THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Monday, September 22, 2014

धर्मावतार का फलाहार प्रवासी मीडिया का यह धर्मोन्मादी जनविरोधी तेवर मुक्त बाजार का सबसे बड़ा अभिशाप पलाश विश्वास

धर्मावतार का फलाहार प्रवासी

मीडिया का यह धर्मोन्मादी जनविरोधी तेवर मुक्त बाजार का सबसे बड़ा अभिशाप

पलाश विश्वास

आज राष्ट्रीय मीडिया पर ब्रेकिंग न्यूज है कि कैसे अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान भारत के प्रधानमंत्री कैसे नवरात्र मनायेंगे और किसतरह विशुद्ध शाकाहारी धर्मावतार में फलाहार पर वे अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मुक्त बाजार भारत का डिजिटल बुलेट कायाकल्प करेंगे।मेड इन इंडिया का कायाकल्प मेक इन कर गुजरेंगेऔर बाकी सारे सुदारों को किसी खूबी से अंजाम देंगे।पन्ने दर पन्ने रंगे जारहे हैं।


चौबीसों घंटे लाइव।एकाध पन्ना जनता के लिए भी छोड़ो।


एकाध घंटा जनता की भी फिक्र कर लो भइये।

मुखपन्ने पर बन्नू को रहने दो बहाल,स्क्रालिंग पर बताओ हमारा हाल।


प्रधानमंत्री के डांडिया रिहर्सल पर अभी कोई खबर नहीं बनी है क्योंकि शायद अमेरिका से सीधे उस कार्यक्रम का लाइव प्रासारण होना है।


वीजा की फिलहाल कोई समस्या नहीं है तो टीआरपी बढ़ाने के लिए सिनेमायी गाशिप फार्मेट अपनाता मीडिया तो टीआरपी में और इजाफा होता।चाहे तो कपिल शर्मा के वहां प्रोमो डलते या बिग बास में ही धर्मावतार का आसन जमा देते।


मीडिया युद्ध क्या होता है,किसी भी महानगर,नगर और गांव तक की फिजां को सूंघ कर बताया जा सकता है।


मीडिया युद्ध का बार बार यूपी से वास्ता पड़ा है,गाय पट्टी गोबर प्रदेस वगैरह वगैरह बदनामियों के बावजूद जहां मुख्यमंत्री एक बंगालिन रही हैं साठ के दशक में और कमलापति त्रिपाठी तक हुए तमाम मुख्यमंत्रियों की पहचान राष्ट्रीय हुआ करती थी।


देश को एक के बाद एक प्रधानमंत्री देने के बावजूद जो खुद पिछड़ा रहा,लेकिन बाकी देश को संसाधनों के बंटवारे में जिसने चूं तक नहीं की।रेल मंत्री बनकर किसी यूपी वाले ने यूपीरेल नहीं बनाया। बिहार रेल बंगाल रेल की तरह।


यूपी आज भी अस्मिताओं के गृहयुद्ध में घिरे होने के बावजूद वाराणसी के गंगाघाट की तरह किसी भी मुष्य के स्वागत में पलक पांवड़े बिछा सकता है ।


गनीमत है कि यूपी वाले अपने को मराठी बंगाली गुजराती उत्तराखंडी पंजाबी तामिल की तरह  यपीअइया नहीं कहते अब भी।


उस यूपी को आग में शिक कबाब बना देने की कोई कसर नहीं छोड़ी मीडिया ने।


मीडिया क्या कुछ कर सकता है,पिछले चुनावों में जनमतशून्य जनादेशों के निर्माण में उसकी निर्णायक भूमिका के मद्देनजर खुलासा करने की शायद जरुरत नहीं है।


मीडिया कारपोरेट मार्केटिंग बतौर बाजार का विस्तार ही नहीं कर रहा है,धर्मोन्माद का युद्धक कारोबार कर रहा है।


भारत में मीडिया उसीतरह युद्ध गृहयुद्ध कारोबार कर रहा है जैसे अमेरिका की युद्धक अर्थव्यवस्था वैश्विक इशारों के बहाने दुनियाभर में करती है।


गनीमत है कि मीडिया अब भी मुकम्मल अमेरिका बन नहीं सका है वरना वह सीधे कारपोरेट देशी विदेशी कंपनियों के हित में जब जाहे तब भारत पाकिस्तान,भारत चीन, भारत नेपाल,भारत बांग्लादेश युद्ध शुरु करवा देता।


