THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Tuesday, April 22, 2014

नमो ब्रांडेड हिंदुत्व- गुजरात मॉडल में श्रम कानूनों को बिना जहर मार डाला

नमो ब्रांडेड हिंदुत्व- गुजरात मॉडल में श्रम कानूनों को बिना जहर मार डाला

नमो ब्रांडेड हिंदुत्व- गुजरात मॉडल में श्रम कानूनों को बिना जहर मार डाला

HASTAKSHEP

आवारा पूँजी बदनाम हुई नाचने लगी है शेयर सूचकांक में

"अंततः कॉरपोरेट हिंसा ही है माओवादी हिंसा" से आगे की कड़ी

पलाश विश्वास

नमो ब्रांडिंग की धूम है। सैन्य राष्ट्र में पुलिसिया सरकार के लिए जनादेश निर्मिते वास्ते प्रायोजित सुनामी है। लठैतों- कारिंदों की बांस- बांस छलांग है।

भाजपा में उदित राज के समाहित हो जाने के बावजूद नेट पर इंडियन जस्टिस पार्टी है। दिल्ली में वोट पड़ने से पहले तक जिसके बैनर में यूपी के नेक्स्ट सीएम बतौर उदित राज की तस्वीर थी। ईवीएम में किस्मत तालाबंद हो जाने के बाद नेक्स्ट सीएम का नारा गायब है। अब बिहार में नेक्स्ट सीएम रामविलास पासवान का नारा है। कुल मिलाकर अंबेडकरी आंदोलन का चेहरा यही है।

 

ठगे रह गये तीसरे दलित राम, जो संघ परिवार के प्राचीनतम हनुमान हैं, जिन्हें महाराष्ट्र का सीएम कोई नहीं बता रहा। नये मेहमानों का भाव कुछ ज्यादा ही है। मनुस्मृति का स्थाई बंदोबस्त कायम रखने के लिए वैश्विक जायनवादी व्यवस्था से सानंद नत्थी हो जाने वाले संघ परिवार बाबा साहेब के संविधान को बदलने के लिए नमो पार्टी लांच कर चुकी है भाजपा को हाशिये पर रखकर और अमेरिकी राष्ट्रपति की तर्ज पर नमो प्रधानमंत्रित्व का चेहरा आकाश बाताश में भूलोक, पाताल और अंतरिक्ष में सर्वत्र पेस्ट है। बहुजनों के संवैधानिक रक्षाकवच से लेकर बाबासाहेब के लोककल्याणकारी राज्य का पटाक्षेप है।

मजा तो यह है कि संघ जनसमक्षे नीला-नीला हुआ जा रहा है तो नीला रंग अब केसरिया है।

नाजी फासीवाद, हिंदू राष्ट्र के लिए उतना जरुरी भी नहीं है। हम चाहे जो कहें, हकीकत यह है कि आजादी के बाद वर्णवर्चस्वी नस्ली सत्तावर्ग ने भारत को हिंदू राष्ट्र ही बनाये रखा है। सवर्ण राष्ट्र। जहां दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, मुसलामान समेत तमाम विधर्मियों और नस्ली तौर पर विविध अस्पृश्य भूगोल के वाशिंदों के न नागरिक अधिकार हैं और न मानवाधिकार। हिंदू राष्ट्र का एजेंडा आक्रामक राष्ट्रवाद धर्मोन्मादी है। कांग्रेस का हिंदू राष्ट्र और संघी हिंदूराष्ट्रवाद में बुनियादी फर्क इस आक्रामक धर्मोन्माद का है और बाकी हमशक्ल कथा है। जो राम है वही श्याम। जो नागनाथ है, वही सांप नाथ। फासिस्ट नाजी कायाकल्प और पुलिसिया सरकार नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों के साथ साथ लोकतंत्र और सभ्यता के बुनियादी वसूलों को खत्म करके जल जंगल जमीन नागरिकता रोजगार प्रकृति और पर्यावरण से बहुसंख्य भारतीयों को बेदखल करने और क्रयशक्तिविहीन वंचितों के सफाये का नस्ली एजेंडा है।

फिर मजा देखिये कि नमो पार्टी के भावी प्रधानमंत्री के ओबीसी मुख से अंबेडकर वंदना वंदेमातरम कैसे समां बांध रही है। राहुल पर अटैक करके मोदी ओबीसी कह रहे हैं कि सारे अधिकार अंबेडकर ने दिये हैं।सौ टका सच है। बरोबर।

कोई उनसे पूछे, उन हक हकूक के बारे में जैसे अंबेडकर के बनाये श्रम कानूनों को बहाल रखने की उनकी ओर से गारंटी क्या है।

वैश्विक आवारा पूँजी, वित्तीय पूँजी और कालाधन की जो मुक्तबाजारी ताकतें हैं, वे सारी की सारी गुजरात मॉडलपर बल्ले-बल्ले क्यों हैं। क्योंकि पांचवी और छठी अनुसूचियों का वजूद ही मिटा दिया है गुजरात मॉडल ने।

कच्छ से लेकर सौराष्ट्र तक कॉरपोरेट कंपनियों को पानी के मोल पर जमीन तोहफे में दी गयी है। नैनो के लिए सानंद कृषि विश्वविद्यालय की सरकारी जमीन की खैरात दी गयी तो कच्छ में अनुसूचित जनजातियों को पिछड़ा बनाकर पांचवीं और छठीं अनुसूचियों की हत्या करके बिना जनसुनवाई, बिना उचित मुआवजा जमीन अधिग्रहण हुआ।

