परमाणु पागलपन से पीछा छुड़ाने के लिए देशभर में उपवास
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कूड़ंकुलम परमाणु बिजली घर के विरोध में, 27 मार्च 2012 को एक दिवसीय उपवास का आयोजन देश में जगह जगह होगा। सुरेन्द्र मोहन, अचिन वनिक, मजोर जनरल स.गया. वोम्बत्केरे (रेत्द.), जे. श्री रमन, थॉमस कोचेर्री, सुकला सेन, मुक्त श्रीवास्तव, आनंद पटवर्धन, अजित झा, फेरोज़े मिथिबोर्वाला, किशोर जगताप, पर.टी.म. हुसैन, आशीष रंजन झा, कामायनी, संजय म.गया., अरुंधती धुरु, मेधा पाटकर, संदीप पाण्डेय जैसे सामजिक कार्यकर्ता देशभर में कूड़ंकुलम परमाणु बिजली घर के विरोध में इस अभूतपूर्व जनजागरण का नेतृत्व कर रहे हैं। इसी राष्ट्रव्यापी विरोध के मधाय बारत के प्रधानमंत्री ने फीर एक बार परमाणु पागलपन के प्रति सत्तावर्ग की प्रतिबद्धता दोहरायी है।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि भारत परमाणु दुर्घटनाओं से निपटने के लिए अपनी आपातकालीन तैयारियों को मज़बूत कर रहा है। और परमाणु ऊर्जा के नियामन के लिए जल्द ही एक वैधानिक संस्था बनाई जाएगी।उन्होंने दोहराया कि भारत साल 2032 तक परमाणु ऊर्जा की सहायता से 62 हज़ार मेगावॉट बिजली पैदा करना चाहता है।यह विडम्बना ही तो है कि एक तरफ भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में, श्री लंका में तमिल लोगों के ऊपर हुए अत्याचार का मुद्दा उठाया है, परंतु देश के भीतर तमिल नाडु में परमाणु बिजली घर बनाने की जिद्द पर भारत अड़ा हुआ है जिसकी वजह से तमिल नाडु में रह रहे लोग खतरनाक परमाणु दुष्परिणामों को आने वाले सालों में भुगत सकते हैं। पर्यावरण के लिए लाभकारी तरीकों से उर्जा बनाने के बजाये भारत परमाणु जैसे खतरनाक और नुकसानदायक तरीकों को अपना रहा है. विकसित देशों में परमाणु उर्जा एक असफल प्रयास रहा है। विश्व में अभी तक परमाणु कचरे को नष्ट करने का सुरक्षित विकल्प नही मिल पाया है, और यह एक बड़ा कारण है कि विकसित देशों में परमाणु उर्जा के प्रोजेक्ट ठंडे पड़े हुए हैं। भारत में 20 साल में देश की परमाणु बिजली उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 63,000 मेगावाट करने की येजना बनायी जा रही है।इस समय देश की कुल परमाणु बिजली उत्पादन क्षमता 4,800 मेगावाट है।
तमिलनाडु सरकार ने 2000 मेगावाट क्षमता वाली कूड़ंकुलम परमाणु बिजली संयंत्र को हरी झंडी दे दी है। इसके बाद से निर्माण स्थल पर अब काम शुरू किया जा सकेगा। मुख्यमंत्री जे जयललिता की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इस विवादास्पद परियोजना को हरी झंडी दी गई। साथ ही राज्य सरकार ने इस संयंत्र के आसपास के इलाके के विकास के लिए 500 करोड़ रुपये के विशेष विकास पैकेज दिए जाने की घोषणा की है। परियोजना का विरोध कर रहे एसपी उदयकुमार ने तभी से अनिश्चितकालीन अनशन शुरू कर दिया।पीपुल्स मूवमेंट अगेंस्ट न्यूक्लियर एनर्जी (पीएमएनएई) ने सितंबर 2011 में इस परियोजना का विरोध शुरू किया था। प्रस्तावित संयंत्र स्थल के आसपास के गांव के लोग भी इस विरोध प्रदर्शन में सक्रिय हैं। उन्हें डर है कि अगर किसी तरह की दुर्घटना होती है, तो आसपास के लोगों की जिंदगी को खतरा है। इनके विरोध प्रदर्शन से परियोजना पर काम रुक गया था, जो दिसंबर 2011 से शुरू होना था।