अमरीकी विस्थापितों की स्थिति में जो सबसे बड़ा परिवर्तन घटित हुआ वह था 1864 में दास प्रथा का उन्मूलन
नीलाभ का मोर्चा neelabh ka morcha
Sunday, May 10, 2015
ग़ुलाम सबसे ज़्यादा तब गाते हैं जब वे दुखी और ग़मज़दा होते हैं - फ़्रेड्रिक डगलस
नीलाभ का मोर्चा neelabh ka morcha
ग़ुलाम सबसे ज़्यादा तब गाते हैं जब वे दुखी और
ग़मज़दा होते हैं
- फ़्रेड्रिक डगलस
नीलाभ अश्क जी मंगलेश डबराल और वीरेन डंगवाल के खास दोस्त रहे हैं और इसी सिलसिले में उनसे इलाहाबाद में 1979 में परिचय हुआ।वे बेहतरीन कवि रहे हैं।लेकिन कला माध्यमों के बारे में उनकी समझ का मैं शुरु से कायल रहा हूं।अपने ब्लाग नीलाभ का मोर्चा में इसी नाम से उन्होंने जैज पर एक लंबा आलेख लिखा है,जो आधुनिक संगीत और समता के लिए अश्वेतों के निरंतर संघर्ष के साथ साथ आधुनिक जीवन में बदलाव की पूरी प्रक्रिया को समझने में मददगार है।नीलाभ जी की दृष्टि सामाजािक यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में कला माध्यमों की पड़ताल करने में प्रखर है।हमें ताज्जुब होता है कि वे इतने कम क्यों लिखते हैं।वे फिल्में बी बना सकते हैं,लेकिन इस सिलसिले में भी मुझे उनसे और सक्रियता की उम्मीद है।
नीलाभ जी से हमने अपने ब्लागों में इस आलेख को पुनः प्रकाशित करने
की इजाजत मांगी थी।उन्होने यह इजाजत दे दी है।
- आलेख सचमुच लंबा है।लेकिन हम इसे हमारी समझ बेहतर बनाने के मकसद से सिलसिलेवार दोबारा प्रकाशित करेंगे।
- पाठकों से निवेदन है कि वे कृपया इस आलेख को सिलसिलेवार पढ़े।
चट्टानी जीवन का संगीत
जैज़ पर एक लम्बे आलेख की छठी कड़ी
6.
अमरीकी विस्थापितों की स्थिति में जो सबसे बड़ा परिवर्तन घटित हुआ वह था 1864 में दास प्रथा का उन्मूलन. वैसे तो अमरीकी गोरों में बहुत-से लोग दास-प्रथा और मनुष्य को मनुष्य से एक दर्जा नीचे रखने के विरोधी थे, लेकिन एक बहुत बड़ा समुदाय कई कारणों से दास-प्रथा के पक्ष में था. एक कारण तो था नस्लवादी सोच. सदियों से यूरोपीय और अमरीकी गोरे यह मानते आये थे कि अफ़्रीकी लोग गोरी जातियों से हीनतर हैं. दूसरा कारण आर्थिक था. अमरीका के दक्षिणी हिस्से की अर्थ-व्यवस्था काले ग़ुलामों पर टिकी हुई थी जो तम्बाकू, कपास, मक्का, केला और दूसरी फ़सलों की खेती के काम में सबसे अनिवार्य तत्व -- श्रम -- उपलब्ध कराते थे और साथ ही घरेलू कामगरों की एक फ़ौज भी. यह सस्ता श्रम अमरीका के दक्षिणी क्षेत्र की अर्थ-व्यवस्था का आधार था. लेकिन इस बीच अमरीका के उत्तरी क्षेत्र में कल-कारख़ानों और उद्योग-धन्धों के विकास ने औद्योगिक मज़दूरों की एक अच्छी-ख़ासी मांग पैदा कर दी थी. इसी का नतीजा था 1862-63 का अमरीकी गृह-युद्ध, जिसने पूरे देश को दो विरोधी ख़ेमों में बांट कर रख दिया था. हालांकि गृह-युद्ध में जीत का सेहरा अमरीका के उत्तरी हिस्से के सिर बंधा और क़ानूनी तौर पर दास-प्रथा रद्द कर दी गयी, मगर नीग्रो समुदाय की स्थिति बहुत करके पहले जैसे ही रही. जो उत्पीड़न खुल्लम-खुल्ला होता था, वह अब छिपे तौर पर होने लगा.
