THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Thursday, May 2, 2013

संघ के समाजवादी घोड़े नीतीश

संघ के समाजवादी घोड़े नीतीश

अमलेन्दु उपाध्याय

 

धर्मनिरपेक्षता का प्रमाणपत्र बाँटने के एक और सिंगल विंडो डीलर मैदान में आ गये हैं। जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रान्ति के वेस्टेज से निकले बिहार के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार पिछले 17 सालों से भारतीय जनता पार्टी के साथ गलबहियाँ कर रहे हैं और फारबिसगंज में गोली चलवाने के बाद भी न केवल वह सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष हैं बल्कि लाल कृष्ण अडवाणी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक को धर्मनिरपेक्ष होने का प्रमाणपत्र जारी कर रहे हैं और नरेन्द्र मोदी का प्रमाणपत्र उन्होंने सिर्फ इस लिये रोक लिया है कि उन्होंने अभी टोपी नहीं पहनी है वरना प्रमाणपत्र तो मोदी का भी तैयार है इधर मोदी ने टोपी पहनी उधर नीतीश ने प्रमाणपत्र जारी किया।

आजादी के बाद से ही राजनीतिज्ञों और खास तौर पर समाजवादियों ने धर्मनिरपेक्षता का जमकर मखौल उड़ाया है। डॉ. राममनोहर लोहिया से लेकर जयप्रकाश नारायण तक और जॉर्ज फर्नांडीज़ से लेकर शरद, नीतीश तक इन फासिस्ट, साम्प्रदायिक ताकतों को खाद पानी मुहैया कराते रहे हैं। और अब जहाँ नीतीश अडवाणी और अटल को धर्मनिरपेक्ष और उदार होने का प्रमाणपत्र बाँट रहे हैं तो मुलायम सिंह यादव कह रहे हैं कि अडवाणी जी झूठ नहीं बोलते। दरअसल सारी दुनिया में ही समाजवादियों का रोल बहुत खराब रहा है और वे फासिस्ट ताकतों के साथ हमेशा गलबहियाँ करते रहे हैं।

नीतीश कुमार के नेतृत्व में जनता दल (यूनाइटेड) ने जो नया दाँव मारा है उसके निहितार्थ बहुत गहरे हैं। सही अर्थों में कहा जाये तो जद(यू) ने संघ के एजेण्डे को ही बहुत सलीके से आगे बढ़ाया है। उसने आजीवन संघ के निष्ठावान रहे स्वयंसेवक रहे उन अटल बिहारी वाजपेयी को धर्मनिरपेक्षता और उदार होने का प्रमाणपत्र जारी कर दिया है जिन वाजपेयी ने सत्तर के दशक में कहा था कि अगर हिन्दुस्तान में मुसलमान न होते तो हम उन्हें पैदा करते। यानी घृणा फैलाने कि लिये एक काल्पनिक शत्रु का निर्माण करते।

जद(यू) ने उस संघ और भाजपा को कभी साम्प्रदायिक नहीं कहा जिसने बाबरी मस्जिद को शहीद किया। यानी जद(यू) की नज़र में भाजपा धर्मनिरपेक्ष दल है बस मोदी से एक गलती हो गयी कि वह 2002 के दंगे रोक नहीं पाये! ज़रा इसका सही अर्थ निकालिये। मतलब साफ है कि नीतीश जी कह रहे हैं कि गुजरात दंगों के लिये भाजपा और मोदी कतई जिम्मेदार नहीं हैं और न यह दंगे राज्य प्रायोजित थे बस मोदी दंगे रोकने में ढंग से एक्शन नहीं ले सके। अब यदि इस वक्तव्य का पोस्टमार्टम किया जाये तो गुजरात दंगों के लिये नीतीश कुमार ही जिम्मेदार हैं मोदी नहीं। ऐसा अर्थ भाजपा और जद(यू) दोनों के तर्कों के आधार पर निकाला जा सकता है।

अमलेन्दु उपाध्याय: लेखक राजनीतिक समीक्षक हैं। http://hastakshep.com के संपादक हैं. संपर्क-amalendu.upadhyay@gmail.com

जद(यू) का कहना है कि मोदी दंगे रोक नहीं पाये और भाजपा व मोदी कहते रहे हैं कि दंगे गोधरा काण्ड की प्रतिक्रिया थे। अब तथ्य यह है कि गोधरा ट्रेन हादसे के वक्त नीतीश कुमार रेल मन्त्री थे और रेल मन्त्रालय के पास यह जानकारी थी कि अयोध्या से जो गुण्डे कारसेवक चढ़े हैं वह रास्ते भर लूटपाट करते हुये और महिलाओं के साथ छेड़खानी करते हुये जा रहे हैं। उसके बाद भी नीतीश जी ने साबरमती एक्सप्रेस के यात्रियों की सुरक्षा का इंतजाम नहीं किया।