विपक्ष के नेता करुणानिधि ने कहा कि यह प्रॉजेक्ट इसलिए रुका क्योंकि जयललिता ने प्रदर्शनकारियों को बातचीत के लिए बुलाया और उनका अनुरोध स्वीकार किया। उन्होंने 22 सितम्बर, 2011 को मंत्रिमंडल की बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से प्रॉजेक्ट से संबंधित कार्य रोकने के लिए कहा था।करुणानिधि ने केएनपीपी में काम न होने की स्थिति में पिछले 6 महीने के दौरान तनख्वाहें देने पर केंद्र सरकार को करीब 900 करोड़ रुपये के नुकसान के लिए भी जयललिता को जिम्मेदार ठहराया।
मुंबई में मशहूर फिल्मकार आनंद पटवर्धन जैसे परमाणु ऊर्जा के विरोध में लामबंद हैं, आहिस्ते आहिस्ते देश का हर जागरुक खास और आम नागरिक परमाणु पागलपन के खिलाफ मोर्चा में शामिल होने लगा है। ऐसे में और इसीके मध्य भारत ने चार निर्यात नियंत्रण समझौतों की सदस्यता की भी मांग की है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत परमाणु आपूर्ति समूह के नियमों का पालन करता है और दुनिया के परमाणु अप्रसार उद्देश्यों को पूरा करने की योग्यता रखता है इसलिए अब उसे इन समूहों में प्रवेश दिया जाना चाहिए।आनंनद उस मुंबई में फरमाणु ऊर्जा के विरोध का झंडा उठाये हुए हैं, जहां लोगों को परमाणु बिजली से निहाल कर देने का सब्जबाग दिखाया जाता है। कूड़ंकुलम परमाणु बिजली घर पर विवाद अभी खत्म हुआ नहीं कि जैतापुर परमाणु क्लस्टर पर काम तेज है और जाने अनजाने समूचा महाराष्ट्र आज परमाणु भट्टी में तब्दील होता जा रहा है।केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने गंभीर रूप से प्रदूषित 8 अतिरिक्त इलाकों से स्थगनादेश हटा लिया है। जिन गंभीर रूप से प्रदूषित इलाकों से स्थनगनादेश हटाया गया है, उनमें लुधियाना (पंजाब), वाराणसी-मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश), आगरा (उत्तर प्रदेश), भावनगर (गुजरात), कुडालोर (तमिलनाडु), डोंबिवली (महाराष्ट्र), औरंगाबाद (महाराष्ट्र) और नवी मुंबई (महाराष्ट्र) शामिल हैं।पर्यावरण मंत्रालय की ओर से यह कदम लवासा हिल सिटी परियोजना, नवी मुंबई हवाई अड्डा और 10,000 मेगावॉट की उत्पादन क्षमता वाली जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना को सशर्त मंजूरी दिए जाने के बाद उठाया गया है। कुछ ही समय पहले संशोधित तटीय क्षेत्र विनियमन अधिसूचना के तहत मुंबई समेत अन्य राज्यों के तटीय इलाकों में पुनर्विकास की अनुमति भी दे दी गई थी। इसके अलावा मंत्रालय ने दक्षिण कोरिया की इस्पात कंपनी पोस्को को उड़ीसा में 12 अरब डॉलर के इस्पात संयंत्र लगाने और सेल को झारखंड की चिरिया खदानों से निकलने वाले लौह अयस्क से लोहा निकालने की योजना को भी सशर्त मंजूरी दे रखी है।पर्यावरण मंत्रालय ने गंभीर रूप से प्रदूषित देश के 43 औद्योगिक क्लस्टरों में नई परियोजनाएं स्थापित करने और मौजूदा औद्योगिक इकाइयों को विस्तार देने के लिए पर्यावरण से संबंधित मंजूरी देने के मामले में स्थगनादेश जारी किया था ताकि औद्योगिक इकाइयों और राज्य सरकारों की ओर से पर्यावरण सुधार की गतिविधियां तेज की जा सके।
