THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Tuesday, January 31, 2012

तख्तापलट या साजिश(09:16:45 PM) 01, Feb, 2012, Wednesdayकुलदीप नैय्यर

 तख्तापलट या साजिश(09:16:45 PM) 01, Feb, 2012, Wednesdayकुलदीप नैय्यर

http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/2692/10/0 


बांग्लादेश में सत्ता पलट की कोशिश नाकाम हो गई है। इसके साथ ही इस बात की पुष्टि भी हो गई कि भारत की खुफिया एजेंसियों ने ढाका के उच्च पदस्थ सैन्य अधिकारियों को शेख हसीना की सरकार के खिलाफ साजिश रचे जाने के बारे में आगाह किया था। बांग्लादेश की सेना समय पर हरकत में आ गई और बगावत को शुरूआत में ही नाकाम कर दिया।
1975 में बंगबंधु शेख मुजीर्बुर रहमान और उनके परिवार के 15 सदस्य सेना के हाथों मारे गए थे। उस वक्त भी भारत की खुफिया एजेंसी ने मुजीब पर हमले के खतरे से आगाह कराया था। लेकिन उस वक्त सेना के बड़े अधिकारी ही बगावत की साजिश में शामिल थे। इस कारण जानबूझ कर सेना हरकत में नहीं आई। नतीजा क्या हुआ, सभी को मालूम है।
बांग्लादेश की सेना ने 2008 में सिविल प्रशासन को सत्ता सौंपी थी। इसके साथ ही इस बात का एहसास हो गया था कि वहां की सेना देश का शासन चलाने को इच्छुक नहीं है। परिणामस्वरूप स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हुआ और संसद में तीन-चौथाई बहुमत के साथ शेख हसीना सत्ता में लौटीं। जिस वक्त सेना बांग्लादेश की कामचलाऊ सरकार को समर्थन दे रही थी और स्थायी सरकार की राह बना रही थी, उसी वक्त उसे पता चल गया था कि शेख हसीना की अवामी लीग और खालिदा जिया की नेशनलिस्ट बांग्लादेश पार्टी के बड़े राजनीतिज्ञ भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। सेना में कई लोग इस बात को लेकर चिंतित थे कि राजनीतिक प्रक्रिया के फिर से बहाल होने से उसी पुराने भ्रष्टाचार की वापसी होगी। इसके बावजूद सेना ने नागरिक शासन को तरजीह दी और प्रतिनिधि चुनने के जनता के अधिकार के आगे झुक गई। लेकिन मतदाता जो चाहते थे, वैसा हुआ नहीं। प्रशासन से जो उम्मीदें थीं वे पूरी नहीं हुर्इं। भ्रष्टाचार और परिवारवाद और यादा बढ़ गया। अब जनता को इनसे संघर्ष करना है। यह काम सेना नहीं कर सकती। लोकतंत्र और तानाशाही का यही अंतर है। 
सेना के बयान में कहा गया है कि ''कुछ अप्रवासी बांग्लादेशियों के उकसावे में सेना के कुछ अवकाश प्राप्त और कुछ कार्यरत मतान्ध अधिकारियों ने सेना में अराजकता की स्थिति पैदाकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपदस्थ करने की नाकाम कोशिश की। इन्हें कुछ धार्मिक उन्मादियों की मदद मिल रही थी। लेकिन इस घृणित कोशिश को नाकाम कर दिया गया।''
सेना की ओर से आगे कहा गया है : ''सैन्य सेवा के कुछ कार्यरत अधिकारी सेना के जरिए लोकतांत्रिक शासन को अपदस्थ करने की साजिश में शामिल थे।'' एक बड़े सैन्य अधिकारी के खिलाफ जांच हो रही है जबकि एक दूसरा अधिकारी मेजर मोहम्मद जिया-उल-हक फरार है। साफ है कि सेना के कुछ धार्मिक उन्मादी और असंतुष्ट अधिकारियों ने सत्ता पलट की कोशिश की। कारण है कि उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष हसीना सरकार ने कठमुल्लों को सख्ती के साथ दबाया है। जिसके कारण वे लोग सरकार से नाखुश हैं। इसके साथ ही बांग्लादेश में ही भारत की तरह कुछ ताकतें हैं, जो माहौल बिगाड़ने में लगातार जुटी रहती हैं। शेख मुजीर्बुर रहमान की हत्या के वक्त भी यही स्थिति थी। उन्होंने किसी तरह के अतिवादियों और बांग्लादेश के बनने से नाखुश लोगों की कोई परवाह नहीं की थी। सेना में इस्लामी ताकतों का जमावड़ा हो जाने पर शेख हसीना ने खेद व्यक्त किया है। यह ध्यान देने वाली बात है क्योंकि पाकिस्तान में भी ऐसा ही हुआ है। 
मेरी जानकारी के अनुसार इस बार सत्ता पलट की कोशिश करने वालों को भारत में कार्यरत ताकतों से मदद मिली है। उल्फा और नागाओं की मौजूदगी बांग्लादेश में रही है। मणिपुर के उग्रवादी भी इस कोशिश में साथ थे। यह आश्चर्य की बात है कि बांग्लादेश अपने यहां भारत विरोधी ताकतों को पनाह नहीं देता। लेकिन इस मामले में भारत पहले से ही आलसी और निष्क्रिय रुख अपनाता आ रहा है। बड़े स्तर पर भारत पर यह दोष जाता है। भारत बांग्लादेश के साथ जुड़ाव नहीं बना सका है।
