नोनाडांगा के निवासियों को उजाड़ना बंद करो
दिल्ली में कार्यरत 17 जनवादी एवं नागरिक अधिकार संगठनों की ओर से 5 जुलाई को जंतर मंतर पर एक विरोध धरना का आयोजन किया गया. यह धरना नोनाडांगा (कोलकत्ता) के निवासियों व पटियाला (पंजाब) के किसानों पर हुए बर्बर पुलिस दमन और बीजापुर (छत्तीसगढ़) के 20 आदिवासियों की फर्जी मुठभेड़ में की गयी हत्या के खिलाफ आयोजित था.
नोनाडांगा के निवासियों के अवासों को पिछले 30 मार्च, 2012 को कोलकता मेट्रोपोलिटन डेवलपमेंट आॅथरिटी द्वारा उजाड़ दिया गया. तब से लेकर वे लगातार संघर्षरत हैं और भयंकर पुलिसिया दमन के शिकार है. 4 अप्रैल, 2012 को उन्होंने उच्छेद प्रतिरोध कमेटी के बैनर तले एक विरोध प्रदर्शन किया जिस पर कलकता पुलिस द्वारा बर्बर लाठी चार्ज किया गया. इस लाठी चार्ज के खिलाफ 8 अप्रैल को एक धरना दिया गया जिसे पुलिस ने 67 धरनार्थियों को गिरफ्तार कर विफल कर दिया. 9 और 12 अप्रैल को भी विरोध कार्यक्रम किया गया. जिस पर तृणमूल के कर्कर्ताओं ने हमला किया.
पुलिस ने सात कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जिनमें मातंगनी महिला समिति के देवलिना चक्रवर्ती और टूवर्ड्स न्यू डाउन के संपादक अभिज्ञान सरकार शामिल थे. देवलिना पर यूएपीए लगा दिया जबकि अभिज्ञान पर नोनाडांगा में हथियार और गोलाबारूद जमा करने का निराधार आरोप लगाया गया. इन दोनों पर तृणमूल के नेताओं के इशारे पर कई झूठे मुकदमे भी लादे गये ताकि उन्हें 'माओवादी' और 'देशद्रोही' साबित किया जा सके. हाल में जब 20 जून, 2012 को करीब 250 की संख्या में नोनाडांगा के निवासी, सामाजिक कार्यकर्ता व बुद्धिजीवी राइटर बिल्डिंग के सामने प्रदर्शन कर रहे थे तो वहां भी बर्बर लाठी चार्ज किया गया. इसमें दो लोग गम्भीर रूप से घायल हुए और 35 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. तृणमूल के गंुडों ने उच्छेद प्रतिरोध कमेटी के पर्चों को छापने वाले दुकान पर भी हमला किया.
पश्चिम बंगाल सरकार एक तो नोनाडांगा के निवासियों के आवासों को तोड़ रही है और दूसरी ओर उन्हें कहीं भी विरोध प्रदर्शन करने की इजाजत नहीं दे रही. ममता सरकार का एक मात्र उद्देश्य है कि नोनाडांगा के निवासियों को उजाड़ कर कीमती जमीन को खाली कराया जाए और उन जमीनों को रियल इस्टेट के सार्कों के हवाले कर दिया जाए.
इसी तरह देश के अन्य क्षेत्रों में भी झोपड़पट्टियों को उजाड़ा जा रहा है और इसका विरोध करने पर बर्बर पुलिस दमन ढाया जा रहा है. दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार ने अगले कुछ माह में 44 काॅलोनियों को उजाड़ने की योजना बनाई है. इसके पहले काॅमन वेल्थ गेम्स 2010 के दौरान भी कई झोपड़पट्टियों को उजाड़ा गया. हाल में 20 अप्रैल, 2012 को डीडीए के पदाधिकारियों ने 2000 पुलिस फोर्स लेकर आनन्द पर्वत औद्योगिक क्षेत्र के पास स्थिति गायत्री काॅलोनी के झोपड़ीवासियों को उजाड़ने की कोशिश की लेकिन जुझारू प्रतिरोध के चलते उन्हें पूरी सफलता नहीं मिली.
