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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Saturday, June 30, 2012

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट और मुसलमान

http://www.chauthiduniya.com/2010/09/sachchar-kameti-ki-riport-our-musalman.html

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट और मुसलमान

इस्लाम हमेशा हमारे दिलों के क़रीब रहा है और भारत में इसका विकास और विस्तार लगातार जारी रहेगा. हमारी धार्मिक सोच इतनी विस्तृत है कि इसमें हर विचारधारा के लिए जगह है. सभी धार्मिक विचारधाराएं अपनी पहचान बनाए रखते हुए एक साथ रह सकती हैं. देश के मुसलमान राष्ट्रीय जीवनशैली, राजनीति, उत्पादन प्रक्रिया, व्यवसाय, सुरक्षा, शिक्षा, कला, संस्कृति और आत्माभिव्यक्ति में बराबर के साझीदार हैं. कोई भी ऐसा अवसर जो आम भारतीय के लिए है, वह हर भारतीय मुसलमान को भी उपलब्ध है. हम किसी भी धर्म के समर्थक के ख़िला़फ कोई विभेद नहीं करते हैं. यह बयान है हमारे देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का.

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट 30 नवंबर, 2006 को गुरुवार के दिन लोकसभा में पेश की गई. संभवत: स्वतंत्र भारत में यह पहला मौक़ा था, जब देश के मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक हालात पर किसी सरकारी कमेटी द्वारा तैयार रिपोर्ट संसद में पेश की गई थी. हालांकि यह पहली बार नहीं था कि भारतीय मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के मामले की जांच के लिए आधिकारिक कमेटी का गठन किया गया.

भारत सरकार ने 9 मार्च, 2005 को देश के मुसलमानों के तथाकथित सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन से जुड़े मुद्दों की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी (भविष्य में एचएलसी के रूप में निर्दिष्ट) गठित की थी. कमेटी को मुसलमानों की आर्थिक गतिविधियों के भौगोलिक स्वरूप, उनकी संपत्ति एवं आय का ज़रिया, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर, बैंकों से मिलने वाली आर्थिक सहायता और सरकार द्वारा प्रदत्त अन्य सुविधाओं की जांच-पड़ताल के लिए कहा गया था. मानवाधिकारों के जाने-माने समर्थक जस्टिस राजिंदर सच्चर के नेतृत्व में गठित यह कमेटी सच्चर कमेटी के नाम से ही जानी जाती है. जाने-माने शिक्षाविद्‌ सैयद हामिद, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं वर्तमान में हमदर्द विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और सामाजिक कार्यकर्ता ज़़फर महमूद इसके सदस्यों में शामिल थे. इसके अलावा अर्थशास्त्री एवं नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के सांख्यिकीविद्‌ डॉ. अबुसलेह शरी़फ इस कमेटी के सदस्य सचिव थे. कमेटी को सरकारी एजेंसियों और विभागों से काग़ज़ातों एवं रिकॉड्‌र्स मांगने की छूट दी गई थी.

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट 30 नवंबर, 2006 को गुरुवार के दिन लोकसभा में पेश की गई. संभवत: स्वतंत्र भारत में यह पहला मौक़ा था, जब देश के मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक हालात पर किसी सरकारी कमेटी द्वारा तैयार रिपोर्ट संसद में पेश की गई थी. हालांकि यह पहली बार नहीं था कि भारतीय मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के मामले की जांच के लिए आधिकारिक कमेटी का गठन किया गया. सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट की शुरुआत में ही कहा है, भारत में मुसलमानों के बीच वंचित होने की भावना काफी आम है, देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति के विश्लेषण के लिए आज़ादी के बाद से किसी तरह की ठोस पहल नहीं की गई है.

जो लोग भारतीय मुसलमानों के हालात पर नज़र रखते हैं, उन्हें याद होगा कि 1983 में ही भारत सरकार ने यह स्वीकार किया था कि मुसलमानों के बीच यह धारणा आम है कि सरकार, चाहे वह केंद्र की हो या राज्यों की, की आर्थिक नीतियों के फायदे अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और समाज के दूसरे कमज़ोर वर्गों तक नहीं पहुंच पाते. इसी आधार पर 10 मई, 1980 को एक उच्चाधिकार प्राप्त पैनल का गठन किया गया था, जिसे गोपाल सिंह पैनल के नाम से जाना जाता है. पैनल ने 14 जून, 1983 को अपनी रिपोर्ट पेश की, लेकिन भारत सरकार ने इसे बहस के लिए संसद के पटल पर पेश नहीं किया. पैनल की रिपोर्ट लंबे समय तक धूल खाती रही. फिर वी पी सिंह की सरकार ने इसे जारी करने का फैसला किया. सरकारी उदासीनता से दूर मुस्लिम बुद्धिजीवियों एवं विद्वानों की एक जमात देश में मुसलमानों के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के कारणों को तलाश करने में लगातार लगी रही. आज़ादी के बाद के दौर में ऐसी शख्सियतों में मुशीरुल हसन, उमर खालिद और रफीक ज़कारिया का नाम सबसे पहले याद आता है. पिछले 10-15 सालों में इन लोगों ने इस क्षेत्र में जितना काम किया है, उस पर कई किताबें लिखी जा सकती हैं. सच्चाई तो यह है कि सच्चर कमेटी से पहले ही देश के मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक हालत से संबंधित दस्तावेज पर्याप्त मात्रा में मौजूद थे. फिर भी कमेटी की रिपोर्ट इन दस्तावेजों से ज़्यादा व्यापक और विस्तृत है, क्योंकि इन विद्वानों के पास रिकॉड्‌र्स, आंकड़ों और अन्य संसाधनों की कमी थी.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा गठित सच्चर कमेटी (एचएलसी) के अध्ययन का दायरा गोपाल सिंह पैनल के मुक़ाबले ज़्यादा व्यापक था. कमेटी को निम्नलिखित मुद्दों की विस्तृत जांच-पड़ताल की ज़िम्मेदारी दी गई थी:

1-                 ऐसे राज्यों, इलाक़ों, ज़िलों और प्रखंडों की पहचान करना, जहां अधिकांश भारतीय मुसलमान रहते हैं.

2-                 उनकी आर्थिक गतिविधियों का भौगोलिक स्वरूप.

3-                 अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों में समाज के दूसरे समूहों के मुक़ाबले इनकी संपत्ति और आय का स्तर.

4-                 सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी.

5-                 राज्य में अन्य पिछड़ा वर्गों की कुल जनसंख्या के मुक़ाबले मुसलमान समुदाय में इस वर्ग का अनुपात.

6-                 शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं, स्थानीय संस्थाओं, बैंकों से मिलने वाले क़र्ज़ और सरकार एवं सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली अन्य सुविधाओं तक मुसलमान समुदाय की पहुंच.

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट स्वाभाविक रूप से इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित है. 12 खंडों में बंटी और 400 पृष्ठों में फैली यह रिपोर्ट गोपाल सिंह पैनल की रिपोर्ट से कहीं ज़्यादा उपयोगी है. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में मुसलमान समुदाय की सामाजिक-आर्थिक हालत का यह सबसे प्रमाणिक दस्तावेज है.

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