THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Wednesday, July 31, 2013

परमाणु उर्जा का कोई भविष्य नहीं

परमाणु उर्जा का कोई भविष्य नहीं

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कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र के मामले पर उच्चतम न्यायालय के हालिया फ़ैसले के बाद इस संयंत्र से बेशक बिजली उत्पादन करने का रास्ता साफ़ हो गया है, लेकिन कुडनकुलम न्यक्लियर पॉवर प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हज़ारों लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय को चुनौती देते हुए अपना आंदोलन जारी रखने का ऐलान कर दिया है। अदालत के इस फ़ैसले के बाद आगे का रास्ता क्या होगा, इसी मसले पर पीपुल्स मूवमेंट अगेंस्ट न्यूक्लियर एनर्जी ( पीएमएएनई) के संयोजक डॉ. एस.पी उदयकुमार से कुडनुकुलम पहुंचकर अभिषेक रंजन सिंह बात की-

प्रश्न- सुप्रीम कोर्ट ने कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र में बिजली उत्पादन को मंजूरी दे दी है साथ ही अदालत ने यह भी टिप्पणी की है कि देश में ऊर्जा की काफ़ी आवश्यकता है, इसलिए यह पॉवर प्लांट देशहित में है। इस फ़ैसले के बारे में क्या कहेंगे आप ?
उत्तर- निश्चित रूप से उच्चतम न्यायालय का यह फ़ैसला निराशाजनक है। अदालत में दो जजों की बेंच ने लाखों लोगों के भविष्य की अनदेखी की है। देश की न्यायपालिका हम सम्मान करते हैं, लेकिन अगर अदालत ही इस तरह से एकपक्षीय फ़ैसला सुनाने लगे, तो वाकई यह चिंता की बात है। हैरत की बात है कि विद्वान न्यायाधीशों ने अपने फ़ैसले में परमाणु उर्जा को अन्य ऊर्जा श्रोतों के मुक़ाबले बेहद सस्ती क़रार दिया है। इससे बड़ी हास्यास्पद बात भला और क्या हो सकती है। बहरहाल, कुडनकुलम परमाणु उर्जा संयंत्र के ख़िलाफ़ हमारा आंदोलन जारी रहेगा, क्योंकि हमारा संघर्ष जन अधिकारों के लिए है और इसे छीनने का अधिकार किसी को नहीं है।

प्रश्न- उच्चतम न्यायालय के इस फ़ैसले के बाद आपकी आगे की रणनीति क्या होगी?
उत्तर- सुप्रीम कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ हमने पुनः उसी ग्राउंड पर अपील दायर की है, क्योंकि हमारी याचिका पर अदालत ने सही सुनवाई नहीं की है। न्यूक्लियर पॉवर प्लांट से होने वाले पर्यावरणीय नुक़सान और इससे प्रभावित होने वाले मछुआरों की अनदेखी भला कोर्ट कैसे कर सकता है। उन्हें इन सभी बिंदुओं पर ग़ौर करना होगा, क्योंकि एक लोकतांत्रिक देश में चंद लोगों की खुशी और उसके फ़ायदे के लिए लाखों लोगों की खुशियां नहीं छीनी जा सकती। कुडनकुलम पॉवर प्लांट का विरोध कर रहे इडिंटकरई समेत कई तटीय गांवों के करीब दस हज़ार लोगों, जिनमें महिलाएं, बूढ़े और नौजवान शामिल हैं, उनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह समेत सैकड़ों मुक़दमे दर्ज हैं। बावजूद इसके आंदोलनकारियों ने अपनी हिम्मत नहीं हारी है।

प्रश्न- उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद कुडनकुलम परमाणु संयंत्र से बिजली उत्पादन का काम शुरू हो गया है, ऐसे में आप लोगों के विरोध का क्या औचित्य है?
उत्तर- आप कुडनकुलम न्यक्लियर पॉवर प्रोजेक्ट से 700-800 की मीटर दूरी पर हैं। आप ख़ुद देखिए प्लांट से किसी तरह का कोई शोर आ रहा है ? क्या प्लांट की चिमनियों से कोई धुंआ निकल रहा है? केंद्र सरकार की ओर से यह झूठ प्रचारित किया जा रहा है कि कुडनकुलम की सभी बाधाएं समाप्त हो चुकी हैं और यहां बिजली का उत्पादन शुरू हो गया है, ताकि इस जनविरोधी परियोजनाओं के ख़िलाफ़ उठने वाली आवाज़ों को शांत किया जा सके।

कुडनकुलम न्यूक्लियर पॉवर प्लांट के ख़िलाफ़ जारी आंदोलन पर सीपीआई, सीपीएम, फॉरवर्ड ब्लॉक और सीपीआईएमल खुलकर नहीं, बल्कि दबी जुबान से कह रहे हैं कि इस पॉवर प्लांट से ऊर्जा की ज़रूरतें पूरी होंगी और इससे लोगों का फायदा होगा, लेकिन यही कम्युनिस्ट पार्टियां महाराष्ट्र के जैतापुर में निर्माणाधीन न्यूक्लियर पॉवर प्लांट का तीव्र विरोध कर रहे हैं। दो न्यूक्लियर पॉवर प्लांट और दो स्वर की मूल वजह है रूस और फ्रांस। कम्युनिस्ट पार्टियां कुडनकुलम प्लांट का विरोध इसलिए नहीं कर रहे हैं, क्योंकि यह रूस की सहायता से बन रहा है। जबकि जैतापुर प्लांट का विरोध कम्युनिस्ट पार्टियां इस वजह से कर रहे हैं, क्योंकि यह फ्रांस के सहयोग से बन रहा है। कम्युनिस्ट पार्टियां का दोगलापन इससे साफ़ ज़ाहिर होता है।