भारत न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप, मिसाईल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम, वासेनार एरेंजमेंट और ऑस्ट्रेलिया ग्रुप की सदस्यता का इच्छुक रहा है। दक्षिण कोरिया की राजधानी सिओल में परमाणु सुरक्षा पर हो रहे सम्मेलन में दुनिया भर के करीब 50 देश हिस्सा ले रहे हैं। भारत ने परमाणु क्लबों का सदस्य बनाए जाने की पुरजोर वकालत करते हुए मंगलवार को कहा कि इससे उसके परमाणु कार्यक्रम में उच्च अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन सुनिश्चित होगा तथा उसकी निर्यात नियंत्रण प्रणाली को और मजबूत करने में मदद मिलेगी।
मनमोहन सिंह ने कहा है कि भारत अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों में सुरक्षा के उच्चतम मानदंडों का अनुसरण करता है। उन्होंने कहा कि परमाणु दुर्घटनाओं को लेकर, खासकर जापान में सुनामी से फुकुशिमा संयंत्र के क्षतिग्रस्त होने के बाद इस संबंध में लोगों की जो भी चिंताएं हैं, उन्हें दूर करने की कोशिश की जाएगी और लोगों को भरोसे में लिया जाएगा। उन्होंने परमाणु सुरक्षा हासिल करने के लिए एक बहुपक्षीय ढांचे की जरूरत बताते हुए अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) को साल 2012-13 के लिए 10 लाख डॉलर की सहायता देने की घोषणा की।
परमाणु बिजली का उजाला हमें किस अंधेरे की ओर ले जा रहा है, इसे जानने के लिए यूक्रेनी शहर चेर्नोबिल में 26 अप्रैल 1986 को हुई भीषण परमाणु दुर्घटना काफी होनी चाहिए थी। पर, ऐसा नहीं हुआ। अगला सबक मिला चेर्नोबिल दुर्घटना की 25वीं वर्षगांठ से ठीक पहले पिछले वर्ष। इस बार बारी थी जापान की। हिरोशिमा के बाद फुकूशिमा की। हिरोशिमा में दुनिया का अब तक का पहला परमाणु बम गिरा था। फुकूशिमा में किसी भूकंप के कारण पहली परमाणु दुर्घटना हुई। जापान संसार का अकेला देश है, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अपने यहां दो अमेरिकी परमाणु बमों की प्रलयंकारी विभीषिका झेल चुका है। इससे शिक्षा लेते हुए उसने परमाणु अस्त्रों से परहेज करने का तो प्रण लिया, पर परमाणु ऊर्जा का लाभ उठाने का लोभ संवरण नहीं कर पाया। यह नहीं समझ पाया कि परमाणु रिएक्टर भी अपने आप में परमाणु बम ही होते हैं। नियंत्रण से बाहर होने पर बम जैसा ही कहर मचा सकते हैं।क्या इससे भारत सबक लेगा?आसार तो ऐसे कतई नहीं दीखते।
कूड़ंकुलम परमाणु बिजलीघर के विरोध में इडिंठकरई, तमिल नाडु में चल रहे उपवास के समर्थन में, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, परमाणु निशस्त्रीकरण और शांति के लिए गठबंधन, लोक राजनीति मंच और दिल्ली समर्थक समूह ने संयुक्त रूप से जंतर मंतर, दिल्ली, पर 26 मार्च से 1 अप्रैल 2012 तक सात दिवसीय उपवास शुरु हो गया है। जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय समन्वयक और मग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डेय ने जंतर मंतर पर सात दिन का उपवास शुरु किया। इन सात दिनों में अन्य कई लोग क्रमिक अनशन भी करेंगे।कूड़ंकुलम परमाणु बिजलीघर के विरोध में चेन्नई में भी लोग उपवास पर हैं और मुंबई में प्रख्यात फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन दादर रेलवे स्टेशन के सामने विरोध का नेतृत्व करेंगे। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय आन्ध्र प्रदेश ने २७ मार्च को शाम ६ बजे से ८ बजे तक एक प्रदर्शन और मोमबती जुलूस निकलने का भी कार्यक्रम आंबेडकर मूर्ती, टैंक बंद, हैदराबाद में किया है।गौरतलब है किजन-आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वयभारत-अमरीका परमाणु संधि का विरोध करता है।भारत-अमरीका परमाणु संधि गैर-लोकतान्त्रिक तरीके से बढाई जा रही है, यहाँ तक कि भारत की संसद तक से इसको पारित नही किया गया था। हकीक़त यह है कि अधिकाँश राजनीतिज्ञों ने इस संधि का भरसक विरोध किया है।
जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े तमाम आम और खास नागरिक भारत सरकार के गैर लोकतान्त्रिक ढंग से परमाणु ऊर्जा थोपने के प्रयास का विरोध करते हैं। अमरीका और यूरोप में जब भारी संख्या में आम लोग सड़क पर उतार आए तब उनकी सरकारों को परमाणु ऊर्जा त्यागनी पड़ी परंतु भारत में जब आम लोग परमाणु ऊर्जा पर सवाल उठा रहे हैं तो उनकी आवाज़ दबाने का प्रयास किया जा रहा है। कुडनकुलम, तमिल नाडु के डॉ उदयकुमार के नेतृत्व में परमाणु ऊर्जा के विरोध में जन अभियान को भारत सरकार ने भ्रामक आरोपों आदि द्वारा दबाने का पूरा प्रयास किया है। जब कि डॉ उदयकुमार ने अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक किया है और उनके पास 'एफ.सी.आर.ए.' ही नहीं है जिससे 'विदेशी पैसा' लिया जा सके। यह भी साफ ज़ाहिर है कि भारत सरकार स्वयं 'विदेशी' ताकतों (जैसे कि अमरीका, रूस, आदि) के साथ मिलजुल कर सैन्यीकरण और परमाणु कार्यक्रम बढ़ा रही है। भारत सरकार ने एक जर्मन नागरिक को जिसने शांतिपूर्वक कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा विरोधी अभियान में भाग लिया था, उसको पकड़ कर वापिस जर्मनी भेज दिया। 8 मार्च 2012 को भारत सरकार ने एक जापानी नागरिक का वीसा भी रद्द कर दिया। 'ग्रीनपीस' के निमंत्रण पर फुकुशिमा,जापान में 11 मार्च 2011 को हुई परमाणु दुर्घटना झेले हुए माया कोबायाशी को भारत सरकार ने 15 फरवरी 2012 को 'बिजनेस' वीसा दिया था जिससे कि वो भारत में एक सप्ताह आ कर जगह-जगह आयोजित कार्यक्रमों में परमाणु विकिरण आदि खतरों के बारे में बता सकें। परंतु 8 मार्च 2012 को भारत ने उनका वीसा ही रद्द कर दिया।
हाल में तमिल नाडु मुख्य मंत्री द्वारा डॉ एस.पी. उदयकुमार को नक्सलवादी करार करने का प्रयास यह ज़ाहिर करता है कि सरकार परमाणु कार्यक्रम को लागू करने के लिए कितनी मजबूर है। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय सरकार के आम लोगों को गुमराह करने का और परमाणु कार्यक्रम में पारदर्शिता नहीं रखने का भरसक विरोध करता है।
अब विकसित दुनिया यह मानने लगी है कि निम्न चार कारणों से नाभिकीय ऊर्जा का कोई भविष्य नहीं हैः (1) इसका अत्याधिक खर्चीला होना, (2) मनुष्य स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए खतरनाक, (3) नाभिकीय शस्त्र के प्रसार में इसकी भूमिका से जुड़े खतरे, व (4) रेडियोधर्मी कचरे के दीर्घकालिक निपटारे की चुनौती।
