THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Friday, August 2, 2013

एक तीसरा भक्‍त विजय इतना अनंत हो गया कि उसने वरवर राव को ही फासीवादी कह दिया

[LARGE][LINK=/vividh/13494-2013-08-02-13-36-49.html]एक तीसरा भक्‍त विजय इतना अनंत हो गया कि उसने वरवर राव को ही फासीवादी कह दिया[/LINK] [/LARGE]

[*] [LINK=/vividh/13494-2013-08-02-13-36-49.html?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/gk_twn2/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK] [/*]
[*] [LINK=/component/mailto/?tmpl=component&template=gk_twn2&link=ab6ed0e7c64282fbe5e2edf3759602e91e79aaff][IMG]/templates/gk_twn2/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [/*]
Details Category: [LINK=/vividh.html]विविध[/LINK] Created on Friday, 02 August 2013 19:06 Written by अभिषेक श्रीवास्तव
Abhishek Srivastava : सभागार में राजेंद्र यादव बोले कि वरवर राव को कोई समझा दिया है कहां बैठना है और कहां नहीं। पीछे फेसबुक पर तमाम लोगों ने लिखा कि वरवर राव को दिल्‍ली में उतरने पर ब्रीफ किया गया है। एक ने तो अद्भुत बात लिखी, कि वरवर राव को बताया गया है कि प्रेमचंद के वाहक फलाने हैं और ढेकाने नहीं। फिर जनसत्‍ता का संपादकीय उचक कर बोला कि वरवर राव का इस्‍तेमाल कोई अपनी राजनीति के लिए कर रहा है।

भाई, आप लोग वरवर राव को जापान से पहली बार दिल्‍ली आया भोला टूरिस्‍ट समझते हैं क्‍या? एलियन की तरह क्‍यों ट्रीट किया जा रहा है उनको? अच्‍छा ये बताइए, आप में से कै लोग उनकी कविता पढ़े हैं? बस मंडोलावासियों की तरह माओ माओ चिल्‍लाना जानते हैं? वरवर राव हिंदी जगत में परिचित अहिंदी नाम हैं तब तो ये हाल है। घेर कर सामूहिक आखेट हो रहा है और उन्‍हें आखेटकों का नाम तक नहीं पता। सोचिए, हिंदी की इस गुरु-चेला फौज के लिए पूर्वोत्‍तर के सात राज्‍यों और कश्‍मीर के लाखों बेनाम लोग क्‍या वाकई कोई मायने रखते होंगे?

गुजरात दंगे का विरोध कर देना अगर वाकई अशोक वाजपेयी के लिए गंगा नहा लेने जैसा है, तो जवानी में ही धवलकेशी हो चुके उनके एक शिष्‍य बिनायक सेन को छुड़वाने वाली कमेटी में रहकर सीधे ह्वांग हो में ही डुबकी लगा चुके हैं। ऐसे तो आप एक पुण्‍य गिनाइए और डेढ़ सौ पाप करते रहिए? कोई दूसरा, जो लगातार पुण्‍य ही कर रहा हो उसके आने पर माओ माओ चिल्‍लाने लगिए? हैंजी? क्रांति की भी कोई लिमिट होती है कि नहीं? संपादकजी की ताज़ा पोस्‍ट पर एक भक्‍त हितेंद्र अनंत ने कहा कि वरवर राव को सैयद अली शाह गिलानी के साथ तो मंच साझा करने में दिक्‍कत नहीं होती। दूसरे भक्‍त नरेंद्र ने मूड़ी हिलाई। एक तीसरा भक्‍त विजय इतना अनंत हो गया कि उसने वरवर राव को ही फासीवादी कह दिया।

इसके बाद माओ माओ का अनंत हल्‍ला उठा और चुपके से संपादक जी की दीवार पर कुछ बजरंगी केसरिया पीक मार आए। एक तरफ लाल का डर दिखाकर दूसरी तरफ भगवा भभूत पोत लिया गया। जो प्रतिवाद वैचारिक था, उसे नफ़रत में तब्‍दील कर दिया गया और इस तरह भारत से तेलंगाना, कश्‍मीर, पूर्वोत्‍तर सब अलग हो गया। फिर क्‍यों न बैठें वरवर राव गिलानी के साथ? क्‍यों बैठें वे आपके साथ? और बाइ द वे, आप हैं कौन? वही डरे हुए लोग मिडिलक्‍लास गुजराती हिंदू टाइप, जिन्‍हें घेर कर मारने में मज़ा आता है लेकिन अकेले में कोई राव-राय भेंटा जाए तो लग्‍घी से कॉनियक नहीं, पानी पीते हैं और दुनिया भर में दो महीना गाते हैं। याद है पुष्‍प कमल दहाल प्रचंड से मुलाकात, कि भूल गए? बड़ा रंभा रहे थे उस दिन!

वरवर राव ने जो किया है, ठीक किया है।

[B]युवा पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.[/B]

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...