THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Friday, August 30, 2013

दीदी लाख कोशिश कर रही हैं, लेकिन बंगाल में उद्योग और कारोबार का माहौल बिल्कुल नहीं सुधर रहा है।आंकड़ों के अलावा औद्योगीकरण कहीं हो नहीं रहा है।

दीदी लाख कोशिश कर रही हैं, लेकिन बंगाल में उद्योग और कारोबार का माहौल बिल्कुल नहीं सुधर रहा है।आंकड़ों के अलावा औद्योगीकरण कहीं हो नहीं रहा है।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य सरकार की उद्योग नीति को सार्वजनिक करते हुए फिर साफ कर दिया है कि निवेश प्रस्ताव की पड़ताल के बाद ही भूमि हस्तांतरण को हरी झंडी दी जायेगी और उद्योग न लगाने पर जमीन वापस ले ली जायेगी।साथ ही उन्होंने यह भी गोषणा कर दी कि नये उद्योग में जितना रोजगार पैदा होगा और जिस पैमाने पर उत्पादन होगा,उसी के मुताबिक छूट दे दी जायेगी।


सत्ता में आने के दो साल बाद दीदी ने उद्योग नीति की घोषणा की है।टाइमिंग थोड़े प्रतिकूल समय की है। मध्येशिया में युद्द की आशंका है। रुपया गिर रहा है और सोने के बाजार आसमान पर।शेयर बाजार डांवाडोल है।पूंजी बेहद दबाव में है। फिर जमीन के बारे में तमाम तरह की शर्तों के बीच जमीन समस्या के लंबित रहने के हालात में निवेश का जोखिम कितने निवेशक उठा सकेंगे,यह कहना मुश्किल है।


डालर संकट


मुख्यमंत्री ने भी डालरसंकट का उल्लेख करते हुए जता दिया है कि वे परिस्थितियों से वाकिफ है।लेकिन राज्य में उद्योग और कारोबार का माहौल सुधारने के लिए वे कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहतीं।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वीकार किया कि 'देश कठिन आर्थिक परिस्थितियों का सामना कर रहा है' ठीक उसी दिन गुरुवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर निहित स्वार्थो के लिए देश को 'बेचने' का आरोप लगाया।


इसी बीच बंद और रुग्ण कल कारखानों की जमीन पर नये उद्योग लगाने की प्रकिया बी चालू हो गयी है।इससे भी एक नयी समस्या उठ खड़ी हुई है कि जिन कंपनियों से जमीन वापस लेने की तैयारी है वे बेदखल होने के लिए कतई तैयार नहीं हैं और उनकी अभीतक कोई सुनवाई नहीं हो रही है।


हजार शर्तें


उद्योग जगत में बल्कि यही संदेश जा रहा है कि बंगाल में जमीन मिलने की हजारों शर्तें हैं,लेकिन परियोजना विभिन्न रकारणों से लटक जाये तो कोई सुनवाई होगी नहीं और जमीन वापस ले ली जायेगी।


मुश्किल यह है कि नयी उद्योग नीति की घोषणा के वक्त मुख्यमंत्री के वक्तव्य में इसी आशंका की पुष्टि नये सिरे से हो गयी है। संयोग से वाम दलों की सरकार ने 222 निवेश प्रस्तावों पर दस्तखत किए थे, जिनकी कुल निवेश में एक लाख करोड़ रुपये की हिस्सेदारी थी।


जबरन अधिग्रहण नहीं


यही नहीं, भूमि अधिग्रहण विधेयक पास होने पर ममता दीदी ने फिर साफ कर दिया है कि बंगाल में किसी से जमीन जबरन नहीं ली जायेगी।


गौरतलब है कि निवेशकों की शुरु से ही मांग रही है कि राज्य सरकार जमीन नीति का खुलासा करें। लेकिन इसके उलट खुलासा के बदले धुआंसा ही हो रहा है।उद्योगों के लिए ममता की भूमि नीति उनके लिए सबसे बड़ी बाधा है। राज्य सरकार ने स्पष्ट रूप से जमीन अधिग्रहण के मुद्दे पर औद्योगिक परियोजनाओं को खासा नुकसान पहुंचाया है।


उद्योग की चिंताएं भूमि नीति पर ही खत्म नहीं होतीं। बनर्जी विशेष आर्थिक क्षेत्रों की भी धुर विरोधी हैं और उनकी नीति के कारण इन्फोसिस और विप्रो ने दूसरे कैंपस के लिए अभी तक इंतजार कर रही हैं। ये मुश्किलें पर्याप्त नहीं हैं, हल्दिया, खडग़पुर और दुर्गापुर जैसे स्थानों की कंपनियों के लिए टीएमसी के संगठनों से निपटना बड़ी सिरदर्दी बन गया है।


