THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Friday, September 19, 2014

कश्‍मीर की बाढ़ और अंधराष्‍ट्रवाद की हवा September 13, 2014 at 3:28am Anand Singh

कश्‍मीर की बाढ़ और अंधराष्‍ट्रवाद की हवा

 

हमारे बचपन में बड़े-बुजुर्ग सिखाया करते थे कि आस-पास कहीं कोई त्रासदी घटने की सूरत में हमें अपने घर में भी त्‍योहार या जश्‍न आदि नहीं मनाना चाहिए। लेकिन कश्‍मीर में ज्ञात इतिहास की सबसे भयानक आपदा के बाद भारतीय राज्‍य एवं समाज के एक हिस्‍से का आचरण इसके ठीक उलट देखने में आ रहा है। दशकों से भारतीय राज्‍य और इस्‍लामिक कट्टरप‍ंथियों के आतंक का दंश झेल रही कश्‍मीरी अवाम को अब एक नये क़हर का सामना करना पड़ रहा है। समूचा श्रीनगर शहर जलमग्‍न हो गया है और लाखों लोग कई दिनों से भोजन और पानी की किल्‍लत के बीच अपने घरों की ऊपरी मंजिलों या छतों पर फंसे हुए हैं। जम्‍मू एवं कश्‍मीर के अन्‍य हिस्‍सों में कई गांवों का तो नामोनिशान तक मिट गया है। हलांकि बारिश अब रुक गयी है और पानी भी पीेछे हट रहा है लेकिन अब सबसे बड़ा ख़तरा महामारी फैलने का है। किसी भी पैमाने से देखने पर यह हमारे समकालीन इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है। लेकिन कश्‍मीर में बाढ़ की इस त्रासदी के बाद भारत के अन्‍य हिस्‍सों में अंधराष्‍ट्रवाद की हवा ने थमने की बजाय और तेज़ी पकड़ ली है। इस हिमालयाकार त्रासदी पर चिंतन-मनन कर इसके जड़ों की तलाश करने की बजाय पूँजीवादी मीडिया भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम का प्रचार करने में ही व्‍यस्‍त है। सोशल मीडिया पर भी भक्‍तगण भारतीय सेना का महिमामंडन करने का यह सुनहरा मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं। इस अंधराष्‍ट्रवादी मुहिम में यहां तक कि वे फ़र्जी तस्‍वीर का भी सहारा ले रहे हैं। जो लोग सेना का गुणगान करते नहीं अघा रहे हैं उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि यदि सेना वाक़ई कश्‍मीर की जनता की भलाई के लिए ही वहां तैनात है तो फिर इस अंधराष्‍ट्रवादी मुहिम की भला क्‍या ज़रूरत है? वह अपने-आप कश्‍मीरी जनता का दिल जीत लेगी। कश्‍मीर से जो ख़बरें आ रही हैं उनसे से तो ऐसा लगता है कि राहत और बचाव कार्य को लेकर भी वहां एक जनअसंतोष पनप रहा है। आम कश्‍मीरियों का कहना है कि सेना के बचाव और राहत कार्य में वीआईपियोंं, रईसों एवं पर्यटकों को प्राथमिकता दी जा रही है।

 

मीडिया के कवरेज़ को देखने से ऐसा जान पड़ता है मानो भारतीय सेना कश्‍मीर में राहत और बचाव का काम करके कश्‍मीरी जनता पर कोई एहसान कर रही है। एक झटके में ही कश्‍मीर की जनता द्वारा अपने आत्‍मनिर्णय के जनवादी अधि‍कार के लिए दश्‍ाकों से किये जा रहे बहादुराना संघर्ष को भुलाने की कोशिश की जा रही है और भारतीय सेना की वर्दी पर लगे अनगिनत कश्‍मीरियों के खू़न के धब्‍बों को बाढ़ के पानी से धोने की कोशिशें की जा रही हैं। सच्‍चाई यह है कि यदि भारतीय सेना आज कश्‍मीर में राहत और बचाव कर रही है तो यह कोई एहसान नहीं है। सेना का यह दायित्‍व होता है कि वह देश के किसी भी हिस्‍से में प्राकृतिक अथवा मानवीय आपदा आने पर राहत और बचाव का काम करे। होना तो यह चाहिए कि सामान्‍य परिस्थितियों में भी सेना देश के अलग-अलग हिस्‍सों में बांध, पुल, सड़क व अन्‍य इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर के निर्माण के उत्‍पादक कार्यों में लगे। विशेषकर सेना के श्‍ाीर्ष अधिकारियों को भी इस किस्‍म के कामों में अवश्‍य लगाया जाना चाहिए क्‍योंकि वे आम तौर पर विलासिता भरी ज़‍िन्‍दगी जीते हैं। लेकिन अमूमन होता यह है कि सेना शासक वर्ग की सेवा में लिप्‍त होने के कारण अपने ही देश की जनता का खून बहाती है और उसके मानवाधिकारों का हनन करती है। जम्‍मू-कश्‍मीर एवं उत्‍तर-पूर्व के राज्‍यों में दश्‍ाकों से एएफसपीए जैसा काला कानून लगा है जि‍ससे वहां वस्‍तुत: सैन्‍य शासन जैसी स्थिति है और वहां की युवा पीढ़ी संगीनों के साये और बूटों की आवाज़ों के बीच जवान हुई है ।

 

कश्‍मीर की त्रासदी को इसी सन्‍दर्भ में समझा जा सकता है। कुछ लोग इसे एक प्र‍ाकृतिक अथवा दैवीय आपदा बता रहे हैं तो कुछ इसे मानवजनित आपदा बता रहे हैं। लेकिन सच्‍चाई यह है कि यह पूॅुजीवादजनित आपदा है। यह अंधाध्‍ाुंध पूॅ्जीवादी विकास की तार्किक परिणति है। साथ ही कश्‍मीर में भारत के वस्‍तुत: सैन्‍य शासन जैसी स्थि‍ति ने इस त्रासदी के परिमाण को बड़ा करने में मदद की है। कश्‍मीर की त्रासदी को 2010 की लेह त्रासदी और 2013 की केदारनाथ त्रासदी की निरन्‍तरता में ही देखा जाना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में समूचे हिमालय क्षेत्र में सामान्‍य से कहीं अधिक वर्षा और बादल फटने की घटनायें सीधे-सीधे जलवायु परिवर्तन की परिघटना से जुड़ी हुई हैं जिसका कारण मुनाफ़ाकेन्द्रित अंधाधुंध पूंजीवादी विकास ही है। हिमालय के क्षेत्र में जंगलों को काटे जाने से सूनी हुई पहाडि़यों पर जब बेहद कम समय में बेतहाशा बारिश होती है तो यह पानी बहकर आस-पास की घाटियों की ओर जाता है। कश्‍मीर की मौजूदा त्रासदी में भी यही हुआ। एक समय हुआ करता था जब कश्‍मीर घाटी अपनी झीलों के लिए जानी जाती थी। ये झीलें और अन्‍य जलाशय केवल प्राकृतिक सुन्‍दरता के लिए नहीं होते बल्कि ये घाटी के समूचे पारिस्थितिक-तंत्र से जुड़े रहते हैं। ये झीलें व जलाशय प्राकृतिक सोखते का काम करते हैं। ल‍ेकिन देश के अन्‍य हिस्‍सों की भांति कश्‍मीर में भी अंधाधुंध और अनियोजित शहरी विकास की वजह से वहां की झीलों एवं झेलम नदी के फ्लड प्‍लेन (नदी के किनारे का ऐसा इलाका जहां तक पानी ज्‍़यादा होने पर नदी का पानी का फैलाव होता है) पर रिहाइशें एवें होटल-रेस्‍तरां आदि बसा दिये गये। ग़ौरतलब है कि पर्यटन कश्‍मीर घाटी की अ‍र्थव्‍यवस्‍था का मुख्‍य अंग होने की वजह से वहां होटल मालिकों, ट्रेवेल एजेंटों, हाउस बोट मालिकों की जमात स्‍थानीय नेताओं से मिलीभगत से पर्यावरण नियमों को ताक पर रखकर अंधाधुंध तरीके से निर्माण कार्य हुआ। इस अनियोजित शहरी विकास में जल के निकास की कोई योजना नहीं बनायी गयी। तमाम पर्यावरणविद लंबे अरसे से घाटी में इस किस्‍म की आपदा आने की चेतावनी देते रहे हैं और वहां के ड्रेनेज सिस्‍टम को दुरुस्‍त करने एवं झेलम के फ्लड प्‍लेन पर रिहाइशों को नियंत्रित करने की सिफ़ारिशें करते आये हैं। लेकिन जैसाकि पिछले साल केदारनाथ की त्रासदी में देखने को आया था, ये सिफ़ारिशें सरकारी दफ़्तरों की फाइलों में पड़ी धूल फांकती रहीं। कश्‍मीर में समस्‍या ने इतना विकराल रूप इसलिए भी ग्रहण कर लिया क्‍योंकि कश्‍मीर पर क़ब्‍ज़ा बनाये रखने के लिए भारतीय राज्‍य ने अपना पूरा ध्‍यान सुरक्षा एवं सामरिक मसलों पर दिया। सुरक्षा एवं सैन्‍य प्रशासन पर ज़ोर की वजह से सिव‍िल प्रशासन को पूरी तरह नज़रअन्‍दाज़ किया गया। पर्यावरणविदों की चेतावनी के बावजूद आपदा प्रबंधन की कोई योजना ही नहीं थी। यहां तक कि जम्‍मू एवं कश्‍मीर के मुख्‍यमंत्री ओमर अब्‍दुल्‍ला ने भी स्‍वीकार किया है कि बाढ़ में उनका पूरा प्रशासन की मानो बह गया। उनके इसी बयान से वहां सिविल प्रशासन की ख़स्‍ता हालत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

 

सवाल यह उठता है कि क्‍या इस बार की त्रासदी से कोई सबक लिया जायेगा या फिर हर बार की तरह समय बीतने के साथ ही इसको भी भुला दिया जायेगा और जब अगली त्रासदी आयेगी तो फिर हाय-तौबा मचायी जायेगी। मोदी सरकार के रवैय्ये से तो उम्‍मीद बांधने की कोई वजह नहीं दिखती। योजनाबद्ध विकास तो दूर मोदी ने तो योजना का दिखावा करने वाले योजना आयोग को ही इतिहास के कचरापेटी में डालकर निर्बाध पूँजीवाद को बुलेट ट्रेन की गति से दौड़ाने की ठान ली है। श्रम कानूनों की ही तरह पर्यावरण से जुड़े सारे नियम-कायदे ढीले किये जा रहे हैं ताकि पूँजीपतियों के मुनाफे़ की अंधी हवस को पूरा करने में वे अड़चन न पैदा करें। इस निर्बन्‍ध पूँजीवादी विकास से पर्यावरण का ही नहीं अब तो ज्‍़यादा से ज्‍़यादा स्‍पष्‍ट होता जा रहा है कि पृथ्‍वी पर जीवन का ही अस्तित्‍व ख़तरे में है। इस गंभीर समस्‍या से लोगों का ध्‍यान हटाने के लिए एवं कश्‍मीर में अपना वर्चस्‍व और पुख्‍़ता करने के लिए शासक वर्ग अंधराष्‍ट्रवाद की हवा को तेज़ी से फैला रहा है। हमें शासक वर्ग के मंसूबे पहचानने होंगे और इससे पहले कि मुनाफ़े की हवस में वे मानवता को तबाह करे हमें पूँजीवादी व्‍यवस्‍था को ही तबाह करना होगा।


