THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Friday, January 25, 2013

आपातकाल के नसबंदी अभियान से ज्यादा निर्ममता के साथ नागरिक अधिकारों व मानवाधिकार से वंचित कर रही है सरकार!

आपातकाल के नसबंदी अभियान से ज्यादा निर्ममता के साथ नागरिक अधिकारों व मानवाधिकार से वंचित कर रही है सरकार!

पलाश विश्वास

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को राष्ट्र को संबोधित कर दिया। देश के सर्वोच्च​​ धर्माधिकारी के उद्गार को सुनने के बाद हम वह गणतंत्र उत्सव मनायेंगे, जो अघोषित आपातकाल का प्रतीक बन कर आया है देश के ​​बहुसंख्य बहिस्कृत जनसमुदाय के लिए। राष्ट्रपति ने दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार और उसके बाद आक्रोषित युवाओं के प्रदर्शन  का हवाला देते हुए कहा कि सवाल उठाया कि देश की व्यवस्थापिका उभर रहे भारत को प्रतिविम्बित करती है या फिर इसमें मौलिक सुधार की आवश्यकता है।उन्होंने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को जनता का विश्वास अवश्य जीतना चाहिए। युवाओं की व्यग्रता और अधीरता को तेजी और प्रतिष्ठा से पूरी व्यवस्था के साथ बदलाव की ओर निर्देशित करना होगा।क्या राष्ट्रपति को सोनी सोरी और मणिपुर की माताओं से बलात्कार के विरुद्ध चल रहे जनांदोलनों की खबर नहीं है? किस युवा आक्रोश की सराहना कर रहे हैं? राष्ट्रपति जस्टिस वर्मा ने भी इसी  युवा आक्रोश को सलाम किया है। पर उन्होंने  सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून खत्म करने और दागी राजनेताओं को प्रतिबंधित करने की बात भी की है। इस मुद्दे पर देश के प्रथम नागरिक खामोश है चूंकि सरकार जस्टिस वर्मा के इन सुझावों का क्रियान्वयन तो नहीं ही करेंगे। पर जस्टिस वर्मा ने भारत में मानवाधिकार उल्लंघन की ओर कम से कम इशारा तो कर ही दिया !मीडिया और कारपोरेट समर्थन से नागरिक सुशील समाज के जिस आंदोलन की सरकार परवाह करती है, जैसा कि राष्ट्र के नाम राष्ट्रपति के​​ संबोधन में प्रतिबिंबित है, उसे देश की आम जनता और विशेष तौर पर सैन्य राष्ट्र के तहत अश्वमेध अभियान में मारेजा रहे बहुसंख्यक जन गण की कितनी परवाह है?यह युवा आक्रोश किसी सोनी सोरी और मणिपुर की माताओं से हुए बलात्कार के खिलाफ या बारह साल से आमरण अनशन कर रही इरोम ​​शर्मिला के आमरण अनशन के प्रसंग में क्यों नहीं अभिव्यक्त होता?क्या हम गणतंत्र उत्सव महज इसलिए मनायेंगे कि राजपथ पर भव्य परेड होगा? या हम गणतंत्र उत्सव महज इसलिए मनायेंगे कि पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी गयी है? पद्म पुरस्कारों का एलान हो गया है। इस बार देश और विदेशों में रह रहे कुल 108 मशहूर हस्तियों को उनके योगदान के लिए पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। मशहूर वैज्ञानिक प्रोफेसर यशपाल को पद्म विभूषण पुरस्कार दिया गया है जबकि अभिनेता राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। अभिनेत्री श्रीदेवी और फिल्मकार रमेश सिप्पी को पद्मश्री दिया गया है। हास्य कलाकार जसपाल भट्टी और क्रिकेटर राहुल द्रविड़ को भी पद्मभूषण मिला है।इसके अलावा फैशन डिजाइनर रितु कुमार को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को कहा कि आज के युवा अपने अस्तित्व को लेकर ढेर सारी शंकाओं से ग्रस्त हैं। ऐसे में 'उदीयमान भारत' का भरोसा बनाए रखने के लिए चुने हुए जन प्रतिनिधियों को जनता का विश्वास फिर से जीतना होगा। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन में राष्ट्रपति ने युवाओं को बदलाव का अग्रदूत बताया और कहा कि उनके अंदर अस्तित्व को लेकर बहुत सी शंकाएं हैं। उन्होंने कहा, "हम दूसरे पीढ़ीगत बदलाव के मुहाने पर हैं; गांवों और कस्बों में फैले हुए युवा इस बदलाव के अग्रेता हैं। आने वाला समय उनका है। वे आज अस्तित्व संबंधी बहुत सी शंकाओं से ग्रस्त हैं ...