व्यापार, ऊर्जा और व्यवसाय के क्षेत्र में किए गए वायदे पूरे नहीं हो सके हैं। रिश्तों को सुधारने के लिए शेख हसीना ने एकपक्षीय तरीके से जो कोशिशें की हैं, उसे लेकर बांग्लादेश के बहुत सारे लोगों में नाराजगी है। फिर भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ व्यापार, ऊर्जा और धन के मुद्दे पर जो करार किया था, उस करार को दिल्ली के नौकरशाह कार्यान्वित नहीं होने दे रहे हैं। नौकरशाह बांग्लादेश विरोधी नहीं हैं। लेकिन लालफीताशाही में बंधे हुए हैं, जिसके कारण कोई योजना या परियोजना बहुत धीमी गति से बढ़ती है। ढाका में जिस सेतु की अत्यधिक आवश्यकता है, वह अभी नक्शे में भी नहीं है। 
मुझे याद है कि बांग्लादेश जब पाकिस्तान से अलग हुआ था उस वक्त दिल्ली ने एक पंचवर्षीय योजना तैयार किया था। इस योजना में ढाका की आर्थिक परियोजनाएं शामिल थीं। पूरे क्षेत्र को विकसित करने पर सहमति बनी थी। हसीना शेख ने नई दिल्ली को इस बारे में कई बार याद दिलाया है। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी है। भारत के पास इसके बचाव में सिर्फ एक बात थी कि बांग्लादेश होकर अपने पूर्वोत्तर रायों में पहुंचने की सुविधा नहीं मिली है। शेख हसीना ने बहुत पहले ही यह सुविधा भी उपलब्ध करा दी। 
बांग्लादेश में सत्तापलट की नाकाम कोशिश नई दिल्ली के लिए न सिर्फ एक चेतावनी है बल्कि एक अवसर भी है। भारत को बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार से असंतुष्ट लोगों के खिलाफ सख्ती से पेश आना चाहिए और यह साबित करना चाहिए कि जरूरत के वक्त वह किसी भी हद तक जाकर बांग्लादेश की मदद कर सकता है। साथ ही भारत को बांग्लादेश के साथ दोस्ती और मजबूत करनी चाहिए। लेकिन अब तक इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। 
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने असम की कुछ जमीन बांग्लादेश को दे दी है। बांग्लादेश ही जमीन का वास्तविक हकदार था। प्रधानमंत्री को अपने इस निर्णय को वैध बनाने के लिए लेकर संसद के अगले सत्र में संविधान संशोधन विधेयक लाना चाहिए। भाजपा और असम की कुछ ताकतें इस हस्तांतरण के विरोध में है। लेकिन उन्हें इस सच्चाई को समझना चाहिए कि संबंधित क्षेत्र बांग्लादेश का ही है और गलत तरीके से पिछले 40 सालों से यह भारत में था। बांग्लादेश की लगातार यह शिकायत रही है कि अगर भूलवश भी कोई बांग्लादेशी भारत की सीमा में पहुंच जाता है तो सीमा बल उसके साथ बहुत क्रूरता के साथ पेश आती है। सीमा बल बांग्लादेशियों के प्रति बहुत ही क्रूर है। पिछले दिनों एक बच्चा भूल से भारत की सीमा में आ गया था। उसे सीमा पुलिस किस निर्ममता के साथ पीट रही थी, यह टीवी चैनलों पर दिखाया गया। 
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बांग्लादेश जाने की सलाह दी जानी चाहिए। वे वहां काफी लोकप्रिय हैं लेकिन कुछ सप्ताह पहले हुई प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यात्रा में जो टीम ढाका गई थी, उसमें ममता बनर्जी नहीं थीं। इस कारण भी ममता को बांग्लादेश का दौरा कर वहां के लोगों की उम्मीदों को पूरा करना चाहिए। अगर ममता बांग्लादेश को तीस्ता नदी से कुछ अधिक पानी बांग्लादेश को देने की घोषणा कर देती हैं, तो पूरा बांग्लादेश उनके जयगान में नाचने लगेगा। इस सिलसिले में उन्हें पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री योति बसु से सीख लेनी चाहिए। बसु ने फरक्का बराज के पानी का हक बांग्लादेश को भी दिया था। 
शेख हसीना ने न सिर्फ बांग्लादेश के सृजन का विरोध करने वालों, बल्कि उस युध्द में राष्ट्रविरोधी तत्वों की गतिविधियों में साथ देने वालों से निपटने का बड़ा काम किया है। उन लोगों ने घनघोर अत्याचार किया था, जो किसी से छुपा नहीं है। प्रतिभाशाली नौजवान लड़कों और लड़कियों को घिनौने तरीके से मार डाला गया था। यही हत्यारे या उनका साथ देने वाले शेख हसीना के खिलाफ सत्ता पलट की कोशिश में जुटे हुए थे। इस कोशिश को नाकाम करने के बाद सेना के बयान में जब कहा गया कि 'वैसे जघन्य अपराध को नाकाम कर दिया गया है', तो इसका मतलब हुआ कि शेख हसीना को पहले भी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा था। यह चिंता का विषय है।

 
  

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