THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Wednesday, May 1, 2013

आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई के लिए 2007 से शुरु हुए रिहाई आंदोलन द्वारा मार्च-अप्रैल 2008 में इलाहाबाद, मडि़याहूं (जौनपुर), कुंडा (प्रतापगढ़) में हुई जनसुनवाईयों पर आधारित एक रिपोर्ट "जनअदालतों के कटघरे मंे यूपी एसटीएफ"

S.r. Darapuri shared Rihai Manch's photo.
आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई के लिए 2007 से शुरु हुए रिहाई आंदोलन द्वारा मार्च-अप्रैल 2008 में इलाहाबाद, मडि़याहूं (जौनपुर), कुंडा (प्रतापगढ़) में हुई जनसुनवाईयों पर आधारित एक रिपोर्ट "जनअदालतों के कटघरे मंे यूपी एसटीएफ"    तमाम सुबूतों और बयानोें के आधार पर अदालत इस नतीजे पर पहुँची है कि आतंकवादी के नाम पर पकड़े गए ये सभी नौजवान बेगुनाह हैं और इनको तत्काल रिहा किया जाय। और इन युवको की फर्जी गिरफ््तारी और उनके मानवाधिकारों के घोर उत्पीड़न के लिए दोषी एस.टी.एफ. के अधिकारियों को तत्काल बरखास्त कर उनका नारको टेस्ट किया जाय।'' यह फैसला किसी सरकारी अदालत का नहीं बल्कि इलाहाबाद, जौनपुर और प्रतापगढ़ जिलों में मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फाॅर ह्यूमन राइट्स ''पीयूएचआर'' द्वारा आयोजित जनअदालतों का है।    आतंकवाद के नाम पर युवकांे की फर्जी गिरफ्तारी के सवाल पर आयोजित इन जनअदालतों में जब जनता ने बेबाक ढ़ग से अपनी बातें रखीं तो कई राज़ के साथ-साथ एसटीएफ भी बेपर्द होने लगी। कश्मीर से आए मो0 साबिर वानी बताते हैं कि उनके बेटे अख्तर वानी को 22 दिस0 को पुलिस ने कचहरी बम धमाकों में लिप्त बताकर पकड़ने के बाद लखनउ जेल में बंद कर दिया।वे रोते हुए बताते है कि अख्तर को पुलिस 23 नवंबर के कचहरी धमाकों में शामिल बता रही है जबकि उस दिन मेरे दूसरे बेटे मुख्तार की शादी थी जिसकी वीडियो रिकार्डिंग में अख्तर की मौजूदगी उसकी बेगुनाही साबित करती है। वानी कहते हैं ''मैंने तो आशा छोड़ दी थी कि 'पंजाब' में मुझे कोई सहारा देगा।खुदा का शुक्र है जो शोएब साहब मुझ गरीब के बच्चे का केस मुफ्त में लड़ रहै हैं।'' साबिर बार-बार लखनउ को पंजाब समझ लेते हैं।   	  इसी तरह इलाहाबाद में आयोजित राष्ट स्तरीय जनअदालत में अपनी बात रखने कश्मीर से आए गुलाम कादिर वानी कहते हैं ''साहब मैने अपने बेटे सज्जार्दुरहमान को बेहतर जिंदगी के लिए कश्मीर के दहशतशुदा माहौल से दूर देवबंद पढ़ने भेजा था। मुझे क्या मालूम कि कश्मीरी होना इतना बड़ा गुनाह है?'' वे अपने बेटे की बेगुनाही के लिए, जिसे एसटीएफ ने 23 नव0 के कचहरी धमाकों में शामिल बताकर लखनउ जेल में रखा है, देवबंद से लाया हुआ हाजिरी रजिस्टर दिखाते हैं जिसमें उस दिन उसकी कक्षा में उपस्थिति दर्ज है।   	  