मीणा—मीना आन्दोलन की जन्मदाता—हाई कोर्ट की मौखिक टिप्पणी?
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सबसे बड़ा सवाल : राजस्थान हाई कोर्ट की मौखिक टिप्पणी के आधार पर मीणा जनजाति के जाति प्रमाण—पत्र बन्द करने वाली राजस्थान सरकार ने आज तक हाई कोर्ट के कितने मौखिक आदेशों की पालना की है?
----डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'राष्ट्रीय प्रमुख
हक रक्षक दल सामाजिक संगठन—9875066111
सारा देश जानता है कि हजारों सालों से अनवरत चले आ रहे आर्य—मनुवादियों के शोषण, तिरस्कार, भेदभाव के संरक्षण प्रदान करने और इनके अन्यायपूर्ण तथा अमानवीय व्यवहार के चलते भारत के संविधान की प्रस्तावना में ही वंचित अजा एवं अजजा वर्गों को बराबरी का हक प्रदान करवाने के मकसद से सामाजिक न्याय का प्रावधान किया गया है।
इसी मकसद को पूर्ण करने के लिये सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय स्थापित किया गया है। जिसका प्राथमिक मकसद हजारों सालों से वंचित अजा एवं अजजा वर्गों का उत्थान किया जाना और इन वर्गों को उनके संवैधानिक हकों की प्राप्ति करवाना है। इस मकसद की प्राप्ति के लिये सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के प्रभारी मंत्री अजा एवं अजजा वर्गों का ही होता आया है। संविधान की मंशा भी यही है, लेकिन राजस्थान की वर्तमान भाजपा सरकार ने संघ की पृष्ठभूमि के एक ब्राह्मण श्री अरुण चतुर्वेदी को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को प्रभारी मंत्री बना रखा है।
राजस्थान की मीणा जनजाति को 1956 में सरकार ने हिन्दी "मीणा" का अंग्रेजी अनुवाद Mina नाम से जनजातयों की सूची में शामिल किया था। जिसे बाद में 1976 अंग्रेजी से हिन्दी में "मीना" अनुवादित कर दिया गया। लेकिन प्रारम्भ से ही राज्यभर में "मीणा/Meena" एवं "मीना" जाति के नाम से जनजाति प्रमाण—पत्र बनाये जाते रहे हैं। इसी बीच समता आन्दोलन समिति की ओर से हाई कोर्ट में रिट दायर करके बताया गया कि राजस्थान की मीणा/Meena जाति अजजा की सूची में नहीं है फिर भी राज्य सरकार द्वारा मीणा/Meena जाति के नाम से जनजाति प्रमाण—पत्र बनाये जा रहे हैं। इस पर हाई कोर्ट ने एक मौखिक टिप्पणी कर दी—कि मीणा/Meena के जनजाति प्रमाण—पत्र क्यों बनाये जा रहे हैं?
इस टिप्पणी के अखबारों में आते ही सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के मंत्री श्री चतुर्वेदी ने राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा की गयी सामान्य सी टिप्पणी को लागू करने में आश्चर्यजनक तत्परता दिखाते हुए लिखित आदेश जारी कर दिये कि मीणा/Meena जाति के अजजा के जाति प्रमाण—पत्र नहीं बनाये जावें और पहले से मीणा/Meena जाति के नाम से बने जाति प्रमाण—पत्रों को मीना/Mina नाम से परिवर्तित भी नहीं किया जावे।
इस आदेश के जरिये श्री चतुर्वेदी ने मीणा जनजाति का आदिम अस्तित्व सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया। तहसीलदारों द्वारा जाति प्रमाण बनाये जाने से इनकार किया जाना शुरू हो गया। मीणा/Meena जाति के नाम से बने जनजाति प्रमाण—पत्रधारी मीणा/Meena अभ्यर्थियों को नौकरियों में लेने से इनकार किया जाने लगा। शिक्षण संस्थानों में प्रवेश बंद कर दिया गया। नौकरी लगे लोगों को नौकरी से निकालने की धमकियां दी जाने लगी।
इससे प्रमाणित हो गया कि संघ के कार्यकर्ता रहे श्री चतुर्वेदी जी को क्यों अजा एव अजजा के कल्याण के लिये संचालित मंत्रालय का मंत्री बनाया गया है?
इस अन्यायपूर्ण आदेश के विरुद्ध सम्पूर्ण राजस्थान में मीणा जनजाति की ओर से सालभर से अधिक समय से धरने प्रदर्शन जारी हैं। लगातार दर्जनों ज्ञापन दिये जा चुके हैं। विधानसभा की कार्यवाही बाधित हो रही है, लेकिन राज्य सरकार मौखिक आदेशों की न्यायिक अवमानना के बहाने अपने आदेशों को वापस लेने को तैयार नहीं है! क्या कमाल की सरकार है?