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  • Sameer Sinha (4)"असली सवाल तो यह है कि क्‍या भारतीय राज्‍यसत्‍ता इस समस्‍या का समाधान ढूढंने में सक्षम हैं? इसका जवाब है नहीं। "- You are right.As long as 1/5 communities in Kashmir think its a problem ,it will remain a problem forever. Where is the problem.Who is stopping them from coming to mainstream. Poor Kashmiri Hindus are already into mainstream. Some of them from their Camps in Jammu and Delhi.If problem is that they doent want to coexist with other 5 communities then they are free to migrate to PoK, CoK(Kashmiri territory ceded to China by Pakistan).There is no solution to 2 nation theory. There is no solution if Wahabi extremeist fed poor Kashmiri Muslims dont want to coexist with Kaul, Gurpreet Singh, Lemcha,Kashir and Lushir.All these poor Minorities have already found a solution (of coexistence with India despite the Genocide), why only the fascist majority doesnt have a solution.It is because they are indoctrinated on "Ghazwa e Hind".If I have 7 people in a Room - Kashmiri Muslim , Kashmiri Hindu, Kashmiri Sikh, Kashmiri Buddh, Kashmiri Gaddi, Kashmiri Gujjar, Kashmiri Bakkarwal, and only one of them seeks self determination, and others cry Genocide ,then is this freedom struggle or religious separaticism by means of numbers.Ha Ha ...ye oversmartness can be bought by Marxists , not by Humanity.
  • Sameer Sinha (5)"भारत के हुक्‍़मरान पाकिस्‍तान के हुक्‍़मरानों की तरह ही दरअसल इस समस्‍या का समाधान करना ही नहीं चाहते क्‍योंकि ये वो समस्‍या जिससे वो आसानी से पूरे देश में अंधराष्‍ट्रवाद की हवा चलाकर देश की जनता का ध्‍यान अन्‍य तमाम सामाजिक-आर्थिक मुद्दों से भटका सकते हैं अौर अपने फिसड्डीपन पर पर्दा डाल सकते हैं। हिन्‍दुत्‍ववादियों के सत्‍ता में आने के बाद तो इस समस्‍या के और भी अधिक विकराल रूप लेने के आसार नज़र रहे हैं। इसीलिए सिद्धान्‍तत: कश्‍मीरियों के आत्‍मनिर्णय के अधिकार का समर्थक होते हुए भी मुझे निकट भविष्‍य में इस समस्‍या का कोई समाधान दिखता नज़र नहीं आ रहा है।" - I dont know what is blind Nationalism.In the period from 1988-1992 , whatever was there - It wasn't Indias Blind nationalism.As a result, India has refugees from Kashmir Valley and during that period - thanks to the central government - a blind spectator of ethnic cleansing and forced emigration.There were no movements and agitations in Kashmir against this planned Genocide. Let the separatists not think that it would be business as usual.They have committed war crimes and its Indias large heartedness that we will try our best to Include Kashmiri Muslims in the national mainstream.
  • Sameer Sinha Finally - Mention of Kashmiri Hindus is conspicuous by its absence in your posts.Because they dont want separation and dont provide fodder/masala to Marxists so that the Marxists can jump with joy.Also, they are big speed breakers in the creation of anarchy that Marxists so often dream of. Marxists support 1/5 Kashmiri Communities and are silent over the following : (1) 1998 Wndhama Massacre (2) 2003 Nandimarg Massacre (3) Chattisingpora Massacre (4) Thousand other events not reported by India Media (1988-1992).On the night of 19th January, 1990,suddenly all Mosque loudspeakers started to shout hatred against Kashmiri Valley Hindus. almost 5,00,000 people were forced to flee by force, coercion, threat, killing, rape or any other threat a savage could use.The quest for Kashmiri Azadi is nothing more than the quest for a 2- Nation on the basis of a direct action day.In 1990 , Kashmir witnessed another Kolkata,and Sylhet and Noakhali Killings.Whats the difference.Times changed, religious separatist attitude didnt. And the bunch of genociders should be given right to self determination?
  • Sameer Sinha Kashmir mein Genocide Indoctrinated Wahabi Muslims ne Kiya and Kashmir ki Independence bhi keval wahi log chahte hain. I dont feel ashamed in saying this.Fact is Fact. Spade is Spade. Religious separaticism ki oversmartness will not take anybody anywhere.You have also acknowledged that only Kashmiri Muslims want Independence although you are reluctant to name the community. This does not work in Modern Era. India is a Secular State and will remain so. Adventurism or oversmartness will not work. I will rest my case . Pls do note that 80+ temples have been destroyed in kashmir since Mid 80s.I AM ALL FOR KASHMIRS INDEPENDENCE THE DAY WHEN MUSLIMS + HINDUS+ SIKHS+ BUDHHISTS+ GUJJARS+BAKARWALS+GADDIS CLAIM IT.What is the shame , or the complex to talk about the suffering of Kashmiri Hindus at the hands of Islamic Wahabi Terrorists.If there is a little bit of shame left , the Kashmiris should acknowledge the valiant rescue efforts of their army. An effort which was not available even to the people affected in UTTARAKHAND calamity.Marxism is not yet mature in nation state politics and the benefits it brings to people .If it intervenes in Kshmir , it should start with a movement to secure justice to Kashmiri Hindus.And it should not jump with joy at every moment a stone pelter (religious separatist) pelts a stone at its saviors.Because this is not a struggle , this is blatant blasphemy and chaos just for the sake of it.MARXISTS AND ANARCHISTS KI SO CALLED KASHMIRI STRUGGLE KI VEERGATHA , KASHMIRI MINORITIES KE KHOON SE RANGE HAIN.
  • Anand Singh 1) तुम्‍हारे विश्‍लेषण का पाखण्‍ड इसी से समझ में आता है कि एक ओर तो तुम टू नेशन थियरी का विरोध करके अपने आपको धर्मनिरपेक्ष दिखाते हो, वहीं दूसरी ओर अन्‍य मसलों की ही तरह कश्‍मीर समस्‍या के तुम्‍हारे पूरे विश्‍लेषण का आधार साम्‍प्रदायिक है। तुम्‍हारा यह संघी दृष्टिकोण कट्टरपंथी मुल्‍लों से मेल खाता है क्‍योंकि वो भी पूरे मसले को साम्‍प्रदायिक दृष्टि से देखकर 95 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी वाली कश्‍मीर की घाटी को पाकिस्‍तान में मिलाना चाहते हैं। रही बात मेरे दृष्टिकोण की तो मैंने अपने सभी पोस्‍टों में कश्‍मीरी जनता के आत्‍मनिर्णय के आधिकार की बात की है चाहे वो किसी भी धर्म के मानने वाले हों। धर्म का मसला तुम लेकर बीच में आये, मैं नहीं! कश्‍मीर की जनता से मेरा मतलब वहां रहने वाले हर मज़हब के लोगों और जनजातियों के आत्‍मनिर्णय के अधिकार से है। उनमें से एक हिस्‍सा आज़ादी चाहता है, एक हिस्‍सा स्‍वायत्‍तता के साथ भारत में रहना चाहता है, एक पूरी तरह भारत में मिलना चाहता है तो एक हिस्‍सा पाकिस्‍तान में मिलना चाहता है। और इस श्र्रेणीकरण में एक ही धर्म को मानने वालों की अवस्थितियां भी भिन्‍न-भिन्‍न हैं।यह मार्क्‍सवादियों के दिमाग़ की उपज नहीं है बल्कि एक वस्‍तुगत यथार्थ है जिससे मुंह मोड़कर इस समस्‍या को नहीं समझा जा सकता है। दूसरे मैंने तो हिन्‍दुत्‍ववादियों की बात की थी, हिन्‍दुओं की नहीं। हिन्‍दुओं और हिन्‍दुत्‍ववादियों में घालमेल करने की बजाय जो मैं कहूँ उसपर टिप्‍पणी करो। मैंने तो अभी फासिस्‍ट भी नहीं कहा था, लेकिन ये अच्‍छी बात है कि हिन्‍दुत्‍ववादी कहते ही तुम्‍हारे दिमाग में फासिस्‍ट शब्‍द आ गया। यह बात तुम्‍हारे दिमाग़ में बिल्‍कुल सही आयी। हिन्‍दुत्‍ववादियों से मेरा मतलब फासिस्‍ट ही था और केवल तुम्‍हारे जैसे पाखंडी संघ समर्थक ही अपने आपको प्रग‍तिशील और धर्मनिरपेक्ष दिखलाने के लिए इस सच्‍चाई से इंकार करते हैं कि वे मुस्लिमों से नफ़रत करते हैं। संघ की विचारधारा के ईमानदार समर्थक जिनको प्रगतिशीलता और धर्मनिरपेक्षता के दिखावे की ज़रूरत नहीं होती वो इस सच्‍चाई को स्‍वीकार करते हैं कि उनकी दृष्टि में मुस्लिम घृणा के पात्र हैं।
  • Anand Singh इसके बात तुम्‍हारा कहना है कि जहां कहीं भी राज्‍य के ख़िलाफ़ आन्‍दोलन दिखता है, मार्क्‍सवादी खुशी से झूम उठते हैं। दरअसल तुम्‍हारे दिमाग में एक काल्‍पनिक मार्क्‍सवादी बैठा हुआ है जिसको ध्‍यान में रखकर तुम अपना तर्क प्रस्‍तुत करते हो। उस काल्‍पनिक मार्क्‍सवादी की बजाय तुम एक वास्‍तविक मार्क्‍सवादी( जैसे कि मैं) से तर्क करोगे तब जाकर मार्क्‍सवादियों की अवस्थिति का अन्‍दाज़ा हो पायेगा। वास्‍तविक मार्क्‍सवादी हर आन्‍दोलन का समर्थन भी नहीं करते, खुशी मनाने की तो बात ही दूर है। हमारा लक्ष्‍य कश्‍मीर या किसी अन्‍य राष्‍ट्रीयता को मुक्ति दिलाना नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में समाजवाद की स्‍थापना करना है। इस लक्ष्‍य के तहत हम दुनिया के हर हिस्‍से में चल रहे ऐसे जनसंघर्षों का इस शर्त पर समर्थन करते हैं कि वे प्रगतिशील मूल्‍यों और धर्मनिरपेक्षता के आधार पर लड़े जायें क्‍योंकि जनवाद के लिए आन्‍दोलन भविष्‍य में समाजवाद के लिए आन्‍दोलन की नींव तैयार करता है। राष्‍ट्रीयताओं के आत्‍मनिर्णय का अधिकार भी समाजवाद की लड़ाई नहीं बल्कि बुर्जुआ जनवादी अधिकार की लड़ाई है। इस लड़ाई का भी समर्थन हम इसी शर्त पर करते हैं कि यह धर्मनिरपेक्ष तरीके से प्रगतिशील दिशा में अागे बढ़े न कि धार्मिक कट्टरपंथियों के हाथों में जाकर प्रतिगामी दिशा में चली जाये। कश्‍मीर के मसले पर धार्मिक कट्टरपंथियों की बढ़ती पैठ इसीलिए हमें चिंताजनक लगती है अौर खुशी मनाना तो दूर यह हममें नाउम्‍मीदी पैदा करती है क्‍योंकि यह जनता के संघर्षों को धर्म के नाम पर बांटकर पूॅजीवाद को और मज़बूत बनाती है तथा समाजवाद के लिए संघर्ष को कमज़ोर करती है। यह तो रहा एक वास्‍तविक मार्क्‍सवादी स्‍टैंड। इस पर यदि तुम तर्क करना चाहते तो बेशक करो। इसकी बजाये किसी काल्‍पनिक मार्क्‍सवादी को खड़ा करके उसपर दनादन गोले दागोगे तो फिर यह बहस आगे नहीं बढ़ सकती।
