THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Friday, July 6, 2012

Fwd: “ईमाँ मुझे खैंचे है तो रोके है मुझे कुफ्र”



---------- Forwarded message ----------
From: reyaz-ul-haque <beingred@gmail.com>
Date: 2012/7/6
Subject: "ईमाँ मुझे खैंचे है तो रोके है मुझे कुफ्र"
To: abhinav.upadhyaya@gmail.com


महुआ माजी के बहुप्रतीक्षित उपन्यास 'मरंगगोड़ा नीलकंठ हुआ' ने कई कारणों से अत्यधिक उत्सुकता जगा दी थी । एक तो स्थानीय अखबारों में इस उपन्यास के प्रकाशन के एक-दो महीने पूर्व से ही महुआ जी के आधे-आधे पेज के साक्षात्कारों ने उत्प्रेरक का काम किया था । उन साक्षात्कारों की विशेषता यह होती थी कि सारंडा के सघन वन, 'हो' जनजाति, माओवाद एवं अथक शोध की चर्चा तो खूब होती थी किन्तु उपन्यास के मूल विषय जादूगोड़ा के यूरेनियम खनन, विकिरण और उससे दुष्प्रभावित होने वाली पीढि़यों की थीम पर रहस्य का पर्दा रखा जाता था । दूसरी ओर विश्व पुस्तक मेले में लोकार्पण के पहले ही राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड द्वारा इस उपन्यास की पांडुलिपि को मैला आंचल-फणीश्वरनाथ रेणु कृति सम्मान प्रदान किये जाने ने उत्सुकता को चरम पर पहुँचा दिया। एक बड़े स्टार की बड़े बजट की भव्य फिल्म के सफलतम प्रदर्शन जैसा माहौल बनाने में दोनों सफल रहे ।

"ईमाँ मुझे खैंचे है तो रोके है मुझे कुफ्र"



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