THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Friday, March 20, 2015

किसानों के लिए अनंत वधस्थल यह मुक्त बाजार सोने की चिड़िया अंग्रेज लेकर गये नहीं,हमने उसे चालीस लाख चोरों के हवाले कर दी है देशभर की प्राकृतिक संपदा,जो असली सोने की चिड़िया है,दरअसल उसके कारपोरेट लूट कास्थाई बंदोबस्त हो गया।क्षत्रपों को उनका हिस्सा समझा कर। पलाश विश्वास


किसानों के लिए अनंत वधस्थल यह मुक्त बाजार
सोने की चिड़िया अंग्रेज लेकर गये नहीं,हमने उसे चालीस लाख चोरों के हवाले कर दी है

देशभर की प्राकृतिक संपदा,जो असली सोने की चिड़िया है,दरअसल उसके कारपोरेट लूट कास्थाई बंदोबस्त हो गया।क्षत्रपों को उनका हिस्सा समझा कर।


पलाश विश्वास
भारत सोने की चिड़िया अब भी है।

जो इसे लूटकर अपना घर भरते रहे हैं,उन्होंने हमें यकीन दिलाया है कि अंग्रेज सोने की चिड़िया लेकर भाग गये हैं।

इस पर आगे चर्चा करेंगे सिलसिलेवार।

सिर्फ इतना समझ लीजिये कि दीवालिये देश में अरबपतियों की यह बहार नहीं होती और न स्विस बैंक में बशुमार खजाना भारतीयों के होते।

हम शुरु से लिख रहे हैं कि भूमि अधिग्रहण से ज्यादा खतरनाक है खान एवं खनिज विधेयक। यह देशभर की प्राकृतिक संपदा,जो असली सोने की चिड़िया है,दरअसल उसके कारपोरेट लूट का

स्थाई बंदोबस्त हो गया।

फर्क इतना सा है कि राज्यों को इस लूटखसोट में भागीदार  बनाकर क्षत्रपों का समर्थन जीत लिया है मोदी के केसरिया कारपोरेट रण नीतिकारों ने।

काफी विवादों और प्रक्रियात्मक तकरार के बाद खान एवं खनिजों के मामले में राज्यों को और अधिक अधिकार देने वाले चर्चित विधेयक को आज राज्यसभा की मंजूरी मिल गयी। कांग्रेस एवं वाम दलों को छोड़कर अधिकतर पार्टियों ने इसका समर्थन किया, जबकि जदयू ने यह कह कर वाकआउट किया कि वह इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहता है।

बीमा बिल पास कराने में जैसे सहयोग किया दीदी ने,नीतीश कुमार ने वहीं तरीका अपनाया है।

उच्च सदन ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक 2015 को 69 के मुकाबले 117 मतों से पारित किया।

सदन ने इस विधेयक को फिर से प्रवर समिति के पास भेजने की कुछ दलों की मांग तथा इस विधेयक के विभिन्न उपबंधों पर वाम एवं कांग्रेस के सदस्यों द्वारा लाये गये संशोधनों को खारिज कर दिया।

गौरतलब है कि इस विधेयक को लोकसभा पहले ही पारित कर चुकी है। उच्च सदन में इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजा गया था। प्रवर समिति ने इसके बारे में 18 मार्च को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस विधेयक के जरिये 1957 के मूल अधिनियम में संशोधन किया गया है। सरकार इससे पहले इस संबंध में एक अध्यादेश जारी कर चुकी है। मौजूदा विधेयक संसद की मंजूरी के बाद उस अध्यादेश का स्थान लेगा।


इन हीरों की खोज,उनका खनन किसके लिए है,समझ भी लीजिये।
बहरहाल राज्यसभा में शुक्रवार को माइनिंग बिल पास हो गया। खनन सचिव ने कहा कि अब लोकसभा में एमएमडीआर बिल पर चर्चा की जाएगी। माइनिंग से जुड़े कुछ नियमों पर राज्यों की राय ली जाएगी। अगले 2 हफ्तों में राज्यों के साथ बातचीत शुरू की जाएगी। खनन मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि नए एमएमडीआर बिल में डीएमएफ के नियमों में बदलाव किए गए हैं। एमएमडीआर बिल से खदानों का ई-ऑक्शन हो सकेगा। तोमर ने बताया कि सरकार ने जो संशोधित बिल पेश किया वो महत्वपूर्ण है। इसमें दो तरह के संशोधन बिल शामिल हैं।