आम तौर पर अनुमान है कि अमरीकी नीग्रो संगीत अमरीकी गृहयुद्ध (1861-64) के बाद के अर्से में अमरीका के दक्षिणी हिस्से के अन्दरूनी इलाक़े में, उसके मुफ़स्सिल में ब्लूज़ के रूप में उभर कर सामने आया और इसकी जड़ें खेत-मजूरों की टिटकारियों, गुहार और जवाब, काम के समय गाये जाने वाले गीतों, तुकबन्दियों और सरल आख्यानपरक छन्दों में खोजी जा सकती हैं। ये गीत अक्सर जीवन की कठोरता अथवा विरह-विछोह और खोये हुए प्यार के इर्द-गिर्द बुने जाते थे। थे गायक-गायिकाएं अक्सर कड़वी हक़ीक़तों वाली दुनिया में अपने निजी दुखों को व्यक्त करते थे -- प्रेम में निराशा, ज़िन्दगी की मुसीबतें और उसकी कठोरता, पुलिस के सिपाहियों की क्रूरता, गोरों का बेरहम सुलूक़ और बदक़िस्मती के थपेड़े . लेकिन ऐसा नहीं है कि उनमें हमेशा उदासी और विषाद ही व्यक्त होता था। सीधी, सरल और अकृत्रिम -- यहाँ तक कि भोलेपन को छूती हुई -- अभिव्यक्तियों से ले कर जटिल और संश्लिष्ट भावनाओं तक -- ब्लूज़ के गीत एक व्यापक दायरे में फैले हुए हैं। लोक-गायकों की प्रस्तुतियों में उनकी लम्बाई भी छोटी-बड़ी हो सकती थी, मगर विशुद्ध ब्लूज़ की एक अपनी ख़ास बिनावट है और इसी के आधार पर आज ब्लूज़ को पहचाना जाता है।
जैज़ की बुनियादी विशेषता -- गुहार और जवाब -- ब्लूज़ में भी अनिवार्य रूप से मौजूद थी और इसमें मात्राएं ख़ास तरह से आगे को बढ़ती थीं. साथ ही एक अजीब-सी समाधि वाला असर भी मौजूद रहता था जो अक्सर पैरों की हरकत में भी नज़र आता था, जहां शरीर बड़े धीमे-धीमे, लय-भरे अन्दाज़ में लहराते हुए आगे-पीछे सरकता रहता था. विशुद्ध ब्लूज़ में बारह मात्राओं की बिनावट होती है और उसके गीतों में तीन-तीन पंक्तियों के टुकड़े होते हैं। पहली पंक्ति गाने के बाद उसी पंक्ति को दोहराया जाता है और फिर तीसरी पंक्ति गायी जाती है। मिसाल के तौर पर प्रसिद्ध 'सेंट लूइज़ ब्लूज़' जिसे वैसे तो शायद हर बड़े जैज़-फ़नकार ने गाया और बजाया, मगर जिसकी सर्वोत्तम प्रस्तुतियों में से एक बेसी स्मिथ (1894-1937) ने पेश की। ब्लूज़ की गायिकाओं में बेसी स्मिथ की एक अपनी ही जगह थी, जिसे उन्होंने अपनी शानदार आवाज़ और तपी हुई अदाकारी के बल पर हासिल किया था। बोल थे -- 'आई हेट यू सी द ईवनिंग सन गो डाउन।' इस पंक्ति को दोहराया जाता था और फिर अगली पंक्ति -- 'इट मेक्स मी थिंक ऑफ़ लास्ट गो राउण्ड' -- गायी जाती थी।
http://youtu.be/jNWs0LsimFs?list=PL28D01AC6950859CA (बेसी स्मिथ)
जैसा कि हमने कहा है, जैज़ की ऐसी बहुत-सी धुनें और गीत हैं जिन्हें उनके रचने वालों के अलावा भी बहुत-से गयकों और वादकों ने पेश किया है. 'सेंट लूइज़ ब्लूज़' ऐसी ही रचनाओं में शुमार किया जा सकता है. बेसी स्मिथ के बहुत बाद सुप्रसिद्ध अभिनेत्री और गयिका अर्था किट ने भी इसकी एक अदायगी अपने ख़ास अन्दाज़ में पेश की :
http://youtu.be/GPYVlUV_xk4 (अर्था किट-- आई हेट यू सी द ईवनिंग सन गो डाउन)
ब्लूज़ में बारह मात्राओं की यह बिनावट कैसे विकसित हुई, यह तो बताना मुश्किल है, लेकिन इसमें निश्चय ही नीग्रो संगीत-विशेषज्ञ डब्ल्यू. सी. हैंडी की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही होगी, जिन्होंने बड़ी संख्या में ब्लूज़ इकट्ठे करके उन्हें प्रकाशित कराया था। यह बात पहले महायुद्ध से कुछ पहले की है.