गौरतलब है कि इसी बीच महिलाओं के खिलाफ अपराध पर लगाम लगाने के लिए कानून में व्यापक बदलाव की न्यायमूर्ति वर्मा समिति की सिफारिशों के एक दिन बाद ही सरकार ने आज संकेत दिया कि वह सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) कानून और सांसदों को आयोग्य घोषित करने से संबंधित सिफारिशों पर अमल नहीं कर सकेगी।  विधि मंत्री अश्विनी कुमार ने आज एक समाचार चैनल से कहा कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम की समीक्षा करना कठिन मुद्दा है क्योंकि इसका परिप्रेक्ष्य अलग है।गौरतलब है कि न्यायमूर्ति वर्मा समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि यदि सशस्त्र बल के सदस्य और पुलिसकर्मी वर्दी में महिलाओं के प्रति यौन अपराध करते हैं तो उन्हें सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) कानून के तहत सुरक्षा प्रदान नहीं की जानी चाहिए।महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वाले राजनीतिज्ञों को प्रतिबंधित करने के बारे में कुमार ने कहा, 'अब मैं देश के विधि मंत्री के तौर पर नहीं बल्कि एक नागरिक और एक वकील के तौर पर कह रहा हूं कि मेरा मनना है कि कम से कम एक अदालत से तो दोषी करार दिया जाना चाहिए।।' उन्होंने इस सुझाव से असहमति व्यक्त की कि राजनीतिज्ञों के खिलाफ अदालत में किसी मामले का संज्ञान लिए जाने के बाद उन्हें चुनाव लडऩे के अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।वर्मा समिति ने अपनी सिफारिशों में ऐसे मामलों में राजनीतिज्ञों को चुनाव लडऩे के आयोग्य ठहराने की सिफारिश की है और कहा कि इसमें सुनवाई पूरा होने तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है। समिति ने ऐसे अपराध में अदालत की ओर से संज्ञान लेने के साथ ही राजनीतिज्ञों के चुनाव लडऩे पर रोक लगाने का पक्ष लिया है। अश्विनी कुमार ने कहा, ' कानून की परिभाषा के तहत साक्ष्य के आधार पर दोषी पाया जाना चाहिए।  