  • Anand Singh 2) इस टिप्‍पणी में तुमने साम्‍प्रदायिक दृष्टिकोण की इंतेहा पर जाकर इतिहास के साथ दुराचार तक कर डाला। तुमने शेख अब्‍दुल्‍ला को धार्मिक अलगाववाद और मुस्लिम कांफ्रेसं से जोड़ दिया। सच्‍चाई यह है कि शेख अब्‍दुल्‍ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस थी तो एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी थी। शेख अब्‍दुल्‍ला ने समय के साथ कई बार अपनी अवस्थितियां बदलीं, कभी वो आज़ादी की बात करते थे तो कभी स्‍वायत्‍तता की। लेकिन शेख अब्‍दुल्‍ला धर्म के आधार पर पाकिस्‍तान में विलय की बात नहीं करते थे। उन पर धार्मिक अलगाववाद का आरोप लगाना इतिहास के साथ एक ऐसी भीषण नाइंसाफ़ी है जो केवल ऐसे लोग ही कर सकते हैं जिनकी स्‍वयं की दृष्टि साम्‍प्रदायिक हो। शेख अब्‍दुल्‍ला की पार्टी नेशनल कांफेंस ने जब कश्‍मीरियों के आत्‍मनिर्णय के अधिकार की बात करना बन्‍द किया और भारतीय शासक वर्ग के सामने घुटने टेके तो कश्‍मीरी जनता के बीच एक दूसरे रैडिकल संगठन जेकेएलएफ ने अपना अाधार बनाना शुरू किया। जेकेएलएफ भी एक धर्मनिरपेक्ष संगठन था जिसके संस्‍थापक मकबूल भट की फांसी एवं कश्‍मीर में 1987 में चुनावी धांधलेबाजी के बाद वहां एक नये सिरे से सशस्‍त्र संघर्ष शुरू हुआ जो पहले तो धर्मनिरपेक्ष था और भारत और पाकिस्‍तान दोनों में से किसी में मिलने की बजाय कश्‍मीर की आज़ादी पर ज़ोर देता था, लेकिन भारतीय राज्य द्वारा इस आंदोलन के बर्बर दमन की वजह वहां इस्‍लामिक कट्टरपंथियों का आधार बनाना शुरू हुआ। यही वो वक्‍़त था जब पाकिस्‍तान ने अपने मुजाहि‍द्दीनों को कश्‍मीर में ज‍िहाद के लिए भेजकर आतंकवाद की प्रक्रिया शुरू की। ग़ौरतलब है कि इन मुजाहिद्दीनों को अमेरिका (जिस पर हिन्‍दुत्‍ववादी इन दिनों फि़दा रहते हैं) ने अफगानिस्‍तान में सोवियत संघ से लड़ने के लिए विशेष रूप से तैयार किया था। यही वह दौर था जब कश्‍मीर में पंडितों काकत्‍लेआम किया गया और उनको वहां से भगाया गया। इसके बाद 90 के पूरे दशक में कश्‍मीर की जनता आतंक‍वादियों और सेना की बर्बरता का दंश झेलती रही। जेकेएलएफ कमज़ोर हुआ, यासीन मलिक ने घुटने टेके और इस्‍लामिक कट्टरपंथियों की पैठ मजबूत हुई। लेकिन 2000 के बाद से कश्‍मीर में आतंकवादियों का सफ़ाया हुआ। 9/11 के बाद अमेरिका के आतंकवाद के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा की वजह से पाकिस्‍तान को पीछे हटना पड़ा। लेकिन कश्‍मीर में आतंकवाद में कमी आने के बावजूद कश्‍मीरी जनता में असंतोष बरकरार है जो समय-समय पर अलग-अलग मुद्दों पर फूट पड़ता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि अलग-अलग समयों पर कश्‍मीरियों के संघर्ष पर अलग-अलग ताकतों का नेतृत्‍व रहा है। एक नेतृत्‍व जब घुटने टेकता है तो दूसरा खड़ा हो जाता है और भारतीय राज्‍य का दमन कश्‍मीरी जनता के असंतोष को बनाये रखता है। यह सच है कि इस वक्‍़त कश्‍मीरी जनता के संघर्ष में इस्‍लामिक कट्टरपंथियों ने अपनी पैठ बना ली है जो निश्‍चय ही इस संघर्ष को कमज़ोर कर रहा है जो हमारे लिए नाउम्‍मीदी का सबब है।
  • Mandeep Singh Friends jyada nhi to Pandit Prem nath bajaj ki book Freedom struggle of J&K and Balraj puri ki kitaab insurgency and after padh le.....yeh hindu writers ki aur j&k ke rahne wallo dwara hi likhi gai hai
  • Anand Singh 3) इस बिन्‍दु में तुमने आत्‍मनिर्णय के सन्‍दर्भ में यूपी और आर्यावर्त का जो उदाहरण दिया है उससे तुम्‍हारी बेवकूफ़ी खुलकर सामने आ जाती है। वैसे इसमें तुम्‍‍हारी गलती नहीं है, संघियों की विचारधारा है ही ऐसी कि वो अच्‍छे-अच्‍छों को कूपमंडूक बना देती है। एक बार ध्‍यान से इस उदाहरण को पढ़ना, तुम्‍हें खुद अपनी बेवकूफ़ी पर शर्मिंदगी होगी। किसी भी क्षेत्र में आत्‍मनिर्णय उसी क्षेत्र के लिए होता है न कि दुनिया भर के लिए। यूपी में रिफरेंडम होगा तो यूपी के लिए होगा आर्यावर्त के लिए नहीं, कश्‍मीर में रिफरेंडम होगा तो कश्‍मीर के लिए होगा, पूरे भारत पर कश्‍मीरियों के अधिकार के लिए नहीं। स्‍कॉटलैंड में रिफरेंडम हो रहा है तो स्‍काॅटलैंड के लिए होगा न कि पूरे यूके के लिए। अब ऐसे उदाहरण देकर तुम बहस करना चाहते हो तो मुझे पहले ठहाके मारकर हँसने का समय दो। तबतक तुम सर्वे पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाओ http://www.ijhssnet.com/.../Vol._1_No._6;_June_2011/21.pdf
  • Anand Singh 4) मैंने कश्‍मीर के एक हिस्‍से की स्‍वायत्‍तता की मांग को महज़ प्रस्तुत किया है न कि स्‍वायत्‍तता को एक समाधान बताया है। स्‍वायत्‍तता की मांग में रक्षा, संचार और विदेशनीति के अलावा अन्‍य मसलों को राज्‍य सरकार के हस्‍तांतरण की मांग शामिल है।
  • Anand Singh 5) (जो तुम्‍हारी टिप्‍पणी में ग़लती से 4 ही लिखा गया है) इस बिन्‍दु पर तो तुम मुझसे सहमत हो कि भारतीय बुर्जुआ राज्‍यसत्‍ता के पास कोई समाधान ही नहीं है। यानी बुर्जुआ रणनीतिकार, बुद्धिजीवी, राजनयिक मिलकर इस समस्‍या का समाधान नहीं कर पायेंगे। बिल्‍कुल सही। यही सीमा है बुर्जआतंत्र की। जिस जनवाद का वह ढिंढोरा पीटता है, वक्‍़त आने पर उससे अपने हाथ खींच लेता है। सच तो यह है कि कश्‍मीर की समस्‍या का समाधान एक समाजवादी व्‍यवस्‍था के तहत ही संभव है। यदि इसमें तुम्‍हारी दिलचस्‍पी है तो हम इस पर बात कर सकते हैं कि कैसे समाजवादी व्‍यवस्‍था में इस समस्‍या का समाधान किया जायेगा। इससे आगे तुमने जो लिखा है वह कोई तर्क नहीं है बल्कि भड़ास है जिस पर बात करना व्‍यर्थ है क्‍योंकि तुम स्‍वयं ही मान रहे हो कि इस व्‍यवस्‍था में यह समस्‍या बनी रहेगी।
  • Anand Singh 6)(तुम्‍हारी टिप्‍पणी के अनुसार 5) ''I dont know what is blind Nationalism.' तुम्‍हारी इस भोली अदा पर कौन न मर मिटे! कश्‍मीर की समस्‍या पर शुरुआत से ही भारत का पूरा रुख अंधराष्‍ट्रवादी रहा है। आत्‍मनिर्णय के अधिकार का वायदा करना और बाद में उससे मुकरकर कब्‍ज़ा कर लेना यह अंधराष्‍ट्रवाद है। जब जनता इस वायदे को पूरा करने के लिए सड़कों पर उतरे तो सेना द्वारा बर्बर दमन करना, यह अंधराष्‍ट्रवाद है। बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा में भी सेना के लिए पीआर कंपेन चलाकर प्‍वाइंट स्‍कोर करना, यह अंधराष्‍ट्रवाद है। अब भी न समझ में आया हो तो दूसरे तरीके से समझाता हूं। हर समस्‍या के प्रति तुम्‍हारा पूरा जो दृष्टिकोण रहता है उसी को राजनीतिविज्ञान में अंधराष्‍ट्रवादी दृष्टिकोण कहते हैं। पाखंड करके इससे मुँह चुराने की बजाय इसे स्‍वीकार करने की ईमानदारी रखो। जैसे कि मुझे इस बात को स्‍वीकार करने में कोई हिचक नहीं होती कि मेरा दृष्टिकोण मार्क्‍सवादी दृष्टिकोण है उसी तरीके से तुम्‍हें यह स्‍वीकार करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि तुम्‍हारा दृष्टिकोण अंधराष्‍ट्रवादी और फ़ासीवादी दृष्टिकोण है। अपने द‍ृष्टिकोण को स्‍वीकार करने से भला इतनी शर्मिंदगी क्‍यों?
  • Anand Singh अन्‍त में तुमने इस बात के लिए मार्क्‍सवादियों को कोसा है कि वे कश्‍मीर‍ी हिन्‍दुओं की व्‍यथा पर आंसू नहीं बहाते। हम कश्‍मीरी जनता के अधिकारों की बात करते हैं, जिसमें ज़ाहिरा तौर पर कश्‍मीरी हिन्‍दू भी शामिल होते हैं और उनका उस ज़मीन पर हक़ है जिसका हम समर्थन करते हैं। इससे आगे बढ़कर अगर तुम ये उम्‍मीद रखते हो कि संघियों और वहाबियों की तरह हर मसले पर हिन्‍दू-मुस्लिम को बांटकर राजनीति करें और पूरे देश में साम्‍प्रदायिकता की लहर चलायें तो तुम ग़लत अपेक्षा कर रहे हो। यह काम संघी और वहाबी दोनों ही अपने-अपने तरीके से कर ही रहे हैं। और कश्‍मीरी संघर्ष की गाथा केवल पंडितों के खून से ही नहीं बल्कि भारतीय सेना और आतंकवादियों द्वारा ढाये गये जुल्‍मों में अनगिनत कश्‍मीरियों के खून से लथपथ है। जो लोग केवल अपनी सुविधानुसार अपने मज़हब वालों के खून की बात करते हैं और दूसरे खून की अनदेखी करते हैं, उन्‍हीं को साम्‍प्रदायिक फ़ासिस्‍ट कहा जाता है, मसलन संघी और इस्‍लामिक कट्टरपंथी मुल्‍ले!
  • Sameer Sinha (1) In the first few lines of your argument which is non mathemetical and based on assumptions I will not comment in this line item . "रही बात मेरे दृष्टिकोण की तो मैंने अपने सभी पोस्‍टों में कश्‍मीरी जनता के आत्‍मनिर्णय के आधिकार की बात की है चाहे वो किसी भी धर्म के मानने वाले हों। धर्म का मसला तुम लेकर बीच में आये, मैं नहीं! " - Firstly you have failed to answer my question - why only Muslims of Kshmir need self determination. Why dont other relions need self determination.Dont waver from core topic. Explain this phenomenon as per Marxism.Secondly, who are you to discuss "Kashmiris Juntas " self determination when 5/6 communities dont want them.Who gave you the right to "lapeto" Hindus, Sikhs, Gaddis, Gujjars , Bakkasrwals into the theory of selfdetermination. Why are you so shy in telling that only one Kashmiri community wants self determination. My question remains unanswered - why does only one community of Kashmiris seek self determination."Sabko determination ka adhikar denge" - speaks of generalist politics while the fact is that most of these "sabko" communities dont want any of these grandiose suggestions.If you have an answer to my outstanding question as to why only one community wants self determination - pls answer it. Also please explain why dont 6 others dont want it.
  • Sameer Sinha (2) "सच्‍चाई यह है कि शेख अब्‍दुल्‍ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस थी तो एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी थी। शेख अब्‍दुल्‍ला ने समय के साथ कई बार अपनी अवस्थितियां बदलीं, कभी वो आज़ादी की बात करते थे तो कभी स्‍वायत्‍तता की। लेकिन शेख अब्‍दुल्‍ला धर्म के आधार पर पाकिस्‍तान में विलय की बात नहीं करते थे। उन पर धार्मिक अलगाववाद का आरोप लगाना इतिहास के साथ एक ऐसी भीषण नाइंसाफ़ी है जो केवल ऐसे लोग ही कर सकते हैं जिनकी स्‍वयं की दृष्टि साम्‍प्रदायिक हो। " Either , you have ignored history or you are arguing just for the sake of it. Sheikh Abdullah was the key founder of Muslim Conference.And when you confirm this read the following. Nehru asked Sheikh Abdullah to rename his party as National Conference as it would look more secular.Which Sheikh Abdullah Did.Here your argument is busted that Sheikh Abdullahs party was National conference which was a secular party. Tum Muslim conference ya to Gol Gol kar gaye ya to Marxist kavitayein padhte padhte tumne history padhna chod diya hai.The father of National Conference was Muslim Conference of which Sheikh Abdullah was a key founding member.At least , please dont waste our common time on trying to redig historical facts.Secondly , you have also conspicuosly not mentioned the Sheikh Indira accord (which I did mention).To reiterate- Sheikh Abdullah was troubled by the turn of Separatist events in West Pakistan and the vast Human calamity it brought on the people of that region. He understood the pain and disaster that self determination/separaticism can bring on People.Thus ,he signed that accord with India.This accord aligns Kashmir with India . Where is the question of self determination now?
  • Sameer Sinha (2) Contd.."Maqbool Bhat and JKLF were seculars" -TBC
  • Sameer Sinha (2) Contd.."Maqbool Bhat and JKLF were seculars" -TBC - What should I say on this. The peak of JKLF (1988-1992) coincided with the genocide of Kashmiri Pundits. Later on , there were killings of Kashmiri Hindus, Sikhs and their Children. BUT, it was in this very "secular" period that Kashmiri Hindus had to flee Kahmir.Many of JKLF cadre were indeed members of Hizbul Mujahideen and they persecuted Kashmiri Minorities in a way unimaginable.I ask a question - who was a non Kashmiri Muslim which was member of JKLF.?Gajab ka secularism hai ye ki ek poori Kaum ko nestanaboot kar diya jaaye aur exile mein kar diya jaaye aur is tarah se exile mein kiya jaaye ki wo wahaan laut bhi nahi sakte.The hands of JKLF are dripping with the blood of kashmiri Hindu Children. Dont ever try to explore secularism in this.Aaj bhi JKLF ka sargana Yaseen Malik Hafis Saeed ke saath milke apne secularism ka saboot deta hai. If JKLF is secular then Hitler is a saint.JKLF is a known terrorist and Genocide instigating organization.To glorify them is to party with the killers of innocent Kashmiri minorities.