लेकिन कौन माई का लाल उस एफडीआईखोर  महाबलि जनता को आत्मघाती अस्मिता धर्मोन्मादी गृहयुद्ध में जनता को उलझाने से रोक सकता है,हमें नहीं मालूम।


मीडिया का ही कमाल है जैसे बंगाल बाजार की शक्तियों के हवाले है वैसे ही पूरे देश में देश बेचो पीपीपी है।


यही परिवर्तन है जिसके तहत जनता का धरमन्मादी ध्रूवीकरण हो जाये।उस महान संघ परिवारी कार्यभार को पूरी निष्ठा के साथ अंजाम दे रहा है मीडिया।


बंगाल में हर अखबार का सच अलग है,एक के मुकाबले दूसरे का उलट।हर चैनल का सत्यमेव जयते सत्तापक्ष का सच है।


सबसे बड़ा धमाका तो अब हुआ है कि राष्ट्रीय मीडिया ने कोलकाता में भारी वर्षा में भीगते करीब एक लाख छात्रों के महाजुलूस को राष्ट्रीय बनने नहीं दिया,उसके बारे में यह अभिनव सच का खुलासा कर रहा सत्तापक्ष ममता बतीजा सांसद अभिषेक बनर्जी के फेसबुकवाल  हवाले कि उस महाजुलूस में शामिल हर छात्र छात्रा को शराब गांजा हेरोइन के नशे में सड़क पर उतारा गया था।उन्हे नकद भुगतान भी किया सीपीएम और भाजपा ने।जबकि जुलूस का नारा था बुलंग,इतिहासेर भूल सीपीएम तृणमूल।


अब मीडिया का सच यह भी है कि जादवपुर के वीडियो फुटेज और छात्रों के एतकताबद्द अविराम अक्लांत आंदोलन के फुटेज के सच को भले ही झुठला दें वह,मां माटी मानुष के इस छात्र आंदोलन के खिलाफ दिया जा रहा हर प्रवचन वाक्य युधिष्ठिर सुवचन सत्य है और आंदोलनकारी छात्रों को सबक सिखाने के लिए सिनेमा सितारों की चकाचौंध और विद्वतजनों की सुर तालबद्ध संगत में जिन बाहुबली छात्रों को दीदी सड़क पर उतार रही है,वे भले ही दिवंगत जेपी की जीप के बोनट पर खड़े होकर पेशाब कर दें,गांधी की लंगोट वे तमाम लोग न सिर्फ नशामुक्त हैं बल्कि फलाहार पर हैं।


यह फलाहारी वृत्त चप्पल चाट का जायका है स्वादिष्ट इलिशिया।


हम जब नैनीताल डीएसबी कालेज में पढ़ते थे सात के दशक में,तब लखनऊ और दिल्ली तो क्या बरेली से छपने वाले अखबारों के लिए भी दोपहर तक इंतजार करना पड़ता था और पहाड़ों की बड़ी से बड़ी खबर चंद पंक्तियों में निपटा दी जाती थी।


तराई की तो खबर छापने के लिए कलेजा चाहिए था,खबरची की कभी भी शामत तय थी।उसका मारा जाना तय था।सत्तर के दशक में मेरे इलाके में मैं तड़ीपार था पत्रकारिता की खातिर।


उसवक्त पूरा उत्तराखंड एकजुट था।पहाड़ और तराई एक दूसरे से नत्थी थे।


देवभूमि होने के बावजूद तब पहाड़ों में धर्मोन्माद न था।


आस्था और सांप्रदायिकता पर्यायवाची शब्द न थे।


हम बचपन से रोजाना बंगाल के बंगाली  अखबार पढ़ते रहे हैं।जैसे हिंदी और अंग्रेजी के अखबार।मेरे पिता अपढ़ थे लेकिन कोई भी भारतीय भाषा अबूझ नहीं थी उनके लिए।


वे यायावरी तरीके से देशाटन नहीं करते थे,जनता की लड़ाइयों में अपनी सक्रिय हिस्सेदारी के लिए देश के खेतों खलिहानों,नदियों पहाड़ों जगलों में जनता के बीच अलख जगाते थे और उन्हें एक दूसरे से जोड़ते थे।