इसके अलावा किसानों और आदिवासियों को जमीन से बेदखल करने का भी अभियान तेज हो गया है. 19 जून, 2012 को पंजाब सरकार के विभिन्न विभागों के उच्च पदाधिकारियों ने सैकड़ों पुलिस बल को साथ लेकर पटियाला के बलबेहड़ा, चारसों व अन्य गांव के किसानों पर हमला बोला जिसमें दर्जनों किसान बुरी तरह घायल हुए. वहां वे लोग करीब 140 एकड़ आम जमीन पर से उन किसानों को बेदखल करने पहुंचने थे जो उस पर पिछले चार-पांच दशकों से खेती करते आ रहे हैं.
जब किसानों ने इसका विरोध किया तो पुलिस ने लाठी, वाटर कैनन व रबड़ बुलेट का इस्तेमाल किया और साथ ही साथ अश्रु गैस के गोले दागे और फायरिंग भी की. हमलावर पुलिसियों ने लोगों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा और आस-पास खड़ी दर्जनों मोटरसाईकिलों को तोड़ दिया. जब घायल किसानों को पटियाला के राजेन्द्र अस्पताल में इलाज के लिये लाया गया तो भारी तदाद में पुलिस भी वहां आ धमकी. घायलों की देखभाल कर रहे दस लोगों को झूठे मुकदमे में फंसा कर गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें सदर थाना ले जाया गया.
गिरफ्तार लोगों में बीकेयू दाकौंदा के पटियाला जिला अध्यक्ष दर्शन पाल, जिला सचिव सतवंत सिंह वाजीतपुर और जंगलनामा के लेखक सतनाम भी शामिल थे. सदर थाना पर भी बीकेयू दाकौंदा के दो नेताओं को बुरी तरह से पीटा गया और कुछ घंटे बाद सबों को पर्सनल बांड पर छोड़ दिया गया. हालांकि बाद में 90 किसानों और बीकेयू दाकौंदा के नेताओं पर दफा 307 व अन्य संगीन आरोप लगाकर झूठे मुकदमे में फंसाया गया है.
हाल में भारतीय राजसत्ता ने आदिवासियों को जंगल व जमीन से बेदखल करने के साथ-साथ उनका सफाया करने का अभियान तेज कर दिया है. 28 जून, 2012 की रात में जब सिरकेगुडम, कोथागुडम और राजुपेंटा के किसान आदिवासी जब 'बीज पंडूम' मनाने की तैयारी कर रहे थे तो करीब 600 पुलिस और अद्र्धसैनिक बलों के जवानों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया. जब वे इधर-उधर भागने लगे तब उन पर अंधधुंध फायरिंग की गयी जिसमें बच्चे-औरत समेत कुल 18 आदिवासी मारे गये.
उसी रात सुकुमा जिले के जागरगुंडा गांव में भी दो आदिवासियों की हत्या कर दी गई. छत्तीसगढ़ सरकार और केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने इस घटना को माओवादियों के साथ एक मुठभेड़ बताया जबकि चश्मदीद और घायल ग्रामीणों, मीडिया के लोगोंं और छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी नेताओं ने साफ तौर पर कहा है कि उक्त आदिवासियों को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया.
इसी प्रकार हरियाणा, झारखंड, उड़ीसा, आंध्रा व अन्य राज्यों में किसानों, दलितों व आदिवासियों को उजाड़ा जा रहा है और विरोध की हर आवाज को कुचलने के लिए राजकीय आतंक बरपाया जा रहा है.
आज के विरोध धरना के माध्यम से दिल्ली के प्रगतिशील व जनवादी संगठन नोनाडांगा के संघर्षरत जनता, पटियाला के किसानों, और बीजापुर के आदिवासियों के प्रति गहरी एकजुटता प्रदर्शित करते हैं. सभी भागीदार संगठन संकल्प लेते हैं कि दिल्ली और आस-पास के इलाके में विकास, सौदंर्यीकरण या शहरीकरण के नाम पर झोपड़पट्टियों को तोड़ने और किसानों की जमीन छीनने की कार्रवाई का जमकर विरोध करेंगे साथ ही साथ; जल-जंगल-जमीन की लड़ाई को आगे बढ़ाने में अपना सक्रिय योगदान करेंगे.
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