  • Sameer Sinha (3) इस बिन्‍दु में तुमने आत्‍मनिर्णय के सन्‍दर्भ में यूपी और आर्यावर्त का जो उदाहरण दिया है उससे तुम्‍हारी बेवकूफ़ी खुलकर सामने आ जाती है। वैसे इसमें तुम्‍‍हारी गलती नहीं है, संघियों की विचारधारा है ही ऐसी कि वो अच्‍छे-अच्‍छों को कूपमंडूक बना देती है। एक बार ध्‍यान से इस उदाहरण को पढ़ना, तुम्‍हें खुद अपनी बेवकूफ़ी पर शर्मिंदगी होगी। किसी भी क्षेत्र में आत्‍मनिर्णय उसी क्षेत्र के लिए होता है न कि दुनिया भर के लिए। - UP is Aryavart , Aryavart is UP. If you are not understanding the concepts of sub nationalism - I cannot help it. I gave a sarcastic example of separaticism. Will Kashmiri separaticim lead to separaticism in other Indian states?. If yes who will bear the consequences of the same?My main point was that - separaticism in one province can lead to a similar effort in other provinces of India. And would be disastrous. Simply because Kahmiri separaticism is a bad example to follow.
  • Sameer Sinha (4) - "मैंने कश्‍मीर के एक हिस्‍से की स्‍वायत्‍तता की मांग को महज़ प्रस्तुत किया है न कि स्‍वायत्‍तता को एक समाधान बताया है। स्‍वायत्‍तता की मांग में रक्षा, संचार और विदेशनीति के अलावा अन्‍य मसलों को राज्‍य सरकार के हस्‍तांतरण की मांग शामिल है।"- Please specify , which portion of Kashmir are you talking about.All remaining demands can be met as per Indian constitution which Sheikh Abdullah has agreed.All these national subjects can be decentralised and in many cases they are indeed decentralised as per article 370. Is this self determination then?Please dont make a hyperbole out of "self determination".
  • Sameer Sinha 5) (जो तुम्‍हारी टिप्‍पणी में ग़लती से 4 ही लिखा गया है) इस बिन्‍दु पर तो तुम मुझसे सहमत हो कि भारतीय बुर्जुआ राज्‍यसत्‍ता के पास कोई समाधान ही नहीं है। यानी बुर्जुआ रणनीतिकार, बुद्धिजीवी, राजनयिक मिलकर इस समस्‍या का समाधान नहीं कर पायेंगे। बिल्‍कुल सही। यही सीमा है बुर्जआतंत्र की। जिस जनवाद का वह ढिंढोरा पीटता है, वक्‍़त आने पर उससे अपने हाथ खींच लेता है। सच तो यह है कि कश्‍मीर की समस्‍या का समाधान एक समाजवादी व्‍यवस्‍था के तहत ही संभव है। यदि इसमें तुम्‍हारी दिलचस्‍पी है तो हम इस पर बात कर सकते हैं कि कैसे समाजवादी व्‍यवस्‍था में इस समस्‍या का समाधान किया जायेगा। इससे आगे तुमने जो लिखा है वह कोई तर्क नहीं है बल्कि भड़ास है जिस पर बात करना व्‍यर्थ है क्‍योंकि तुम स्‍वयं ही मान रहे हो कि इस व्‍यवस्‍था में यह समस्‍या बनी रहेगी।-I just asked a question as to why only one community out of 6 seeks self determination. You dont have an answer to this. You cannot explain and its beyond your ideology to explain why only 1 out of 6 communities seek self determination. Sawal samajh mein aa gaya hoga par jawab haazir nahi hai. ok , it happenns. An idelogy that has a zero success rate in 200 odd countries can skip this question.Create Socialist frameworks, Gulaag etc.. lekin kab ? in 2500 AD.By that time Earth might be consumed by a black Hole.
  • Sameer Sinha 6)(तुम्‍हारी टिप्‍पणी के अनुसार 5) ''I dont know what is blind Nationalism.' तुम्‍हारी इस भोली अदा पर कौन न मर मिटे! कश्‍मीर की समस्‍या पर शुरुआत से ही भारत का पूरा रुख अंधराष्‍ट्रवादी रहा है। - I am a Nationalist. And since I am a Born Hindu (although near athiest) you can say that I am a Hindu Nationalist. Proud of it.But I dont know the meaning of " Blind Nationalism" .Please explain what that means. Secondly , please be economical in using the word Fascist. If you want to use it , you can start with Stalin and his rapist Red Army.Although , as frustation if you want to address every tom dick and harry as a fascist , no one would mind. But yes - you can well call me a Hindu Nationalist.I dont have any sharam or regret being called the same. Although , to non political people, I'm just a petty common world citizen who wants world peace and prosperity. I hate Stalinism- which you seem to reprsent and I love India, Israel, United States ,UK,Canada, Australia, Turkey,NZ,EU,and all other Progressive Nations which are trying to bring sanity to this world.I strongly beleive and have seen the way of life and law and order in the United States and there can be no better place for Human Glory ,opportunities and freedom than the United States of America, followed by other truely free nations like UK, India etc.
  • Sameer Sinha Lastly - "अन्‍त में तुमने इस बात के लिए मार्क्‍सवादियों को कोसा है कि वे कश्‍मीर‍ी हिन्‍दुओं की व्‍यथा पर आंसू नहीं बहाते। हम कश्‍मीरी जनता के अधिकारों की बात करते हैं, जिसमें ज़ाहिरा तौर पर कश्‍मीरी हिन्‍दू भी शामिल होते हैं और उनका उस ज़मीन पर हक़ है जिसका हम समर्थन करते हैं। " - Dont see evidence of this. Geeta Saar to khoob likhte ho, Kabhi Kuraan Saar bhi likho .Dar kis baat ka hai. Ideally , I dont care about these blasphemies as I am not into religion.But isnt it secular to expect that your Geeta saar will be followed by a Quran saar and Bible saar and Zendavesta saar etc.I dont want you to to spend your precious time in blasphemy , but once you have started with Geeta, have guts to go beyond the comfortable.Or is analysing Geeta an easy cake . Your hatred should be secular, truely secular.My only request is that , please dont commit blasphemy on Kuran and Bible. You can do so on Geeta...everyone will read and think about it.So pls stop playing a secular God just for the sake of it.Your support for Kashmiri Hindus exists only on your paper , just to reinforce your secular credentials.Pls show the same enthusiasm like you show on Gaza.Evidences are little. After all , Gaza, Israel,India gives more publicity than the plight of Refugee Pundits.
  • Anand Singh 1) मैंने तो अपना जवाब दे दिया है। अब जो जवाब तुम सुनना चाह रहे हो, वही मैं दूं यह कैसे हो सकता है। मैं तो अपने ही दृष्टिकोण से जवाब दूूंगा। कश्‍मीर में कुछ समुदाय आत्‍मनिर्णय का अधिकार मांग रहे हैं, कुछ स्‍वायत्‍तता मांग रहे हैं, कुछ भारत में ही रहना चाह रहे हैं। यह एक वस्‍तुगत यथार्थ है, मेरे दिमाग की उपज नहीं है। समस्‍या का केन्‍द्रबिन्‍दु है कि कुछ लोग यह अधिकार मांग रहे हैं जिसका वायदा भारतीय राज्‍य ने दिया था जिससे वह मुकर गया। अगर एेसे लोगों की संख्‍या महज़ 40 या 50 होती जैसा कि तुमने दावा किया है, तो भारतीय सेना के 7लाख से भी ज्‍़यादा जवान बरसों से वहां तैनात न होते। जिन लोगों की तुम रट लगाये हुए हो, वो भी अपने आत्‍मनिर्णय के अधिकार का इस्‍तेमाल करते हुए भारत में रहना चाहते हैं। अब कौन कहां रहना चाहता है यह उसकी मर्जी पर छोड़ना चाहिए। मैं और तुम कौन होते हैं यह तय करने वाले कि कौन कहां रहे। कहीं पर भी आत्‍मनिर्णय की बात होती है तो कुछ लोग स्‍वतंत्रता या स्‍वायत्‍तता के लिए हां करते हैं, कुछ लोग ना करते हैं। यह कश्‍मीर में ही नहीं हर जगह होता है। आत्‍मनिर्णय के अधिकार के लिए यह पूर्वशर्त हरगिज़ नहीं होती कि उस समाज की पूरी की पूरी आबादी जब इस मांग को उठाये तभी यह अधिकार दिया जाना चाहिए।
  • Anand Singh 2) इतिहास को संघी नज़रिये से पढ़ोगे तो हर समस्‍या में मुसलमान ढूढोगे। यह सच है कि 1931 में जब पार्टी बनी थी तो उसका नाम मुस्ल्मि कांफ्रेंस था। लेकिन पार्टी में मतभेद का मूल बिन्‍दु धर्मनिरपेक्षता ही था जिसकी वजह से शेख अब्‍दुल्‍ला ने ही 1938 में मुस्लिम कांफ्रेंस का नाम नेशनल कांफ्रेंस नाम रखने के लिए प्रस्‍ताव रखा था । उन्‍होंने निरंकुश राजशाही (हरी सिंह जिसका संघी समर्थन करते हैं वह जनता का दुश्‍मन और अंग्रेजों का पिट्ठू था और आज़ादी के बाद भारत में विलय की बजाय आज़ाद रियासत का राजा बने रहना चाहता था) के खिलाफ़ जनांदोलनों का नेतृत्‍व किया था। शेख ने कश्‍मीर के लोकतांत्रीकरण का जो घोषणापत्र तैयार किया था उसको ड्राफ्ट करने वालों में कई गैर मुस्लिम भी शामिल थे, मसलन पंडित सुदमा सिधा, कश्‍यप बंधु प्रेमनाथ बजाज, सरदार बुध सिहं आदि । अब कोई इस पूरे इतिहास को गोलकर बस शेख अब्‍दुल्‍ला की पार्टी का मुस्लिम कांफ्रेंस बताये तो उसकी मंशा दरअसल कश्‍मीर मसले का साम्‍प्रदायीकरण करने की ही कही जायेगी। दिलचस्‍प बात है कि संघी दृष्टिकोण राजशाही तक को गले लगा लेता है बशर्ते राजा हिन्‍दू हो। यही उन्‍होंने नेपाल में किया था। ये बात दीगर है कि संघियों की चाहत से अलग राजशाही अब इतिहास के कूड़ेदान में फेंका जाना तय था और वही हुआ। रही बात जेकेएलएफ की तो यह भी एक वस्‍तुगत यथार्थ है कि जेकेएलएफ पाक अधिकृत कश्‍मीर सहित पूरे कश्‍मीर की आज़ादी की मांग करता था, न कि पाकिस्‍तान में विलय की। अब कोई जेकेएलएफ और पाकिस्‍तानपरस्‍त इस्‍लामिक कटटरपंथियेां में कोई भेद न कर पाये तो कश्‍मीर की समस्‍या को समझ ही नहीं सकता।
  • Anand Singh 3) यूपी इज़ आर्यावर्त आर्यावर्त इज यूपी। अब ऐसे मजाक पर तो बहस नहीं की जा सकती है। हां थोड़ा हंसा ज़रूर जा सकता है।
  • Anand Singh 4) स्‍वायत्‍तता की मांग नेशनल कांफे्ंस और पीडीपी जैसी पार्टियां भी करती रही हैं। लेकिन वे भारतीय शासक वर्ग के आगे घुटने टेक चुकी हैं जिसकी वजह से वे कश्‍मीर में अलगाववादियों का आधार बढा है। यह भी मेरे दिमाग़ की उपज नहीं है, बल्कि एक वस्‍तुगत यथार्थ है।
  • Anand Singh 5) इस सवाल का जवाब पहले बिन्‍दु में दिया जा चुका है।
  • Anand Singh 6) हिन्‍दू राष्‍ट्रवाद अंधराष्‍ट्रवाद का ही एक रूप है। टू नेशन थियरी का विरोध करना और हिन्‍दू को राष्‍ट्रवाद से जोड़ना एक पाखंड है जिसको जितनी जल्‍दी छोड़ोगे तुम्‍हारे तर्कों के अंतर्विरोध उतने ही कम होते जायेंगे। फासिस्‍ट शब्‍द से तुम्‍हें आपत्ति है, लेकिन इस बहस में जो तर्क तुमने प्रस्‍तुत किये हैं उनको राजनीतिशास्‍त्र की भाषा में साम्‍प्रदायिक फ़ासिस्‍ट की श्रेणी में ही रखा जायेगा। यह भी एक ऐसा यथार्थ है जो मेरे चाहने से नहीं बदल जायेगा। चूंकि मैं तुम्‍हें जानता हूु, इस आधार पर कोई रियायत तो नहीं दे सकता। हम मार्क्‍सवादी डंडे को डंडा ही कहते हैं। इसके बाद तुमने बताया है कि तुम किससे प्‍यार करते हो और किससे नफ़रत करते हो। यह इस चर्चा का विषय है ही नहीं। यह अलग चर्चा का विषय हो सकता है कि इज़रायल और अमेरिका जिनके प्रति तुम्‍हारा इतना प्‍यार उमड़ रहा है वो कितने प्र‍गतिशील हैं, लेकिन वो फिर कभी।
  • Anand Singh अब जाकर तुम्‍हारा मर्म समझ में आया। तो बात ये है कि मैंने गीता पर एक नोट लिखकर तुम्‍हारी दुखती रख पर हाथ रख दी जो तुम्‍हें आज तक दर्द पहुंचा रही है। अब मैं क्‍या लिखूं क्‍या न लिखूं इसकी प्राथमिकता अपने दृष्टिकोण से तय करूंगा। अगर इस्‍लामिक कट्टरपंथी आ...See More