जदयू नेताओं ने यह कह कर कि मोदी ने दंगे रोकने के लिये मुस्तैदी से काम नहीं किया, 2002 में मोदी के नेतृत्व में हुये मुसलमानों के राज्य-प्रायोजित नरसंहार और उसे छिपाने के लिये किये गये अनेक षड़यंत्रों से मोदी को बरी कर दिया है। जबकि भाजपा लगातार कहती रही है कि यह दंगे गोधरा काण्ड की प्रतिक्रिया थे। तो क्या यह समझा जाये कि गुजरात दंगों के लिये नीतीश दोषी थे ? और ऐसा समझने में कोई बुराई भी नहीं है क्योंकि नीतीश जी ने रेल मन्त्री रहते हुये इतनी बड़ी घटना की कोई सही जाँच भी नहीं करवाई। और हमें तो याद नहीं कि नीतीश जी उस समय गोधरा गये भी हों, उन्हें याद हो तो जरूर बतायें कि वे कब गये? ऐसा तो नहीं गोधरा घटना और गुजरात के दंगे नीतीश-मोदी की जुगलबन्दी का नतीजा थे?

गौर करने वाली बात यह है कि नीतीश जी ने इस घटना के बाद रेल मन्त्री के पद से त्यागपत्र नहीं दिया और जब सारा देश चिल्ला रहा था कि मोदी की सरकार को बर्खास्त करो तब नीतीश और शरद न केवल मोदी का बचाव कर रहे थे बल्कि जॉर्ज तो बहुत ही बेहूदा बयान महिलाओं को लेकर दे रहे थे। कमाल है 2002 में नीतीश जी के लिये मोदी सेक्युलर थे आज साम्प्रदायिक हो गये और जो आडवाणी तब साम्प्रदायिक थे आज सेक्युलर हो गये। यह वही नीतीश एण्ड मण्डली है जिसने भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल होते वक्त कहा था कि अगर भाजपा कट्टर अडवाणी को प्रधानमन्त्री बनायेगी तो वे गठबंधन सरकार में शामिल नहीं होंगे। और आज वे कह रहे हैं कि उन्हें मोदी की जगह लालकृष्ण अडवाणी को प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने पर आपत्ति नहीं होगी।

अब समझने वाले समझ सकते हैं कि नीतीश बहुत चालाकी के साथ संघ के एजेण्डे को ही आगे बढ़ा रहे हैं। क्योंकि अडवाणी जी को अपने रक्तरंजित इतिहास और मानवताविरोधी कुकृत्यों पर आज भी कोई अफसोस नहीं है बल्कि उन्हें अपनी इन हिंसक और राष्ट्रविरोधी हरकतों के लिये गर्व ही है और नीतीश जी को न तो अडवाणी जी से आज परेशानी है और न 2009 में थी।

वैसे प्रश्न तो यह भी किया जा सकता है कि नीतीश जी भाजपा से पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने की माँग क्यों कर रहे हैं ? क्या संविधान में कोई ऐसी व्यवस्था है जिसमें पीएम पद का चुनाव होता हो। यह शुद्ध रूप से गैर संवैधानिक माँग है और ताज्जुब की बात यह है कि संघ कबीला ही संविधान को दफन कर देने का जयघोष करता रहा है। तो क्या नीतीश संघ के एजेण्डे को ही समाजवादी घोड़े पर सवार कराकर आगे बढ़ा रहे हैं।

फिर सवाल तो यह भी है कि मान लीजिये भाजपा ने अडवाणी जी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया और ऐसी स्थिति बनी कि चुनाव बाद बिना नीतीश के भाजपा सरकार बना ले जाये और तब भाजपाई मोदी को पीएम बना दें तब नातीश क्या करेंगे?

या मान लीजिये भाजपा अडवाणी जी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दे तो भाजपा धर्मनिरपेक्ष हो जायेगी? अडवाणी जी के सिर से राम जानकीरथ यात्रा के दौरान पूरे देश में दंगे कराने और जनसंहार कराने व बाबरी मस्जिद शहीद करने के दाग धुल जायेंगे?

… और सारी बातें छोड़िये। ज़रा नीतीश जी यह तो बतायें कि जिन अटलजी को वह उदारवाद का महान आदर्श घोषित कर रहे हैं जब वही अटल जी मोदी को राजधर्म का पालन करने की सीख दे रहे थे तब नीतीश जी स्वयं क्या कर रहे थे?

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