THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Friday, August 2, 2013

सामाजिक न्याय के एक नए आन्दोलन का आगाज एच एल दुसाध

सामाजिक न्याय के एक नए आन्दोलन का आगाज

                                       एच एल दुसाध

भारत का इतिहास आरक्षण पर संघर्ष का इतिहास है .कारण जिन प्रमुख शक्ति के स्रोतों-आर्थिक,राजनीतिक  और धार्मिक-पर आधिपत्य ज़माने  को लेकर पूरी दुनिया में  मानव-मानव के मध्य  संघर्ष  होता  रहा है ,वे सारे स्रोत उस वर्ण-व्यवस्था में आरक्षित रहे जिसके द्वारा भारत समाज सदियों से ही परिचालित होता रहा है.वर्ण व्यवस्था में शक्ति के सारे  स्रोत चिर-स्थाई तौर पर ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्यों से युक्त सवर्णों के लिए आरक्षित रहे,जबकि शुद्रातिशूद्रों के रूप गण्य बहुसंख्य आबादी इससे पूरी तरह वंचित रही .उसपर तुर्रा यह कि उसके ऊपर शक्तिसंपन्न तीन उच्च वर्णों की सेवा का भार भी थोप दिया गया ,वह भी पारश्रमिक रहित.अगर  मार्क्स के अनुसार दुनिया का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है तो भारत में वह संघर्ष वर्ण-व्यवस्था के संपन्न तथा वंचित वर्गों के मध्य होता रहा है.

 आधुनिक भारत के राष्ट्र निर्माताओं ने जब वंचित  बहुसंख्यकों को शक्ति के स्रोतों में उनका प्राप्य दिलाने के लिए एक नई  मानवतावादी आरक्षण व्यवस्था को जन्म दिया,तब भी आरक्षण को लेकर समय-समय पर संघर्ष बंधता रहा.किन्तु आरक्षण पर यह संघर्ष लगभग इकतरफा,शक्तिसंपन्न तबकों  के तरफ से होता रहा.गुलाम भारत में जब पूना - पैक्ट के रास्ते मानवेतरों  को आरक्षण मिला,तब उसके प्रमुख शिल्पी भारत रत्न आंबेडकर को क्या-क्या कहकर गली नहीं दी गई.बहरहाल  शक्तिसंपन्न तबकों ने धीरे-धीरे दलित/आदिवासियों को मिले आरक्षण को झेलने की तो मानसिकता विकसित कर ली.किन्तु जब मंडल की सिफारिशों पर 1990 में पिछड़ों  को आरक्षण मिला शक्तिसंपन्न तबके के युवाओं ने जहाँ, आत्म-दाह से लेकर राष्ट्र की संपदा दाह का सिलसिला शुरू कर दिया ,वहीँ  एक पार्टी विशेष ने रामजन्मभूमि मुक्ति के नाम पर आजाद भारत का सबसे बड़ा आन्दोलन ही खड़ा  कर दिया जिसके फलस्वरूप बेशुमार संपदा और असंख्य लोगों की प्राण-हानि हुई.बाद में 2006 में जब पिछड़ों को उच्च शिक्षण संस्थाओं के पवेश में आरक्षण मिला,शक्तिसंपन्न समुदाय के युवाओं ने एक बार फिर गृह- युद्ध की स्थिति पैदा कर दी .उसके बाद जहाँ आरक्षण से वंचित कुछ और जातीय समूहों ने आरक्षण के लिए रेल रोको इत्यादि जैसे कार्य कर डाले वहीँ  सवर्णों ने कई बार आरक्षण के लिए खून की नदियां बहाने की धमकी दे डाली.चूँकि भारत चिरकाल से ही भारत समय –समय पर आरक्षण पर  संघर्ष के लिए अभिशप्त रहा है इसलिए  हालही में उसे एक और संघर्ष से रूबरू हो पद गया..दुर्भाग्यवश इस बार उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में  नई आरक्षण नीति लागू करने को लेकर जो संघर्ष शुरू हुआ उसकी भी पहलकदमी शक्तिसंपन्न तबके के छात्रों ने की .

हालही में उप्र राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा नई आरक्षण व्यवस्था में प्राथमिक से लेकर  मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार तीनों रूपों में आरक्षण और ओवरलैपिंग कर कटआफ सूचि जारी की गई ,जिससे आरक्षित वर्ग के 76 प्रतिशत से ज्यादा लोगो का चयन  सूचि में नाम आ गया.सामान्य श्रेणी के अभ्यार्थियों ने इस मामले का यह कहकर विरोध शुरू किया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 50 प्रतिशत  से अधिक आरक्षण नहीं लागू होना चाहिए.उन्होंने आयोग के निर्णय के खिलाफ इलाहबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी जिस पर आयोग तथा राज्य सरकार को नोटिस भी जारी की गई.कितु आरक्षण विरोधी छात्र यहीं नहीं रुके.उन्होंने दबाव  बनाने के लिए  मंडल-1 और  2  की भांति तोड़ फोड़ तो शुरू की ही किन्तु इस बार  उनके हमले का नया पक्ष यह रहा कि उन्होंने एक जाति विशेष से जुड़े पेशे, पशुओं और भगवान तक को निशाना बना डाला .इस बीच याचिका  पर कोर्ट का निर्णय  भी आ गया पर, उसे जनसमक्ष लाने के बजाय कोर्ट ने सुरक्षित रखा.उधर जहा आरक्षण विरोधियों का तांडव जारी था ,वहीँ  उनका एक ग्रुप सपा की ही महिला नेत्री के नेतृत्व से सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव से मिलकर अपनी पीड़ा से अवगत कराया.मुलायम उससे प्रभावित हुए बिना न  रह सके.उसके उसी दिन देर शाम तक परिदृश्य  पूरी तरह बदल गया.आयोग ने नई  आरक्षण नीति वापस लेकर आरक्षण विरोधियों को जश्न में डूबने का अवसर दे दिया.