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  • Sameer Sinha 1) मैंने तो अपना जवाब दे दिया है। अब जो जवाब तुम सुनना चाह रहे हो, वही मैं दूं यह कैसे हो सकता है। मैं तो अपने ही दृष्टिकोण से जवाब दूूंगा। कश्‍मीर में कुछ समुदाय आत्‍मनिर्णय का अधिकार मांग रहे हैं, कुछ स्‍वायत्‍तता मांग रहे हैं, कुछ भारत में ही रहना चाह रहे हैं। यह एक वस्‍तुगत यथार्थ है, मेरे दिमाग की उपज नहीं है। समस्‍या का केन्‍द्रबिन्‍दु है कि कुछ लोग यह अधिकार मांग रहे हैं जिसका वायदा भारतीय राज्‍य ने दिया था जिससे वह मुकर गया। अगर एेसे लोगों की संख्‍या महज़ 40 या 50 होती जैसा कि तुमने दावा किया है, तो भारतीय सेना के 7लाख से भी ज्‍़यादा जवान बरसों से वहां तैनात न होते। - You have yet not responded to my basic question as to why the Kashmiriri Pundits in Camps dont seek self determination.Among all the options that you threw up , which of those are relevant or are being appealed by Kashminiri Pundits.If you dont have an answer,ignore it.Dont expand the scope of self determination in such a manner that you are able to justify the same.Your second assertion - that there are 7 lakh troops in Kashmir. This is an exagerrated number provided by Geelani. Lets imagine that there are 5 lakh security forces in Kashmir - This is because that they are bounded by hostile Pakistani army divisions on left and by Chinese divisions on Right. Your Kashmir , which consists of PoK, Giligit, Teriitory ceded to China by Pakistan and Aksai Chin -has a heavy presence of Pakistani and Chinese Forces. These have to be countered ,else the entire Kashmir would be gone and looted by these forces.Tum ab bhi is sawaal ka jawaab na de paaye ki why only Kashmiri Muslims seek self determination.
  • Sameer Sinha 2) इतिहास को संघी नज़रिये से पढ़ोगे तो हर समस्‍या में मुसलमान ढूढोगे। - This is height of communalism. I dont need a cerificate of secularism from you.INC also had some showboys to display its secularism. If you want to read history more, please explain why only in 1939, did Muslim Conference allow for membership across communities. Pls send me the link of History book that you study.By having some minority poster boys .. a party does not become secular.If you apply this principle to INC , please apply the same to Muslim Conference as well.
  • Sameer Sinha 3) यूपी इज़ आर्यावर्त आर्यावर्त इज यूपी। अब ऐसे मजाक पर तो बहस नहीं की जा सकती है। हां थोड़ा हंसा ज़रूर जा सकता है। - Ha Ha. Chalo tum hase to at least. Darasal, tumko ye baat 10-12 saal baad samajh mein aayegi. Tum phir mera main point gol gol kar gaye - How many separatist movements do you want in India?
  • Sameer Sinha 4) स्‍वायत्‍तता की मांग नेशनल कांफे्ंस और पीडीपी जैसी पार्टियां भी करती रही हैं। लेकिन वे भारतीय शासक वर्ग के आगे घुटने टेक चुकी हैं जिसकी वजह से वे कश्‍मीर में अलगाववादियों का आधार बढा है। यह भी मेरे दिमाग़ की उपज नहीं है, बल्कि एक वस्‍तुगत यथार्थ है। - Isme mujhe koi point nazar nahi aaya ki kya main argument dun aur kya defend karun. Tumko Bhartiya Shasak Varg ko thoda explain karna padega ...
  • Sameer Sinha 6) हिन्‍दू राष्‍ट्रवाद अंधराष्‍ट्रवाद का ही एक रूप है। टू नेशन थियरी का विरोध करना और हिन्‍दू को राष्‍ट्रवाद से जोड़ना एक पाखंड है जिसको जितनी जल्‍दी छोड़ोगे तुम्‍हारे तर्कों के अंतर्विरोध उतने ही कम होते जायेंगे। फासिस्‍ट शब्‍द से तुम्‍हें आपत्ति है, लेकिन इस बहस में जो तर्क तुमने प्रस्‍तुत किये हैं उनको राजनीतिशास्‍त्र की भाषा में साम्‍प्रदायिक फ़ासिस्‍ट की श्रेणी में ही रखा जायेगा। - Thanks for bracketing me.Baaki baat samajh mein nahi aayi. Rest is your perception.There is no point in this argument so I will move ahead."हिन्‍दू राष्‍ट्रवाद अंधराष्‍ट्रवाद का ही एक रूप है।" Acchi Kavita hai.Sunate Raho ...Koi mathemetical connection nahi milta is saas bahu type assertion ko counter karne ka. Asaksham hun. Maaf Karein.
  • Sameer Sinha Finally - Write whatever you want to write on Geeta -No one cares. You dont need to be very happy that I remembered that. I feel pity on you. These selective blasphemies are also done by Dr Zakir Naik and you are no different than that. Keep writing. I dont care whether you write the same on Quran or Bible etc etc. But, by choosing only one scripture , you are encouraging Hindu Fascists to create more right wing radicalism.Pakistani Communists are not a subject of our discussion so lets ignore that. Had they done what you did on Geeta , they would have been nailed by Blasphemy laws. They cannot handle a mischeivous you tube video.. pls keep them out of the scope of this discussion.You are free to analyse all Hindu scriptures, but selective analysis will only incite laughter from Nationalists like us.Wating for your article on Quran.(If you ever gather the guts to write that in India).My only input as a friend is pls dont committ blasphemy. But yes ...you can committ blasphemy on Hinduism ...we have right to freedom of expression. So it would be safer for you to keep writing on Hindu religious scriptures.Quran ke baare mein we should not write because it is our duty towards minorities to protect them.But you have plenty of stuff to write - Shastras, Puranas,. Likho likho. Write about all Hindu scriptures .And only Hindu Scriptures.Mujhe to mazaa hi aata hai when theorems of quantum physics are applied on theology.Only Hinduism and Sanatan dharam allows that freedom.So please proceed.Pan Islamwaad ke bare mein likho ya nahi mujhe koi pharak nahi padta. But Geeta ke baare mein likhoge aur Kuraan ke baare mein nahi likhoge isse mujhe tumme Dr Zakir Nayak ki jhalak aati hai. remember - Geeta touch karo for analysis to Kuraan bhi touch karo. Caliphate touch karne se kya hoga.If you have started to hit on religious scriptures , hit on them one by one.Geeta is not equal to Pan Islaamwaad. Wait karenge tumhare analysis ka.Caliphate ki analysis ka nahi...religious books ki analysis ka. Aur agar nahi dum hai to Geeta ke baare mein bhi mat likho.This portrays your weakness.Pls dont find an easy escape route. Waiting for you Non -Geeta (other religious books ) saar. Lekin aise likhna ki jo un books ko follow karte hain unhi dharmik bhavnaon ko thes na pahuche.Haan, Geeta maanne waalon ki dharmic bhavnaon ko thes pahucha sakte ho. Kyunki ye democratic Hindusim hai.
  • Anand Singh 1} "You have yet not responded to my basic question as to why the Kashmiriri Pundits in Camps dont seek self determination" मैंने इसका जवाब दे दिया है। मैंने लिखा कि कश्‍मीर में कुछ लोग आज़ाद होना चाहते हैं, कुछ लोग अधिक स्‍वायत्‍तता के साथ भारत में रहना चा‍हते हैं, कुछ लोग भारतीय पूरे तरीके से भारत में रहना चाहते हैं। अलग-अलग लोगों की धारणा अपने-अपने अनुभवों के आधार पर बनी है। अब कौन कहां और क्‍यों रहना चाहता है यह उसके वि‍वेक पर छोड़ना चाहिए हमारे और तुम्‍हारे विवेक पर नहीं। मेरे विवेक से तो कश्‍मीरियों को अपनी लड़ाई इस्‍लामिक कट्टरपंथियों की चंगुल से निकालकर भारत के सर्वहारा वर्ग की लड़ाई से जोड़ना चाहिए। लेकिन मेरे विवेक से तो कश्‍मीर की मौजूदा राजनीति नहीं चलती। कश्‍मीरी पंडित भारत में रहना चाहते हैं (हलांकि उनकी समूची आबादी की राय के बारे में मैं पक्‍के तौर पर नहीं कह सकता, कोई सर्वे हो तो बताना) तो शायद उनको लगता होगा कि उनका भविष्‍य भारत में बेहतर होगा और यह उनके आत्‍मनि‍र्णय का अधिकार है। उसी प्रकार जो लोग अन्‍य विकल्‍पों (मुस्लिम आबादी की राय भी एकमत नहीं है) के बारे में सोच रहे हैं उनको उस विकल्‍प में बेहतर भविष्‍य नज़र अाता होगा और यह यह चुनाव करना भी उनका आत्‍मनिर्णय का अधिकार है। रही सेना की बात तो फिर अगर महज़ 40-50 अलगाववादियों से निपटने के लिए यदि 5 लाख जवान भी हैं तो भी यह किसी तरीके से न्‍यायसंगत नहीं है।और तुम इस चीज़ को गोल कर गये कि यहां बात सीमा पर तैना जवानों की नहीं हो रही हैा । पाकिस्‍तान और चीन से मुकाबला करने के लिए एलओसी या एलएसी पर सैनिक तैनात होने चाहिए न कि रिहायशी इलाके में। एएफएसपीए का विरोध सीमा पर जवानों की तैनाती के लिए नहीं बल्कि रिहायशी इलाकों में तैनाती के लिए हो रहा है। घालमेल करके तुम सच्‍चाई को केवल उसके सामने छुपा सकते हो जिसको यह सामान्‍य ज्ञान भी न हो कि सेना की रिहायशी इलाकों में तैनाती और सीमा पर तैनाती में क्‍या फ़र्क होता है।