भारत को नाभिकीय ऊर्जा का विकल्प ढूँढना चाहिए जो इतने खर्चीले व खतरनाक न हों। पुनर्प्राप्य ऊर्जा के संसाधन, जैसे सौर, पवन, बायोमास, बायोगैस, आदि, ही समाधान प्रदान कर सकते हैं यह मान कर यूरोप व जापान तो इस क्षेत्र में गम्भीर शोध कर रहे हैं। भारत को भी चाहिए कि इन विकसित देशों के अनुभव से सीखते हुए नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में अमरीका व यूरोप की कम्पनियों का बाजार बनने के बजाए हम भी पुनर्प्राप्य ऊर्जा संसाधनों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करें। भारत को ऐसी ऊर्जा नीति अपनानी चाहिए जिसमें कार्बन उत्सर्जन न हो और परमाणु विकिरण के खतरे भी न हो।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय भारत सरकार से अपील करता है कि परमाणु ऊर्जा के मुद्दे पर लोकतान्त्रिक तरीके से खुली बहस करवाए और जब तक यह सर्व सम्मति से निर्णय नहीं होता कि भारत को परमाणु कार्यक्रम चलना चाहिए या नहीं, परमाणु कार्यक्रम को स्थगित करे।
इस समय की स्थिति यह है कि संसार भर के 30 देशों में कुल मिलाकर 436 परमाणु बिजलीघर काम कर रहे हैं। 2002 में, जब संसार में सबसे अधिक बिजलीघर चालू थे, उनकी संख्या 444 थी। रूस, चीन, भारत और दक्षिण कोरिया में बन रहे नए परमाणु बिजलीघरों के बावजूद विशेषज्ञों का अनुमान यही है कि परमाणु बिजलीघरों की कुल संख्या 2015 के बाद से और भी घटेगी। पुराने रिएक्टर लगातार बंद होंगे। सौर, पवन और जैव ऊर्जा संयंत्र उनकी जगह लेते जाएंगे।
जर्मनी के बिजली उत्पादन में इन वैकल्पिक स्रोतों का हिस्सा परमाणु बिजलीघरों के हिस्से के लगभग बराबर (20 प्रतिशत) है। इसी कारण 8 परमाणु बिजलीघर एकसाथ बंद कर देने पर भी देश में बिजली की आपूर्ति पर रत्ती भर भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। स्वयं परमाणु ऊर्जा तकनीक के एक प्रमुख निर्यातक अमेरिका में भी, जहां 30 वर्षों के अंतराल के बाद पहली बार एक नए परमाणु बिजलीघर के निर्माण की अनुमति दी गई है, परमाणु ऊर्जा के प्रति जन और राजनैतिक समर्थन इतना घट गया है कि वहां भी परमाणु ऊर्जा का भविष्य बहुत सुरक्षित नहीं कहा जा सकता।
बीबीसी के एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि दुनिया भर में लोगों की रुचि अब नए परमाणु बिजली घर बनाने में नहीं है।दुनिया के 23 देशों में 23 हज़ार से अधिक लोगों के बीच किए गए सर्वेक्षण में दो तिहाई से अधिक लोग नए परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने के विरोध में थे।नए परमाणु ऊर्जा घरों का विरोध फ़्रांस, जर्मनी, मैक्सिको, रूस और जापान में बढ़ा है।
सर्वेक्षण में शामिल देशों में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ परमाणु संयंत्र को लेकर लोगों की राय बँटी हुई है।
बीबीसी के पर्यावरण मामलों के संवाददाता का कहना है कि हालांकि लोग इसका विरोध कर रहे हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी जैसी संस्थाएँ परमाणु बिजली घरों का समर्थन करती रहेंगीं क्योंकि उन्हें लगता है कि बिजली की बढ़ती हुई मांग की आपूर्ति के लिए यह एक रास्ता है।दूसरी ओर सरकारें इसका समर्थन करेंगी क्योंकि कार्बन गैसों का उत्सर्जन नियंत्रित करने के लिए परमाणु ऊर्जा ही एक विकल्प है।
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