THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Tuesday, March 24, 2015

शारदा फर्जीवाड़े मामले में अब सन्नाटा क्यों है?


शारदा फर्जीवाड़े मामले में अब सन्नाटा क्यों है?
भरे हाट में हड़िया तोड़ दी है और मजा यह कि बंगाल से ही संसदीय सहमति का राज खुलने लगा है।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
शारदा फर्जीवाड़े मामले में अब सन्नाटा क्यों है?

शारदा फर्जीवाड़े मामले में मोदी दीदी मुलाकात के बाद सीबीआई की कोई खबर बनी नहीं है और न एकोबार संघ परिवार ने फिर इस मामले में दीदी को घेरा है।

नतीजजतन भाजपा के मैदान दीदी के हक में खुल्ला छोड़ने की हालत में कोलकाता नगर निगम और पालिका चुनावों में फिर दीदी की भारी जीत और वामदलों की एक और हार का पक्का समीकरण तय है।

अब सीबीआई के मैदान में उतरने से पहले जो हो रहा था,नये सिरे से फिर वही सिलसिला दोहराया जा रहा है।

सीबीआई हरकत में नहीं है और अचानक ईडी की ओर से जिस तिस को नोटिस जारी किया जा रहा है पेशियों के लिए।

जैसे पहले चूंचूं का मुरब्बा हासिल हुआ जनता को,फिर वहीं चूंचूं का मुरब्बा तैयार है।

भरे हाट में हड़िया तोड़ दी है और मजा यह कि बंगाल से ही संसदीय सहमति का राज खुलने लगा है।

थोड़ा मीडिया में रोज सनसनीखेज तरीके से पैदा किये जा रहे फर्जी मुद्दों,फर्जी विकल्पों,फर्जी जनांदोलन और फर्जी सत्याग्रह के मूसलाधार के मध्य ध्यान दीजिये कि संसद के बजट सत्र में राज्यसभा में तमाम बिल पास होने से पहले नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई मोदी और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मुलाकात के बाद दोनों तरफ से वोट बैंक के धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण मकसद से एक दूसरे के खिलाफ गोलंदाजी कैसे यक ब यक बंद हो गयी।

थोड़ा और गौर करें कि इस मुलाकात के पहले बंगाल में शारदा फर्जीवाड़ मामले में रोज मीडिया को नयी नयी जानकारियां देने वाली,रोज नये नये चेहरों के कठघरे में खड़ा करने वाली,रोज रोज नोटिस और दिरह और गिरफ्तारी के माऱ्फत कोलकातिया अखबारों की तमाम सुर्खियां बटोरने वाली सीबीआई की किसी हरकत के बारे में कुछ भी मालूम नहीं है।

सीबीआई दफ्तर में सन्नाटा है तो संघ परिवार अब भूलकर भी दीदी को कटघरे में खड़ा नहीं कर रही है।

बंग विजय की जयडंका बजाने वाले अमित शाह जैसे बंगाल को सिरे से भूल गये हैं बंगाल के केसरिया कायाकल्प हो जाने के बावजूद।

कोलकाता नगर निगम और पालिका चुनाव को अगले विधानसभा चुनावों को जीतने की तैयारी के तहत अमित शाह और प्रधानमंत्री के चुनाव प्रचार अभियान का बंगाल के भाजपा नेता जो जोर शोर से प्रचार कर रहे थे,उसके उलट ऐसा लग रहा है कि कोलकाता नगर निगम और पालिकाओं के चुनाव में भाजपा सिर्फ रस्म अदायगी के लिए लड़ रही है।वह भी वाम के सफाये में तृममूल के मददगार के बतौर।

न प्रत्याशियों की सूची से जनाधार मजबूत करने की कोई गरज नजरआ रही है और न महीने भर पहले जो तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ युद्ध घोषणा थी भाजपी की,जो राहुल सिन्हा और सिद्धार्थ सिंह के जुबान पर हर सेकंड शारदा फर्जीवाड़ा मुख्य मुद्दा था,वह ऐन चुनाव के वक्त सिरे से गायब है।

इस बीच न हालात बदले हैं और न राजनीति समीकरण।

वामपक्ष का पहले ही सफाया हो गया है और उसमें वापसी की गरज दीख नहीं रही है।

ऐसे माहौल में तृणमूल के खिलाफ अचानक अपना बेहद आक्रामक रवैया छोड़ने का भाजपा का यह फैसला मोदी और दीदी की वामपक्ष को हाशिये पर धकेलने के लिए धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण की साझा रणनीति का खुलासा ही करता है।

मुसलमान वोट बैंक और तथाकथित हिंदुत्व वोट बैंक की आस्था और भावनाओं से देश भर में जो खिलवाड़ कारपोरेट रंगबिरंगी राजनीति कर रही है,उसे समझने के लिए शारदा फर्जीवाड़े मामले के अचानक सुर्खियों से बाहर हो जाने का किस्सा दिलचस्प केस स्टडी है।