और दूसरी हरित क्रांति के साथ भोपाल गैस त्रासदी का भी जश्न मनाइये कि 2015-16 तक 33,000 करोड़ को छू जाएगा कीटनाशक बाजार


केन्द्र सरकार के 55 सार्वजनिक उपक्रमों की समीक्षा की गई जिसमें से 46 इकाईयों के पुनर्गठन किया जाएगा जबकि शेष 9 को बंद करने की मंजूरी दी गई है।  


सरकार ने भारी नुकसान में चल रहे एचएमटी वाचेज समेत सात खस्ताहाल उपक्रमों को बंद करने की मंजूरी दे दी है।  
भारी उद्योग और लोक उपक्रम जी एम सिद्धेश्वरा ने आज राज्यसभा में बताया कि केन्द्र सरकार के 55 सार्वजनिक उपक्रमों की समीक्षा की गई जिसमें से 46 इकाईयों के पुनर्गठन किया जाएगा जबकि शेष 9 को बंद करने की मंजूरी दी गई है।  
उन्होंने बताया कि भारत आप्थालमिक ग्लास और भारत यंत्र निगम को पहले ही बंद किया जा चुका है। जिन सात उपक्रमों को बंद करने की मंजूरी दी गई है उनका घाटा 3139 करोड़ रुपए पहुंच चुका है। बंद किए जाने वाले उपक्रमों में एचएमटी बियारिंग्स, तुंगभद्रा स्टील प्रोडेक्ट, एचएमटी वाचेज, एचएमटी चिनार वाचेज, हिन्दुस्तान केबल्स, हिन्दुस्तान फोटो फिल्मस मैन्युफैक्चरिंग कंपनी और स्पाइस ट्रेडिंग कारर्पोरेशन लिमिटेड शामिल है।  
एचएमटी वाचेज को 2012-13 में 242 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। सबसे अधिक नुकसान हिन्दुस्तान फोटो फिल्मस मैन्युफैक्चरिंग कंपनी 2012-13 में 1561 करोड रुपए का नुकसान हुआ। हिन्दुस्तान केबल्स को 885 करोड़ रुपए और स्पाइस ट्रेडिंग कारर्पोरेशन लिमिटेड का नुकसान 2013-14 में 353 करोड़ रुपए का रहा है।


भारतीय मुद्रा प्रबंधन और मौद्रिक नीतियों से भारतीय रिजर्व बैंक की बेदखली

इस सोने की चिड़िया को बेचने की तरकीब के तहत ताजातरीन कवायद है भारतीय मुद्रा प्रबंधन और मौद्रिक नीतियों से भारतीय रिजर्व बैंक की बेदखली और देशी कारपोरेट कंपनियों को अब सिर्फ करों में छूट,टैक्स होलीडे और टैक्स फारगान की सौगात नहीं मिल रही है,उनके कर्ज को रफा दफा करने के लिए मौद्रिक नीति निर्धारण से लेकर पब्लिक डेब्ट मैनेजमेंट एजंसी रिजर्व बैंक के नियंत्रण  से निकाल कर निजी हाथों में सोंपी जा रही है।उसे सत्ताइसों विभागों में निजी कंपनियों का राज पहले से ही बहाल है।

मौद्रिक कामकाज के  नियंत्रण के लिए कारपोरेट मांग मुताबिक ब्याज दर घटाने वाले रिजर्व बैंक के गवर्नर की डाउ कैमिकसल्स मनसैंटो हुकूमत  के साथ ठन गयी है।राजन ने ज्यादा जिद की तो उनकी विदाई देर सवेर हो जानी है।

रघुराम राजन कमिटी की सिफारिशों  के मुताबिक देश कारपोरेटकंपनियों के कर्ज निपटारे के लिए रिजर्व बैंक के दायरे से बाहर जो मानीटरी पलिसी कमिटी और रेगुलेशन आफ गवर्नमेंट सिक्युरिटीज से संबंधित जो कमिटियां कारपोरेट कंपनियों की अगुवाई में बननी हैं,रिजर्व बैंक के गवर्नर उनमें आरबीआई की नुमाइंदगी के लिए अड़े हुए हैं।इसलिए मामला फिलहाल टला हुआ है।

