THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Saturday, October 29, 2011

Fwd: भाषा,शिक्षा और रोज़गार



---------- Forwarded message ----------
From: भाषा,शिक्षा और रोज़गार <eduployment@gmail.com>
Date: 2011/10/29
Subject: भाषा,शिक्षा और रोज़गार
To: palashbiswaskl@gmail.com


भाषा,शिक्षा और रोज़गार


पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालयः5 महीने बाद डूब जाएंगे 3.38 करोड़ रुपए

Posted: 28 Oct 2011 06:24 AM PDT

पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के जिम्मेदारों की लापरवाही के कारण विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) से मिले करोड़ों रुपए ३१ मार्च २क्१२ को लैप्स हो जाएंगे। ११वें प्लान के तहत वर्ष २क्क्७ में मिले ६.७६ करोड़ रुपए से विश्वविद्यालय में आधारभूत विकास, सेमिनार, वर्कशॉप, शोध कार्य और छात्रों को कोचिंग जैसे जरूरी काम करवाने थे लेकिन अब तक महज आधी राशि ही स्वीकृत करवाई जा सकी है। ऐसे में कई महत्वपूर्ण योजनाएं अधूरी पड़ी हैं तो कुछ का श्रीगणोश ही नहीं हो पाया।

पं. रविशंकर शुक्ल वि.वि. को यू.जी.सी. और राज्य सरकार से पर्याप्त अनुदान मिलता है लेकिन उसका उपयोग नहीं किया जा रहा है। डीबी स्टार टीम ने इसकी पड़ताल की तो सामने आया कि वि.वि. को यू.जी.सी. से ११वें प्लान के तहत वर्ष 2007 में कुल 6,76,50,000 रुपए आवंटित हुए थे। इस राशि को अलग-अलग कुल 15 विकास कार्य, आधारभूत संरचना से लेकर कोचिंग योजनाओं पर खर्च करना था। जबकि साढ़े चार साल बीत जाने के बाद भी वि.वि. महज 94.04 लाख रुपए ही स्वीकृत करवा पाया। यू.जी.सी. रिकॉर्ड के अनुसार 2,44,21,000 रु. स्वीकृति की प्रक्रिया में हैं। इस तरह कुल मिलाकर 3,38,25,000 की स्वीकृति अभी भी शेष है।
उधर टीम ने बची राशि की स्वीकृति के लिए जारी प्रक्रिया की पड़ताल की तो पता चला कि अब आनन-फानन में प्रपोजल तैयार करवाए जा रहे हैं। इसके बाद इन्हें कार्य परिषद् की बैठक में रखा जाएगा। यहां से स्वीकृति मिलने के बाद यू.जी.सी. (दिल्ली स्थित कार्यालय) को प्रस्ताव भेजा जाएगा। वहीं, जो प्रपोजल तैयार किए जा रहे हैं वे आधारभूत संरचना के विकास से संबंधित हैं, जबकि दूसरे ग्रांट की राशि तब तक जारी नहीं की जा सकती जब तक वि.वि. पूर्व में हुए कार्य की उपयोगिता सर्टिफिकेट नहीं भेज देता। वि.वि. के प्रशासनिक अफसरों के मुताबिक इस प्रक्रिया में कम से कम दो महीने का समय लगेगा। टीम ने जब इस संबंध में ग्रांट सेल के प्रभारी प्रो. ए.के. गुप्ता से सीधी बात की तो उनका कहना था, मैं आपको कुछ भी नहीं बता सकता, जो पूछना है कुलसचिव से पूछें। उधर कुलसचिव के.के. चंद्राकर कह रहे हैं कि दिसंबर तक शेष राशि की स्वीकृति के लिए प्रस्ताव बनाकर भेज दिया जाएगा।