प्रश्न- कुडनकुलम न्यक्लियर पॉवर प्लांट को यूपीए सरकार अपनी एक बड़ी उपलब्धि मान रही है। इस पूरे मामले पर केंद्र सरकार की क्या भूमिका है?
उत्तर- केंद्र सरकार सिर्फ कुडनकुलम न्यूक्लियर पॉवर प्लांट को लेकर ही खुश नहीं है। सरकार तो 123 अमेरिकी परमाणु समझौते से भी प्रसन्न है। हालांकि कुडनकुलम पॉवर प्लांट से कांग्रेस पार्टी की विशेष भावनाएं जुड़ी हैं, क्योंकि वर्ष 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और रूसी राष्ट्रपति मिखाइल गोर्वाचोव के बीच कुडनकुलम न्यूक्लियर पॉवर प्रोजेक्ट को लेकर एक समझौता हुआ था। हालांकि, इस समझौते के दो साल पहले ही चेर्नोविल सोवियत संघ में हादसा हो गया। आपको शायद यह जानकर आश्चर्य होगा कि सोवियत संघ के विघटन के लिए गोर्वाचोव ने चेर्नोविल दुर्घटना को ज़िम्मेदार ठहराया था। रूस ने इस हादसे से सबक लेते हुए अपने सभी प्रस्तावित न्यूक्लियर पॉवर प्लांट को बंद कर दिया। इतना ही नहीं, चीन, इटली और जापान जैसे देशों ने भी न्यूक्लियर एनर्जी को एक ख़तरनाक और तबाही का कारण मानते हुए पिछले कुछ वर्षों में एक भी नए रिएक्टर नहीं लगाए हैं।

प्रश्न- परमाणु ऊर्जा ख़तरनाक और अपेक्षाकृत महंगी भी है, बावजूद इसके भारत सरकार नई परियोजनाओं को मंजूरी दे रही है। आखिर इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर- यह सवाल नई दिल्ली में बैठी उस सरकार से कीजए, जो हिरोशिमा, नागाशाकी, चेर्नोविल और फुकुशिमा जैसी त्रासदियों से भी कोई सबक नहीं लेना चाहती है। महाराष्ट्र के जैतापुर, हरियाणा के फतेहाबाद, पश्चिम बंगाल के हरिपुर और मध्य प्रदेश के चुटका में न्यूक्लियर पॉवर प्लांट बनाने के लिए केंद्र सरकार पूरी ताकत लगा दी है, लेकिन इसके विरोध में उससे दोगुनी ताकत वहां के स्थानीय ग्रामीण और किसानों ने लगा दी है। कहने को यह एक प्रजातांत्रिक देश है, लेकिन यहां सरकारों का रवैया पूरी तरह जनविरोधी है।

प्रश्न- परमाणु ऊर्जा को लेकर सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में एक बहस छिड़ी हुई है, ऐसे में भारत सरकार ऊर्जा के अन्य विकल्पों पर क्यों नहीं विचार करती?
उत्तर- हमारी सरकार इस पर विचार नहीं करेगी, क्योंकि ऊर्जा के अन्य विकल्प जो न केवल सस्ता है, बल्कि पर्यावरण हितैषी भी है, उसमें कमीशन की गुंजाइश काफ़ी कम है, इसलिए सरकार वह काम करेगी, जिसमें उसे मोटा कमीशन मिले। चीन, जापान समेत कई यूरोपीय देश पवन ऊर्जा और सोलर एनर्जी पर काफी अच्छा काम कर रहे हैं। भारत में पवन उर्जा की भरपूर संभावनाएं है, क्योंकि देश में 7500 किलोमीटर तटीय इलाका है, लेकिन इस विशेष की अनदेखी कर केंद्र सरकार न्यूक्लियर एनर्जी में भारत का भविष्य देख रही है।

प्रश्न- कुडनकुलम समेत अन्य प्रस्तावित न्यूक्लियर पॉवर प्लांट पर राजनीतिक दलों की क्या प्रतिक्रिया है?
उत्तर- न्यूक्लियर पॉवर प्लांट को तथाकथित विकास का हवाला देते हुए सभी राजनीतिक दलों की भूमिका एक जैसी है। सार्वजनिक मंचों पर भले ही वे यूपीए सरकार की नीतियों की आलोचना करें, लेकिन अंदरखाने की बैठकों में उनके सुर एक हो जाते हैं। कुडनकुलम के मसले पर जयललिता सरकार पूरी तरह केंद्र सरकार के साथ खड़ी है, वहीं डीएमके प्रमुख एम. करुणानिधि और उनकी पार्टी में शामिल नेताओं की खामोशी यह बताने के लिए काफी है कि उनकी राह भी वही है, जो मुख्यमंत्री जयललिता और केंद्र सरकार की है। हालांकि कम्युनिस्ट पार्टियों की भूमिका हैरान करने वाली है।

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