THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Friday, July 6, 2012

खतरे में सिन्धु सभ्यता

http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-06-02/important-articles/300-2012-04-23-13-06-14/2834-sindhu-civilization-in-pakistan-harappa-and-mohanzodaro

खतरे में सिन्धु सभ्यता



भारत के साथ पाकिस्तान का साझा इतिहास बहुत गौरवशाली होने के बावजूद वह उसकी अवहेलना ही करता रहा है। नतीजतन मोहनजोदड़ो व हडप्पा जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरों की देखरेख पाकिस्तान नहीं कर पा रहा.................

राजीव

भारत विभाजन के बाद प्राचीनतम सिन्धु घाटी सभ्यता की मुख्य धरोहर पाकिस्तान में चली गयी। अब तक सिन्धु सभ्यता के लगभग 350 से भी अधिक स्थल प्रकाश में आ चुके हैं, जिनमें से सात मोहनजोदड़ो, हडप्पा, चान्हूदाड़ो, कालीबंगा, लोथल, सुरकोतदा और वनवाली को ही नगर माना जाता है।

harappa-and-mohanjodaro-civilization

हड़प्पा और मोहनजोदड़ो आज पाकिस्तान में हैं। हड़प्पा पाकिस्तान के मान्टुगुमरी जिले में स्थित है, जहां उत्खनन में एक टीले के परकोटे के नीचे तल्ले के 20 फीट गहरे निक्षेप से टीकरे उपलब्ध हुए तथा यहां पर निर्मित दुर्ग समानान्तर चतुर्भुज आकार के हैं। इसकी भीतरी इमारत भूमितल से 25 फीट ऊपर कच्ची मिट्टी के ईंटों पर निर्मित है, जिसके चारों ओर रक्षात्मक किलेबन्दी की गयी है। इसमें कालान्तर में बुर्ज व पुश्ते भी जोड़े गए थे और उत्तर-पश्चिम में प्रवेशद्वार बने हुए हैं।

हडप्पा में पाए गए दो खण्ड वाला अन्नागार सबसे महत्वपूर्ण भवन है, जो 23 फीट चौड़े मार्ग के दोनों ओर बना है। इसके प्रत्येक खंड़ में छह कक्ष हैं, जिनमें वायु परिवहन के लिए अनेक नलिकांए बनी हैं। दूसरा महत्वपूर्ण नगर मोहनजोदड़ो है। यह पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत में पड़ता है और हड़प्पा की ही तरह एक टीला है। यहां उत्खनन में एक दुर्ग और नगर मिला है। दुर्ग का चबूतरा 43 फीट चौड़े कच्ची ईंटों के बांध से बंधा हुआ है। चबूतरे के तल के साथ एक पक्की ईंटों की बड़ी नाली बनाया गयी थी।

निर्माण विधि तथा नगर नियोजन की विधि से यह पता चलता है कि यहां पर बाढ़ आने का खतरा रहता था तथा यहां के निवासी बाढ़ से बचने का उपाय करते थे। मोहनजोदड़ो में एक विशाल अन्नागार और अन्नागार से उत्तर-पश्चिम में स्थित तक लंबी एक विशाल इमारत पायी गयी है। प्रसिद्ध इतिहासकार इश्वरी प्रसाद ने मोहनजोदड़ो के नगर निर्माण की स्पष्ट उल्लेख करते हुए कहते हैं 'मुख्य मार्गों का जाल, शहर के भवनों के छह या सात खंड़ों में विभाजित करता है। मकानों के दरवाजे मुख्य मार्ग की अपेक्षा गलियों में खुलते थे। मकानों में प्रायः एक आंगन, कुंआ, स्नानागार और शौचगृह पाया गया है तथा पानी के निकास के लिए नालियों की सुनियोजित व्यवस्था थी। एक विशाल साफ-सुथरे फर्श वाला भवन भी मिला है।' मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्य साम्रगियों में ताम्र व कांसे के भाले, चाकू, छोटी तलवारें, बाणग्र, कुल्हाड़ी उस्तरे आदि हैं।

यूनेस्को ने मोहनजोदड़ो को विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया है। मगर मोहनजोदड़ो आज पाकिस्तान में है और हालिया स्थिति यह है कि यह सिन्ध सरकार के जिम्मे है। सिन्ध इलाके का भूजल खारा है और वहां पानी में नमक ज्यादा होने के कारण मोहनजोदड़ो के बचे अवशेष की नींव धीरे-धीरे कमजोर हो रही है, जो अततः देखरेख के अभाव में इसके वजूद को खत्म कर देगा।

पाकिस्तान की सबसे बड़ी समस्या उसकी इतिहास के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया है। पाकिस्तान अपने वजूद के इतिहास को ही मानता है। भारत के साथ पाकिस्तान का साझा इतिहास बहुत गौरवशाली होने के बावजूद वह उसकी अवहेलना ही करता रहा है। नतीजतन मोहनजोदड़ो व हडप्पा जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरों की देखरेख पाकिस्तान नहीं कर रहा है।