किस स्कीम के तहत स्वीकृत कितना हुआ आवंटन (रु. में) कितना करवा पाए स्वीकृत (रु. में)
1- ट्रेवल ग्रांट 40,00,000 20,00,000
2- कॉन्फ्रेंस/सेमिनार/वर्कशॉप 25,00,000 12,50,000
3- पब्लिकेशन ग्रांट 10,00,000 5,00,000
4- अप्वॉइनमेंट ऑफ विजटिंग प्रोफेसर 20,00,000 10,00,000
5- डे केयर सेंटर 5,00,000 2,50,000
6- स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इक्यूपमेंट 50,00,000 25,00,000
7- स्पेशल ग्रांट फॉर यूनिवर्सिटी, 1,00,00,000 ५क्,00,000
इन बेकवर्ड/ रुलर/ रिमोट/ बोर्डर एरिया
8- ग्रांट फॉर यंग यूनिवर्सिटी एंड रेजुवेशन 50,00,000(आर्ट्स ब्लॉक) 25,00,000
९- ग्रांट फॉर ओल्ड यूनिवर्सिटीज 50,00,000(साइंस ब्लॉक) 25,00,000
१क्- इंस्ट्रूमेंटेशन मेंटेनंस फेसिलिटिज 32,50,000 16,25,000
1१- कंस्ट्रक्शन ऑफ वुमन हॉस्टल 1,00,00,000 50,00,000
1२- बेसिक फेसिलिटिज ऑफ वुमन 50,00,000 25,00,000
1३- फैक्लटी इम्पॉवरमेंट प्रोग्राम 10,00,000 5,00,000
1४- इक्यूअल ऑपरच्युनिटी सेल 2,00,000 1,00,000
1५- कोचिंग स्कीम फॉर एस.सी./एस.टी./ओ.बी.सी.
(ए) रेमेडियल कोचिंग 40,00,000 20,00,000
(बी)इंट्री इंटू सर्विस 40,00,000 20,00,000
(सी)कोचिंग फॉर नेट एग्जाम 40,00,000 20,00,000
15- यूनिवर्सिटी हेविंग हायर परसेंटेज ऑफ 
एस.टी./एस.सी./ओ.वी.सी./ वुमन स्टूडेंट 10,00,000 5,00,000
कुल ६,७६,५क्,क्क्क् ३,३८,२५,क्क्क्

जो भी जानकारी चाहिए कुलसचिव से लें
मैं आपके किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं दे सकता और न ही इसके लिए अधिकृत हूं। वैसे भी मैं प्रोफेसर हूं और बतौर इंचार्ज ग्रांट सेल का काम देख रहा हूं। आपको जो भी पूछना है कुलसचिव से पूछें, वे ही अधिकृत हैं। अगर उन्हें कुछ दस्तावेज चाहिए तो मैं दे दूंगा लेकिन आपको कोई जानकारी नहीं दे सकता। 
प्रो. ए.के. गुप्ता, प्रभारी ग्रांट सेल, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय

देर हो चुकी है, दिसंबर तक प्रस्ताव भेज दिए जाएंगे
हां, यह सच है कि अभी तक हम आधा पैसा ही स्वीकृत करवा पाए हैं। उसमें से भी इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का काफी काम बचा है। जहां तक प्रपोजल तैयार करने का सवाल है तो वह 99 प्रतिशत कर लिया गया है। दिसंबर तक उसे भेज भी दिया जाएगा। शेष मदों की बात है, वह तो राशि खर्च होने और उसके उपयोगिता प्रमाण पत्र के बाद ही स्वीकृत हो पाएगी। पैसा लैप्स तो नहीं होने देंगे। 
के.के. चंद्राकर, कुलसचिव, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय(प्रशांत गुप्ता,दैनिक भास्कर,रायपुर,28.10.11)

हिमाचलःसरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में भाग्य आजमाने का उठा रहे रिस्क

Posted: 28 Oct 2011 06:22 AM PDT

प्रदेश सरकार के अफसरों में राजनीति करने का शौक बढ़ने लगा है। जिला किन्नौर में हाल ही तक एडीसी पद पर कार्यरत रहे एचएएस अफसर एचआर चौहान ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा है। अभी तक उन्हें सत्तारूढ़ भाजपा ने विधिवत रूप से पार्टी का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है मगर एचआर चौहान जोखिम लेकर सियासत में कूद गए हैं।