विलियम क्रिस्टोफ़र हैंडी (1873-1958) अमरीका के ठेठ दक्षिणी इलाक़े में फ़्लोरेन्स (ऐलाबामा) के रहने वाले थे. रोज़ी-रोटी कमाने के लिए उन्होंने बढ़ई, मोची और राज-मिस्त्री का काम सीख रखा था ताकि जब वे संगीत से अपना ख़र्च न चला पायें तो इन पेशों में से किसी को अपना सकें. संगीत का शौक़ हैंडी को लड़कपन ही से था जब वे गिरजे में जा कर भजन गाया करते या और्गन बजाया करते. बाद में उन्होंने बताया था कि उन्हें अपने चारों तरफ़ फैली प्रकृति से भी संगीत की बहुत-सी प्रेरणा मिली थी,"पक्षियों, चमगादड़ों और उल्लुओं की पुकारों और उनकी अजीबो-ग़रीब आवाज़ों से."
हैंडी की पहली नौकरी इस्पात के कारख़ाने में भट्ठी में कोयला झोंकने वाले मज़दूर की थी. यहां उन्होंने पाया कि भट्ठी में कोयला या कच्चा लोहा झोंकने वाले मज़दूर अपने बेलचों से तरह-तरह की आवाज़ें निकालते और "जब दस-बारह लोग ऐसा कर रहे होते तो असर अद्भुत होता. किसी फ़ौजी बैण्ड में बजाये जा रहे ढोल-नगाड़ों से बेहतर." उन्होंने यह भी देखा कि दक्षिणी अमरीका के नीग्रो मज़दूरों में किसी भी चीज़ से लय-ताल पैदा करने की कुदरती कूवत थी.
1900 के आस-पास जब हैंडी सत्ताईस साल के थे, तब नीग्रो लोगों के लिए बने ऐलाबामा के कृषि विश्वविद्यालय ने उन्हें संगीत शिक्षक नियुक्त कर दिया., लेकिन हैंडी की दिलचस्पी पश्चिमी शास्त्रीय संगीत से ज़्यादा अपने अनोखे अफ़्रीकी अमरीकी संगीत में थी. लिहाज़ा वेसंगीत शिक्षक की नौकरी छोड़ कर एक घुमन्तू बैण्ड में शामिल हो गये और जल्दी ही अश्वेत संगीतकारों की एक मण्डली के निर्देशक बन गये. इस बीच अलग-अलग जगहों पर घूमते हुए धीरे-धीरे हैंडी को उस नीग्रो संगीत को सुनने के ढेरों मौके मिले जो अमरीका के दक्षिणी हिस्से के गांव-देहात में और कारख़ानों में गाया-बजाया जाता था. ये सभी लोग गुमनाम संगीतकार थे और अपनी फ़ुर्सत की घड़ियों में दिल बहलाने के लिए गाया-बजाया करते थे. इनमें से बहुत-से लोग ऐसे भी थे जो आम कस्बों और गांवों के चौराहों या नुक्कड़ों पर खड़े हो कर अपने गीत गाते और इसी से खर्चा चलाते. इनमें से बहुत-से लोग घुमन्तू गायक होते जो गांव-गांव, शहर-शहर घूम कर अपनी अपनी फ़नकारी से पैसे कमाते. यह सारा अनुभव विलियम हैंडी के अन्दर दर्ज होता जा रहा था और जब वे 1909 में टेनेसी प्रान्त के मेम्फ़िस शहर आ बसे तो पहली बार उनकी अपनी रचना "मेम्फ़िस ब्लूज़" के रूप में व्यक्त हुआ. नीचे हैंडी वाले प्रारूप के लिंक के साथ साथ दो और लिंक दिये जा रहे हैं :
http://youtu.be/ZGqBmlZR3dc (मेम्फ़िस ब्लूज़ -- विलियम क्रिस्टोफ़र हैंडी)