तकनीक,मशीन का विरोध


दीदी उच्च तकनीक के भी खिलाफ हैं और मशीनों के बदले मजदूरों से काम लेने के पक्ष में हैं।उन्होंने साफ कर दिया है कि राज्य सरकार श्रम निर्भर उद्योग लगाने को प्रथमिकता देगी। जिससे अधिकतम रोजगार का सृजन हो। यह शर्त भी कारपोरेट निवेश के व्याकरण के विरुद्ध है, जो श्र को कम से कम करके मशीन और तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल करके मुनापा अधिकतम के सिद्धांत पर आधारिकतहै।


जमीनी हकीकत


जमीनी हकीकत यह है कि दीदी लाख कोशिश कर रही हैं, लेकिन बंगाल में उद्योग और कारोबार का माहौल बिल्कुल नहीं सुधर रहा है।आंकड़ों के अलावा औद्योगीकरण कहीं हो नहीं रहा है।


औद्योगिक मानचित्र


बंगाल के औद्योगिक मानचित्र पर नजर डालें तो तस्वीर साफ हो जायेगी। हुगली के आर पार जो परंरागत औद्योगिक बसावटें हैं,वहां तमाम जूट मिलों समेत दूसरे कल कारखानों में उत्पादन ठप है।इस बेहद उद्योग अनुकूल मरणासण्ण इलाके में अभी नई रोशनी का इंतजार है।कोयलांचल में नये उद्योग लग ही नहे रहे हैं।अंडाल विमान नगरी का इंतजार है अभी कि आसनसोल में हवाई अड्डा का ऐलान लहो गया।उद्योगों पर माफिया हावी है। नये उद्योग लग ही नहीं रहे। अवैध खनन दी जीविका है। सिलीगुड़ी को केंद्र बनाकर जो नया औद्योगिक केंद्र बन रहा था,वहां बी गोरखालैंड आंदोलन से फिजां खराब है। पूर्वोत्तर से जो लोग अमन चैन की तलाश में सिलिगुडी आ बसे वे अब किस्मत को कोसते नजर आ रहे हैं।तो नये कोलकाता में राजारहाट, न्यू टाउन.साल्टलेक को लेकर जो औद्योगीकरण का नक्सा बनता है,वहां स्मसान सा सन्नाटा है।


राजधानी हावड़ा की भिखारिन दशा


हावड़ा में राजधानी स्तानांतरित हो रहा है। पांच सौ साल पुराना हावड़ा महानगर की जान उद्योगों में बसती है। बदहाल उद्योगों के कारण ही कभी जलवा दिखानेवाला हावड़ा की भिखारिन दशा है।ज्यादातर आबादी झुग्गियों में रहती है।ज्यादातर लोग बेरोजगार। नागरिक सुविधाएं हैं ही नहीं। न जल निकासी है और न पेयजल। न सड़कें हैं और न बदहाल सड़कों की मरम्मत।हावड़ो के वाशिंदों के लिए रोजमर्रे की जिंदगी यातायात की नरकयंत्रणा है।


हावड़ा जिले से होकर दिल्ली मुंबई चेन्नई के वाणिज्यपथ खुलते हैं। शहरीकरण और औद्योगीकरण की सबसे ज्यादा गुंजाइश हावड़ा में है। राइटर्स तो हावड़ में आ रहा है,लेकिन उद्योग नहीं आ रहे हैं।


पूरे हावड़ा जिले की दशा कोलकाता वेस्ट इंटरनेशनशल सिटी की प्रेत नगरी जैसी है।आधे अधूरे निर्माण,आधेअधूरे निवेश और लंबित परियोजनाओं का कालापानी द्वीप बन गया है हावड़ा।


आंकड़ों में औद्योगीकरण


2012 में आर्थिक समीक्षा में कहा गया था कि राज्य में 312.24 करोड़ रुपये के निवेश से महज 12 औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की गई, जबकि 2011 में 15,000 करोड़ रुपये के निवेश से 322 इकाइयों की स्थापना की गई थी।


लेकिन शहर और जिलों में लगे होर्डिंगों और स्टालों में इन आंकड़ों का कोई उल्लेख नहीं है। इसके विपरीत उद्योग विभाग द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक बीते दो साल में राज्य को 1.12 लाख करोड़ रुपये के प्रस्ताव मिले हैं। आंकड़ों से जवाब के बजाय कई सवाल खड़े होते हैं। उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी के मुताबिक 2011 में सरकार को 2011 में 95,000 करोड़ रुपये के प्रस्ताव मिले थे, जो 2012 की तुलना में खराब थे। इस बीच चटर्जी ने दावा किया कि सरकार ने निवेशकों को आकर्षित किया है, जो पुरानी सरकार में राज्य को छोड़कर जा रहे थे।


रोजगार के दावे

हालांकि दीदी ने  राज्य सरकार की नयी उद्योग नीति,वस्त्र नीति और अति लघु उद्योग नीति अनुमोदित करने के बाद ऐलान किया है कि अगले पांच सालों में बड़े उद्योगों में सैसठ लाख और अति लघु उद्योगों में एक करोड़ रोजगार का सृजन होगा। अब सवाल है कि पहले उद्योग लगे तभी न रोजजगार की गुंजाइश होगी!






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