THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Tuesday, April 3, 2012

बड़ी लड़ाई के लिए कमर कस रहे हैं बाबा रामदेव

बड़ी लड़ाई के लिए कमर कस रहे हैं बाबा रामदेव

Tuesday, 03 April 2012 10:09

अंबरीश कुमार लखनऊ, 3 अप्रैल। बाबा रामदेव की बदलाव की यह लड़ाई अब तक हुए उनके आंदोलनों से अलग होगी।

इसमें उनके भक्त और इलाज कराने वाले लोगों से अलग बदलाव की ताकतें शामिल होंगी। जयप्रकाश आंदोलन और गांधीवादी ताकतों के साथ करीब आधा दर्जन राज्यों में मूल स्तर पर काम करने वाली जमात भी इस आंदोलन की धुरी बनने जा रही है। खास बात यह है कि इस लड़ाई का एजंडा भी व्यापक है और दर्शन समाजवाद का है। अण्णा आंदोलन ने जो मौका चंद लोगों के अहंकार से खो दिया था उस मौके का फायदा बाबा रामदेव को मिलना तय है। गांधीवादी संगठनों के साथ समाजवादी धारा की ताकतों के साथ बाबा रामदेव का संपर्क और बैठकों का सिलसिला पिछले चार महीने से चल रहा है जिसमें उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ताओं की संख्या ज्यादा है ।
वाराणसी के एक वरिष्ठ गांधीवादी नेता ने नाम न देने की शर्त पर कहा -अब रामदेव का आंदोलन ज्यादा व्यापक होगा क्योंकि इसमें आंदोलनकारी ताकतें शामिल हो रही हैं जो लाठी गोली के साथ जेल जाने में भी नहीं हिचकेंगी। अण्णा आंदोलन ने देश में एक नई उम्मीद जगाई थी जिसे टीम अण्णा के चार लोगों ने अपने बड़बोलेपन से पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। रही सही कसर संघ के ठप्पे ने पूरी कर दी। पर इस आंदोलन में हर  तबके को साथ लेकर चलने की तैयारी है ।
दो साल पहले संघर्ष वाहिनी मंच ने नैनीताल शिविर से राजनीतिक दखल का जो फैसला लिया था उसके चलते बाद में आधा दर्जन राज्यों में संगठन के ढांचे की कवायद तेज हुई उस सम्मेलन में सैट राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे जिसमें बोध गया आंदोलन से लेकर ओडिशा के नियमगिरि आंदोलन के साथ जल जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ने वाले कार्यकर्ता शामिल थे। जिसमें महात्मा भाई, राकेश रफीक, भक्त चरण दास, अवधेश, राजीव पुतुल और बागी जैसे करीब पचास कार्यकर्ता शामिल हुए थे। अब वह पहल आगे बढ़ती नजर आ रही है। दरअसल रामदेव के साथ इन ताकतों का जुड़ना बड़ी संभावनाओं को जन्म दे रहा है।

ये ताकतें जल जंगल और जमीन के सवाल पर देश के विभिन्न हिस्सों में पहले से आंदोलनरत हैं। इनका संकट यह है कि इन आंदोलनों के पास कोई राष्ट्रीय चेहरा नहीं है तो बाबा रामदेव की दिक्कत यह है कि अब तक उनका आंदोलन भक्त और मरीजों के साझा प्रयासों से चल रहा था जिसके पीछे कोई बड़ी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि नहीं थी और न आंदोलन करने वाली कोई अनुभवी जमात। अब दोनों मिलकर ज्यादा बड़ी और प्रभावी ताकत बना सकते हैं। दरअसल एनजीओ वाली जमात से कोई बड़े बदलाव के आंदोलन की उम्मीद भी नहीं कर सकता। टीम अण्णा का संचालन इन्हीं ताकतों के हाथ में रहा इसलिए वे ज्यादा दूर तक जाने, संगठन का कोई ढांचा बनाने की बजाए मीडिया में बने रहने पर ज्यादा सक्रिय रहे। जबकि रामदेव पिछले छह महीने से जुटे हैं और उसकी कोई  चर्चा तक नहीं होती। यह रणनीति ही इस आंदोलन की गंभीरता का अहसास करा रही है। जानकारी के मुताबिक अगस्त तक रामदेव इस आंदोलन के साथ पूरी ताकत के साथ सामने आ जाएंगे। फिलहाल कई राज्यों के आधा दर्जन नौजवान नेता इस अभियान की कमान संभल रहे हैं।

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