THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Thursday, May 23, 2013

आपरेशन शारदा,तारा मीडिया समूह के अधिग्रहण का फैसला,दीदी कानून बनायेंगी!

आपरेशन शारदा,तारा मीडिया समूह के अधिग्रहण का फैसला,दीदी कानून बनायेंगी!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


तृणमूल कांग्रेस के नेती मुकुल राय की ओर से शारदा समूह के अखबारों पर कब्जा की खबर पुरानी है तो चैनल १० का संचालन तृणमूल की  ओर से पहले से जारी है। सुदीप्त कीगिरफ्तारी के बावजूद चैनल टेन और तारा समूह के अबाधित प्रसारण से सवाल खड़े किये जे रहे थे, जबकि इन चैनलों को बतौर सत्तादल के माउथपीस बतौर इस्तेमाल किया  जा रहा था। अब देश भर में नजीर कायम करके तारा मीडिया समूह के अधिग्रहण का फैसला किया है मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने। वे लगातार मदन मित्र, कुणाल घोष, शुभप्रसन्न, अर्पिता घोष,पूर्व रेलमंत्री मुकुल राय जैसे दागी मंत्रियों का बचाव करती रही हैं। अब तारा समूह के अधिग्रहण से साफ हो गया कि सत्तादल का शारदा आपरेशन एक सुनियोजित परियोजना है, जो लोग अभियुक्त हैं, उनका चेहरा सिर्फ बेनकाब हुआ है लेकिल असली डान कोई और है। वह डान कौन है?


दीदी चिटफंड कारोबार रोकने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर विधेयक पारित कर चुकी हैं नया कानून बनाने के लिए। सिंगुर में जमीन अधिग्रहण के लिए भी उन्होंने कानून बनाया हुआ है। अब दीदी मीडिया अधिग्रहण को जायज बनाने के लिए भी कानून बनायेंगी।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तारासमूह के पत्रकारों गैर पत्रकारों को राज्य सरकार की ओर से एकमुश्त सोलह हजार रुपये अनुकंपा अनुदान दिये जाने की घोषमा की है। कोलकाता के ही अनेक समाचारपत्रों में चैनलों में न वेतन मान लागू हैं और न सेवाशर्तों का कोई मामला है, राज्यसरकार को इसे लेकर कोई सरदर्द रहा हो, ऐसा मालूम नहीं पड़ा। दशकों से राज्य का प्रतिष्टित मीजडिया समूह अमृत बाजार पत्रिका बंद हैं, जिनसे जुड़े पत्रकार गैरपत्रकार भुखमरी के कगार पर हैं। बंगलोक, ओवरलैंड, सत्ययुग,​​बसुमती जैसे तमाम अखबार हैं, जो बरसों से बंद है और लोगों को कुछ नहीं मिला। उनपर कोई कृपा नहीं, सरकारी अनुकंपा केवल शारदा समूह के चालू मीडिया के लिए।इस पहेली को बूझने की जरुरत भी नहीं है।




शारदा समूह के मीडिया  साम्राज्य पर सत्तादल तृणमूल कांग्रेस के दखल का सिलसिला सुदीप्त सेन के ६ अप्रैल को सीबीआई को पत्र लिखने से पहले शुरुहो चुकाथा। बाद में पुलिस जिरह में भी शारदा कर्णधार सुदीप्त सेन ने बार बार कहा कि समूह की पूंजी मीडिया में लगाने के लिए तृणमूल नेता और मंत्री उन्हें मजबूर कर रहे थे। शारदा मीडिया समूह के सीईओ बतौर तृणमूल सांसद कुणाल घोष को सहीने में सोलह लाख रुपए का वेतन मिलता था, जो देश के किसी भी मीडिया समूह की तुलना में ज्यादा ही है। परिवर्तनपंथी बुद्धिजीवी चित्रकार बंगविभूषण शुभोप्रसन्न सुदीप्त के साथ साझेदारी में टीवी चैनल शुरु करने जा रहे थे, जिसके हेड थी परिवर्तनपंथी नाट्यकर्मी अर्पिता घोष। अब पता चाला है कि मुकुल राय और कुणाल घोष से मुलाकात के बाद सीबीआई को पत्र लिखकर १० अप्रैल को जब सुदीप्त फरार हो गये, तो इन्ही अर्पिता घोष ने तारा न्यूज की ओर से १६ अप्रैल को शारदा समूह के फर्जीवाड़े के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराया था।