कुछ दिन पहले एक अखबार के संपादक ने अपने संपादकीय 'पुरखों की धरोहर' लिखा था जिसमें उन्होने लिखा था कि पाकिस्तान में कुछ लोग तो यह कहने लगे हैं कि इन्हें बचाने के लिए इन्हें फिर से मिट्टी से ढ़क देना चाहिए। पाकिस्तान सरकार और वहां के लोगों को यह समझना होगा कि उनके लिए अपने इतिहास को स्वीकार करना जरूरी है। सोचने की बात यह है कि जिसे खुदाई कर निकाला गया है उसे पुनः मिट्टी से ढ़क देना वेबकूफी नहीं तो और क्या कहलाएगा।

गौरतलब है कि सिन्धु लिपि की जानकारी सर्वप्रथम 1953 ई. में हो गयी थी और लिपि की खोज 1923 ई. में पूरी हो गयी। मगर अभी तक यह पढ़ी नहीं जा सकी है। लिपि के नहीं पढ़े जाने तक खुदाई से प्राप्त साम्रगियों को ही हम सिन्धु सभ्यता के श्रोतों की तरह प्रयोग में लाते हुए लिपि को पढ़ने में मदद लेते रहे हैं, इसलिए भी इन धरोहरों को बचाना जरूरी है। पाकिस्तान संग्रहालय में पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं गायब हो चुकी हैं और ऐतिहासिक दृष्टिटकोण से पाकिस्तान का संग्रहालय एक खाली अलमारी की भांति है।

मोहनजोदड़ो के अवशेष तृतीय सहस्राब्दी के उत्तरार्ध की एक सुविकसित नागरीय सभ्यता का परिचय देते हैं। यहां ताम्रपाषाणिक युग की सभ्यता के प्रचुर अवशेष प्राप्त हुए हैं। अभी तक उत्खनित सिन्धु घाटी के प्रागैतिहासिक स्मारकों का यद्यपि अध्ययन सतर्कतापूर्वक विभिन्न दृष्टिकोण से किया जा चुका है, परंतु अभी तक की शोधों का सर्वाधिक अद्भुत अंश सिन्धु सभ्यता के अभिलेखों को पढ़ना अभी शेष है।

प्राचीन भारत के इतिहास के दो महत्वपूर्ण स्रोतों में एक साहित्यिक व दूसरा पुरातात्विक है। पुरातात्विक स्रोत का प्रयोग इतिहास के रूपरेखा तथा ऐतिहासिक तथ्यों के निर्धारण के लिए दो प्रकार यथा प्रतिपादक रूप में व समर्थक रूप में से किया जाता है। पुरातत्व वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित होने के कारण बहुत ही महत्वपूर्ण स्रोत है। उत्खनन के बाद सिन्धु घाटी के जो सात महत्वपूर्ण नगर प्रकाश में आए हैं उनमें मोहनजोदड़ो व हडप्पा आज पाकिस्तान में स्थित है और बदहाली का दंश झेल रहा है।

'इतिहास गवाह है कि हम इतिहास से नहीं सीखते।' कभी विस्टन चर्चिल ने कहा था। उल्लेखनीय है कि 1915 ई. में पहली बार शुलतुन के जंगल में माया सभ्यता का एक महत्वपूर्ण शहर का पता चला था जो 16 वर्ग मील में फैला हुआ था जिसे खुदाई के द्वारा बाहर निकालने में अगले दो दशकों का समय भी कम है। लगभग 250 से 900 ईसा पूर्व माया नाम की एक प्राचीन सभ्यता का उदय ग्वाटेनमा, मैक्सिको, होडुरास और यूकाटन प्रायद्वीप में हुआ था।

माया सभ्यता का उल्लेख करने का तात्पर्य यह है कि माया सभ्यता पर अगर अब तक गंभीरता से कार्य किया गया होता तो आज हम लोगों को कई महत्वपूर्ण जानकारियां होतीं, जिसका लाभ उठाते हुए हम अपने वर्तमान और भवि"य को सुनहरा बना सकते थे। इसी तरह भारत की सिन्धु घाटी सभ्यता के लिपि के अब तक नहीं पढ़े जाने के कारण अभी सिन्धु सभ्यता के कई रहस्यों जैसे सिन्धु घाटी का उदय व पतन कैसे हुआ, से पर्दा उठना बाकी है।

पाकिस्तान जिस तरह के राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक मुश्किलातों से गुजर रहा है कि ऐसी स्थिति में पाकिस्तानी सरकार से यह उम्मीद करना बेमानी है कि वे ऐतिहासिक धरोहर मोहनजोदड़ो व हड़प्पा के बारे में सोचे। अतः भारत को भी चाहिए कि पाकिस्तान को हडप्पा व मोनजोदड़ो जैसे ऐतिहासिक धरोहरों को बचाए रखने के लिए प्रेरित करे। वैसे इतिहास के प्रति उदासीन रवैया पाकिस्तान में वर्तमान अस्थिरता की जड़ में है।

rajiv-giridihपेशे से वकील राजीव राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.


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