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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Thursday, January 31, 2013

कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ♦ प्रकाश के. रे

http://mohallalive.com/2013/01/28/meaninf-of-freedom-of-expressio/

कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

♦ प्रकाश के. रे

प्रो.आशीष नंदी के बयान के समर्थन में मुख्य रूप से दो तरह के तर्क दिए जा रहे हैं। एक, उन्हें ठीक से नहीं समझा गया और उन्होंने अपनी बात का स्पष्टीकरण दे दिया है जिसके बाद यह विवाद थम जाना चाहिए। दूसरी बात यह कही जा रही है कि उन्हें अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है और जो लोग उसपर सवाल उठा रहे हैं, वे उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला कर रहे हैं। कभी-कभी इन दोनों बातों को एक ही साथ गूंथ कर भी कहा जा रहा है। और फिर यह भी कह दिया जा रहा है कि विद्वान हैं, उनका काम देखिये आदि-आदि।

Ashish Nandy

जो पहला तर्क है, उसे मानने में मुझे परेशानी नहीं है और उनकी सफाई के बाद इस विवाद को खत्म कर देना चाहिए। आज योगेन्द्र यादव ने प्रो नंदी के बयान को रेखांकित किया है और उसे समझाने की कोशिश की है। यहां यह स्पष्ट कर देना उचित रहेगा कि मैं प्रो नंदी के उलट भ्रष्टाचार को एक समस्या मानता हूं और इसे देश के लिए खतरनाक समझता हूं।

बहरहाल, उनके बयान के विरोध को योगेन्द्र यादव भी सेंसरशिप कह देते हैं। झमेला यहीं खड़ा होता है। और उनकी बात दूसरे तर्क के साथ जुड़ जाती है। अगर पहले तर्क को मानें तो हमें उम्मीद करनी चाहिए कि विरोध करने वाले जल्दी ही उसे समझेंगे और कानूनी पेंच भी सुलझ जायेगा। मान लिया जाये कि आशीष नंदी की बात को ठीक से नहीं समझा गया तो क्या विरोध करने वाले अलोकतांत्रिक हो जाते हैं?

सीधी बात है कि जिनको यह लगा कि यह बयान जातिवादी है और कई समुदायों के विरुद्ध है, उन्होंने इसका विरोध किया। और यह विरोध लोकतांत्रिक और कानूनी आधारों पर है। और जो दूसरा तर्क है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में, तो मेरा सीधा सवाल है कि ये लोग स्पष्ट करें कि क्या प्रो. आशीष नंदी का बयान वही है जैसा विरोधियों ने सुना या फिर उसे ठीक से नहीं समझा गया जैसा योगेन्द्र कह रहे हैं। अगर वे किसी बौद्धिक को विमर्श के बहाने कुछ भी कह देने के अधिकार के समर्थक हैं तो उन्हें ओवैसियों और तोगडि़यों को भी यह अधिकार देना होगा। और इस मुद्दे को तसलीमा नसरीन या विश्वरूपम फिल्म के मसले से भी नहीं जोड़ा जाना चाहिए।

Prakash-K-Ray(प्रकाश कुमार रे। सामाजिक-राजनीतिक सक्रियता के साथ ही पत्रकारिता और फिल्म निर्माण में सक्रिय। दूरदर्शन, यूएनआई और इंडिया टीवी में काम किया। फिलहाल जेएनयू से फिल्म पर रिसर्च। उनसे pkray11@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)

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