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मीडिया के मुद्दे पपर अपने समर्थकों को फतवा जारी करती रही हैं।ऐसा भी हुआ कि उन्होंने मीडिया को हॉस्पिटल में बिना अनुमति न आने का फरमान जारी कर दिया और एक कार्यक्रम में लोगों से कहा कि वे न्यूज चैनल देखने की बजाय गीत-संगीत वाले कार्यक्रम देखें!एक कार्यक्रम में ममता ने कहा कि सीपीएम के दो-तीन चैनल हैं, जो आपको नहीं देखने चाहिए। उनको देखने की बजाय म्यूजिक सुनें। उक्त चैनल राज्य सरकार की छवि खराब करने के लिए झूठी खबरें प्रसारित कर रहे हैं। आप स्टार जलसा, तारा और चैनल १० देखें। उन्होंने मीडिया के खिलाफ यूं खुलेआम मोर्चा खोल दिया है और लोगों को सीपीएम के कथित चैनलों को न देखने की सलाह दे डाली है। उन्होंने कहा कि लोगों को समाचार चैनलों पर झूठी खबरें देखने की बजाय मनोरंजन चैनलों को देखना चाहिए। ममता ने मीडिया पर वार करते हुए कहा कि वह इस कुप्रचार से डरने वाली नहीं हैं और कोई भी आलोचना मुझे विकास का काम आगे बढाने से नहीं रोक सकती।


मुख्यमंत्री शारदा ग्रुप के कार्यक्रमों की नियमित 'अतिथि' थीं। वे अपने श्रोताओं से ग्रुप के चैनल देखने और उसके अखबार पढ़ने की अपील करती थीं और इसे अपने विरोधी मीडिया के मुकाबले एक सुरक्षा ढाल के रूप में देखने के लिए कहती थीं।

पार्टी के नेता इस बात से चिंतित हैं कि उनकी दीदी की धूमिल हो रही साफ छवि शायद धूल-धूसरित न हो जाए और उसका उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। शारदा ग्रुप राज्य में होने वाले पंचायत चुनावों से ऐन पहले ढहा है। इस घटना ने तृणमूल नेतृत्व की पेशानी पर बल ला दिया है, क्योंकि निवेशकों में से अधिकांश ग्रामीण गरीब लोग हैं।



शारदा चिट फ़ंड कंपनी के दिवालिया होने के बाद इससे जुड़े हजारों निवेशक, दलाल और कर्मचारीयों के भविष्य पर अंधेरा छा गया है। कंपनी के दिवालिया होने के समाचार के बाद शारदा समूह की दुसरी कंपनीयों पर ताले लग रहे है जिसकी वजह से इन कंपनीयों में काम करने वाले हजारों कर्मचारी रास्ते पर आ गये है। जहां सत्ताधारी तृणमुल कांग्रेस और सीपीएम एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर रहे है, चिट फ़ंड में अपने पुरे जीवन की पुंजी लगाकर ठगे जमाकर्ता न्याय की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आये है।


पश्चिम बंगाल में शारदा मीडिया समूह के सेवन सिस्टर्स पोस्ट, बंगाल पोस्ट, सकालबेला, आझाद हिंद, तारा न्यूज, तारा मुझिक और तारा बांग्ला इन समाचारपत्रों में काम करने वाले करिब 1200 पत्रकारों पर बेरोजगारी की गाज गिरी है।


अप्रैल के मध्य में जैसे ही घोटाले से पर्दे उठने शुरू हुए वैसे ही राजनेताओं और घोटालेबाजों के बीच कथित गठजोड़ की चेतावनी सामने आने लगी। जिन लोगों का नाम घोटाले में उछला है उनमें सबसे अग्रणी तृणमूल के राज्य सभा सांसद कुणाल घोष हैं। शारदा मीडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के तौर पर उन्हें शाही वेतन 15 लाख रुपए प्रतिमाह दिया जाता था। इसके अलावा उन्हें भत्ते के तौर पर 1.5 लाख रुपए अलग से मिलते थे।