जन अदालत के जूरी सदस्य वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमडि़या ने कहा ''सज्जाद और अख्तर अपने नाम के आगे कश्मीरी टाइटिल नहीं लगाते पर एसटीएफ और मीडिया ने उनके नाम के आगे कश्मीरी टाइटिल लगाकर प्रचारित किया। यह वह मानसिकता है जिसे हमारे समाज में सहज स्वीकार्यता हासिल हो चुकी है कश्मीरी आतंकवादी होता है और पाकिस्तान के साथ उसके संबंध होते हैं। वे कहते हैं कि किसी भी आतंकवादी घटना की कहानी को विश्वसनीय और सनसनीखेज बनाने के लिए कश्मीर से उसका संबंध स्थापित कर देना पुलिस का पेशा बन गया है।    जन अदालत में बिजनौर से 1993 के मुंबई बम धमाकों के आरोप में पकड़े गए नासिर और याकूब के परिजन भी आए थे। अनिल चमडि़या ने नासिर के पिता हामिद अली के राष्टीय मानवाधिकार आयोग को भेजे उस पत्र पर जोर देते हुए कहा कि आखिर इसमें उन्हें यह क्यों लिखना पड़ा कि उनका परिवार भारत और पाकिस्तान के बटवारे के पहले से भारत में रहता है। 28 वर्षीय नासिर के भाई नाजिर बताते हैं कि उनके भाई नासिर को एसटीएफ ने 19 जून 2007 को टेहरी गढ़वाल ''उत्ताखंड'' से उठाया था जिसकी एफआईआर भी स्थानिय थाने में दर्ज है। लेकिन उसे दो दिन बाद आरडीएक्स और पाकिस्तानी फोन नंबरों के साथ लखनउ से पकड़ने का दावा किया। इस प्रकरण में सबसे दिलचस्प मोड़ तब आया जब पत्रकारों ने एसटीएफ द्वारा नासिर को लखनउ में मीडिया के सामने पेश करते वक्त पूछ दिया कि क्या यह वही नासिर नहीं है जिसे एसटीएफ ने दो दिन पहले टेहरी गढ़वाल से उठाया था। इस सवाल से सकपकायी एसटीएफ ने गोपनियता के नाम पर नकाब पहनाकर लाए नासिर को वहाॅं से तुरंत हटा दिया। फिलहाल नासिर इस 'गोपनियता' की सजा लखनउ जेल में काट रहा है। हाईकोर्ट के अधिवक्ता सतेन्द्र सिंह कहते हैं कि एसटीएफ की इस कहानी पर कैसे भरोसा किया जाय कि जिस नासिर की उम्र 1993 मंे 13 साल रही होगी वह हजारों मील दूर बम धमाका करने मुंबई कैसे जाएगा।   	  पी॰यू॰एच॰आर॰ नेता शाहनवाज आलम के यह कहते ही कि रामपुर सी॰आर॰पी॰एफ॰ कैम्प मंे हुयी घटना आतंकी घटना थी ही नहीं, जनसुनवायी मंे उपस्थित जनता मंे सन्नाटा पसर गया। उन्होंने रहस्योद्घाटन करते हुए घटना के तीन चार दिन बाद तक के सामाचार पत्रांे की कतरनें दिखाई जो स्पष्ट करती थीं कि घटना आंतकी कार्यवाही नहीं थी। बल्कि नए साल के जश्न मंे नशे मंे घुत सी॰आर॰पी॰एफ॰ के जवानों ने आपस मंे गोली बारी की जिसमंे 8 जवान मारे गए।   	  जनअदालत में रामपुर सी आर पी एफ कैम्प पर हुए कथित हमले के आरोपी कुण्डा, प्रतापगढ़ के कौशर फारुकी के भाई अनवर फारकी बताते हैं
आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई के लिए 2007 से शुरु हुए रिहाई आंदोलन द्वारा मार्च-अप्रैल 2008 में इलाहाबाद, मडि़याहूं (जौनपुर), कुंडा (प्रतापगढ़) में हुई जनसुनवाईयों पर आधारित एक रिपोर्ट "जनअदालतों के कटघरे मंे यूपी एसटीएफ"

