THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Thursday, September 24, 2015

नेताजी पर चर्चा अजब गजब,इतिहास और विरासत लापता,बाकी बंगाल के क्रांतिकारियों का नामोनिसां नहीं

बंगाल और देश में नेताजी की मृत्यु को लेकर तमाम राजनीतिक किस्से गढ़े जा रहे हैं और अब स्टालिन  को हत्यारा भी साबित किया जा रहा है।हिंदुत्व राष्ट्रवाद में देशभक्ति का अजब गजब नजारा है।हकीकत की जमीन पर हमें इतिहास बदल देने वालों के राजकाज में न इतिहास की कोई परवाह है और न विरासत की।बंगाल को अपने क्रांतिकारियों पर बहुत गर्व है,जिनका नामोनिशां गायब है।,ुधीर जी का दर्द दिल और दिमाग को लहूलुहान करनेवाला है।पहले उनका लिखा हम फंट की वजह से शेयर नहीं कर पा रहे थे। अपने इतिहासकार मित्र डा.मांधाता सिंह ने इस प्तर को यूनीकोड में कंवर्ॉ किया है तो साझा भी कर रहा हूं।
पलाश विश्वास

24/9/2015
प्रिय भाई पलाष, 
भारतीय भाशा परिशद के अतिथि कक्ष संख्या 6 से यह पत्र तुम्हें लिख रहा हूं। परसों रात्रि से मेरी तबियत अस्वस्थ हो गई। अपच और सर्दी का अहसास हुआ। अभी ठीक नहीं हूं। रात्रि के 2 बजे से जगा हूं। नींद नहीं आ रही तो तुम्हें यह पत्र लिखने बैठ गया। कोलकाता मैं ऐसे समय आया जब इस जमीन पर क्रांतिकारी आंदोलन के निषान विलुप्त हो चुके हैं। 1980 की कई दिन की यात्रा में षहीद यतीन्द्रनाथ दास के भाई किरनचन्द्र दास के पास 1, अमिता घोश रोड पर ठहरा था। अब वहां किरन दा के बेटे मिलन दास एक उदास और सन्नाटे भरे घर में रहते हैं। यतीन्द्र की सब स्मृतियां वहां से लुप्त हो चुकी हैं। 15, जदु भट्टाचार्जी लेन में रहने वाले क्रांतिकारी गणेष घोश भी नहीं रहे जिनका मेरे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा। गणेष घोश की याद में पिछले दिनों मैंने बरेली के केन्द्रीय कारागार में बैरक के नामकरण के साथ ही स्मृति-पटल तथा चित्र लगवा दिया हैै। क्रांतिकारी बंगेष्वर राय, गोपाल आचार्य भी तो अब कहां होंगे। मुझे कोई यह बताने वाला भी नहीं कि जिस फ्रीडम फाइटर्स एसोषियषन को 11, गवर्नमेंट प्लेस ईस्ट से क्रांतिकारी भक्त कुमार घोश चलाते थे और जिनने कभी अपने निजी व्यय से यहां 'विप्लवी निकेतन' की स्थापना की थी ताकि कोई क्रांतिकारी किसी पर बोझ न बने, उनका क्या हुआ। उन्होंने अनेक स्मारक अपने खर्चे पर बनवाए। जगदीष चटर्जी 4 बल्लभदास स्ट्रीट कोलकाता, पूर्णानंद दास गुप्त, महाराज त्रैलोक्य चक्रवर्ती जतीन दास मेमोरियल 47 चण्डीतल लेन, कोलकाता-40, वीरेन्द्र बनर्जी हावड़ा, सूरज प्रकाष आनंद जिनके चार बड़े-बड़े कमरों में षहीदों की बड़ी-बड़ी पेंटिंग्स लगी थीं, इन सबका अता-पता देने वाला अब कोई नहीं। नौसेना विद्रोह के विष्वनाथ बोस भी यहीं 42, टेलीपारा लेन में रहते थे। 1983 के आगरा में आयोजित नाविक विद्रोहियों के सम्मेलन में उनसे मुलाकात हुई थी। उत्तर प्रदेष के मिर्जापुर में क्रांतिकारी प्रकाषन के संचालक और उस छोटे षहर में 'षहीद उद्यान' में षहीदों के दर्जनों बुत स्थापित करने वाले बटुकनाथ अग्रवाल की बेटी उर्मिला अग्रवाल 1980 में यहीं थीं। तब मैं उनके घर 15, इब्राहीम रोड पर गया भी था। आज मुझे क्रांतिकारिणी सुनीति घोश और बीणा दास की भी बहुत याद आ रही है जिनसे मिलने का सुअवसर मुझे यतीन्द्रनाथ दास बलिदान अर्द्धषताब्दी में मिला था। साहित्यिक दुनिया में विमल मित्र, सन्हैया लाल ओझा, महादेव साहा, मनमोहन ठाकौर और रतनलाल जोषी का मुझे बहुत स्नेह मिला। इनसे पत्र व्यवहार भी रहा। इन सबके बिना कोलकाता का अर्थ मेरे लिए बहुत बदल गया है।
मैं कुछ किताबों की भी ढूंढना चाहता था पर वे कैसे मिलें। षांति घोश ने जेल से छूटने के बाद अपनी आत्मकथा 'अरूण बंदी' (लाल आग) लिखी। ़त्रैलोक्य चक्रवर्ती ने 'जेलों में 30 साल' रची। क्रांतिकारी नलिनीदास ने भी अपने संघर्श को लिपिबद्ध किया था। नाम याद नहीं आ रहा। बीणा दास के मेमोआर मुझे जुबान प्रकाषन से पिछले दिनों मिल गए हैं। और भी बहुत कुछ है पर इसके सूत्र कहां से मिलें। आपको अपनी इस चिंता और बेचैनी से अवगत करा रहा हूं।
स्वस्थ होंगे। एक बार और बैठकर बातें हों तो अच्छा रहे।
                                                  -सुधीर विद्यार्थी

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