकों को और अविभाजित हिंदू परिवारों को विदेशी शुद्ध धन पर तथा अनिवासी विदेशियों को देशीय शुद्ध धन पर 50% रियायत की व्यवस्था अधिनियम में है।
[संपादित करें]प्रशासन और प्रक्रिया
सामान्य रूप से धनकर अधिनियम में दी गई प्रशासन और प्रक्रिया सम्बंधी व्यवस्था पूर्णत: आयकर अधिनियम में दी गई व्यवस्थाओं की अनुसारिणी है। आयकर विभाग के प्राधिकारी ही धनकर विभाग का काम देखते हैं। इस प्रकार आयकर अधिकारी ही धनकर अधिकारी है। अन्य प्राधिकारी हैं¾निरीक्षक सहायक कमिश्नर, अपीलीय सहायक कमिश्नर धनकर का कमिश्नर और सब से ऊपर अपीलीय न्यायधिकरण। धनकर अधिकारी के निर्णय के सम्बंध में अपीलीय सहायक कमिश्नर के पास अपील की जा सकती है¾और वहाँ से अपीलीय न्यायधिकरण के पास से उच्च न्यायालय में ले जाई जा सकती हैं और वहाँ से उच्चतम न्यायालय में।
करदाताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे प्रति वर्ष 30 जून के पूर्व लेखा स्वयं अधिकारियों के पास भेज दें। इस सम्बंध में उन्हें अधिकारियों से किसी प्रकार की सूचना की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। शुद्ध धन का अंकन करके धनकर अधिकारी उस धन पर लगनेवाले कर का निर्धारण करता है। लेखे और दंड का पुनर्विलोकन किए जाने की भी अधिनियम में व्यवस्था है।
[संपादित करें]उपहारकर
उपहारकर अधिनियम 1958 के अधीन प्रथम बार भारत में उपहार कर की व्यवस्था की गई थी। यद्यपि यह अधिनियम 1 अप्रैल, 1958 से व्यवहार में आया था किंतु 1 अप्रैल 1957 के बाद दिए गए उपहारों पर भी यह अधिनियम लागू होता था। उपहार कर के प्रवर्तन के पूर्व सामान्यत: उपहारों पर कोई कर नहीं लगता था किंतु आसन्न मृत्यु के आधार पर तथा मृत्यु के पूर्व दो वर्षो के अंदर दिए गए उपहारों पर संपदा शुल्क का उद्ग्रहण किया जाता था। उपहारकर संपदाकर का एक आवश्यक पूरक था।
उपहार की परिभाषा करते हुए कहा गया है कि किसी व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा से विद्यमान चल अथवा अचल संपत्ति का अन्य व्यक्ति को, मूल्य का विचार किए बिना, दिया जाना उपहार है। यदि देनेवाला मूल्य या बदले में कोई वस्तु प्राप्त करता है तो उसकी तुलना में उपहार का खुले उपहार का खुले बाजार में जो अधिक मूल्य होगा, उसी पर कर लगाया जाता है (धारा 4)।
(1) सामान्यत: भारत में अवस्थित नागरिकों की भारत में स्थित अचल संपत्ति में से तथा कहीं भी स्थित चल संपत्ति में से दिए गए उपहारों पर कर उद्ग्रहण की व्यवस्था है।
(2) जो नागरिक भारत में अवस्थित नहीं हैं अथवा सामान्य रूप से अवस्थित नहीं हैं¾उनकी भारत स्थित चल अथवा अचल संपत्ति में से दिए गए उपहारों पर कर उद्ग्रहण की व्यवस्था है।
(3) बाह्यदेशीयों की की - चाहे वे कहीं के निवासी हों¾भारत स्थित वास्तविक अथवा चल संपत्ति में से दिए गए उपहारों पर कर लगाने की व्यवस्था है।
हिंदू अविभाजित परिवार, व्यक्तिसमवाय तथा कंपनियाँ¾यदि ये देश में अवस्थित हैं तो इनकी भारत में स्थित अचल संपत्ति तथा कहीं भी स्थित चल संपत्ति में से दिए गए उपहारों पर कर उद्ग्रहण की व्यवस्था है। यदि ये आवासी नहीं हैं, तो उस स्थिति में उनकी भारत में स्थित चल अथवा अचल संपत्ति में से दिए गए उपहार करार्ह होंगे। सरकारी कम्पनियाँ, धर्मार्थ संस्थाएँ आदि इस ढंग के कुछ निश्चित समुदायों द्वारा दिए गए उपहार करमुक्त हैं।
[संपादित करें]प्रशासन और प्रक्रिया
आयकर अधिकारी ही उपहारकर का भी प्रशासन करते हैं और इसकी प्रक्रिया भी आयकर, धनकर व्ययकर की प्रक्रियाओं से बहुत मिलती जुलती है। आपत्ति उठाने, अपील करने वसूल करने तथा दंड आदि की प्रक्रियाएँ आयकर सम्बंधी प्रक्रियाओं के ही समान हैं।
लागू होने योग्य मुक्तियों का लाभ उठाने के बाद यदि किसी व्यक्ति ने गत वर्ष में करार्ह उपहार दिए हैं, तो उसे चाहिए कि वह अगले वर्ष के 30 जून तक उपहारकर सम्बंधी विवरण अधिकारियों के पास भेज दे। किसी भी स्थिति में गृहीता से अपेक्षा नहीं की जाती कि वह विवरण भेजे। इस प्रकार प्रस्तुत किए गए विवरण के आधार पर उपहारकर अधिकारी करनिर्धारण करता है। यदि उपहार कर चुकाने के पूर्व किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके वैधानिक प्रतिनिधि पर मृत प्रदाता की संपत्ति के विस्तार के आधार पर कर चुकाने का उत्तरदायित्व होगा।
[संपादित करें]व्ययकर
व्ययकर अधिनियम, 1957 के अधीन भारत में प्रथम बार अप्रैल, 1957 से व्ययकर की व्यवस्था की गई थी। बाद में कर निर्धारण वर्ष 1962-63 से यह समाप्त कर दिया गया था किंतु 1 अप्रैल, 1964 से इसे पुन: प्रचलित कर दिया गया है। इसे आयकर के पूरक के रूप में माना जाता है जो संगत भी है।
व्यक्तियों द्वारा तथा हिंदू अविभाजित परिवारों द्वारा विगत वर्ष में किए गए व्यय पर यह कर वार्षिक रूप से लिया जाता है। कर प्रदाता कहाँ रहता है, उसकी राष्ट्रीयता क्या है और उसकी हैंसियत क्या है, इसका ध्यान रखते हुए उसके द्वारा विश्व में कहीं भी किए गए व्यय पर यह कर लगता है। इसमें भारत के अंतर्गत किया गया व्यय तथा भारतीय स्रोतों से भारत के अंतर्गत तथा भारत के बाहर किया गया व्यय सम्मिलित है। सामान्यत: 30,00 रुपए तक की एक मानक मोक या छूट के ऊपर के व्यय पर यह कर क्रमश: अधिक तेजी से बढ़नेवाले ढंग से लगाया जाता है।
'व्यय' की परिभाषा में बताया गया है कि वह धन अथवा धन के रूप में प्रयुक्त अन्य वस्तु जो खर्च की गई हो या वितरित की गई ऐसी कोई भी राशि जिसके व्यय अथवा वितरित किए जाने से व्यय करनेवाले पर किसी तरह की देयता या दायित्व आ पड़े, (धारा 2 ह) 'व्यय' की कोटि में मानी जाएगी।

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