तमाम सुबूतों और बयानोें के आधार पर अदालत इस नतीजे पर पहुँची है कि आतंकवादी के नाम पर पकड़े गए ये सभी नौजवान बेगुनाह हैं और इनको तत्काल रिहा किया जाय। और इन युवको की फर्जी गिरफ््तारी और उनके मानवाधिकारों के घोर उत्पीड़न के लिए दोषी एस.टी.एफ. के अधिकारियों को तत्काल बरखास्त कर उनका नारको टेस्ट किया जाय।'' यह फैसला किसी सरकारी अदालत का नहीं बल्कि इलाहाबाद, जौनपुर और प्रतापगढ़ जिलों में मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फाॅर ह्यूमन राइट्स ''पीयूएचआर'' द्वारा आयोजित जनअदालतों का है।

आतंकवाद के नाम पर युवकांे की फर्जी गिरफ्तारी के सवाल पर आयोजित इन जनअदालतों में जब जनता ने बेबाक ढ़ग से अपनी बातें रखीं तो कई राज़ के साथ-साथ एसटीएफ भी बेपर्द होने लगी। कश्मीर से आए मो0 साबिर वानी बताते हैं कि उनके बेटे अख्तर वानी को 22 दिस0 को पुलिस ने कचहरी बम धमाकों में लिप्त बताकर पकड़ने के बाद लखनउ जेल में बंद कर दिया।वे रोते हुए बताते है कि अख्तर को पुलिस 23 नवंबर के कचहरी धमाकों में शामिल बता रही है जबकि उस दिन मेरे दूसरे बेटे मुख्तार की शादी थी जिसकी वीडियो रिकार्डिंग में अख्तर की मौजूदगी उसकी बेगुनाही साबित करती है। वानी कहते हैं ''मैंने तो आशा छोड़ दी थी कि 'पंजाब' में मुझे कोई सहारा देगा।खुदा का शुक्र है जो शोएब साहब मुझ गरीब के बच्चे का केस मुफ्त में लड़ रहै हैं।'' साबिर बार-बार लखनउ को पंजाब समझ लेते हैं। 

इसी तरह इलाहाबाद में आयोजित राष्ट स्तरीय जनअदालत में अपनी बात रखने कश्मीर से आए गुलाम कादिर वानी कहते हैं ''साहब मैने अपने बेटे सज्जार्दुरहमान को बेहतर जिंदगी के लिए कश्मीर के दहशतशुदा माहौल से दूर देवबंद पढ़ने भेजा था। मुझे क्या मालूम कि कश्मीरी होना इतना बड़ा गुनाह है?'' वे अपने बेटे की बेगुनाही के लिए, जिसे एसटीएफ ने 23 नव0 के कचहरी धमाकों में शामिल बताकर लखनउ जेल में रखा है, देवबंद से लाया हुआ हाजिरी रजिस्टर दिखाते हैं जिसमें उस दिन उसकी कक्षा में उपस्थिति दर्ज है। 

जन अदालत के जूरी सदस्य वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमडि़या ने कहा ''सज्जाद और अख्तर अपने नाम के आगे कश्मीरी टाइटिल नहीं लगाते पर एसटीएफ और मीडिया ने उनके नाम के आगे कश्मीरी टाइटिल लगाकर प्रचारित किया। यह वह मानसिकता है जिसे हमारे समाज में सहज स्वीकार्यता हासिल हो चुकी है कश्मीरी आतंकवादी होता है और पाकिस्तान के साथ उसके संबंध होते हैं। वे कहते हैं कि किसी भी आतंकवादी घटना की कहानी को विश्वसनीय और सनसनीखेज बनाने के लिए कश्मीर से उसका संबंध स्थापित कर देना पुलिस का पेशा बन गया है।

जन अदालत में बिजनौर से 1993 के मुंबई बम धमाकों के आरोप में पकड़े गए नासिर और याकूब के परिजन भी आए थे। अनिल चमडि़या ने नासिर के पिता हामिद अली के राष्टीय मानवाधिकार आयोग को भेजे उस पत्र पर जोर देते हुए कहा कि आखिर इसमें उन्हें यह क्यों लिखना पड़ा कि उनका परिवार भारत और पाकिस्तान के बटवारे के पहले से भारत में रहता है। 28 वर्षीय नासिर के भाई नाजिर बताते हैं कि उनके भाई नासिर को एसटीएफ ने 19 जून 2007 को टेहरी गढ़वाल ''उत्ताखंड'' से उठाया था जिसकी एफआईआर भी स्थानिय थाने में दर्ज है। लेकिन उसे दो दिन बाद आरडीएक्स और पाकिस्तानी फोन नंबरों के साथ लखनउ से पकड़ने का दावा किया। इस प्रकरण में सबसे दिलचस्प मोड़ तब आया जब पत्रकारों ने एसटीएफ द्वारा नासिर को लखनउ में मीडिया के सामने पेश करते वक्त पूछ दिया कि क्या यह वही नासिर नहीं है जिसे एसटीएफ ने दो दिन पहले टेहरी गढ़वाल से उठाया था। इस सवाल से सकपकायी एसटीएफ ने गोपनियता के नाम पर नकाब पहनाकर लाए नासिर को वहाॅं से तुरंत हटा दिया। फिलहाल नासिर इस 'गोपनियता' की सजा लखनउ जेल में काट रहा है। हाईकोर्ट के अधिवक्ता सतेन्द्र सिंह कहते हैं कि एसटीएफ की इस कहानी पर कैसे भरोसा किया जाय कि जिस नासिर की उम्र 1993 मंे 13 साल रही होगी वह हजारों मील दूर बम धमाका करने मुंबई कैसे जाएगा। 