  • Anand Singh 2) मैंने तो तुम्‍हें सर्टिफि‍केट नहीं दिया, बस तुम्‍हारे नज़रिये को श्रेणीबद्ध किया है। अब तुम्‍हारा नज़रिया संघी नज़रिया है इससे यदि तुम असहमत हो तो इस पर बहस की जा सकती है। रही बात शेख अब्‍दुल्‍ला की तो वे भारत के स्‍वाधीनता संघर्ष से प्रभावित होते गये और उनको एहसास हुआ कि महाराजा के निरंकुश सामन्‍ती शासन से केवल मुस्लिम ही नहीं बल्कि हिन्‍दू भी थे और उन्‍होंने अपने संघर्ष को व्‍यापक और धर्मनिरपेक्ष रूप देने के लिए पार्टी का नाम बदला। मुस्लिम कट्टरपंथियों ने 1941 में मुस्लि‍म कांफ्रेंस का पुनर्जीवित किया और वे पाकिस्‍तान में शामिल हाने की मांग करते रहे। जबकि नेशनल कांफ्रेंस ने कभी भी पाकिस्‍तान में शामिल होने की बात नहीं की। यह भी मेरे दिमाग़ की उपज नहीं है बल्कि इतिहास का तथ्‍य है कि शेख अब्‍दुल्‍ला कश्‍मीर के सबसे लोकप्रिय नेता थे जिनको ग़ैर मुस्लिम कश्‍मीरी आबादी का भी समर्थन प्राप्‍त था। वे धर्म के आधार पर राष्‍ट्र बनाने की टू नेशन थियरी का विरोध करते थे और जिन्‍ना की राजनीति के कट्टर विरोधी थे। हिन्‍दुस्‍तान में शामिल होने की बात तो उनके दिमाग में आ भी जाती थी लेकिन पाकिस्‍तान में शामिल होने की बात कभी नहीं। वे कश्‍मीर में सामन्‍ती शासन को ख़त्‍म करने और रैडिकल भूमि सुधारों के पक्षधर थे और सत्‍ता में आने के बाद किया भी। यदि शेख अब्‍दुल्‍ला कश्‍मीर की जनता के वास्‍तविक प्रतिनिधि नहीं तो और कौन था जिसे उनका प्रतिनिधि कहा जा सकता था, क्‍या सामन्‍ती महाराजा हरी सिंह? कश्‍मीर की राजनीति में इस्‍लामिक कट्टरपंथियों और हिन्‍दू कट्टरपंथियों की पैठ उनके संघर्ष में बहुत बाद में हुई। इस इतिहास को पूरा गोलकर यदि कोई केवल बस यही बताता है कि शेख अब्‍दुल्‍ला मुस्लिम कांफ्रेंस से थे और वे धार्मिक अलगाववादी थे तो उसके दृष्टिकोण को साम्‍प्रदायिक न कहा जाये तो क्‍या कहा जाये ? ऊपर एक साथी ने दो किताबों के नाम बताये थे, लगता है तुमने देखा नहीं। चलो मैं फिर से बता देता हूं Pandit Prem nath bajaj ki book Freedom struggle of J&K and Balraj puri ki kitaab insurgency and after; ग़ौरतलब है कि ये दोनों कश्‍मीरी हैं। इसके अलावा अगर तथ्‍याें को और विस्‍तार से जानना चाहते हो तो ए जी नूरानी की किताब The Kashmir Dispute 1947-2012 भी पढ़ लेना।
  • Anand Singh 3) How many separatist movements do you want in India? अलगाववादी आंदोलन मेरे चाहने और न चाहने से पर निर्भर नहीं करते बल्कि ये स्‍वतंत्र परिघटना हैं। भारत में असमान पूूंजीवादी विकास और भारतीय राज्‍यसत्‍ता का दमनकारी रवैया ऐसे आन्‍दोलनों को बढ़ावा देता रहेगा। जहां तक मेरी चाहत की बात है तो मैं दुनिया के हर हिस्‍से में समाजवाद लाना चाहता हूं और कश्‍मीर में भी यह नहीं चाहता कि वह धर्म के आधार पर बने दकियानूसी राज्‍य पाकिस्‍तान में चला जाये। साथ ही मैं भारतीय राज्‍य की दमनकारी नीति का विरोध करता हूँ। यदि भारतीय राज्‍यसत्‍ता अपने वायदे से न मुकरती और यदि सेना द्वारा कश्‍मीरियों के संघर्ष को न कुचला जाता तो यह समस्‍या ही नहीं पैदा होती।
  • Anand Singh चूंकि अन्‍य बिन्‍दु‍ओं पर चर्चा के लिए कुछ खास बचा नहीं रह गया है इसलिए अन्‍त में गीता पर अाते हैं। बेहतर तो यह होता कि गीता की मेरे द्वारा की गयी आलोचना का तुम तर्कसंगत जवाब देते। इस आलोचना को ईशनिन्‍दा करार देना एक तालिबानी तरीका है। मेरे तर्कों का जवाब देनो की बजाय मुझे जाकिर नायक करार देना काफि़र करार देने जैसा है। मेरी जानकारी में तो हमारी संस्‍कृति में ऐसी परम्‍परा नहीं थी, यहां तो शास्‍त्रार्थों की परंपरा रही है। यहां बुद्ध, महावीर,चारवाक, आजीवक, अजित केशकंबलि, सांख्‍य, योग और न्‍याय वैशेषिक, कबीर, नानक, दादू, तुकाराम आदि की परंपरा रही है जो सनातनी ब्राह्मणवादी परंपरा का हमेशा विरोध करते रहे। लेकिन तुम तो तर्क-वितर्क की इस भौतिकवादी भारतीय परंपरा में नहीं बल्कि हिन्‍दुत्‍व की दकियानूसी विचारधारा से प्रभावित हो, इसलिए तुम्‍हारे प्रतिक्रियावादी जवाबों का स्रोत समझा जा सकता है।
  • Johar Jharkhand at first, the govt. of J&K look into the land records of 1947 and take posssition of all land belongs to non resident kashmiries , form land bank,settle the inhabitant of border over this land border must be handed to army unhindered.now there iss no need of army in rest of kashmir.let them settle thier issu themselfe
  • Sameer Sinha 1} "You have yet not responded to my basic question as to why the Kashmiriri Pundits in Camps dont seek self determination" मैंने इसका जवाब दे दिया है। मैंने लिखा कि कश्‍मीर में कुछ लोग आज़ाद होना चाहते हैं, कुछ लोग अधिक स्‍वायत्‍तता के साथ भारत में रहना चा‍हते हैं, कुछ लोग भारतीय पूरे तरीके से भारत में रहना चाहते हैं। अलग-अलग लोगों की धारणा अपने-अपने अनुभवों के आधार पर बनी है। and "रही सेना की बात तो फिर अगर महज़ 40-50 अलगाववादियों से निपटने के लिए यदि 5 लाख जवान भी हैं तो भी यह किसी तरीके से न्‍यायसंगत नहीं है।और ..." - Again you missed my basic point. Why dont Kashmiri Pundits and suffering Minorities request a plethora of Options.(Independence, seccession, accession, autonomy etc)And why only do Kashmiri Pundits dont want it. If Kashmiri Pundits se a better future with India , why is that so?Inspite the fact that genetically and Culturally , they are closer to Kashmiri Muslims than India. Think about this scenario. Similarly , the same question can be asked about Kashmiri Muslims. Where is Secularism here? Pls dont try to create one , when there is none. Secondly - India needs 15 Divisions of army (approx 3 lakh forces) in Kashmir Valley, Siachen , Karkil, Ladakh and reserves as well.Remaining folks are needed to counter the Proxy War. Any Proxy war needs more counter security. And I hope you well know and understand the depth and breadth of Proxy war that India is facing in Kashmir. The enemies dont just lie in the frontiers , they are very much infiltrated and active in Kashmir Valley.
    18 hrs · Edited · Like
  • Sameer Sinha 2) मैंने तो तुम्‍हें सर्टिफि‍केट नहीं दिया, बस तुम्‍हारे नज़रिये को श्रेणीबद्ध किया है। - Noorani ki baat na kro to hi accha hai. Another 2 months of debate will be required. For every armument you need to read 6 books. Itne hi secular the to kyun nahi sadkon pe utar aaye jab Kashmiri Hindu Bacchon ko maara jaa raha tha. Ethnic cleansic ke baad hero aur sucular banne ki koshish karne waale ye socialist ki khaal mein chupe huay Osama hain.Ispe maine jo kehna tha keh diys hai,lekin pls Nooraani jaise nooron ka naam naa lein. Ek Ek Kashmiri Pandit ko pataa hai ki wo kis chidiya ka naam hai.
    20 hrs · Like · 1
  • Sameer Sinha 3) How many separatist movements do you want in India? अलगाववादी आंदोलन मेरे चाहने और न चाहने से पर निर्भर नहीं करते बल्कि ये स्‍वतंत्र परिघटना हैं। भारत में असमान पूूंजीवादी विकास और भारतीय राज्‍यसत्‍ता का दमनकारी रवैया ऐसे आन्‍दोलनों को बढ़ावा देता रहेगा। जहां तक मेरी चाहत की बात है तो मैं दुनिया के हर हिस्‍से में समाजवाद लाना चाहता हूं और कश्‍मीर में भी यह नहीं चाहता कि वह धर्म के आधार पर बने दकियानूसी राज्‍य पाकिस्‍तान में चला जाये। साथ ही मैं भारतीय राज्‍य की दमनकारी नीति का विरोध करता हूँ। यदि भारतीय राज्‍यसत्‍ता अपने वायदे से न मुकरती और यदि सेना द्वारा कश्‍मीरियों के संघर्ष को न कुचला जाता तो यह समस्‍या ही नहीं पैदा होती। - Tumne ek taraf , India ke separatist movements se palla jhaad liya aur saath hi mein tum duniya mein kya karna chaahte ho wo bataa diya. Whatever you want to do with this world, its your discretion .As per UN resolution under chaper VII, the self determination of Kashmiri Wahabi Muslims is non Mandatory.And India has hardly any Kashmiri territory left. A portion of it is Azaad Kashmir, another portion is the one ceded to China by Pakistan. One more portion is Aksai Chin. Another portion is Gilgit-Baltistan - which Pakistan doesnt count within Kashmir.To Kashmir to aadha chala gaya. Aage main samjhaata hun . Jammu will go with India. Ladakh has a Hill council which is already with India. PANUN KASHMIR will be created considering the population of Kashmiri Pundits in the whole of Kashmir (Including Pakistans and Chinas portions). So the remainder will go to that. Kabaliyon ne Jis tarah se 1 million Kashmiri Hindus ko Gilgit Baltistan aur so called azad kashmir se bhagaya iska matlab ye thodi hai ki ethnic cleansing ke baad , they will have a vacant territory to talk about.Ye sab mechanisms lagane ke baad , separatists ke paas to zameen hi nahi bachi. Kahaan jaayenge bechare. Indias territories - Jammu, Ladakh, Kargil and Siachen,Panun Kashmir and some land from Pakistan to resettle Kashmiri Hindus and Buddhists. Where is the space left??Kaun sa waada. ? Hindu kids ko maaro, exile karo aur return mein waada poora karenge hum?Separatists have lost the plot. Desh ke sau crore log Kashmiri Hindus ke saath hain. Therefore adventurism ka scope bhi nahi hai.Aur India mein 200 million Proud Indian Muslims rehte hain , therefore 20 Million Kashmiri Muslims ko India mein rehne mein koi problem nahi honi chahiye.Kyunki ethnic cleansing karke plebiscite ki demand karna is a crime.Aur Kashmir ke Dogra,Buddhist, Panun, Frontier areas mein baatne ke baad, separaticists ke paas bacha hi kya. :):) Unse bolo ki oversmartness kam rakhein. Because oversmartness can be nailed easily.And if you are dreaming to make Kashmir a laboratory of your movement ...then keep dreaming. 1 inch bhi nahi bachaa Kashmiri separatists ke paas agar hum separaticism ki theory lagaa dein.
    19 hrs · Edited · Like · 1