गौरतलब है कि मोदी से दीदी की मुलाकात को राज्य के हित में कर्जमाफी के लिए मुलाकात कहा गया।जबकि इस मुलाकात से फायदा सिर्फ संघ परिवार को हुआ है कि राज्यसभा में सारे आर्थिक सुधार पास हो गये।

फायदा सिर्फ ममता बनर्जी को हुआ जो संघ परिवार की रणनीति के तहत और अपराजेय हो गयी।
सबसे ज्यादा नुकासान वाम को हुआ जो इस धर्मोन्मादी चक्रव्यूह से निकलने का रास्ता बना ही नहीं पा रहा है।

वैचारिक विचलन का यह चरमोत्कर्ष है।

लेकिन मोदी दीदी की इस विलंबित मुलाकात से पहले और बाद में संसदीय सहमति के पीछे संघ परिवार के जो सिपाहसालार रहे हैं,अरुण जेटली,वैंकेया नायडु,पीयुष गोयल,मुख्तार अहमद नकवी वगैरह वगैरह से क्षत्रपों की मुलाकात सैफई की सेल्फी से कम दिलचस्प नहीं है।

गौरतलब है कि संघ परिवार के ये सिपाहसालार  अरुण जेटली,वैंकेया नायडु,पीयुष गोयल,मुख्तार अहमद नकवी वगैरह वगैरह राज्यसभा में अल्पमत का तोड़ निकालने के लिए क्षत्रपों को फंसाने की योजना अमल में ला रहे थे।

ताजा स्टेटस यह है कि दीदी मोदी शिखर वार्ता के नतीजतन दीदी के लिए और तृणमूल के लिए तेजी से चुनौती बन रहे मुकुल राय कीअब त्रिशंकु दशा है और अब तृणमूल कांग्रेस पर दावा ठोंकने वाले मुकुल राय ने सुर बदल कर हर मुद्दे पर दीदी और तृणमूल का अनुशासित सिपाही होने सबूत पेश करना शुरु कर दिया है।

संसदीय सहमति के कारीगरों से तृणमूल सांसदों का दिल्ली में लगातार धर्मोन्मादी जिहाद के मध्य लगातार मुलाकाते होती रही हैं।राजनाथ सिंह,वैंकेया नायडु और अरुण जेटली से तृणमूलियोें के तार हमेशा जुड़े रहे हैं।

असली खेल राज्यसभा में खतरे में फंसे आर्थिक सुधारों से संबंधित बिलों को पेश करने से पहले शुरु हो गया।

मुलायम ने तो ताश के पत्ते खोले नहीं,लेकिन दीदी की तृणमूल कांग्रेस,बीजू जनता दल और जनतादलयू ने साफ कर दिया कि वे सुधारों के खिलाफ हरगिज नहीं हैं और जरुरी बिलों को पास कराने में मदद करेंगे।

बिना घोषणा किये गुपचुप अन्नाद्रमुक ने भी इन बिलों को पास कराने में निर्णायक सहयोग करके कांग्रेस के विरोध को बेमतलब कर दिया।

गौरतलब है कि अन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता जेल जाने की वजह से मुख्यमंत्री पद गवां चुकी है।

गौरतलब है किअदालती मामले की वजह से खुद सत्ता से हटकर मुसहर माझी को कठपुतली मुखयमंत्री बनकर अतिदलित कार्ड से बिहार में सत्ता पलट के भाजपाई खेल को एकदा परमशत्रु लालू के साथ मिलकर नाकाम कर देने वाले नीतीशकुमार ने उन्हीं माझी को पटखनी देकर फिर मुख्यमंत्री बनते ही न जाने कैसे कैसे केशरिया हो गये और हक्के बक्के रह गये लालू जिनके रिश्तेदार अब मुलायम हैं जो बाहर लाल हैं तो भीतर उतने ही केसरिया जितने नीतीश कुमार के केसरिया रंग खिले किले हैं।

राज्यों में अपनी अपनी सत्ता बचाने की महाबलि क्षत्रपों की यह किलेबंदी ही आर्थिक सुधारों के पक्ष में 1991 से निरंतर जारी अबाध पूंजी की तरह निरंकुश जनसंहारी संसदीय सहमति है,जिसके लिए भारत की संसद कमसकम भारतीय जनगण के प्रिति किसी भी स्तर पर जिम्मेदार नहीं है।स्विस बैंक खातों की सेहत का राजभी यही है।

इनके उलट कहना ही होगा,नवीन पटनायक कमसकम पाखंडी नहीं है और जाहिर सी बात है कि आदिवासी बहुल इलाकों की जल जंगल जमीन पहले ही कारपोरेट घरानों के हवाले करने वाले नवीन पटनायक आर्थिक सुधारों के पक्ष में भाजपा से कम मजबूती से खड़े कभी नहीं थे।

भरे हाट में हड़िया तोड़ दी है और मजा यह कि बंगाल से ही संसदीय सहमति का राज खुलने लगा है।

इतिसिद्धम।

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