THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Monday, March 14, 2016

राजीव नयन बहुगुणा उवाच,उनके फेसबुक वाल से साभार धिक् नराधम --------------- प्रागैतिहासिक काल के आख्यानों में युयुत्सु शासक अपनी जीत का डंका बजाने के लिए घोड़े की बलि देते थे । इसे अश्व मेध यज्ञ कहा जाता था । आज देहरादून में उत्तराखण्ड के एक माननीय विधायक ने यह वेद विहित रस्म साकार कर दी । मनुष्य की मूक हय से यह कैसी प्रतिद्वन्द्विता । यह क्रूरता का जुगुप्सु सार्वजनिक विस्फोट ! धत्तेरे की । अय हिंसक पशु तुल्य , तू तो गधे से भी न्यून निकला ।


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राजीव नयन बहुगुणा उवाच,उनके फेसबुक वाल से साभार

धिक् नराधम 
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प्रागैतिहासिक काल के आख्यानों में युयुत्सु शासक अपनी जीत का डंका बजाने के लिए घोड़े की बलि देते थे । इसे अश्व मेध यज्ञ कहा जाता था । आज देहरादून में उत्तराखण्ड के एक माननीय विधायक ने यह वेद विहित रस्म साकार कर दी । मनुष्य की मूक हय से यह कैसी प्रतिद्वन्द्विता । यह क्रूरता का जुगुप्सु सार्वजनिक विस्फोट ! धत्तेरे की । अय हिंसक पशु तुल्य , तू तो गधे से भी न्यून निकला ।


अपने वस्त्र विन्यास में परिवर्तन के संघ निर्णय को एक अच्छे संकेत के रूप में देखना चाहिए । यद्यपि पहले उनकी ड्रेस अंग्रेजों के अर्दलियों जैसी थी , और अब प्रस्तावित ड्रेस सिक्योरटी गार्ड जैसी है । आशा की जानी चाहिए , कि उनमें स्वयं के आचार व्यवहार के प्रति प्रायश्चित का भाव जाग रहा है , तथा वे अलगाव और हिंसा का मार्ग छोड़ , राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल होना चाहते हैं । यदि सचमुच ऐसा है , तो इसका करतल ध्वनि से स्वागत होना चाहिए । उन्हें गांधी , कार्ल मार्क्स , भगत सिंह , टॉलस्टॉय एवं मैक्सिम गोर्की इत्यादि का राजनैतिक साहित्य उपलब्ध कराया जाना चाहिए , तथा इतिहास , भूगोल , विज्ञान आदि की बुनियादी शिक्षा दी जानी चाहिए , ताकि उन्हें शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हो सके ।

स्वयं को अच्छी तरह धुल चुकने के बाद वही बचा खुचा पानी हमारी ओर ढोल देता है आकाश . गनीमत यही है की नहाते धोते समय साबुन का इस्तेमाल नहीं करता . वरना हम कैसे पीते साबुन मिला पानी . हमारे अनाजों में भी तब साबुन की गंध आती ...


दिल्ली में उत्तराखंड प्रवासियों के सारे धरना - प्रदर्शन जन्तर मन्तर पर रविवार को ही क्यों होते हैं ? क्या किसी जोतखी ने बताया है ? सन्डे को 12 बजे के आसपास घर से खाना खा कर वहां भूख हड़ताल पर जा बैठते हो । फिर 4 बजे के आसपास इंडिया गेट पर आइसक्रीम कुल्फी खाकर अपनी भूख हड़ताल पिकनिक मनाते हुए तोड़ते हो। मत किया करो हर हफ्ते ऐसी भूख हड़ताल , कमज़ोर हो जाओगे । अन्यथा कभी कार्यदिवस पर भी बैठो जंतरमंतर ।


जो भी जोगटा जटा जूट डाई से रंगता है , मेक अप करता है , हज़ारों लाखों का मज़मा जुटा कर योग , ध्यान और साधना का प्रपञ्च रचता है , टी वी चैनलों को दारू और पैसा पिला कर अपना ढिंढोरा करवाता है , वह पाषंडी , धूर्त , कामी और लोभी है यह ठीक से समझ लो । इस श्रेणी में अब तक पिछली सदी का रजनीश चन्द्र मोहन जैन उर्फ़ ओशो अव्वल है , जिसके अगणित बुद्धि और धन सम्पन्न भक्त थे , और हैं । उनकी बुद्धि और धन दोनों का हरण कर वह ऐश उड़ाता था । वह एक तार्किक , बौद्धिक , अध्य्यन शील और आधुनिक दृष्टि वाला मायावी था , जिसने लोक मनोविज्ञान का खूब दोहन किया । विवादास्पद उलट बाँसियां कह कर धन , यश और दारा को भोगने की उसे लत पड़ गयी थी , लेकिन भारत और अन्यत्र भी चमत्कार की बजाय आचरण की ही सदैव पूजा होती रही है , इस तथ्य को जान कर भी वह अनजान बना रहा । गांधी की जम कर खिल्ली उड़ाता और तालियां बटोरता था । लेकिन गांधी और उसका भेद अंततः तब सामने आ गया , जब वह कई साल दमा और पीठ दर्द से तड़प कर बिस्तर पर मरा , जबकि गांधी राम नाम जपता हुआ रण भूमि में । दमे और पीठ दर्द ने उसके तमाम आत्म ज्ञान की ऐसी तैसी कर दी । कुल मिला कर उसकी चटोरी और तड़कती फड़कती बातें सलीम जावेद के लेबल की थी , जिनमे आचरण का कोई समावेश न था । ( जारी )


हर हाल में बना रहे फूलों और हरियाली का साथ





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