THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Monday, September 21, 2015

TaraChandra Tripathi:राजनीतिक विजेता प्राय: सांस्कृतिक रूप से पराजित हो जाता है, इसका उदाहरण हम स्वयं हैं.भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के माध्यम से हमने अंग्रेजों को पराजित किया, उन्हें इस देश की सत्ता से बेदखल किया, उन्हें देश छोड़्ने के लिए विवश किया. पर स्वाधीनता के दिन से ही सांस्कृतिक रूप से हम हार ही नहीं गये, हारते चले गये. उनकी राजकाज की भाषा से हमारी भाषाएँ हार गयीं. उनके रीति-रिवाजों से हमारे रीति-रिवाज हार गये. हर क्षेत्र में भारतीयता के ऊपर अंग्रेजियत हावी हो गयी. पिताजी ने पापा या डैड होना माता जी ने मम्मी को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बना दिया. हर क्षेत्र में अपनी परंपराओं को हेय मानने का दौर चल पड़ा.इसी स्थिति का अवगाहन करते हुए बंगला के प्रसिद्ध उपन्यासकार शंकर ने १५ अगस्त १९४७ को भारत की सांस्कृतिक गुलामी के आरम्भ का दिवस कहा है.

भारतीय इतिहास इस बात का प्रमाण है कि प्राय: राजनीतिक विजेता, विजित जाति से सांस्कृतिक रूप से पराभूत हो जाता है. यवन सेनानी हेलियोदोर वैष्णव धर्म अपना लेता है, मेनेंडर बौद्ध हो जाता है. भारतीय देवता ग्रीक कला के प्रधान विषय बन जाते हैं. कनिष्क बौद्ध हो जाता है. उसका पौत्र शैव धर्म अपना लेता है, आक्रान्ता प्रजातियाँ राजपूत बन कर भारत भूमि और उसकी परंपराओं की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं. मुस्लिम विजेताओं में रसखान, रहीम, ताज, अमीरखुसरो, जायसी जैसे असंख्य लोग कन्हैया के इतने मुरीद हो जाते हैं कि कि शास्त्रीय धारा को मानने वाले लोगों को भी कहना प्ड़्ता है कि इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दुन वारिये.
यूरोपीय विजेता तो पराजितों ( भारतीय) की संस्कृति के इतने मुरीद हुए कि सैकड़ों अन्वेषकों, ने हमारी परंपराओं के अध्ययन में अपना जी्वन समर्पित कर दिया. विलियम जो्न्स से लेकर आज के हिप्पियों तक और विवेकानन्द से लेकर आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक तक भारतीय संस्कृति की विश्व विजय के पुरोधा बन गये. उन्होंने अपने नामों का भी भारतीय करण कर दिया. मार्ग्रेट एलिजाबेथ नोबेल, सि्स्टर निवेदिता बन गयी. जि्न से मैं मिला हूं उन में कनैडियन रौक सिंगर मैरी थोम्प्सन दिव्या बन कर कृष्ण भक्ति में लीन हो गयीं गयीं. और फ्रेंच युगल गणेश ला फोन्तेन और उनकी पत्नी लक्ष्मी ला फोन्तेन बन गयीं. रविशंकर जी के शालीन और सर्वात्मवादी नेतृत्व में भारतीय संस्कृति की विजय वाहिनी, यह नहीं कि उनके चेलों में कठ्मुल्लों का अभाव है, अपना स्वर्णिम
इतिहास है. 
राजनीतिक विजेता प्राय: सांस्कृतिक रूप से पराजित हो जाता है, इसका उदाहरण हम स्वयं हैं.भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के माध्यम से हमने अंग्रेजों को पराजित किया, उन्हें इस देश की सत्ता से बेदखल किया, उन्हें देश छोड़्ने के लिए विवश किया. पर स्वाधीनता के दिन से ही सांस्कृतिक रूप से हम हार ही नहीं गये, हारते चले गये. उनकी राजकाज की भाषा से हमारी भाषाएँ हार गयीं. उनके रीति-रिवाजों से हमारे रीति-रिवाज हार गये. हर क्षेत्र में भारतीयता के ऊपर अंग्रेजियत हावी हो गयी. पिताजी ने पापा या डैड होना माता जी ने मम्मी को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बना दिया. हर क्षेत्र में अपनी परंपराओं को हेय मानने का दौर चल पड़ा.इसी स्थिति का अवगाहन करते हुए बंगला के प्रसिद्ध उपन्यासकार शंकर ने १५ अगस्त १९४७ को भारत की सांस्कृतिक गुलामी के आरम्भ का दिवस कहा है.

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