अब मेरा सीधा और सपाट सवाल यह है कि राजस्थान में समय—समय पर हाई कोर्ट की ओर से मौखिक टिप्पणीयां की जाती रही हैं, उनको क्रियान्वित करने में राजस्थान सरकार ने क्या कभी ऐसी ही तत्परता दिखलाई। हाई कोर्ट की कुछ मौखिक टिप्पणियॉं प्रस्तुत हैं :—
1. चोर-डकैतों का गिरोह है एसीबी : 03.09.2015 को राजस्थान हाईकोर्ट ने भष्टाचार से जुड़े एक मामले में एसीबी द्वारा लापरवाही बरतने पर सख्त नाराजगी जाहिर करते हुए एसीबी को चोर-डकैतों का गिरोह की संज्ञा दी।
हाईकोर्ट ने कॉमर्शियल पायलट फ्लाइंग ट्रेनिंग में धांधली मामले से जुड़े समान प्रकरणों में से कुछ में एफआर लगाने और कुछ में चालान पेश करने पर नाराजगी जताते हुए कहा कि एसीबी चोर-डकैतों का गिरोह है। सबसे ज्यादा चोर अफसर एसीबी में ही हैं। यह भ्रष्ट व अनुपयोगी है। एसीबी के अफसर कुछ काम नहीं करते। एसीबी को बंद कर इसका काम सीबीआई को दे देना चाहिए.
मेरा सवाल है कि क्या राजस्थान सरकार ने एसीबी के अफसरों के खिलाफ चोरी और डकैती के मुकदमे दर्ज किये? क्या सरकार ने एसीबी को बंद कर दिया और मुकदमे सीबीआई को दे दिये?
2. सरकार अस्पताल ढंग से नहीं चला सकती तो ताला लगा दें : दिनांक : 10.11.2014 राजस्थान हाईकोर्ट, के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुनील अंबवानी तथा न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ ने अस्पताल की साफ—सफाई पर नाराजगी जताई तथा मौखिक टिप्पणी करते कहा कि यदि सरकार के पास अस्पताल को ढंग से चलाने के संसाधन नहीं है तो क्यों नहीं अस्पतालों के ताले लगवा दिए जाएं? उन्होंने यह भी कहा कि देश के प्रधानमंत्री खुद हाथ में लेकर झाड़ू लगा रहे है जबकि आप यहां प्रपोजल ही तैयार कर रहे है।
मेरा सवाल : सरकार ने कितने अस्पतालों के ताले लगाये? या कितनों की साफ—सफाई करवाई?
3. 12.12.2014 को कुप्रथाओं पर सरकारी उदासीनता पर हाईकोर्ट, जोधुपर ने कड़ी नाराजगी जताई है। प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में कुछ मामलों में महिलाओं की "डाकण" (डायन) बताकर हत्या करने या आपराधिक मामलों को आपसी समझौते (मौताणा) से रफा-दफा करने की कुप्रथाओं पर हाईकोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि सरकार ने कड़ा कानून नहीं बनाया तो राज्य को पिछड़ा प्रदेश घोषित कर दिया जाएगा।
मेरा सवाल : क्या सरकार ने इस मामले में ऐसी ही तत्परता दिखाई?
4. 15 अगस्त, 15—सुनवाई के दौरान तय समय तक बच्चे के हाईकोर्ट में पेश न होने पर हाईकोर्ट जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने मामले में मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि बच्चे को गोद देने का क्या कारण है क्या बच्चे की बलि देना चाहते हैं?
मेरा सवाल : क्या सरकार ने इस पर कोई कानूनी कार्यवाही की।
5. 10.09.15—हाई कोर्ट को बताया गया कि अफसर को गंभीर पीठ दर्द है। जिसके चलते वे एक्स-रे कराने गए हैं। हाई कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी की कि अफसर कोर्ट से लुका-छिपी का खेल नहीं खेलें। सरकारी वकील दो माह से अदालतों में नहीं आ रहे हैं और सरकार उन्हें संरक्षण दे रही है।
मेरा सवाल : सरकार पर ही संरक्षण देने की टिप्पणी पर क्या सरकार या सरकार के समबन्धित मंत्री ने त्यागपत्र दिया? नहीं।
इससे पता चलता है कि मीणा—मीना आन्दोलन का जनक कौन है और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री क्या चाहते हैं?
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