THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Tuesday, February 17, 2015

आप बना बाप,वाम हुआ राम और बहुजन हनुमान! सर कलम होने से पहले अब हम करें तो क्या? पलाश विश्वास


आप बना बाप,वाम हुआ राम और बहुजन हनुमान!
सर कलम होने से पहले अब हम करें तो क्या?
पलाश विश्वास
आप बना बाप,वाम हुआ राम और बहुजन हनुमान!
सर कलम होने से पहले अब हम करें तो क्या?

सविता बाबू ने दसों दिशाओं में नाते रिश्ते जो जोड़ लिये हैं,वह अब सरदर्द का सबब हो गया है।वह कई जिलों में अपनी सांस्कृतिक मंडली प्रयास के साथ जुड़ी हैं,इससे मुझे उनसे उलझने का मौका कम मिलता है।इधर जब से तीन बजे घर लौटना होता है रात को और शाम पांच ही बजे दफ्तर रवानगी है।तो मेरे लिखन पढ़ने  का दायरा सिमट गया है।
इसपर कटी हुई उंगलियों से रिसाव अलग है।
निःशस्त्र महाभारत के बीचोंबीच खड़ा हूं और दसों दिशाओं में चक्रव्यूह तिलिस्म हैं।

कल धुंआधार हो गया,बस तलाक नहीं हुआ।
अब दिन में वे मुझे रंग बिरंगे आयोजनों में घसीटने लगी हैं और मैं  लिखन पढ़ने की आजादी का माहौल बनाये रखने की गरज से खामोशी से उनका हुक्म सर माथे करता रहा हूं।
हमारा काम कमसकम चार दशक से यही रहा है कि सूचनाओं को रोके बिना आम जनता तक पहुंचा दें।

सविता बाबू ने कह दिया,अब तक घुइया छीलते रहे हो।
अब बूढ़े घोड़े हो,इतना भी मत दौड़ो कि धड़ाम से गिर पड़ो।
इस देश की जनता पर कोई असर होने वाला नहीं है।
जब सारे लोग खामोश मजे में जी रहे हैं तो तुम हमारी जिंदगी नरक क्यों किये जा रहे हो।
सेहत का ख्याल रखो।

कल भी दोपहर का भोज छह किमी दूर जाकर करना पड़ा तो तिलमिलाया था।
जरुरी लिखना हो न सका।
भीतर से गुस्सा उमड़ घुमड़ रहा था।
उनने जब मेरी खांसी और सर्दी को मेरे पीसी के जिम्मे डाल दिया तो मेरी खामोशी टूट गयी।

अमन चैन भंग हो गया।
दफ्तर पहुंचकर रोज की तरह मैंने फिर उन्हें इत्तला नहीं किया कि बूढ़ा घोड़ा दौड़ते हांफते सहीसलामत पहुंच गया ठिकाने।
घंटे भर में उनका फोन आ गया।
मैंने कह दिया,फिक्र ना करो ,साते बजे पहुंच गया हूं।
फिर अमन चैन बहाल है।

अमन चैन का कुलो किस्सा यहीच है।
आप खामोशी बुनने की कला में माहिर हों और मकड़ी की तरह जिंदगी भर खामोशी का जाल बुनते रहे,तो अमन चैन लक्ष्मी सरस्वती सबै कुछ है।
बोले नहीं के  घरो में घिर जाओगे जनाब,बाहर तो जो होता है,वहीच होता है।

भारत की जनता अमन चैन में इसी तरह जिंदड़ी गुजर बसर करते हैं और सविता को तकलीफ यह कि मैं रोजाना उनकी गहरायी नींद में खलल डालने की जुगाड़ में अब भी लगा हुआ हूं।उनका कहना है कि जन सूचनाओं से किसी को कुछ नहीं मालूम,उन्हें क्यों जनता के बीचोंबीच फेंकने की कसरत में लगा हूं।

उनका कहना है कि जब अश्वमेध के घोड़े दसों दिशाओं को फतह कर रहे हैं,प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष बंगाल में भी वाम राम हुआ जा रहा है तो हिंदुत्व और हिंदू साम्राज्यवाद से तुम्हें क्यों इतना ऐतराज है।

महाबलि तो हो नहीं हरक्यूलियस कि इस तिलिस्म की दीवारे ढहा दोगे कि तख्तोताज हवा में उछाल दोगे।मुफ्त में मारे जाओगे।

बंगाल में हर चौथा वोटर अब केसरिया है।
तृणमूल के वोट बढ़ गये हैं और संघ परिवार के वोट चार फीसद से पच्चीस तक छलांगा मार गया है।

पच्चीस फीसद और इजाफा करने का हर इंतजाम हो रहा है।

वाम साख गिरी है।
मानते हैं हम।
वाम जनाधार टूटा है ,मानते हैं हम।
वाम सत्ता अब अतीत है,मानते हैं।
फिर भी वाम राम हुआ जा रहा है,इस पहेली को बूझने में नाकाम हैं।

