THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Monday, June 25, 2012

विकास की कीमत चुका रही है दम तोड़ती शिप्रा नदी

विकास की कीमत चुका रही है दम तोड़ती शिप्रा नदी


Monday, 25 June 2012 10:06

अंबरीश कुमार  श्यामखेत, 25 जून। हल्द्वानी से करीब चालीस किलोमीटर यह जगह शिप्रा नदी का उद्गम स्थल है पर अब यह आबादी वाले इलाके में बदल चुकी है और नदी को धकेल कर किनारे कर दिया गया है। अब इसे नदी तभी कहा जा सकता है जब भारी बरसात के बाद सभी नदी नालों और गधेरों का पानी इसमें समा जाए। वर्ना नदी के आगे फोटो में जो बोर्ड लगा है उसे देख लें और बोर्ड के पीछे नदी को भी तलाशने का प्रयास करें। यह बोर्ड इस नदी के दम तोड़ने की कहानी बता देता है। श्यामखेत से करीब पच्चीस किलोमीटर दूर खैरना के पास यह दूसरी पहाड़ी नदी से मिलकर कोसी में बदल जाती है। पर इससे पहले का शिप्रा नदी का सफर और उसकी बदहाली को समझने के लिए श्यामखेत आना पड़ेगा। इस नदी की मूल धारा जहां से गुजरती थी वह कंक्रीट की सड़क बन चुकी है और जो खेत थे वे पाश इलाके में बदल चुके हैं। ऊंची कीमत पर पहले जमीन बिकी फिर उनपर आलीशान घर बना दिए गए। 
श्यामखेत के संजीव कुमार ने कहा -करीब दस साल पहले तक इस नदी में लगभग पूरे साल कई जगह छह फुट से ज्यादा पानी होता था और बरसात में तो इसकी बाढ़ से सड़क के ऊपर पानी बहता था। पर लोगों ने इस नदी के नीचे पत्थरों को निकाल कर सड़क से लेकर घर तक में इस्तेमाल किया और इसकी धारा भी घुमा दी गई। इस वजह से धीरे-धीरे इसमें पानी कम होने लगा तो लोगों ने इसे कूड़ेदान में बदल दिया। 
श्यामखेत घाटी में बसा है और चारों तरफ चीड़, देवदार और बांस के घने जंगल हंै। आस पास की पहाड़ियों का सारा पानी इसी नदी में आकर इसे समृद्ध करता रहा है। पर विकास के नामपर पहाड़ से गिरने वाले नालों और झरनों पर भी अतिक्रमण हुआ और पानी के ज्यादातर स्रोत धीरे धीरे बंद होते गए। भवाली में प्रशासन ने रही सही कसर इस नदी के दोनों किनारों को बांध कर पूरी कर दी। 

भवाली से गुजरें तो एक बड़ा सा नाला नजर आता है और इसमें कूड़े करकट के साथ नाली का पानी बहाया जाता है। पर यह दरअसल शिप्रा नदी है जो अब नाले में बदल चुकी है और नाला भी अतिक्रमण का शिकार है। कुमाऊं में जिस तरह से पानी के परंपरागत स्रोतों, बरसाती नालों और गधेरों को बंद किया जा रहा है, वह एक बड़े संकट का संकेत भी दे रहा है। जिस संकट से अल्मोड़ा कई सालों से गुजर रहा है वह संकट झीलों के शहर नैनीताल और आसपास मंडराने लगा है। 
नैनीताल की झील का पानी कई फुट नीचे आ चुका है तो दूसरी झीलों का पानी भी घट रहा है। अंधाधुंध निर्माण के कारण पानी के स्रोत घटते जा रहे हैं। ऐसे में शिप्रा नदी को अगर नहीं बचाया गया तो अगला नंबर दूसरी नदियों का होगा। इस अंचल में कई छोटी-छोटी बरसाती नदियां है जो बड़ी नदियों की जीवनरेखा की तरह काम करती है। लेकिन अब शिप्रा जैसी कई बरसाती और छोटी नदियां संकट में हंै। इन नदियों से बड़े बड़े पत्थर और बालू हटा देने की वजह से पानी नीचे रिस जाता है जिसका असर उन नदियों पर पड़ता है जिनमें मिलकर ये उसे समृद्ध करती हैं। गढ़वाल की तरफ जहां बड़ी नदियां ग्लेशियर से निकलती हैं वहीं इस तरफ प्राकृतिक स्रोतों से। पानी के परंपरागत स्रोतों पर अतिक्रमण होने से यह संकट काफी बढ़ता नजर आ रहा है ।

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