 आरक्षण पर आयोग द्वारा यू टर्न लेते ही जहाँ एक ओर आरक्षण विरोधी जश्न में डूबे, वहीँ आरक्षण समर्थकों का आक्रोश भी फट पड़ा.उनका आक्रोश इस बात को लेकर था कि जब इस मसले पर फैसला कोर्ट में लंबित था तब आयोग को फैसला वापस लेने की क्या जरुरत ही थी.आरक्षण समर्थकों का  गुस्सा राज्य की सत्तासीन सपा सरकार पर फुटा.उन्होंने शुरू में सपा के जिलाध्यक्ष के घर पर धावा बोला और फिर पथराव व वाहनों की तोड़ फोड़ किया.उनके एक गुट ने उस सवर्ण सपा नेत्री के घर पर भी धावा बोला तथा पथराव किया जिनके नेतृत्व में आरक्षण विरोधियों के सपा मुखिया से मुलाकात के बाद सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो गया.बाद में उन्होंने इलाहाबाद अवस्थित सपा के जिला कार्यालय पर कब्ज़ा जमा लिया .वहां दो दिन  रहने के बाद 30 जुलाई लखनऊ घेरने की  घोषणा कर दिए.उनके उस घोषणा पर एक अखबार की टिपण्णी मुझे आरक्षण समर्थकों को करीब से देखने के लिए बाध्य कर दी.

30 जुलाई को उस  अखबार ने लिखा-' आरक्षण समर्थकों  के निशाने पर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह तो हैं ही ,मायावती भी नहीं बच पाई हैं.किन्तु सबसे खास बात यह है कि आरक्षण समर्थक  शनिवार को बसपा के संस्थापक कांशीराम को दलितों और पिछडो का मसीहा बता रहे थे.वे कह रहे थे कि कांशीराम ने जो  लड़ाई शुरू की उसकी रफ्तार  धीमी नहीं पड़ने दी जाएगी.हालाँकि फेसबुक पर भी कुछ ऐसी बाते देखा था ,पर यकीन नहीं हो रहा था कि जिस अग्रसर पिछड़े वर्ग के युवाओं के हाथ में आन्दोलन का नेतृत्व है वो कांशीराम  को अपना मसीहा मानेगे.ऐसे में 30 जुलाई को लखनऊ विधानसभा के विपरीत अवस्थित धरना स्थल पर पहुंचा और जो कुछ देखा उससे लगा अखबार की सूचना गलत नहीं थी.धरना स्थल पर आरक्षण समर्थक छात्रों  ने जो ढेरों बैनर पोस्टर लगा रखे थे उनमें  कईयों पर लिखा था-'जिसकी जितनी संख्य भारी ,उसकी उतनी भागीदारी.'यही नहीं डेढ़ घंटे रहने के दौरान छोटे –बड़े कई सामाजिक संगठनो तथा राजनीतिक दलों के लोगों एवं छात्रो का माहौल को उतप्त करनेवाला आक्रामक भाषण सुना.वे कल्पनातीत निर्ममता के साथ सपा और बसपा प्रमुखों की आलोचना कर रहे परन्तु सभी वर्तमान आन्दोलन के एजेंडे  महज नौकरियों तक सिमित न रखकर, हर क्षेत्र  में ही कांशीराम का भागीदारी दर्शन,जिसकी जितनी संख्या भारी...लागू करवाने तक प्रसारित करने का आह्वान कर रहे थे और स्रोता  छात्र तालियाँ बजा कर समर्थन कर रहे थे.सारांश में अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि आरक्षण समर्थकों का यह आन्दोलन सामाजिक न्याय के  आन्दोलनों का इतिहास का एक नया आगाज़ है.यदि इससे जुड़े छात्र इसी संकल्प के साथ कांशीराम की भागीदारी दर्शन को लेकर आगे बढ़ते हैं तो न सिर्फ सामाजिक न्याय का अध्याय पूरा हो सकता है बल्कि विश्व में भीषणतम रूप में भारत में व्याप आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी के खात्मे मार्ग भी प्रशस्त हो सकता है.          

दिनांक:31जुलाई, 2013               


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