रिजर्व बैंक की औकात खत्म करने का फंडा यह है कि सरकार और रिजर्व बैंक (आरबीआइ) आने वाले दिनों में देश में विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने पर और ज्यादा ध्यान दे सकते हैं। देश का मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार ही अमेरिका में ब्याज दरों के बढ़ने के खतरे को कम करेगा। भारत का मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार 340 अरब डॉलर का है और पिछले छह महीने से इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। अमेरिका में ब्याज दरों के बढ़ने से उत्पन्न होने वाली स्थिति पर भावी रणनीति को लेकर वित्त मंत्रलय और आरबीआइ के बीच लगातार संपर्क बना हुआ है। जाहिर है कि इसल पर नियंत्रण भी रिजर्व बैंक के बदले कारपोरेट विशेषज्ञ कमिटी का ही होगा।

बहराहाल इसकी पृष्ठभूमि तैयार करते हुए  रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय बैंक ब्याज दर पर अमेरिकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत कदम से भारतीय बाजार में आने वाले उतार चढ़ावों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है। ऐसी संभावना है कि फेडरल रिजर्व ब्याज दर में वृद्धि का संकेत दे सकता है, क्योंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार का संकेत दिख रहा है। इसके परिणामस्वरूप भारत समेत उभरते बाजारों से पूंजी निकल सकती है।

दूसरी ओर,वित्त विधेयक के प्रावधान को लेकर रिजर्व बैंक के अधिकारों में कमी की आशंकाओं के बीच वित्त मंत्री अरुण जेतली ने कहा है कि एेसे किसी प्रावधान पर चर्चा संसद में ही होगी। एेसी आशंका है कि इस प्रावधान से ऋण बाजार के विनियमन की आर.बी.आई. की शक्ति कम हो सकती है।

जेतली ने संवाददाताओं से कहा, ''मैं इसके (इस प्रावधान के) बारे में (संसद के) बाहर चर्चा नहीं करना चाहता। यदि वित्त विधेयक को लेकर कोई भ्रम है तो हम इस पर संसद में चर्चा करेंगे।''

हम जानते हैं कि भारतीय रेलवे के निजीकरण से सिरे से इंकार करने वाली सरकार रेलवे प्रबंधन और रेलवे निर्माण और विकास,बुलेट स्पीड इत्यादि परियोजनाओं,रेलवे की तमाम सेवाओं को पीपीपी माडल के तहत कारपोरेट बना रही है।

मेट्रो रेलवे पर रिलायंस इंफ्रा का वर्चस्व है तो बुलेट रेलेव ट्रैक और पूरे इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पर रिलायंस के दांव सबसे घने हैं।

इसी बीच रेलवे के इन्नोवेशन का कार्यभार रतन टाटा को सौंप दिया गया है।यह निजीकरण भी नहीं है।

बजट में किए गए वादों को पूरा करते हुए रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने गुरुवार को 'कायाकल्प परिषद' का गठन कर दिया। देश के जाने माने उद्योगपति रतन टाटा को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। रेल मंत्रालय के मुताबिक, 'कायाकल्प परिषद' रेलवे में निवेश आकर्षित करने के लिए अहम बदलावों की रूपरेखा तैयार करेगी और सभी स्टेक होल्डर्स से और अन्य निवेश की इच्छुक पार्टियों से संपर्क साधेंगी।

एअर इंडिया को बेचने की तैयारी है और निजी नयी कंपनियों को विमानन की छूट हैं।आकाश उन्हींका एकाधिकार बनने जा रहा है।

भारत के तमाम बंदरगाह पहले ट्रस्ट हुआ करते थे जैसे कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट या बांबे पोर्ट ट्रस्ट।ट्स्ट की संपत्ति और ट्रस्ट की मिल्कियत कानूनन बेच नहीं सकते तो पहले ट्रस्ट को कारपोरेशन बना जिया गया और आहिस्ते आहिस्ते सारे बंदरगाहों का हस्तातंरण निजी कंपनियों को हो रहा है,जिसमें मोदी के खासमखास अडानी समूह को फायदा ही फायदा  है।

अपने प्रिय प्रधानमंत्री की देश विदेश की केसरिया कारपोरेट यात्राओं की कीमत खूब वसूली जा रही है।