  • Sameer Sinha General (a)"चूंकि अन्‍य बिन्‍दु‍ओं पर चर्चा के लिए कुछ खास बचा नहीं रह गया है इसलिए अन्‍त में गीता पर अाते हैं। बेहतर तो यह होता कि गीता की मेरे द्वारा की गयी आलोचना का तुम तर्कसंगत जवाब देते। इस आलोचना को ईशनिन्‍दा करार देना एक तालिबानी तरीका है। मेरे तर्कों का जवाब देनो की बजाय मुझे जाकिर नायक करार देना काफि़र करार देने जैसा है।" - I dont know what Kaafir means. Koi mujhe bolta hai to gajab ka accha ehsaas hota hai. Geeta main nahi maanta na ki usko quantum physics ke nazariye se padhke vicchedan karta hun.Tum Geeta ke baare mein likho ya Ramayan ke baare mein, mujhe koi phark nahi padta. Lekin kaafi log maante hain aur dil se maante hain islye main unke dil me thes nahi pahuchana chahta. My point was simple, if you touch Geeta to criticise it, pls touch Quraan , Bible, Zendavesta etc. Geeta ke couplets ko criticise karo to Kuraan ke bhi karo. Geeta pe likhne ke baad agar tum apne aapko secular saabit karoge by writing on pan islamwaad to ye bluff hai. If You criticise or even analyse Geeta , you should do the same for Quraan.Agar Himmat hai to.Gita pe likhke ISIS ki burai mat karo , ye sab smartness nahi chalegi. Geeta analysis ke saath Quraan analysis bhi hona chahiye. Kar sakte ho to kar do . Ek analysis Geeta ka likho , ek Quraan ka. Aur nahi likh sakte to chup baitho."Geeta Saar" kitna accha likha tumne , par "Quraan Saar" is awaited. Aur tumne ye responsibility Pakistani Communists pe daal di, ha ha.Aur to Aur, tumne Geeta saar ko establishment se jod diya. Koi baat nahi.Waiting for your Quraan Saar. Aur agar himmat na banti ho to Geeta Saar bhi na likhna.Dono Likho.
    19 hrs · Edited · Like · 1
  • Sameer Sinha General (b) - मेरी जानकारी में तो हमारी संस्‍कृति में ऐसी परम्‍परा नहीं थी, यहां तो शास्‍त्रार्थों की परंपरा रही है। यहां बुद्ध, महावीर,चारवाक, आजीवक, अजित केशकंबलि, सांख्‍य, योग और न्‍याय वैशेषिक, कबीर, नानक, दादू, तुकाराम आदि की परंपरा रही है जो सनातनी ब्राह्मणवादी परंपरा का हमेशा विरोध करते रहे। लेकिन तुम तो तर्क-वितर्क की इस भौतिकवादी भारतीय परंपरा में नहीं बल्कि हिन्‍दुत्‍व की दकियानूसी विचारधारा से प्रभावित हो, इसलिए तुम्‍हारे प्रतिक्रियावादी जवाबों का स्रोत समझा जा सकता है।. Aha , did I hear Anand talking about culture and Shastrarthas.I respect all of these great saints. TBC ..will write further...
    19 hrs · Like · 1
  • Anand Singh 1) '' If Kashmiri Pundits se a better future with India , why is that so?'' मैंने पहले ही इसका जवाब दिया है कि कोई भी समुदाय अपने वास्‍तविक अथवा आभासी अनुभवों के आधार पर किसी मुद्दे के प्रति राय बनाता है। कश्‍मीरी पंडितों के साथ भी यही लागू होगा। हलांकि मैं पक्‍के तौर पर नहीं कह सकता कि सारे कश्‍मीरी पंडितों की कश्‍मीर मामले पर एक ही राय है। मैं कुछ कश्‍मीरी पंडितों को जानता हूं जो कश्‍मीरी अलगाववादियों का तो विरोध करते ही हैं, लेकिन साथ ही साथ संघ और भाजपा द्वारा उन्‍हें वोटबैंक के लिए इस्‍तेमाल करने की राजनीति से भी नाखुश रहते हैं। यही बात कश्‍मीरी मुस्लिमों पर भी लागू होती है। उनमें से कुछ नेशनल कांफरेंस के समर्थक हैं, कुछ पीडीपी के समर्थक हैं तो कुछ अलगाववादियों के। यानी की मुस्लिम आबादी की राय भी एक नहीं है। घाटी में सेना की मौजूदगी के बारे में तुम्‍हारा घिसा-पिटा तर्क वही है जो यहां का शासक वर्ग देता आया है, लेकिन सच तो यह है कि दशकों से सेना की मौजूदगी ने अलगाववाद का कम करने की बजाय बढ़ावा ही दिया है। पाकिस्‍तानी घुसपैठ से रोकने के लिए भी एलओसी में सेना की तैनाती होनी चाहिए, घाटी में नहीं। साथ ही तुम्‍हारे बात में अन्‍तर्विरोध भी है। एक ओर तुम कहते हो कि कश्‍मीर में महज़ 40-50 लोग अलग होने की मांग कर रहे हैं, दूसरी ओर घाटी में सेना के जमावड़े को भी जायज़ ठहरा रहे हो। इस घिसे-पिटे तर्क के अनुसार तो कश्‍मीर घाटी में हमेंशा के लिए सेना तैनात रहेगी क्‍योंकि पाकिस्‍तान तो अपनी हरक़तों से बाज नहीं आने वाला। यानी एक बार फिर यह सिद्ध हो रहा है कि भारतीय शासक वर्ग के पास इस समस्‍या का कोई समाधान नहीं है।
    14 hrs · Edited · Like
  • Anand Singh 2) इस बिन्‍दु में शेख अब्‍दुल्‍ला की बात हो रही थी। तुमने बोला था कि शेख अब्‍दुल्‍लाा धार्मिक अलगाववादी थे जिसका मैंने तथ्‍यों और तर्कों सहित खण्‍डन किया था। मेरे तर्कों का जवाब देने की बजाय तुम घुमा-फिरा कर कश्‍मीर पंडितों के नरसंहार का प्रश्‍न ले आये। बात को भटकाने की बजाय अपनी इस बात के समर्थन में तर्क पेश करो कि शेख अब्‍दुल्‍ला धार्मिक अलगाववादी थे। तभी यह बहस आगे बढ़ सकती है। रही नूरानी की बात तो तुमने किताबों के नाम पूछे थे, मैंने बताये। ये किताबें पढ़कर उनमें लिखे तथ्‍यों पर कोई आपत्ति हो अथवा उसके तर्कों पर कोई प्रतितर्क करना हो तो करो। इसकी बजाय लेखक के प्रति अपनी भड़ास निकालने से तुम अपनी प्रतिक्रियावादी मानसिकता की ही नुमाइश कर रहे हो। इस तरह की घटिया जुमलेबाजियों के सहारे तुम कुछ भी नहीं साबित कर पाओगे।
    15 hrs · Edited · Like · 2
  • Anand Singh 3) Tumne ek taraf , India ke separatist movements se palla jhaad liya aur saath hi mein tum duniya mein kya karna chaahte ho wo bataa diya. अलगाववादी आंदोलन से पल्‍ला तो वो झाड़ेगा जो उसके लिए जिम्‍मेदार हो। क्‍या तुम यह समझते हो कि मैं इसके लिए जिम्‍मेदार हूँ? मैंने तुम्‍हारे इस प्रश्‍न का जवाब दिया था How many separatist movements do you want in India? इस प्रश्‍न से ऐसा ध्‍वनित हो रहा था कि अलगाववादी आन्‍दोलन मेरी चाहत पर निर्भर करता है। मेरी चाहत की बात आयी इसलिए मैंने अपनी चाहत बतायी। इसके बाद तुमने कश्‍मीर समस्‍या के समाधान का एक खाका प्रस्‍तुत किया है। इस समाधान की व्‍यावहारिकता पर मेरे कुछ प्रश्‍न हैं। उम्‍मीद करता हूं कि चूंकि तुमने समाधान प्रस्‍तुुत किया है इसलिए उस पर उठे सवालों का धैर्यपूर्वक जवाब दोगे। As per UN resolution under chaper VII, the self determination of Kashmiri Wahabi Muslims is non Mandatory क्‍या इस यूएन प्रस्‍ताव में कश्‍मीरी वहाबि‍यों का जिक्र है? आत्‍मनिर्णय का अधिकार कश्‍मीर की जनता का है। इसमें वहाबी शब्‍द मेरी जानकारी में यूएन के प्रस्‍ताव में नहीं है। यदि है तो प्रमाण दो। यदि नहीं है तो फिर यही कहना होगा कि यह एक घोर सांप्रदायिक सोच है जो यूएन के प्रस्‍ताव का भी सांप्रदायिक रंग दे देती है। ''And India has hardly any Kashmiri territory left.'' इस लाइन में यह मानकर चला गया है कि जम्‍मू एवं कश्‍मीर राज्‍य भारत का हिस्‍सा है और उस पर कोई विवाद नहीं है। सच्‍चाई यह है कि जम्‍मू-कश्‍मीर राज्‍य पर ही तो विवाद है। समस्‍या से मुँह चुरान से समस्‍या का समाधान नहीं होता बल्कि समस्‍या और बढ़ती है। ''PANUN KASHMIR will be created considering the population of Kashmiri Pundits in the whole of Kashmir (Including Pakistans and Chinas portions). '' यह पुनुन कश्‍मीर कैसे बनेगा, थोड़ा modality पर प्रकाश डालो। समाधान के बारे में सोचना अच्‍छी बात है, लेकिन उसको विस्‍तार से भी समझाना होगा, अन्‍यथा वह शेखचिल्‍ली का ख्‍़वाब बन जायेगा। इसके बाद की पूरी बात संघी जुमलेबाजी है जिसपर बहस का कोई मसला नहीं है।
    13 hrs · Edited · Like · 2
  • Anand Singh a) Lekin kaafi log maante hain aur dil se maante hain islye main unke dil me thes nahi pahuchana chahta तुम मत पहुंचाओ। दिल को ठेस वाली बात हर धर्म वाले बोलते हैं। गैलि‍लियो ने जब सूर्र्य केन्द्रित ब्रह्माण्‍ड की बात की थी तब भी दिल को ठेस पहुंची थी और आज भी विज्ञान की हरेक प्रगति से तमाम लोगों के दिल को ठेस पहुंचती है। ऐसे दिलों की परवाह विज्ञान और तर्क करने वाले नहीं करते। ये एक संघर्ष है जो जारी रहेगा। कमज़ोर दिल वाले लोग दुबककर अपने घरों में बैठे रहें। सच्‍चाई तो यह होती है कि दिल को ठेस पहुंचने का तर्क देने वालों की भी अपनी राजनीति होती है। चूंकि वे तर्कों का जवाब नहीं दे पाते इसलिए लोगों के दिलों के ठेस पहुंचने का हवाला देकर तर्क और विज्ञान को नियंत्रित करना चाहते हैं। वही काम तुम कर रहे हो। जब तुम्‍हें कोई दिक्‍कत नहीं है तो दूसरों के दिलों का हवाला क्‍यों दे रहे हो। तुम्‍हारी दिक्‍कत ये है कि if you touch Geeta to criticise it, pls touch Quraan , Bible, Zendavesta etc. मैंने गीता पर नोट बस आलोचना के लिए आलोचना के मक़सद से नहीं बल्कि एक खास सन्‍दर्भ में लिखा था अौर वो था भारत सरकार द्वारा गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करने की ख़बरों का सुर्खियों में होना। जिन देशों में कुरान, बाइबिल और जेदावेस्‍ता को पाठ्यक्रम में शामिल करने की बातें होंगी वहां पर कम्‍युनिस्‍ट उसके बारे में लिखने को प्राथमिकता देंगे। हलांकि हम दुनिया की तमाम परिघटनाओं को समझने, जानने की कोशिश करते हैं, लेकिन ठोस और जीवन्‍त प्रश्‍नों पर लिखने को प्राथमिकता देंते हैं क्‍योंकि हमारे पास समय सीमित है। लिखने के अलावा भी बहुत काम करने हैं जिन्‍दगी में। और मैं सर्वइस्‍लामवाद और आईएस पर तुम्‍हें दिखाने के लिए नहीं या अपने अापको धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए नहीं लिखूंगा, वो इसलिए लिखूंगा क्‍योंकि वो भी एक समसामयिक मुद्दा है। मुझे एक साम्प्रदायिक फ‍़ासीवादी मानसिकता से दूषित व्‍यक्ति के सम्‍मुख अपने आपको कुछ साबित करने की ज़रूरत नही है। यदि तुम यह सोचते हो कि मैं अपना लेखन फ़ासिस्‍ट राजनीति के तहत करूंगा तो तुम्‍हें बहुत निराशा होगी, जैसी निराशा तुम्‍हें गीता पर मेरे लेखन से हुई थी। वैसे गीता की बात आई तो यह लेख भी पढ़ना जो हमारी एक साथी कात्‍यायनी ने लिखा हैhttps://www.facebook.com/notes/katyayani-lko/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%A8%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF/714357805321925

