THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Friday, July 6, 2012

संस्कृति- पंरपरा का मेला 'नंदा देवी राजजात'

संस्कृति- पंरपरा का मेला 'नंदा देवी राजजात'


http://www.janjwar.com/society/consumer/2831-sanskriti-parmpara-ka-mela-nanda-devi-rajjat


हिमालय की घाटियो से चोटियो तक की यह यात्रा अपने आप में कई रहस्य और रोंमाच समेटे प्रति बारह सालो में आयोजित की जाती हैं. बारह सौ सालो से भी अधिक समय से राजजात का आयोजन होता आ रहा है, जिसमें हजारो लोग शिरकत करते हैं...

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गौरव नौडियाल      

उत्तराखंड सदियों से मेलों, संस्कृति और अपनी पंरपराओं के लिए विश्वभर में पहचाना जाता है. एक ओर जहां बारह साल में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है तो दूसरी ओर दुर्गम पहाड़ो से होती हुई नंदा देवी राजजात इसको वैश्विक पर्यटन के मानचित्र पर जगह देती है और इसके समृद्ध संस्कृति की परिचायक भी है. 

बारह सौ सालों से भी पुराना इतिहास समेटे नंदा देवी राजजात उत्तराखंड में एक महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा है. श्रृद्धालुओं के लिए देवी पार्वती को मायके तक पंहुचाने की चिंता तो दूसरी ओर यात्रा के साथ चल रहे हजारों पर्यटकों के लिए रोंमाचक ट्रैकिंग का जरिया और आयोजन. हिंदू धर्मावलंबियों में मान्यता है कि हर बारह साल में नंदा अपने मायके पंहुचती हैं और कुछ दिन वहां रूकने के बाद ग्रामीणों के द्वारा नंदा को पूरी तैयारियों के साथ घुंघटी पर्वत तक छोडा जाता है. घुंघटी पर्वत हिंदू देवता शिव का वास स्थान एवं नंदा का सुसराल माना जाता है. नंदा के प्रतीक स्वरूप चार सिंगो वाले भेड की अगुवाई में ग्रामीण बेदनी बुग्याल होते हुए रूपकुंड से नंदा पर्वत तक पंहुचते हैं. नंदा पर्वत में चार सीगों वाले भेड़ को छोड़ दिया जाता है. नौटी एवं कासुंवा गांव के ग्रामीणों की कुलदेवी नंदा की जात के आयोजन की जिम्मेदारी भी इन्ही ग्रामीणों की होती थी, लेकिन समय के साथ आए बदलावों ने उत्तराखंड सरकार की भी मेले के सफल आयोजन को लेकर भूमिका पहले से कहीं अधिक बढ़ा दी है. नंदा देवी राजजात के दौरान नौटी के पुरोहित और कांसुवा के राजपरिवार के सदस्य जात के आयोजन का बीड़ा उठाते हैं. 

नंदा देवी राजजात का इतिहास

नंदा देवी राजजात दुनिया की सबसू अनूठी, विस्मयकारी और साहसिक यात्रा है. इस यात्रा में उच्च हिमालय की दुर्गम व हिममण्डित पर्वत श्रृंखलाओं, मखमली बुग्यालों का स्वप्न लोक, आलौकिक पर्वतीय उपत्यकाओं और अतुलनीय रूपकुण्ड के दर्"ान तो होते ही हैं, इस क्षेत्र की संस्कृति और समाज को जानने समझने का दुर्लभ अवसर भी मिलता है. 

हिमालय जैसे दुर्लभ पर्वत से मनु'य का ऐसा आत्मीय और जीवन्त रि"ता भी हो सकता है, यह केवल नंदादेवी राजजात में भाग लेकर ही देखा जा सकता है. नंदादेवी की इस राजजात का नेतृत्व एक चार सींग वाला मेंढा करता है, जो खुद राजजात यात्रियों को राजजात के पूर्व निर्धारित मार्ग से 17500 फुट की ऊंचाई लांघता हुआ होमकुंड तक ले जाता है.

नंदा के सम्मान में समूचे हिमालयी क्षेत्र में मन्दिर स्थापित किए गए हैं, जिनमें समय-समय पर मेलों का आयोजन होता रहता है. हिमालय की बेटी होने के कारण इस पर्वतीय भू-भाग को भगवती का मायका भी माना जाता है, वहीं दूसरी ओर शिव से ब्याह होने के चलते हिमालय को ही नंदा का सुसराल भी कहा जाता है. नंदा को मायके से ससुराल के लिए विदाई देने के प्रतीकस्वरूप गढ़वाल में तो नंदा घुंघटी के चरण होमकुण्ड तक एक वृहद यात्रा का आयोजन होता नौटी से होमकुण्ड तक की लगभग 280 किमी0 लम्बी पैदल यात्रा नन्दा राजजात के नाम से जानी जाती है.

राजजात की परम्परा कितनी पुरानी है कहा नहीं जा सकता. राजवंश  द्वारा इस यात्रा का आयोजन किए जाने के कारण इसे राजजात कहा जाता है. विद्वानों का मानना है कि शंकराचार्य के काल से यह यात्रा प्रारम्भ हुई. इतिहासकार शूरवीर सिंह पंवार के अनुसार यह पंरम्परा लगभग तेरहसौ वर्ष पुरानी है. नन्दादेवी राजजात समिति नौटी इस पंरम्परा को लगभग नवीं शती से मानती है. ऐतिहासिक विवरणों से ज्ञात होता हैं कि एक यात्रा चैंदहवीं सदी में भी आयोजित की गई थी, लेकिन न जाने किन कारणों से उस यात्रा की पूरी टोली अकाल काल कवलित हुई. 

कहा जाता है कि इस अभागी यात्रा का आयोजन जसधवल नाम के किसी राजा ने किया था. एक प्रचलित मान्यता यह भी है कि गढ़वाल के पंवार वं"ा के सातवें राजा के कार्यकाल में सर्वप्रथम इस यात्रा का आयोजन किया गया था.

सरकार और नंदा देवी राजजात

हिमालय के शिखर चिरकाल से मन मोहते रहे हैं. हमारी उत्तरी सीमाओं पर एक छोर से दूसरे छोर त कवे प्रहरी की भांति खडे हैं. ढाई हजार किलोमीटर से भी अधिक लंबे और लगभग दो सौ किलोमीटर चैड़े क्षेत्र में फैले-पसरे हिमालय के शिखर जितने विराट लगते हैं, उतने ही वह भव्य और आकर्षक  भी हैं. हिमालय की गोद में ही नंदा देवी राजजात का आयोजन पिछले बारह सौ सालों से भी अधिक समय से किया जा रहा है. वर्ष  2000 में संपन्न हुई राजजात के बाद एक बार फिर से वर्ष 2013 में होने जा रही नंदा देवी राजजात यात्रा की तैयारियों में सरकार अभी से जुट गई है. सरकार नंदा देवी यात्रा के दौरान यहां पंहुचने वाले हजारों श्रद्धालुओं की सुरक्षा और यात्रा के सफल नि'पादन के लिए प्रतिबद्ध है.

gaurav-nauriyal गौरव नौडियाल उत्तराखंड में पत्रकार हैं.

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