http://youtu.be/PEHLK0TKln0 ( " ड्यूक एलिंग्टन)
http://youtu.be/3ZkdRjAWR6g ( " जिम हेसियन)
"मेम्फ़िस ब्लूज़" दरअसल मेम्फ़िस के नगर प्रमुख पद के लिए खड़े होने वाले उम्मीदवार एड्वर्ड क्रम्प के चुनाव अभियान के लिए लिखा गया था. बाद में हैंडी ने इस धुन को संवार-सुधार कर इसका नाम "मिस्टर क्रम्प" की बजाय "मेम्फ़िस ब्लूज़" रख दिया. 1912 में इस धुन के प्रकाशित होते ही ब्लूज़ की 12 मात्राओं वाली शैली मानो तय हो गयी और उनकी इस पहली कामयाबी ने आगे के गीतों और धुनों के रास्ते खोल दिये. हैंडी ने "मेम्फ़िस ब्लूज़" के दो साल बाद "सेंट लुइज़ ब्लूज़" की रचना की और ब्लूज़ की बुनियाद पक्की कर दी.
http://youtu.be/dmFUXYaZIMk ( सेंट लुइज़ ब्लूज़ W C Handy)
अब तक वे संगीत को ही रोज़ी-रोटी के साधन के रूप में अपना चुके थे और न सिर्फ़ संगीत रचने तक सीमित थे, बल्कि इस ख़ास क़िस्म के अफ़्रीकी अमरीकी संगीत के नमूने खोजने, उनकी स्वर-लिपि तैयार करने और इन स्वर-लिपियों को बाज़ार में अन्य गायकों वादकों को उपलब्ध कराने में भी जुट गये थे, जो काम कि वे अपने जीवन के अन्त तक करते रहे.
1917 में हैंडी न्यू यौर्क आ गये और वहां सुप्रसिद्ध गेइटी थिएटर में एक दफ़्तर खोल कर अपने रचे संगीत की स्वर-लिपोइयों के प्रकाशन का काम करने लगे. न्यू यौर्क में ज़्यादा गुंजाइशें थीं और यहां हैंडी के जौहर सही तौर पर उजागर हुए. उन्होंने ब्लूज़ की 53 रचनाओं की स्वर-लिपियों के साथ उनके बोल भी एक संकलन की शक्ल में प्रकाशित किये और अफ़्रीकी अमरीकी संगीत को लोगों के बीच फैलाने के लिए एक बेहद ज़रूरी भूमिका अदा की. यह शायद पहली पुस्तक थी जो ब्लूज़ को अमरीका के दक्षिणी इलाक़े की संस्कृति और उसके इतिहास के अखण्ड हिस्से के रूप में स्थापित करती है. लेकिन यह दिलचस्प है कि उन्होंने पाया कि उस समय के ज़्यादातर नीग्रो बैण्ड और गायक-वादक अपनी जड़ों की तरफ़ जाने की बजाय पश्चिमी शैली के प्रचलित गीतों को ही गाते-बजाते. शायद वे डरते थे कि अगर वे "कालों का संगीत" गायेंगे-बजायेंगे तो आम सुनने वाले उनकी तरफ़ तवज्जो नहीं देंगे. मगर यह भी एक मज़ेदार बात थी कि गोरे लोगों के बैण्ड और उनके फ़नकार नयी-नयी शैलियों की तलाश में रहते थे और वे विलियम हैंडी की रची धुनों और गीतों को पेश करने के लिए हमेशा तैयार रहते. इसके साथ-साथ जो नीग्रो फ़नकार मंचीय कार्यक्रम पेश करते हुए अभिनय के साथ-साथ गाने भी गाते थे उन्होंने भी हैंडी के गीत इस्तेमाल करने शुरू कर दिये थे ताकि गोरे फ़नकारों के प्रदर्शन में कोई अड़ंगा न पैदा हो. फिर जैसे इतना ही काफ़ी न हो, हैंडी ने फ़िल्मों में भी दिलचस्पी लेनी शुरू की और दूसरे रचनाकारों की रचनाओं को भी पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया. अपने समय से बहुत पहले हैंडी ने ऐसे गोरे गायकों को प्रोत्साहित किया जिनके स्वर अफ़्रीकी-अमरीकी संगीत की इस ख़ास शैली के अनुकूल पड़ते थे. 