    कात्‍यायनी 

     

     

    गीता एक ऐसी पुस्‍तक है जो प्रारम्भिक मध्‍यकाल में ब्राम्‍हणवाद और चातुर्वण के पुरूधाओं के लिए काफी उपयोगी थी और आज के शासक वर्ग और हिन्‍दू कट्टरपंथियों के लिए भी बड़े काम की चीज है। इसपर साथी आनन्‍द सिंह ने 12 अगस्‍त को एक उपयोगी पोस्‍ट डाली है।

    ...
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  • Anand Singh 'did I hear Anand talking about culture and Shastrarthas.'' दरअसल तुम्‍हारे दिमाग में एक काल्‍पनिक कम्‍युनिस्‍ट की तस्‍वीर है जिसको केवल अर्थशास्‍त्र और विज्ञान के अलावा और कुछ नहीं आता। अब तुम्‍हारे दिमाग़ के फितूर के लिए मैं तो जिम्‍मेदार नहीं हूं। मैंने कम्‍युनिज्‍़म की जो समझ स्‍थापति की है उसके अनुसार तो यह ऐसी विचारधारा है जो मानव सभ्‍यता के विकास के दौरान पैदा हुई विभिन्‍न संस्‍कृतियों के सकारात्‍मक और प्रगतिशील पहलुओं को अपनी विरासत मानकर उनको नयी ऊंचाइयों तक ले जाने की बात करती है। कम्‍युनिस्‍टों ने कला, साहित्‍य, नाटक, फिल्‍म, संगीत आदि में क्षेत्र में जो महान प्रयोग किये हैं, उनके बारे में तुम्‍हें शायद कोई जानकारी नहीं है, इसलिए तुमने संस्‍कृति के प्रश्‍न पर मेरी राय से हैरानगी जतायी। भारतीय संस्‍कृति और दर्शन की बात करें तो भारत में भौतिकवादी विचारों के विकास का एक लंबा इतिहास रहा है जिसका प्रभाव यहां के साहित्‍य, कला, संगीत, फिल्‍मों, नाटकों आदि में स्‍पष्‍ट झलकता है। हम कम्‍युनिस्‍ट अपने अापको इस विरासत का उत्‍तराधिकारी समझते हैं, साथ ही हम उसको उसकी ऐतिहासिकता में देख कर उसके साथ आलोचनात्‍मक सम्‍बन्‍ध स्‍थापित करते हैं।
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