हम लोग भूल गये हैं कि भारत में परंपरागत कपड़े उद्योग का अवसान धीरुभाई अंबानी की अगुवाई में इंदिरा गांधी के संरक्षण प्रोत्साहन से रिलायंस के उत्थान से हुआ।


अब रिलायंस समूह जो कलतक कांग्रेस साथ था और तेल गैस,इंफ्रा,एनर्जी,टेलीकाम क्षेत्रों में जिसका बेलगाम विकास हो गया कांग्रेस के सौजन्य से।

हम भूल रहे हैं कि सार्वजनिक उपक्रम ओएनजीसी के खोजे और विकसित तमाम तेलक्षेत्र तोहफे में दिये गये रिलायंस समूह को।

अब मोदी की ताजपोशी में पहल करने वाले रिलायंस समूह के लिए और सौगातों की बहार तैयार है केसरिया समय में।

कहा जा रहा है कि ईंधन के संकट से निबटने के लिए भारत में पांच विशालतम आयल रिजर्वयर बनाये जायेंगे और इनके निर्माण का ठेका पशिचम एशिया की किसी कंपनी को दिया जाने वाला है।

ये रिजार्वेयर इसके हवाले होंगे,फिलहाल इसे राज रहने दें।


सुबह ही बांग्लादेश विजय के कार्निवाल के मध्य बहुत बुरी खबर कोलकाता के विधान चंद्र राय शिशु अस्पताल से मिली ,जहां 24 घंटे में फिर पंद्रह नवजात शिशुओं ने दम तोड़ा है।

कोलकाता और मालदह के अस्पतालों में थोक शिशु मृत्यु की फिर भी खबरें बनती रहती हैं।बाकी बंगाल और बाकी देश में प्रसूतियों और नवजात शिशुओं की मृत्यु के आंकड़ें नहीं मिलते।

हमने लिखा था बहुत पहले कि बंगाल के जो हाल हैं,उससे कपड़ा और जूट मिलों,चायबागानों,तमाम बंद कल कारखानों के बाद अब बहुत जल्द खेतों खलिहानों और इस आसमुद्र हिमालयपर्यंत सीमेंट के जंगल से भी मृत्यु जुलस का अनंत सिलिसिला निकलेगा।

इस पर चर्चा से पहले सबसे पहले इस पर गौर करें कि कांग्रेस को न किसानों की परवाह है और न भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन से क्योंकि भूमि अधिग्रहण से ही कांग्रेस इतनी फली फूली है।

कांग्रेस सिर्फ भाजपाई बिल का विरोध कर रही है न कि किसानों के हितों के पक्ष में खड़ी हैं कांग्रेस। कांग्रेस अपने हिसाब से संशोधन चाहती है।इसका मतलब भी बूझ लें।

भारत में पुरुष वर्चस्व का करिश्मा है कि स्त्री की मृत्यु पर शोक नहीं मनाया जाता।
रस्म अदायगी के फौरन बाद स्त्री का सुलभ विकल्प नयी युवा स्त्री उपलब्ध है तो शोक काहे का।

भारत में परिवार नियोजन हो जाने के बावजूद शिशुओं की मृत्यु हमें बेचैन नहीं करती।

अस्पतालों से स्त्रियों और शिशुओं के निकलते रोज रोज के मृत्यु जुलूस के प्रति हम उतने ही तटस्थ हैं,जितने आजादी के बाद से रोजाना अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों से,सलवा जुड़ूम से ,आफसा से,सिखों के नरसंहार से,भोपाल गैस त्रासदी से,बाबरी विध्वंस और देश के कोने कोने में भड़काये जाने वाले दंगों से,गुजरात नरसंहार से,आदिवासियों की बेदखली से,दलितों पर निरंतर जारी अत्याचारों से,गैरनस्ली लोगों और अस्पृश्य भूगोल और अस्पृश्य समुदायों से निरंतर जारी रंगभेदी भेदभाव और अर्थव्यवस्था से उनके सामूहिक निष्कासन से लेकर किसानों की थोक आत्महत्या से हम बेखबर है।बेपरवाह हैं।