जब भी वे घर लौट आते थे,उनके साथ जिस राज्य से वे आये हों,वहां के तमाम अखबार वहां की भाषा में होते थे और वे अपेक्षा रखते थे कि मैं उन्हें बांच लूं।


मराठी गुजराती उड़िया गुरमुखी तामिल तेलुगु वगैरह वगैरह के अखबार बंसतीपुर में ही हम देखते रहते थे।भले ही पढ़ न पाते हों।तस्वीरे देश की तस्वीरें थीं।


उन अखबारों में भारत एक अखंड देश हुआ करता था ।बहुलता के बावजूद आस्था और पहचान,संस्कृति और भाषा की भिन्नताओं के बावजूद एक सूत्र में पिरोया हुआ देश।


लता मंगेशकर के ऐ मेरे वतन के लोगों गीत सिर्फ शब्द भर नहीं थे।वे प्रधानमंत्री से लेकर आम लोगों की भावनाओं को ध्वनि सुर ताल लय में बांधने का चरमोत्कर्ष है तो आधुनिक संगीतकारों के वंदेमातरम से लेक जय हो में वैज्ञानिक चमत्कार की चकाचौंध चाहे जितने प्रलयंकर हों,राष्ट्रवाद का वह स्थाईभाव नहीं है और उसी तरह,उस बुनियादी फर्क की तरह,जिसे आज सूचना तकनीक के सौजन्य से हम मान रहे हैं राष्ट्रवाद,वह दरअसल धर्मोन्माद है।


फलाहार इसीलिए बड़ा समाचार है क्योंकि उससे धर्मावतार को केंद्रित धर्मोन्माद को अश्वमेधी जनसंहार का थीमसांग बनाया जा सकें।


सूचना प्राद्योगिकी आने से पहले गायत्री मंत्र सुनने वाले लोग इस देश में कितने रहे होंगे,इसकी गणना की जा सकती थी।


अब तो लग रहा है कि भारत में कम से कम सूचना महाविस्फोट का एकमेव एजंडा धर्मोन्मादी परमाणु विस्फोरण है।


जैसे तमाम अकादमी,विश्वविद्यालय और विद्वतजन रोज नयी नयी अस्मिता और नये नये अवतार पैदा कर रहे हैं,मीडिया का पूरा फोकस इन अस्मिताओं को धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया जाये।


मीडिया का यह धर्मोन्मादी जनविरोधी तेवर मुक्त बाजार सबसे बड़ा अभिशाप है।


कई दिनों से महाराष्ट्र को शाही फोकस में रखा गया है।

कश्मीर बाढ़ अब बिलावल भुट्टो हैं।

अपने तरफ के लाखोंलाख  बावला बिलावल के दावे और उनके भड़काये युद्धोन्मादी धर्मोन्मादी अंध राष्ट्रवाद पर किसी प्रबुद्ध मतिमंद को लेकिन शर्म नहीं आती।


भारत चीन सीमा विवाद का मसला भी काफुर है।

त्योहारी बाजार है।

धन लक्ष्मी की लाटरी खुल रही हैकई दिनों से महाराष्ट्र को शाही फोकस में रखा गया है।

कश्मीर बाढ़ अब बिलावल भुट्टो हैं।


अपने तरफ के लाखोंलाख  बावला बिलावल के दावे और उनके भड़काये युद्धोन्मादी धर्मोन्मादी अंध राष्ट्रवाद पर किसी प्रबुद्ध मतिमंद को लेकिन शर्म नहीं आती।



तमाम ज्योतिष केंद्रे भाग्य बांच रहे हैं मीडियकर्मी और फिलहाल यूपी को बख्शे हुए हैं,लेकिन समाजवादियों को बेदखल किये बिना अश्वमेध थमेगा ,इसके आसार नहीं हैं।


सारे अखबार चैनल महाराष्ट्र में जनादेश बनाने के लिए सत्ता समीकऱ बनाने बिगाड़ने के खेल में डंडा लेकर दौड़ पड़े हैं कि सामने जो मिले पहले उसका सिर फोड़ दें।


महाराष्ट्र के उन खेतों में जहां अब भी थोक भाव से किसान खुदकशी कर रहे हैं या मराठवाडा़ में जहां जब तब दुष्काल की आहट है,किसी की नजरे इनायत है ही नहीं।


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