राष्ट्र के नाम संबोधन है यह या फिर कारपोरेट विकास गाथा का लोकर्पण ? राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन में जहां देश की विकासगाथा को रेखांकित किया, वहीं लैंगिक असमानता, आर्थिक विकास का लाभ समाज के वृहत्तर वर्ग तक पहुंचने, शिक्षा का लाभ जरूरतमंदों को मिलने की दरकार और भ्रष्टाचार जैसी बुराई से बचने की नसीहत भी दी। पिछले वर्ष 25 जुलाई को राष्ट्रपति पद संभालने के बाद गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में प्रणब मुखर्जी ने कहा, "अब यह सुनिश्चित करने का समय आ गया है कि प्रत्येक भारतीय महिला को लैंगिक समानता की दृष्टि से देखा जाएगा।किस विकास की बात कर रहे हैं राष्ट्रपति? किस अर्थ व्यवस्था की विकासगाथा है यह जो देहात, कृषि और बहुसंख्य जनसंख्या की​​ नैसर्गिक आजीविका कृषि व्यवस्था की लाश की नींव पर रची गयी है? किसका विकास है यह? सेनसेक्स, शेयर बाजार और कारपोरेट इंडिया​ ​ के विश्वविजय अभियान, आतंकवाद के विरुद्ध इजराइल और अमेरिकी अगुवाई में अमेरिकी युध्दक अर्थव्यवस्था से नत्थी इस अर्थ​​ व्यवस्था का आधार क्या है, जिसकी उछाल आम जनता के लोकतंत्र और विकास प्रक्रिया से बहिष्कार पर निर्भर है?राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने शुक्रवार को कहा कि राजधानी में चलती बस में पैरामेडिकल की छात्रा से बलात्कार और जघन्य कृत्य की घटना से सबक लेते हुए देश को अपनी नैतिक दिशा को फिर से निर्धारित करनी होगी और युवाओं को अपने सपनों को साकार करने का अवसर देना होगा। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने पहले संदेश में मुखर्जी ने महिलाओं के सम्मान की रक्षा और युवाओं को रोजगार के अवसर मुहैया कराने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने भरोसा जताया कि अगले एक दशक में भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार आएगा। उन्होंने सीमा पार आतंकवाद पर भी चिंता व्यक्त की।युवाओं को अवसर यानि युवराज राहुल गांधी और उनकी वाहिनी को अवसर, क्या राष्ट्रपति यही बताना चाहते हैं?

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने सभी संस्थानों के सदस्यों व पेंशनधारकों से आधार कार्ड मांगे हैं। अधिकारियों के अनुसार संगठन की ओर से प्रदान की जाने वाली सेवाओं की गुणवत्ता में और सुधार लाने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया गया है।अगर आप नौकरी करते हैं तो आपके लिए आधार कार्ड बनवाना जरूरी हो गया है क्योंकि ईपीएफओ यानि एंप्लॉइज प्रॉविडेंट फंड ऑर्गेनाइजेशन ने कहा है कि ईपीएफ स्कीम का फायदा उठाने के लिए आधार नंबर देना जरूरी होगा।देश के करीब 5 करोड़ नौकरीपेशा लोगों का ईपीएफओ में अकाउंट है। और संस्था का कहना है कि इन सभी सदस्यों को 30 जून तक अपना आधार नंबर देना होगा। 1 मार्च या उसके बाद नौकरी शुरू करने वालों के लिए भी केवाईसी के लिए आधार नंबर देना जरूरी होगा। हालांकि, जिन लोगों के पास आधार नंबर नहीं होगा उन्हें एंप्लॉयर की तरफ से एक एनरोलमेंट आईडी जारी की जा सकती है जिसे बाद में आधार नंबर में बदल दिया जाएगा।पेंशनभोगी अपने बैंक की ब्रांच या ईपीएफओ के ऑफिस में अपना आधार नंबर जमा कर सकते हैं। ईपीएफओ ने अपनी सर्विस सुधारने के लिए आधार नंबर को जरूरी कर दिया है। ईपीएफओ एक सेंट्रल डेटाबेस पर भी काम कर रहा है जिसमें ये कोशिश की जा रही है कि सभी सदस्यों को एक यूनिक अकाउंट नंबर दिया जाए ताकि नौकरी बदलने पर पीएफ अकाउंट ट्रांसफर कराने के झंझट से मुक्ति मिल सके।