1958 में जब 85 साल की उमर में विलियम हैंडी का निधन हुआ तो वे अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर न केवल "ब्लूज़ के जनक" माने जा चुके थे, बल्कि संगीत की इस विधा को अमरीकी समाज और संस्कृति के अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार भी करा चुके थे.
शुरू-शुरू के ब्लूज़ में चार-चार पंक्तियां होती थीं जिन्हें दोहराया जाता था, लेकिन डब्ल्यू. सी. हैंडी के संकलन करने तक नमूना बदल चुका था और तीन-तीन पंक्तियों की बिनावट सामने आयी थी. इन गीतों में से जो सबसे ज़्यादा मशहूर हुए -- जैसे 'सेंट लूइज़ ब्लूज़' --उनमें बारह मात्राओं की यही बिनावट थी। फिर शायद इन्हीं नमूनों को सामने रख कर अन्य ब्लूज़ की रचना हुई होगी।
बेसी स्मिथ की रिकॉर्डिंग में कॉर्नेट पर उनकी संगत की थी जैज़ के महान संगीतकार लुई आर्मस्ट्रौंग ने, जिन्होंने बीसवीं सदी में जैज़ को दुनिया के कोने-कोने में फैलाने के सिलसिले में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी कि उन्हें 'जैज़ का राजदूत' कहा जाने लगा। 'सेंट लूइज़ ब्लूज़' के इस रिकॉर्ड की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इसमें लुई आर्मस्ट्रौंग द्वारा कॉर्नेट पर की गयी संगत बड़ी ख़ूबी के साथ गायिका के स्वरों की प्रतिगूँज पैदा करती है।
http://youtu.be/hpu14BRmvGA?list=PL28D01AC6950859CA (बेसी स्मिथ और लूई आर्मस्ट्रौंग) http://youtu.be/3rd9IaA_uJI (बेसी स्मिथ और लूई आर्मस्ट्रौंग)
http://youtu.be/D2TUlUwa3_o (लूई आर्मस्ट्रौंग और वेल्मा मिडलटन -- सेंट लूइज़ ब्लूज़)
वाद्य-यन्त्रों द्वारा मानवीय स्वरों का यह अनुकरण जैज़ संगीत की एक और ख़ासियत है और जिन संगीत-प्रेमियों ने उस्ताद विलायत खाँ का सितार-वादन सुना है -- ख़ास तौर पर 'बाट चलत नयी चुनरी रंग डारी' वाली सिन्धी भैरवी -- वे सहज ही जैज़-संगीत की इस विशेषता को समझ सकते हैं।
ब्लूज़ गायकी और उसके वादन के बहुत-से तत्व अफ़्रीकी संगीत से आये थे, जिनमें लगातार यूरोपीय तत्वों की मिलावट होती रही थी. इस गायकी का नाम ब्लूज़ कैसे पड़ा, इसके बारे में कई विचार प्रकट किये गये हैं. एक ख़याल यह है कि इस का ताल्लुक़ नील और उससे जुड़े रहस्यवाद से है. बहुत-से अफ़्रीकी समुदायों में मृत्यु और शोक के साथ नील का गहरा सम्बन्ध था जहां