पी॰यू॰एच॰आर॰ नेता शाहनवाज आलम के यह कहते ही कि रामपुर सी॰आर॰पी॰एफ॰ कैम्प मंे हुयी घटना आतंकी घटना थी ही नहीं, जनसुनवायी मंे उपस्थित जनता मंे सन्नाटा पसर गया। उन्होंने रहस्योद्घाटन करते हुए घटना के तीन चार दिन बाद तक के सामाचार पत्रांे की कतरनें दिखाई जो स्पष्ट करती थीं कि घटना आंतकी कार्यवाही नहीं थी। बल्कि नए साल के जश्न मंे नशे मंे घुत सी॰आर॰पी॰एफ॰ के जवानों ने आपस मंे गोली बारी की जिसमंे 8 जवान मारे गए। 

जनअदालत में रामपुर सी आर पी एफ कैम्प पर हुए कथित हमले के आरोपी कुण्डा, प्रतापगढ़ के कौशर फारुकी के भाई अनवर फारकी बताते हैं "मेरे भाई पर एस॰टी॰एफ॰ ने यह आरोप लगााया है कि हमारे रामपुर स्थित मकान मंे ही घटना मंे प्रयुक्त हुए असलहे और आर॰डी॰एक्स॰ रखे गये थे। जबकि हमारा रामपुर मंे घर तो दूर आज तक वहाँ कोई आया-गया तक नहीं है।" वे आगे बताते हैं "हमारी बहनांे की शादी पाकिस्तान में हुई है यह बताया जा रहा है। जबकि हमारी तीनों बहनों की शादी कुण्डा (प्रतापगढ़) मंेे ही हुयी है।

रामपुर आतंकी हमले को सन्दिग्ध मानते हुए अयोध्या स्थित सरयूकुन्ज मन्दिर केे महन्त युगल किशोर शास्त्री ने कहा कि पुलिस ने कभी घटना मंे शामिल आतंकियांे की संख्या चार बताई है तो कभी दो तो कभी पूरी घटना को फिदायनी हमला कहा है। पुलिस के अन्र्तविरोधी बयानों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि हद तो तब हो गयी जब चश्मदीद गवाह होने का दावा करने वाले दो अलग-अलग पुलिस अफसरांे ने हमलावरों को कभी रिक्शे पर तो कभी एक राजनीतिक दल का झण्डा लगे चार पहिया वाहन से आने का दावा किया। उन्होंने यह भी पूछा कि आखिर दो या चार आतंकवादी डेढ़ हजार रंगरुटोें की मौजूदगी मंे कैसे 8 लोगांे को मार कर इत्मीनान से भाग सकते है।

घटना स्थल पर मीडिया कर्मियों को जाने से जबरन रोकने, लाशों का फोटो न खींचने देने, घटना के बाद डाग स्क्वायड को न बुलाकर खून के निशान व फिंगर प्रिंट फायर ब्रिगेट के दमकल से पूरी तरह साफ कर देने को जूरी सदस्य व इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के प्रो॰ सुनील उमराव ने घटना के संदिग्ध होने का पर्याप्त सुबूत माना। उन्होंने ने कहा कि प्रशासन अपने रंगरुटों की कार गुजरियों की छिपाने के लिए बेगुनाह युवकों को फसा रही है। घटना की स्वतन्त्र एजेन्सी से जाँच कराने की मांग करते हुए कहा कि घटना मंे संलिप्त सी॰आर0पी॰एफ॰ के दोषी अधिकारियांे का नारको टेस्ट हो और दारु पी कर मरे आठांे जवानों को शहीद का दर्जा देना शहादत की परम्परा को कलंकित करना होगा।