जो शहरीकरण और औद्योगीकरण की फसल खेती को चाट गयी, उसमें खून पसीने की कोई कीमत ही नहीं है।

गुजरात नरसंहार से भी बड़ी उपलब्धि तो नमो ब्रांडेड हिंदुत्व का यही है कि उसने गुजरात मॉडल में श्रम कानूनों को बिना जहर मार डाला।

जैसे नये अर्थतंत्र के तहत बाबासाहेब के राजस्व प्रबंधन के सिद्धांत के विपरीत पूँजी को करमुक्त बनाने का करमुक्त भारत का प्रकल्प है और जैसे संसाधनों के राष्ट्रीयकरण के बाबासाहेबी सिद्धांत के विपरीत कांग्रेस भाजपा का देश बेचो ब्रांड इंडिया साझा चूल्हा है।

इन्हीं अंबेडकरी ओबीसी विकल्प में संसाधनों और अवसरों का न्यायपूर्ण बंटवारे के लिए सौदेबाजी के गुल खिला रहे हैं अंबेडकरी तमाम मनीषी, जिनके हाथों में कमंडल आया ही मंडल असुर के वध के लिए।

हम कहें तो हिंदुत्ववादी और अंबेडकरी अंध भक्त समुदाय हमें अरुंधति और आनंद तेलतुंबड़े की तरह हमें भी ब्राह्मण और कम्युनिस्ट करार देंगे तो गौर करे संघी ब्राह्मण कट्टर हिंदुत्व के प्रवक्ता डॉ. मुरली मनोहर जोशी के बयान पर जो कल तक अटल आडवाणी के साथ संघ परिवार के ब्रह्मा विष्णु महेश की त्रिमूर्ति में शामिल हैं।

आपको याद दिला दें कि 2009 में भाजपा का भारत उदय नारा था प्राइम मिनिस्टर वेटिंग लौहपुरुष लाल कृष्ण आडवाणी के हक में तब भी हवाएं केसरिया थीं। तब भी विज्ञापनी बहार थी बदस्तूर और कांग्रेस के हक में कहीं कोई पत्ता भी खड़क नहीं रहा था। लेकिन पुणे में ब्राह्मण सभा ने शंकराचार्यों की अगुवाई में फैसला किया कि कांग्रेस को जिताना है।

जिन कालाधन और बेहिसाब संपत्ति के आरोपों में घिरे, औषधि में मिलावट से लेकर श्रम कानूनों के उल्लंघन मामले में यूपी जमाने में बेतरह फंसे बाबा रामदेव का वरदहस्त सबसे घना घनघटा छाया नमो अभियान पर योगाभ्यास सहज की तरह है, उन बाबा रामदेव की अगुवाई में हरिद्वार में तब कॉरपोरेट मीडिया प्रधानों, शंकराचार्यो ने आडवाणी के हिंदुत्व के सिरे से खारिज करके मनमोहनी जनादेश की रचना की थी।

ब्राह्मणसभा जैसे जाति संगठनों, क्षत्रपों, अस्मिताओं, परम आदरणीय शंकराचार्य और जनता की अदालत सजाने वाले कॉरपोरेट मीडिया के नक्षत्रों का आचरण चमकदार विज्ञापनी चरित्रों के जैसा ही है कि कोई ठिकाना नहीं कि उनकी मधुचंद्रिमा ठीक किस शुभमहूर्त पर प्रारंभ होती है और कब अप्रत्याशित पटाक्षेप हो जाये।

जाहिर है कि यहां नमोमय भारत का फैसला अमेरिका ने पांचवें हिस्से के भारत के मतदान में खड़ा होते न होते कर दिया है। अमेरिकी फतवा के खिलाफ कोई बोल ही नहीं रहा है।

सैमदादा के खिलाफ खड़े होने में हिम्मत नहीं होती सबकी।

सारे फतवे पर भारी है सैम दादा।

मध्य भारत के खनिज इलाकों में बहुराष्ट्रीय आवारा पूँजी का सबसे बड़ा दांव है। आदिवासियों के विस्थापन और कत्लेआम, संविधान की पांचवीं और छठीं अनुसूचियों की हत्या, भूमि पर आदिवासियों के हक पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना के तहत विकास की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए इसी इलाके में खास तौर पर गुजरात माडल का विकास लागू करना है।

जैसे कि कच्छ समेत पूरे गुजरात में कॉरपोरेट कंपनियों को भूदान करके मोदी अब नवउदारवाद के मौलिक ईश्वर के बाद कॉरपोरेट तोते के प्राण और नमो भारत के हिंदू राष्ट्र के नये ईश्वर बनकर वैदिकी हिंसा सर्वस्व अश्वमेधी सभ्यता के मर्यादा पुरुषोत्तम है,जिसने अपनी सीता का भी वहीं है। किया जो राम ने किया था जैसे कि अनुसूचित समुदायों को गुजरात में कायदे कानून ताक पर रखकर बेदखल किया गया है, बाकी देश में भी वहीं तय है और इसी से सधेंगे अमेरिकी हित।

आवारा पूँजी बदनाम हुई नाचने लगी है शेयर सूचकांक में।

About The Author

पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं। आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। "अमेरिका से सावधान "उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना।

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