बहुजन समाज भावनाओं का गुलाम है।
बहुत बहुत भावुक है भारतीय जन गण मण।
राजनीति दरअसल इन्हीं भावनाओं का इस्तेमाल करने की दक्षता और कला है।

इसी में नींव है हिंदु्त्व और हिंदू साम्राज्यवाद का यह मुक्तबाजारी कार्निवाल।
यहीच हरित क्रांति।
यहीच दूसरका हरित क्रांति।
यहीच विकास दर और अच्छे दिन।
यहीच डाउकैमिक्लस की हुकूमत और यहीच मनसैंटो राजकाज मिनिमम कारपोरेट केसरिया।

धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद इसी कला और दक्षता की पराकाष्ठा है।

हम समझते हैं कि जयभीम,जय मूलनिवासी और नमो बुद्धाय से आगे न हमारा बहुजन गौतम बुद्ध के पथ पर एक कदम बढ़ने को तैयार है और न किसी को अंबेडकर के जाति उन्मूलन और उनके बहुजन हिताय अर्थशास्त्र की परवाह है।
भावनाओं की राजनीति ही अंबेडकर एटीएम है।
पुरखों की लड़ाई और विरासत एटीएम दुकान हैं।
सारे राम हनुमान हैं।

हमारे मित्र,विचारधारा के मोर्चे पर हमें खारिज करने में एक सेकंड देरी नहीं लगाते और उनका महाभियोग हमारे विरुद्ध यही है कि हमारा लिखा भाववादी है।

उनके मुताबिक हम कुल मिलाकर एक अदद किस्सागो है जो जरुरी मुद्दो पर बात तो करता है लेकिन विचारधाराओं की हमारी कोई नींव हैइच नहीं।

लंपट मठाधीशों के फतवे के मुताबिक लिखने पढ़ने और इतिहास में अमर हो जाने की कालजयी तपस्या हमने छोड़ दी है और मोक्ष में हमारी कोई आस्था नहीं है।

जिंदगी अगर नर्क है तो हम स्वर्ग की सीढ़ियां बनाने वाले लोगों में नहीं हैं।

गोबर माटी कीचड़ और जंगल की गंध में बसै मेरे वजूद का कुल मिलाकर किस्सा इसी नर्क के स्थाई बंदोबस्त के तिसिल्म को तोड़ने का है।

मृत्यु उपत्यका अगर है देश यह,तो इस मृत्यु उपत्यका में मौत और तबाही के खूनी मंजर को बदल देने की हमारी जिद है।

हमारे वस्तुवादी,भौतिकवादी वाम को क्या हुआ,पहेली यह है।
पैंतीस साल के वाम राज में कैसा अजेय दुर्ग का निर्माण किया कि उसके चप्पे चप्पे में कामरेडों के दिलोदिमाग में कमल ही कमल हैं,पहेली यह है।
पहेली यह है कि विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता यह कैसी है जो हवा बदलने से हवा के साथ हवा हो जाती है और मौकापरस्ती सर चढ़कर बोलती है।

हम पहले लिख रहे थे कि बहुजनों के सारे राम हनुमान हो गये हैं।
अब हमें लिखना पड़ रहा है,वाम अभी राम है।वाम अभी राम राम शा है।
हम कह रहे थे,लाल में हो नीला।
हम कह रहे थे,नीले में हो लाल।
हम कह रहे थे कि देश के सर्वहारा मेहनतकशों की अस्मिता एकच आहे।
हम कह रहे थे कि देश के सर्वाहारा मेहनतकश दरअसल मूलनिवासी आहेत।
हम कह रहे थे कि हिंदुत्व और हिंदू साम्राज्यवाद का विकल्प कोई कारपोरेट राजनीति नहीं हो सकती।
हम जनपक्षधर जनता के राष्ट्रीय मोर्चा की बात कर रहे थे और पागल दौड़ के खिलाफ गांधी के जनमोर्चे की बात कर रहे थे विचारधाराओं के आर पार।
न लाल नीला हुआ है।
न नीला लाल होने के मिजाज में है।
लाल भी केसरिया हो रहा है
और नीला भी केसरिया हो रहा है।
कमल कायकल्प की यह कैसी विचारधारा है,यह अबूझ पहेली है।

हमारे विचार विशेषज्ञ मित्रों को हमें खारिज करने का पूरा हक है और वे हमें इस काबिल भी नहीं मानते कि हमारे सवालों का जवाब दें।
लेकिन हालत यह है हुजूर कि संघ परिवार का विकल्प उसका बाप है।
लेकिन हालत यह है हुजूर कि
आप बना बाप,वाम हुआ राम और बहुजन हनुमान!
सर कलम होने से पहले अब हम करें तो क्या?

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