भारतीय संविधान हो या अंतरराष्ट्रीय कानून किसी भी हाल में गणतंत्र में नागरिक अधिकार व मानवाधिकार निलंबित नहीं किये जा सकते। विशेष सैन्य अधिकार कानून के बहाने समूचे पूर्वोत्तर और कश्मीर में ऐसा ही हो रहा है। दंडकारण्य और देश के जदूसरे आदिवासी इलाकों में सलवा जुड़ुम और रंग बिरंगे अभियानों के तहत सैन्य शासन ही चल रहा है। जल जंगल जमीन और आजीविका से बहुसंख्य जनता को बेदखल करने के मकसद से सर्वदलीय सहमति से जनसंहार की नीतियों को लागू करने के लिए संविदान की हत्या करते हुए एक के बाद एक नये कानून बन रहे हैं।​​अबाध विदेशी पूंजी प्रवाह और कालेधन की अर्थव्यवस्था के तहत अंध धर्मराष्ट्रवाद का आवाहन करके बहुसंख्य जनगण की हत्या का​ ​ इंतजाम है। संसदीय लोकतंत्र की प्रासंगिकता ही खत्म हो रही है। नेटो के जिस बायोमेट्रिक नागरिकता प्रकल्प को नागरिकों की गोपनीयता​ ​ और संप्रभुता के उल्लंघन के कारण समूचे पश्चिम में खारिज कर दिया गया है, उसे लागू करने के लिए कारपोरेट निगरानी में आपातकाल के नसबंदी अभियान से ज्यादा निर्ममता के साथ नागरिक अधिकारों व मानवाधिकार से वंचित कर रही है सरकार। किस कानून के तहत सरकार आधार कार्ड न होने के कारण वेतन भुगतान रोक सकती है? किस कानून के तहत भविष्य निधि और नकद सब्सिडी को आधार कार्ड से जोड़कर नागरिक अधिकार, रोजगार कमाने, देश में कहीं भी चलने फिरने की स्वतंत्रता और जरुरी सेवाएं अर्जित करने से रोका जा सकता है? किस गणतंत्र में नागरिकता, पहचान , उंगलियों की छाप और आंखों की पुतलियों के अपहरण के प्रावधान हैं? क्या हमारे संविधान में इसकी इजाजत है? क्या सबके लिए समान कानून के तहत इस कारपोरेट वर्चस्व की इजाजत है? क्या य़ुवा आक्रोश इन प्रश्नों के मुखातिब है? क्या सुशील नागरिक समाज ने कारपोरेट बिल्डर प्रोमोटर राज के इस सबसे बड़े हथियार डिजिटल बायोमेट्रिक नागरिकता के खिलाफ कभी सवाल खड़े किये है? जब राष्ट्रीय जनसंखया रजिस्टर बन रहा है तब कारपोरेट हित में आधार कार्ड को अनिवार्य बना देने की आवश्यकता क्यों है? क्या बलात्कार और कालाधन पर हो रहे विमर्श के बरअक्श नागरिक मानव अधिकारों के हनन पर भी राष्ट्रीय विमर्श चल रहा है? अगर सचमुच ऐसा होता तो सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून और सलवा जुड़ुम से जुड़ी वीभत्स खबरें नहीं होतीं। क्या राष्ट्रपति को इसकी चिंता है?

बहरहाल श्रमिक संगठनों ने कर्मचारी भविष्य निधि कोष संगठन (ईपीएफओ) के आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने के फैसले का विरोध किया है। ईपीएफओ ने उससे जुड़े करीब पांच करोड़ सदस्यों के लिए 'आधार' कार्ड जमा कराना अनिवार्य बनाने का स्वत: स्फूर्त निर्णय लिया है। श्रमिक संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ लाल झंडा लहराकर विरोध किया है।ईपीएफओ के फैसले पर सवाल खड़ा करते हुए ट्रेड यूनियन नेताओं ने कहा कि सदस्यों के लिए आधार संख्या को उपलब्ध कराना असंभव होगा क्योंकि देश के कई हिस्सों में यह योजना परिचालन में नहीं है। इसके अलावा जिन राज्यों में यह योजना परिचालन में है वहां आधार नंबर प्राप्त करना जटिल है।भारतीय मजदूर संघ के महासचिव बैजनाथ राय ने बताया, `उन्हें अपने आप यह फैसला नहीं लेना चाहिए था। इसपर ईपीएफओ के अग्रणी निर्णय लेने वाली इकाई, केन्द्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) में विचार विमर्श किया जाना चाहिए था।` राय ईपीएफओ के न्यासी मंडल में भी हैं। उन्होंने आगे कहा, `इसे एकदम से नहीं किया जाना चाहिए था क्योंकि देश के कई भागों में आधार संख्या को बनवाने में कई सारी दिक्कतें हैं।`