दरअसल भारत की गौरवशाली सनातन सभ्यता के मिथ्या मिथकों के जरिये हम अत्याधुनिक ज्ञान,तकनीक,वैज्ञानिक आविस्कारों,सूचना प्राद्योगिकी बूम बूम के सीमेंट जंगलों में निहायत असामाजिक बर्बर पाशविक मर्दवादी आदिम युग का अंधकार जी रहे हैं चकाचौंध रोशनियों के महोत्सव में।
भुखमरी से साफ इंकार

बंगाल में चावल उत्पादकों की भुखमरी से इंकार किया जाता रहा है।

बंगाल में बंद कलकारखानों में दम तोड़ती जिंदगी के सच से इंकार किया जाता रहा है।

बंगाल में चाय बागानों से निकलते मृत्यु जुलूसों सको दशकों से नजरअंदाज किया जाता रहा है।

सुंदरवन इलाके में विधवाओं की बस्तियों से,सीमा क्षेत्रों में औरतोें, विदेशी मुद्रा,सोना और नशा के फलते फूलते  कारोबार से इंकार किया जाता रहा है।

इन तमाम परिस्थितियों में सारी राजनीति इन्हीं क्षेत्रों  में माफिया  राज के शिकंजे में है और आम जनता की कोई सुनवाई नहीं है।

हिमघर पर्याप्त है नहीं,जितने हैं ,वहां भी राजनीति और माफिया का वर्चस्व है।

नतीजतन बंपर आलू उत्पादन की कीमत बतौर जनपदों में मौतों की वर्षा हो रही है और सत्ता की राजनीति को विकास महोत्सव में इसकी कोई परवाह ही नहीं है।

कामरेड ज्योति बसु के अवसान पर बंगाल के खेतों,गांवों और जनपदों को कोलकाता में समाहित करने के लिए जो विषवृक्ष रोपे जाते रहे हैं,उनके फल अब तैयार हैं।


कुपोषण और भुखमरी और किसानों की थोक आत्महत्याओं के सही आंकड़े कभी नहीं मिलते हैं।

तथ्यों को झुठलाकर बाल स्वास्थ्य के जिंगल से महमहाता हुआ यह देश हैं।

भिन्न ग्रह का कोई प्राणी अगर भारतीय टीवी चैनलों के खुशबूदार विज्ञापनों और भारतीय फिल्मोंं को गलती से देखता रहे,तो उसे यही लगेगा कि इस धरती पर न कोई काली स्त्री है और न कोई अस्वस्थ स्त्री है।हर स्त्री की  कदकाठी  एकदम  नाप एक मुताबिक गढ़ी हुई हैं।हर स्त्री गोरी है।हर स्त्री सुखी संपन्न है और या सास या बहू बनकर दुनिया पर राज कर रही है,जिसके जीवन में जीवन साथी बदलने और नये पुराने संगी के साथ तालमेल बिठाने के अलावा और परिवार में अपना वर्चस्व बहाल रखने के अलावा रोजमर्रे की जिंदगी की कोई समस्या नहीं है।

जैसे हमारी सारी स्त्रियां फैशन कांशस गोरी लंबी छरहरी कामकाजी हैं और हमारे खेतों,खलिहानों और खदानों में,रोजगार कीभट्ठियों में,गंदी बस्तियों में,बेरहम सड़कों पर कोई स्त्री है ही नहीं।

जैसे यह सारा देश नई दिल्ली ,नये,कोलकाता, नवी मुंबई ,बंगलूर जैसे चमचामाता शहर है,जहां न धुआं है,न कोई मेहनतकश जिंदगी है,न उनके चेहरे पर पसीना कहीं है और उसकी खूबसूरती संगीतबद्ध काव्यधारा में गोबर माटी की कोई महक है।

जैसे खूबसूरत विदेशी लोकेशन ही भारत का नैसर्गिक सौंदर्य है और फिल्मी नायिकाओं के गाल की तरह दमकते  राजमार्गों के आस पास न कोई खेत हैं,न कोई बस्ती है और न इंसानियत कहीं है।

हमारे बगुला भगत अर्थशास्त्रियों, मिलियनर बिलियनर जनप्रतिनिधियों, एफडीआई खोर श्रमजीवी मीडियाकर्मी की कमरतोड़ मीडिया और डाउ कैमिकल्स मनसैंटो के नजरिये से असली भारत वही है,जो मोबाइल,पीसी और टीवी की खूबसरत मल्टी डाइमेंशनल हाई रेज्यूलेसन छवि है।

