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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Thursday, February 27, 2014

सरकारों और कारपोरेशनों द्वारा नागरिकों की निगरानी बंद हो!

सरकारों और कारपोरेशनों द्वारा नागरिकों की निगरानी बंद हो!

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पिछले दिनों दुनिया भर के पांच सौ लेखकों ने आम नागरिकों पर बढ़ती जा रही निगरानी (सर्वेलेंस)का विरोध करते हुए इसके तत्काल बंद किए जाने की मांग की। प्रस्तुत है उस वक्तव्य का अविकल अनुवाद।

हाल के वर्षों में सर्वेलेंस (निगरानी) किस हद तक बढ़ चुका है इसकी जानकारी सामान्य हो चुकी है। माउस के कुछ क्लिक्स के साथ सत्ता आपके मोबाइल उपकरण, आपके ईमेल, आपकी सोशल नेटवर्किंग और इंटरनेट तलाशों (सर्चेज) तक पहुंच सकता है। यह आपके राजनीतिक झुकाव और गतिविधियों पर नजर रख सकता है और इंटरनेट कारपोरेशनों के सहयोग से, यह आपसे संबंधित सामग्री (डाटा) और इस तरह आपके उपभोग और व्यवहार का अंदाज लगा सकता है। लोकतंत्र का आधार व्यक्ति की अभेद्य अक्षतता है। मानवीय अक्षतता का विस्तार जैविक शरीर से आगे तक है। अपने विचारों और अपने निजी पर्यावरणों और संचार में सब मानवों का यह अधिकार है कि वे बिना नजर रखे व बिना दखलंदाजी के रहें। यह मानवीय मौलिक अधिकार राज्य सत्ता और कारपोरेशनों के द्वारा व्यापक निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी के विकास के दुरुपयोग से व्यर्थ हो गया है। निगरानी में आया हुआ कोई व्यक्ति अब स्वतंत्र नहीं है, जिस समाज में निगरानी हो रही हो वह लोकतंत्र नहीं है। किसी तरह की वैधता को बनाए रखने के लिए हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों को हर हालत में वास्तविक दुनिया की तरह ही आभासीय (वर्चुअल) दुनिया में भी लागू होना चाहिए।

निगरानी निजता का हनन करती है और सोचने और विचारने की स्वतंत्रता का हनन करती है।

व्यापक निगरानी (मास सर्वेलेंस) हर नागरिक को एक संभावित संदेहास्पद व्यक्ति मानकर चलती है। यह हमारी ऐतिहासिक जीतों में एक निर्दोषिता की धारणा को उलट देती है।

निगरानी व्यक्ति को पारदर्शी बना देती है जबकि राज्य सत्ता और कार्पोरेशन गोपनीय तरीके से काम करते हैं। जैसा कि हमने देखा है कि इस ताकत का नियोजित तरीके से दुरुपयोग हो रहा है।

निगरानी (सर्वेलेंस) चोरी है। यह जानकारी (डाटा) सार्वजनिक संपत्ति नहीं है: यह हमारी चीज है। जब इसका इस्तेमाल हमारे व्यवहार का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है तब हमें किसी और चीज के लिए लूटा जाता है: स्वाधीन इच्छा का सिद्धांत लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के लिए महत्त्वपूर्ण है।

हम सब लोगों केलिए लोकतांत्रिक नागरिक होने के नाते यह निश्चित करने का अधिकार चाहते हैं कि किस हद तक उनके बारे में किसके द्वारा जानकारी (डाटा) को कानूनी तरीके से संकलित और प्रसंस्कृत किया जा सकता है; उनके तथ्य कहां संकलित हैं और उनका किस तरह से उपयोग किया जा रहा है; अगर यह जानकारी और तथ्य गलत तरीके से इकट्ठे व संकलित किए गए हैं तो इन को नष्ट करने के लिए वापस लेने का अधिकार चाहते हैं।

- सब देशों और कारपोरेशनों से हमारी मांग है कि इन अधिकारों का सम्मान किया जाए।

-हम सब नागरिकों का अह्वान करते हैं कि वे आगे आएं और इन अधिकारों की रक्षा करें।

- हम संयुक्त राष्ट्र संघ से मांग करते हैं कि डिजिटल युग में नागरिक अधिकारों की रक्षा को केंद्रीय महत्त्व का माने और एक अंतरराष्ट्रीय डिजिटल अधिकार अधिनियम (इंटरनेशनल बिल आफ डिजिटल राइट्स) बनाए।

हम सरकारों से मांग करते हैं कि इस तरह के समझौते पर हस्ताक्षर करें और उसका पालन करें।

- अल्बर्टो मांगुआ, जेम्स ब्रेडले, तहमीमा अनम, पॉल स्कॉट, माग्रेट एटवुड, लिआओ यिवु, ज्यां-जेक्वा बेनिनेक्स, गुंटर ग्रास, कोस्टास एक्रिवॉस, भारत के शाहिद अमीन, अमित चौधरी, अमित घोष, रामचंद्र गुहा, रणजीत हस्कोटे, गिरीश कर्नाड, अरुंधति रॉय, रॉडी डॉयल, यिट्जाक लाओर, एमोस ओज, आंद्रिया बाजानी, मासिमो कारलोटो, तोसिहिको उजी, रोजा बेलट्रान, इयान बुरूमा, टिम कोरबाल्लीस, निक्की हेगर, हेलन हबीला, चिका उनिग्वे, ओलुमिदे पोपूला, मोहसिन आमिद, सउद अमीरी, अला हलेहेल, ओल्गा टोकारक्जुक, पेड्रो रोसा मेंडेस, मर्सिया कार्तारेस्क्यू, व्लादिमीर एरिस्तोव, ब्रेयटन ब्रेयटनबाख, एंटजी क्रोग, जेएम कोएट्जी, जुलिओ ललामाजारेस, तारिक अली, मार्टिन एमिस, जूलियन बार्नेस, जॉन बर्जर, कोजुओ इशिगुरो, पीको आयर, हरी कुंजरु, हनीफ कुरैशी, जॉन एशबेरी, सेफीर, रिचार्ड सेनेट, जेन स्माइले, एलिस वॉकर, इलिएट वेनबर्जर तथा जेफरी यांग।

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