THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Wednesday, September 2, 2015

The Brahmins blame Aurangzeb for the atrocities on them but they never supported Guru Gobind Singh whose father sacrificed himself for them ! Pandit Gangu a Brahmin cook of Guru Gobind Singh even get killed Guru Tegh Bahadur 's wife Mata Gujri and two grandsons !


 
My dear friends , The dominant society never accepts the changes easily ! Ram served the Brahmins as he himself murdered Saint Shambuk as per the last chapter of the Valmiki Ramayan / Valmiki Sitayan / Valmiki 's Paulastya Vadh ! So , the Brahmans projected him as a God ! Ram was a king like Aurangzeb who pleased the Muslims by the Islamisation of the Brahmins as he felt that the Brahmin class was the cunning class which degraded the non Brahmins by birth ! The Brahmins blame Aurangzeb for the atrocities on them but they never supported Guru Gobind Singh whose father sacrificed himself for them ! Pandit Gangu a Brahmin cook of Guru Gobind Singh even get killed Guru Tegh Bahadur 's wife Mata Gujri and two grandsons !
The Brahmins ' RSS / BJP projects Shiva ji as an Hindu ruler but they refused to corronate him as he was a Shudra by birth ! Shiva ji allured Mr. Gag Bhatt a Brahmin of Kashi ( U.P. ) to coronate him . He coronated Shiva ji by his foot thumb for which the Maharashtrian Brahmins boycotted him ! He had to write a book to clarify that he had coronated Shiva ji by foot thumb not by hand thumb ! 
But Shiva ji gave a feast to them with so costly gifts that his treasury was exhausted and he had to attack on Surat ( Gujarat ) to loot the diamonds traders to full his treasury !
The Brahmin class finished the Shudra kingdoms everywhere including the kingdoms of Shiva ji and Maharaja Ranjit Singh ! They even get killed Shiva ji 's son king Shamba on the bank of the river Bhima near Koregaon , Pune to which I visited as my FB friend Mr. Santosh Lohakare guided to find it on the spot in June , 2013 !
So , the Brahmin class is a very cruel inhumanitarian society to which we have to expose by his books and their own scriptures !!
Shahnawaz Malik

ओडिशा सरकार के पूर्व राज्यपाल बीएन पांडेय ने अपनी किताब 'इस्लाम और हिंदू संस्कृति' में औरंगज़ेब के बारे में पेज संख्या 41 पर लिखा है...

1948-53 के दौरान मैं इलाहाबाद म्यूनिसिपैलिटी का चेयरमैन था। इसी दौरान दाखिल-खारिज का एक केस मेरे सामने पेश हुआ। यह केस सोमेश्वर नाथ मंदिर की संपत्ति के मालिकाना हक़ को लेकर दायर किया गया था। महंत की मौत के बाद इस मंदिर की संपत्ति पर दो परिवारों ने दावेदारी ठोंक दी थी। सुनवाई के दौरान एक परिवार ने एक दस्तावेज़ पेश किया जो मुग़ल शासक औरंगज़ेब का फ़रमान था। फरमान औरंगज़ेब ने जारी किया था जिसमें मंदिर के लिए जागीर और नगद राशि दी गई थी। पहली नज़र में ही मुझे लग गया कि फरमान फर्ज़ी है। मैं यह सोचकर सकते में आ गया कि जो औरंगज़ेब मंदिरों को ध्वस्त करने के लिए कुख्यात हैं, आख़िर वो मंदिर के लिए जागीर कैसे दे सकता है। फरमान में औरंगज़ेब के शब्द थे, 'भगवान की पूजा और भोग के लिए दी गई जागीर।' मैं सोच में पड़ गया कि मूर्तिपूजा से औरंगज़ेब का क्या जुड़ाव कैसे हो सकता है? 

मैं पूरी तरह मुतमईन हो चुका था कि पेश किया गया फरमान फर्ज़ी है। मगर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले मैंने डॉक्टर तेज बहादुर सप्रू की राय लेना ज़रूरी समझा जो अरबी और फ़ारसी भाषा के महान जानकार थे। डॉक्टर सप्रू ने दस्तावेज़ की तहक़ीक़ात के बाद बताया कि फरमान असली हैं और औरंगज़ेब ने ही जारी किए हैं। फिर उन्होंने अपने मुंशी से वाराणसी की जंगम बड़ी मंदिर केस की फाइल मंगवाई। इस मंदिर की कई अपील 15 साल से इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित थी। इस मंदिर के महंत ने भी अपनी तरफ से पेश किए गए दस्तावेज़ में कई फरमान लगाए थे जिनमें औरंगज़ेब ने मंदिर के लिए जागीर दे रखी थी।

मेरे लिए औरगज़ेब की यह शख्सियत बेहद चौंकाने वाली थी। फिर डॉक्टर सप्रू के कहने पर मैंने देशभर में महत्वपूर्ण मंदिरों के महंतों को चिट्ठी लिखी। मैंने गुज़ारिश की कि अगर उनके पास इस तरह का कोई भी फरमान है तो उसकी छायाप्रति मुझतक पहुंचाएं। इस बार मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा। मुझे उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर, चित्रकूट के बालाजी मंदिर, गुवाहटी के उमानंद मंदिर, शत्रुंजय के जैन मंदिर समेत कई अहम मंदिरों और गुरुद्वारों से फरमान मिले। सभी फरमान 1659 से 1685 के बीच जारी किए गए थे। 

हालांकि हिंदू धर्म और उनके मंदिरों के प्रति औरंगज़ेब की उदारता समझने के लिए ये मिसाल मामूली हैं। मगर यह जानने के लिए ज़रूर काफी हैं कि इतिहासकारों ने औरंगज़ेब के बारे में जो कुछ भी लिखा है, वह पूर्वाग्रह से ग्रसित और तस्वीर का एक पहलूभर है। भारत के विशाल भूभाग पर हज़ारों मंदिर फैले हुए हैं। मुझे पूरा यक़ीन है कि अगर इस दिशा में सही रिसर्च की जाए ऐसी बहुत सारी मिसालें पता चलेंगी। यह भी पता चलेगा कि औरंगज़ेब गैरमुस्लिमों के प्रति कितने दयालू थे।


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