जनअदालत और पूरे शहर में सबसे ज्यादा चर्चा रही एस॰टी॰एफ॰ के हुजी एरिया कमाण्डर आफताब आलम अंसारी की। पिछली 17 जनवरी को कोर्ट सेे रिहा आफताब को एस॰टी॰एफ॰ ने कचहरी बम धमाकों और संकट मोचन बम घमाकों का मास्टर माइण्ड बताते हुए बांग्लादेशी संगठन हरकत-उल-जेहादे-इस्लामी (हूजी) के एरिया कमाण्डर को पकड़ने का दावा किया था। आफताब ने कहा 'पुलिस ने दावा किया था कि उसने मेरे पास से डेढ़ सौ किला आर॰डी॰एक्स बरामद किया। अब आप ही सोंचे कि क्या यह संभव है कोई आदमी डेढ़ सौ किलो आर॰डी॰एक्स॰ लेकर सरेआम घूमेगा।' उसने कहा कि जिन लोगांे ने मेरे पास से डेढ़ सौ किलो आर डी एक्स, 6 करोड़ रुपया और कोलकाता के रिहायशी इलाकों मंे फ्लैट होने की बात कही थी उन पुलिस वालांे से मैं पूछना चाहूँगा कि मेरी रिहायी के बाद अब आखिर वो आर॰डी॰एक्स॰ और करोड़ रुपये की संपत्ती कहाँ चली गयी। आफताब ने भावुक श्वर मंे कहा 'फर्जी गिरफ्तारी के बाद कोर्ट द्वारा वाइज्जत छोड़ देने के बावजूद जिन्दगी कैसी हो जाती है इसे समझने के लिए मेरी उस बहन से मिलना चाहिए जिसकी शादी मेरी आतंकवादी होने की खबर के बाद टूट गयी।'

जनअदालत मंे मौजूद संतोष सिंह का कहना है कि सरकार रोजी-रोटी भले न दे सके लेकिन हर मुसलमान के पैदा होते ही उसके हिस्से मंे आर डी एक्स जरुर दे देेती है। शान्ति से जो भी वह जीता-खाता है वो तो पुलिस वालांे के आलस के कारण, नहीं तो वे पैदा होते ही उसे जेल की सलाखांें मंे डाल दें। तो वही दिल्ली से आयी साहित्य कर्मी सपना चमडि़या पुलिस द्वारा गढ़ी गयी काल्पनिक कहानियों पर कहती हैं कि अगर आज चन्द्रकान्ता के लेखक देवकी नन्दन खत्री जिन्दा होते तो वे भी एस॰टी॰एफ॰ की कल्पनाशीलता के आगे पनाह मांगते। 

लखनऊ जेल से तारिक, सज्जाद, खालिद और अख्तर द्वारा गुप्त तरीके से भेजे गये खतों को जब पी॰यू0एच॰आर॰ नेता जितेन्द्र राव ने पढ़ा तो जनता के रोंगटे खडे़ हो गये। पत्र मंे जेल मंे दी जा रही यातनाओं के बारे में उन लोगांे ने लिखा था कि जेल मंे पुलिस पूछ-ताछ के नाम पर इनके शरीर के अन्दरूनी भागों मंे पेट्रोल डालती है, लिंग को धागे से बांध कर पत्थर से चोट देती है, सिगरेट से लिंग को दागती है, मुख मैथुन और दूराचार किया जाता है। जितेन्द्र ने कहा कि एस॰टी॰एफ॰ लखनऊ जेल मंे हाई सिक्योरिटी के नाम पर जो अमानवीय बर्ताव कर रही है वह किसी अबूगरेब से कम नहीं है। 

जेल से आये पत्रांे पर आफताब ने कहा कि ये सब जेल मंे किया जाता है। मुझसे बार-बार कहा गया कि तुम बस इतना कह दो कि तुम हूजी के एरिया कमाण्डर मुख्तार उर्फ राजू बंगाली हो। अगर नहीं कहोगे तो रिमाण्ड पर लेकर इनकाउण्टर कर देंगे। उसने कहा कि एस॰टी॰एफ॰ ने दावा किया था कि मुझे 22 दिसम्बर को बाराबंकी से गिरफ्तार तारिक और खालिद के बयान पर गिरफ्तार किया गया था। जबकि पुलिस मेरे घर लोन के गारण्टर की शिनाख्त के बहाने 17 दिसम्बर और 21 दिसम्बर को आयी थी। ऐसे मंे पुलिस को बताना चाहिए कि जब मेरे बारे मंे उसे 22 दिसम्बर को पता चला था तो वह 17 दिसम्बर व 22 दिसम्बर को मेरे घर किस आकाशवाणी पर पहुँच गयी थी। जनअदालत में तारिक के अब्बा रेयाज व खालिद के चचा जहीर आलम फलाही भी मौजूद थे। 