वहां बेनागरिक ग्राम्य भारत की कहीं कोई तस्वीर है ही नहीं और विज्ञापनों में जैसे चमकदार सितारे जीवन के हर क्षेत्र के महमहाते बेदाग चेहरे हैं,वैसा ही खूबसूरत सामाजिक यथार्थ है।

संजोगवश पुरस्कृतों,सम्मानितों और प्रतिष्ठितों के साहित्य कला,विधाओं और माध्यमों का समामाजिक यथार्थ भी यही है।

इसी लिए भारत की स्वतंत्रता संग्राम की विरासत,शहादतों के सिलसिले, किसानों, आदिवासियों और बहुजनों के हजारों साल के प्रतिरोध का हमारे लिए दो कौड़ी मोल नहीं है।

इसीलिए अंबेडकर को हम ईश्वर बना देते हैं गौतम बुद्ध की तरह और दरअसल आचरण में हम रोज रोज उनकी हत्याएं कर रहे हैं.जैसे कि गांधी की हत्या हो रही है रोज रोज।

यह व्यक्ति और विचारों का कत्लेआम नहीं है दोस्तों,न गौतम बुद्ध कोई व्यक्ति है और न अंबेडकर कोई व्यक्ति है और न गांधी कोई व्यक्ति है,वे हमारे जनपदों,हमारे लोक,हमारे इतिहास,हमारे सामाजिक यथार्थ के प्रतीक हैं।कत्लेआम भी हमारे जनपदों, हमारे लोक,हमारे इतिहास,हमारे सामाजिक यथार्थ का।

मुक्तबाजारी उपभोक्ता दीवानगी में हम पाकिस्तानी विकेटों की तरह पूरे जोश खरोश के साथ अपने इन प्रतीकों को कत्म करके बचे खुचे जनपदों को महाश्मशान बना रहे हैं।


कलिंग,कुरुक्षेत्र और वैशाली के विनाश का जो महाभारत है,उसे हम सामाजिक यथार्थ के नजरिये से नहीं,मिथ्या आस्था,प्रत्यारोपित धर्मोन्माद, अटूट अस्मिता और पहचाने के जरिए हासिल अपनी हैसियत  और मिथक तिलिस्म में कैद इतिहास दृष्टि से देख रहे हैं।

इन्हीं मिथकों को इतिहास बनाने की कवायद कोई हिंदू राष्ट्र बनाने  का वास्तुशास्त्र नहीं है,यह सिरे से मुक्तबाजार का धर्मोन्मादी राजसूय अश्वमेध है।

जिसे खूंखार भेड़ियों की जमात ने धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की शक्ल दे दिया है और हमारी गरदनें ऐसे चाक हो रही हैं कयामती गजब दक्षता के साथ कि फिरभी हम सारे कंबंध बजरंगी बने हुए हैं।

सबसे बड़ा झूठ जो बतौर मिथक हम जनमजात जीते रहे हैं,वह यह है कि अतीत में भारत सोने की चिड़िया रहा है और आर्यों के उस सनातन भारत पर हमला करने वाले विदेशियों ने उसी सोने की चिड़िया को लूटा है।

सबसे बड़ा झूठ जो बतौर मिथक हम जनमजात जीते रहे हैं,वह यह है कि आखिरकार वह सोने की चिड़िया अंग्रेज अपने साथ ले गये हैं।

दोस्तों,हकीकत यह है कि सोने की चिड़िया इंग्लैंड में कही नहीं है और दूसरे विश्वयुद्ध जीतने के बाद से जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद का अवसान होना शुरु हुआ और निर्णायक तौर पर जिसे अश्वेत विश्व ने  हमेशा हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों पर कैद कर दिया दक्षिण अफ्रीका में,जहां से गांधी का सफर शुरु हुआ था,उसके पास सोने की चिड़िया रही होती तो बघिमघम पैलेस का जलवा कुछ और होता।