मातम करने वालों के सारे कपड़े नील से रंगे होते थे और इस तरह नीला रंग दुख और पीड़ा को व्यक्त करने लगा. चूंकि नील की खेती अमरीका के दक्षिणी हिस्से के बहुत से इलाक़ों में होती थी और उसका इस्तेमाल कपास को रंगने के लिए होता था, ख़ास तौर पर इन विस्थापित लोगों के बीच शोक के अवसरों पर, चुनांचे उनकी पीड़ा को व्यक्त करने वाले गीतों को भी ब्लूज़ कहा जाने लगा. वैसे यह नाम "नीले प्रेत" से भी आया हो सकता है जो जौर्ज कोलमैन के एकांकी प्रहसन "ब्लू डेविल्स" (१७९८) का शीर्षक है और अवसाद और उदासी के अर्थों में इस्तेमाल हुआ है. ब्लूज़ का नाम चाहे जैसे पड़ा हो, इसमें किसी को शक नहीं है कि उसके स्रोत जितने अमरीका में ग़ुलाम बना कर लाये गये अफ़्रीकियों के दुख और दुर्दशा में थे, उतने ही इग्बो, योरुबा और पश्चिमी अफ़्रीका के स्थानीय समुदायों के रीति-रिवाजों, कर्म-काण्डों और अभिव्यक्ति के तरीक़ों में.
समय के साथ ब्लूज़ के बोल ही नहीं बदले, उनकी अदायगी भी बदली. हालांकि ब्लूज़ का बुनियादी स्वर पीड़ा और उत्पीड़न का ही रहा, उसके बोल कई बार हास्य, व्यंग्य और छेड़-छाड़ वाले भी होते. मसलन बिग जो टरनर की रचना "रिबेका" को लीजिये --
http://youtu.be/Bx937X08iO8 ( रिबेका - बिग जो टर्नर)
जैसे-जैसे ब्लूज़ की लोकप्रियता बढ़ी, उनके विषयों का दायरा भी फैलता गया. कई बार अश्लीलता को छूने वाले और दो अर्थों वाले शब्द भी इस्तेमाल होने लगे, हालांकि इन "गन्दे ब्लूज़" को अपवाद ही कहा जा सकता है, क्योंकि 1908 में पहले-पहले ब्लूज़ गीतों के प्रकाशन के बाद जो ब्लूज़ प्रमुखता से सामने आये उनमें पुरानी परम्परागत भावनाएं ही व्यक्त हुई थीं और यही ब्लूज़ का आधार बना रहा. इसी तरह हालांकि ब्लूज़ की मात्राओं की गिनती 12 ही रही लेकिन प्रयोग के तौर पर 16 मात्राओं का प्रयोग भी हुआ जैसे रे चार्ल्स के "स्वीट सिक्स्टीन बार्ज़" में --
http://youtu.be/Y3_vM6GNrY8 (रे चार्ल्स -- स्वीट सिक्स्टीन बार्ज़)
या हर्बी हैनकौक के "वौटरमेलन मैन" में --
http://youtu.be/RzPZvKSdN7g (हर्बी हैनकौक -- "वौटरमेलन मैन")
इसी तरह 8 मात्राओं में भी कई रचनाएं मिलती हैं, जैसे "ट्रबल इन माइण्ड" और बिग बिल ब्रून्ज़ी के "की टू द हाइवे" में --
http://youtu.be/KN_f0WVsHuw (बिग बिल ब्रून्ज़ी -- टू द हाइवे)
कभी-कभार विषम मात्राओं वाली रचनाएं भी देखने को मिल जाती हैं जैसे वौल्टर विन्सन की रचना "सिटिंग औन टौप औफ़ द वर्ल्ड" में --
http://youtu.be/RqeW7-tmVU4 (वौल्टर विन्सन -- सिटिंग औन टौप औफ़ द वर्ल्ड )
(जारी)
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