कचहरी बम धमाकांे के आरोपियों का केश लड़ रहे मो॰ शोएब कहते हैं "अभी हाल मंे कोर्ट में जो चार्जशीट पेश की गयी उसमें कई बातें ऐसी हैं जो पुलिस की झूठी कहानी को बेपर्द करती हैं। मसलन पुलिस ने अपने एफ॰ आई॰आर॰ मंे इन सबको बांग्लादेशी संगठन हूजी का बतलाया था पर उसने अपनी चार्जशीट मंे हूजी नाम की किसी चिडि़या का उल्लेख नहीं किया है और यहाँ तक कि अनलाफुल ऐक्टिविटीज प्रिवेन्शन ऐक्ट का भी कोई उल्लेख नहीं किया है।" उन्होंने कहा कि तारिक और खालिद की गिरफ्तारी का दावा करने के बाद बाराबंकी मंे पुलिस ने जो एफ॰आई॰आर॰ दर्ज किया है वह मूर्ख पुलिस की झूठी करतूतों को बताने के लिए काफी है। एफ॰आई॰आर॰ मंे गिरफ्तारी के ठीक पहले का हाल बयान करते हुए कहा गया है "एस॰टी॰एफ॰ बाराबंकी बस स्टैण्ड के पास पहुँचीं जनता के गवाह फराहम किए गये व मकसद बताया गया तो डर व दहशत के कारण कोई तैयार नहीं हुआ और बगैर नाम पता बताए चले गये। जनता का गवाह उपलब्ध न होने पर पुलिस बल ने स्वयं को गवाह मानकर आपस मंे एक दूसरे की जामा तलाशी ले दे कर इत्मीनान किया कि किसी के पास कोई नाजायज वस्तु नहीं है............। (हॅसते हुए मो॰ शोएब) "इसे पढ़कर मुझे लगता है कि पुलिस की मानसिक स्थिति उस वक्त ठीक नहीं थी। क्योंकि गिरफ्तारी के बाद गवाह ढूंढे़ जाते हैं जबकि एफ॰आई॰आर॰ के अनुसार एस॰टी॰एफ॰ गिरफ्तारी के पहले ही गवाह ढूंढ़ रही थी।"

मो॰ शोएब को अपने वकील साथियों से बहुत गिला है। वे कहते है हमारे वकील साथी खुद जज बन गये हैं और कथित आतंकियों का केश न लड़ने पर के लिए मुझपर भी दबाव बनाया जा रहा है। अभी हाल मंे 5 अप्रैल को जब मैं बाराबंकी गया तो वहाँ के बार एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रदीप सिंह ने मुझसे कहा कि हमारा निर्णय है कि यहाँ कोई इन आतंकियांे का केश नहीं लडे़ेगा अगर किसी ने लड़ने की हिमाकत की तो उसके परिणाम बहुत बुरे होंगे और उन्होंने मुझे वकालत नामा वापस लेने के लिए मजबूर किया। पिछले 30 अप्रैल कोे फैजाबाद के वकीलों ने मेरे मुअक्किलों की पेशी के दौरान मुझपर व उनके परिजनांे पर जानलेवा हमला किया तो वहीं 13 मई, को लखनऊ के वकीलों के एक छोटे से हिस्से मंे भी न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश की।

पूर्व न्यायाधीश और जूरी के सदस्य रामभूषण मेहरोत्रा ने जगह-जगह आयोजित हो रही इन जनअदालतों को एस॰टी॰एफ॰ और राज्य मिशनरी के खिलाफ जनता के लोकप्रिय विरोध की अभिव्यक्ति बताया। उन्होंने सरकार से जनभावनाआंे का सम्मान करते हुए मानवाधिकार विरोधी एस॰टी॰एफ॰ को भंग करने व प्रशासन से अपनी कार्यशैली मंे पारदर्शिता लाने की मांग की। सुप्रिम कोर्ट के उस टिप्पणी का हवाला देते हुए जिसमंे उसने पुलिस को अल्पसंख्यक विरोधी मानसिकता से ग्रस्त बताया है, उन्होंने कहा कि पुलिस द्वारा कथित आतंकी बताए जाने वाले केसों मंे तो मुकदमा न लड़ने का फरमान देने के बजाय और भी ज्यादा जिरह की जरुरत है। 

राजीव यादव

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