कृषि और उत्पादन प्रणाली को जलांजलि देकर समूची मेहनतकश विरासत को ब्रिटिश  संसद में ऊन की गद्दी में सीमाबद्ध करे देने वाले हमारे पुराने आकाओं के नक्शेकदम पर चल रहे हम भारतीयों को कभी अहसास ही नहीं हुआ कि हमारे पुरखे बेशकीमती आजादी के साथ सोने की वह चिड़िया भी हमें छोड़ गये और सत्ता वर्ग अब तक ,15 अगस्त  से लेकर अबतक उस चिड़िया के हीरे जवाहिरात मोती जड़े सोने के परों को नोंचते खरोंचते हुए अपना अपना घर भरते रहे और हमें बताते रहे कि सोने की चिड़िया तो कोई और ले गया।

निर्मम सत्य यह है दोस्तों,अब वह सोने की चिड़िया चालीस लाख चोरों के हवाले है।
निर्मम सत्य यह है दोस्तों,उस सोने की चिड़िया की नीलामी ही बेशर्म विकास गाथा है।

अंग्रेज न हमारी उत्पादन प्रणाली ले गये और न हमारे उत्पादन संबंधों को तबाह किया अंगेजों ने और न जनपदों को जिबह किया।वे तो पवित्र गोमाता के संपूर्ण आहार बने पौष्टिक दूध से भारत माता की संतानों को वंचित करके अंग्रेजों की सेहत बनाता रहा।

अंग्रेजों ने हमारे लिए यह मुक्त बाजार नहीं चुना है और इसे हमने चुना है।

अंग्रजों ने हमारे संसद में प्रधानमंत्री बनकर नहीं कहा कि इस देश में इतने संसाधन हैं,जिन्हें विकास के रास्ते लगाया जाये,विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और अबाध पूंजी प्रवाह को जारी रहने दिये जाये,तमाम कायदे कानून संसदीयसहमति से बदल दिये जाये तो इतना इतना पैसा आयेगी कि कई राज्यों का खजाना छोटा पड़ जायेगा और राज्य सरकारें इस पीपीपी विकास से हासिल नोटों को गिन भी सकेंगी।

भारत सोने की चिड़िया न रहा होता तो प्रधानमंत्री ऐसा बयान जारी करने का मौका न मिला होता और न भूमि अधिग्रहण,कोयला,खनन,बीमा नागरिकता से संबंधित सारे कानून बदल कर बहुराष्ट्रीय पूंजी के हितों के मुताबिक सारे सुधार लागू करने की ऐसी हड़बड़ी होती।

भारत सोने की चिड़िया न रहा होता तो भारतीय राजनीति,भारतीय साहित्य कला माध्यमों,भारतीय सिनेमा,भारतीय खेलों,भारतीय मीडिया,भारतीयखुदरा बाजार, उपभोक्ता सौंदर्य बाजार, भारत में तमाम सेवाक्षेत्रों और भारत की सुरक्षा आंतरिक सुरक्षा पर डालरों की ऐसी बरसात मूसलाधार नहीं  होती।

भारत सोने की चिड़िया न रहा होता तो डाउ कैमिकल्स और मनसैंटो की हुकूमत,तमाम रंगबरंगे बगुला भगतों और तमाम कारपोरेट वकीलों की लाख कोशिशों के बावजूद भारत को सबसे बड़ा इमर्जिंग मार्केट का खिताब मिलता,न निवेशकों की आस्था सत्ता की आस्था होती और न इस देश में सांढ़ और घोड़े इतने बेलगाम होते।

भारत सोने की चिड़िया न रहा होता तो  पहली बार चुनाव जीतते न जीतते हमारे तमाम जनप्रतिनिधि ग्राम प्रधानों और कारपोरेशन के काउसिंलरो से लेकर सरकारी  समितियों के मनोनीत मेंबर,तमाम मशरूमी लाल बत्ती वालों,तमाम विधायकों,तमाम सांसदों और मंत्रियों,तमाम विचारधाराओं और तमाम अस्मिताओं के झंडेवरदारों,सपनों के सौदागरों का यह मिलियनर बिलियनर तबका होता और न उनमें यह महाभारत होता,जिसकी कि हम पैदल सेनाएं बजरंगी हैं।

भारत सोने की चिड़िया न रहा होता तो अमेरिका और इजराइल हमें अपना साझेदार हर्गिज नहीं मानता।अपनी गरज से तो नहीं।

भारत सोने की चिड़िया न रहा होता तो तमाम देशों के राष्ट्रप्रधान भारत के मुक्त बाजार में अपने हितों की तलाश में इतने बेसब्र होते।

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