राष्ट्र के नाम संबोधन है यह! 64वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मैं भारत में और विदेशों में बसे आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। मैं अपनी सशस्त्र सेनाओं, अर्ध सैनिक बलों और आंतरिक सुरक्षा बलों को विशेष बधाई देता हूं। भारत में पिछले छह दशकों के दौरान, पिछली छह सदियों से अधिक बदलाव आया है। यह न तो अचानक हुआ है और न ही दैवयोग से, इतिहास की गति में बदलाव तब आता है जब उसे स्वप्न का स्पर्श मिलता है। उपनिवेशवाद की राख से एक नए भारत के सृजन का महान सपना 1947 में ऐतिहासिक उत्कर्ष पर पहुंचा, और इससे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह हुई कि स्वतंत्रता से राष्ट्र-निर्माण की नाटकीय कथा की शुरुआत हुई।हमें तत्काल काम में लगना होगा अन्यथा वर्तमान में जिन अशांत इलाकों का प्राय नक्सलवादी हिंसा के रूप में उल्लेख किया जाता है, उनमें और अधिक खतरनाक ढंग से विस्तार हो सकता है। राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा ऎसी सीढी है जो सबसे निचले पायदान पर मौजूद व्यक्तियों को व्यावसायिक और सामाजिक प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुंचा सकती है। शिक्षा हमारे आर्थिक भाग्य को बदल सकती है और समाज में असमानता मिटा सकती हैं। उन्होंने कहा कि हमारे चौंसठवें गणतंत्र दिवस के अवसर पर यद्यपि चिंता का कोई कारण हो सकता है परंतु हताशा का कोई नहीं। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में सवाल उठाया कि क्या समर्थवान लालच में पड़कर अपना धर्म भूल चुके हैं? क्या सार्वजनिक जीवन में नैतिकता पर भ्रष्टाचार हावी हो गया है? क्या हमारी विधायिका उदीयमान भारत का प्रतिनिधित्व करती है या फिर इसमें आमूल-चूल सुधारों की जरूरत है? राष्ट्रपति ने कहा, "हम दूसरे पीढ़ीगत बदलाव के मुहाने पर हैं। गांवों और कस्बों में फैले हुए युवा इस बदलाव के अग्रेता हैं। आने वाला समय उनका है। वे आज अस्तित्व संबंधी बहुत सी शंकाओं से ग्रस्त हैं। क्या तंत्र योग्यता को समुचित सम्मान देता है?  

आधार कार्ड होल्डर की सिफारिश पर यूआईडी

- आधार कार्ड बनवाने के लिए एड्रेस प्रूफ या दूसरे जरूरी डॉक्यूमेंट न होने पर किसी ऐसे शख्स की सिफारिश कारगर है, जिसके पास आधार कार्ड हो।
- सिफारिश करने वाले शख्स का कार्ड नंबर नए एप्लिकेंट के फॉर्म के साथ अटैच कर दिया जाएगा।
- इससे आधार कार्ड बनवाने वालों को सहूलियत होगी।

रेट कट की उम्मीद पर चढ़ा बाजार, सेंसेक्स 180 अंक चढ़ा

रेट कट की उम्मीद और कंपनियों के अच्छे नतीजों के बीच भारतीय शेयर बाजारों में जबरदस्त उछाल आया है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक सेंसेक्स 179.75 अंकों की बढ़त के बाद 20103.53 पर बंद हुआ।

सेंसेक्स 0.90 फीसदी और नैशनल स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक निफ्टी 0.92 फीसदी चढ़े। बीएसई मिड-कैप 1.83 फीसदी और स्मॉल-कैप 1.03 फीसदी चढ़े।

मारुति का नेट प्रॉफिट दोगुना बढ़ा है, जिसकी वजह से सेंसेक्स में मारुति के शेयरों में 4.15 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। मारुति के बाद सबसे ज्यादा बढ़त बजाज ऑटो और जिंदल स्टील में दर्ज की गई।

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