भारतीय पत्रकारिता जगत में यह वेतनमान और सुविधा ग्रुप में उनकी भूमिका को लेकर सवाल पैदा करता है। ग्रुप के संचालक सुदीप्त सेन ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को 6 अप्रैल को लिखे गए पत्र में घोष और 20 अन्य लोगों पर बर्बाद करने का आरोप लगाया है। सेन ने घोष पर असामाजिक तत्वों के साथ उनके कार्यालय में घुसकर चैनल-10 की बिक्री का जबरिया इकरारनामा कराने का आरोप लगाया है।


पत्र में बंगाली दैनिक 'संवाद प्रोतिदिन' के मालिक संपादक सृंजय बोस (अब तृणमूल के राज्य सभा सांसद) पर अखबार को चैनल चलाने के लिए हर महीने 60 लाख रुपए भुगतान करने का दबाव डालने का आरोप लगाया है। सौदा यह हुआ था कि संपादक सेन के कारोबार को सरकार से बचाए रखेंगे।


बोस ने दावा किया है कि उनका सेन के साथ केवल व्यापारिक करार हुआ था और चूंकि वे भुगतान करने में असमर्थ रहे इसलिए अनुबंध टूट गया। इस मामले में जिस तीसरे तृणमूल सांसद का नाम उछला है वह बंगाली फिल्मों की अपने समय की जानीमानी अभिनेत्री शताब्दी राय हैं। राय ग्रुप की ब्रैंड एंबेस्डर थीं। राय ने कहा है कि उन्होंने कभी किसी उत्पाद की पैरवी नहीं की केवल कार्यक्रमों में एक अभिनेत्री के तौर पर रुपए लेकर हाजिर होती थीं। नेताओं की फेहरिश्त यहीं खत्त्म नहीं होती। असम के एक मंत्री के अलावा पश्चिम बंगाल सरकार के भी परिवहन मंत्री मदन मित्रा का भी नाम उछल रहा है। इसके अलावा कुछ कांग्रेसी नेताओं के नाम भी शामिल हैं।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सीपीएम और केंद्र को घोटाले के लिये जिम्मेदार ठहराया है। ममता ने कहा कि चिट फ़ंड के सारे कामकाज केंद्र सरकार नियंत्रित करती है। इस लिये जिम्मेदारी केंद्र की बनती है। तृणमुल नेता और राज्यसभा संसद कुणाल घोष के सुदिप्तो सेन के साथ संबंधों के आरोपों पर बोलते हुए ममता ने कहा कि इस घोटाले में अगर तृणमुल नेताओं का नाम आता है तब उनपर भी कार्रवाही की जायेगी।सबसे खराब बात यह है कि शारदा प्रबंधन ने निवेशकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए तृणमूल से अपनी अंतरंगता प्रदर्शित की और अपने कार्यक्रमो में तृणमूल के नेताओं की बड़ी-बड़ी तस्वीरों का प्रदर्शन किया। अच्छा ब्याज देने का लालच देकर हजारों-लाखों निवेशकों से ग्रुप ने पैसे बटोर लिए। जिस तरह का ब्याज देने का वादा किया वैसा कोई भी बैंक या वित्तीय संस्थान नहीं दे रहा था।कंपनी ने वर्ष 2000 के मध्य में दुकानें खोली थीं। आरोप है कि ग्रुप ने उस समय सत्ता में काबिज मार्क्सवादियों का 'आशीर्वाद' हासिल कर लिया था। 2009 तक इसने पड़ोसी राज्यों में पांव पसार लिया। इस ग्रुप को खड़ा करने वाले सुदीप्त सेन ने बड़ी संख्या में बेरोजगार युवकों को एजेंट के रूप में बहाल किया और जैसे ही तृणमूल का जनाधार बढ़ा उन्होंने पार्टी के कार्यकर्ताओं की मदद लेनी शुरू कर दी। ग्रुप ने समाचार चैनल-10 और समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया जिसमें ममता बनर्जी का बखान होता था।


आने वाले पंचायत चुनाव के मद्देनजर ममता सरकार को फ़टकार ने का कोई भी मौका ना गवाने वाले सीपीएम ने आरोप किया है तृणमुल के नेताओं के सारधा समूह के साथ संबंध है इस लिये सरकार आरोपियों को बचा रही है।


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