सरकारी नौकरी छोड़कर प्रदेश की राजनीति में भाग्य आजमाने वालों में बुजुर्ग नेता प. सुखराम से लेकर गोविंद शर्मा का नाम शामिल है। शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद वीरेंद्र कश्यप शिक्षा विभाग में लेक्चरर रह चुके हैं। राजनीति को जनसेवा या फिर व्यावसायिकता के आधार पर लेने वाले अफसर चुनावी राजनीति से जुड़ने के लिए लालायित है। एचएएस नौकरी छोड़कर सियासत में भाग्य आजमाने वालों में एचएन कश्यप का नाम ऐसा है, जब कांग्रेस सरकार थी तो पार्टी ने टिकट दिया। 2009 के लोकसभा चुनाव में एचएन आउट हुए और उनकी जगह वीरेंद्र कश्यप को मिली। पुलिस में आईपीएस एएन शर्मा को नादौन से टिकट नहीं मिला था।

कई दिग्गज नेता रहे चुकें है कर्मी
सुखराम ने छोड़ी थी नौकरी: 1996 में दूरसंचार घोटाले से सुर्खियों में रहने वाले पूर्व मंत्री सुखराम राजनीतिक में कदम रखने से पहले मंडी नगर परिषद में नौकरी करते थे। नौकरी छोड़कर सियासत में आए सुखराम ताकतवर नेता रहे हैं। मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल रह चुके सुखराम ने कांग्रेस का सत्ता में आने का रास्ता रोका था।

धीमान स्कूल प्रिंसिपल रहे: 
धूमल सरकार में नंबर थ्री मंत्री का रुतबा रखने वाले शिक्षा मंत्री आईडी धीमान स्कूल प्रिंसिपल रहे।

मुसाफिर, रूपदास व वीरेंद्र कश्यप; कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शामिल गंगूराम मुसाफिर राजनीति में आने से पहले वन विभाग में फारेस्ट गार्ड थे। एक के बाद एक कई चुनाव हारने के बाद जीत का स्वाद चखने वाले शिमला संसदीय सीट से सांसद वीरेंद्र कश्यप शिक्षा महकमे में शिक्षक रह चुके हैं। पूर्व मंत्री रूपदास कश्यप भी राजनीति में आने से पहले बतौर लिपिक काम करते रहे। कैप्टन आत्मा राम, मेजर विजय सिंह मनकोटिया सेना में सेवाएं दे चुके हैं(दैनिक भास्कर,शिमला,28.10.11)।

पंजाबःहड़ताली एनआरएचएम कर्मियों का कटेगा वेतन

Posted: 28 Oct 2011 06:21 AM PDT

नेशनल रूरल हेल्थ मिशन (एनआरएचएम) कर्मियों को दीवाली पर नौकरी पक्के होने का 'गिफ्ट' तो नहीं मिला लेकिन वेतन जरूर कट गया। नो-वर्क, नो-पे के आधार पर मिशन डायरेक्टर ने तनख्वाह काटने के आदेश सिविल सर्जनों को जारी कर दिए हैं। पिछले दफा भी सरकार ने इन कर्मियों का 25 दिनों का वेतन काटा था।

एनआरएचएम के तहत सेहत विभाग में 5340 कर्मचारी काम कर रहे हैं। इनमें डॉक्टर, स्टाफ नर्स, एएनएम, ईडीएसपी स्टाफ, आरएनपीसीपी व क्लेरिकल स्टाफ शामिल है।

सभी कर्मचारी पक्का करने की मांग को लेकर चार अक्तूबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। कई कर्मियों ने चंडीगढ़ में भी डेरा डाला हुआ है। एनआरएचएम यूनियन, पंजाब ने वेतन काटने को सरकार की तानाशाही करार दिया है। उन्होंने कहा कि जब तक मांनें नहीं मान ली जाती तब तक सरकार की दोहरी नीतियों के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा।


एनआरएचएम यूनियन के जिला प्रधान विनय मल्हन के मुताबिक कर्मचारियों को पिछले माह भी सेहत विभाग से 'धोखा' मिला था। कर्मचारी आठ अगस्त से हड़ताल पर थे उनकी हड़ताल 25 दिन चली थी। सेहत मंत्री सतपाल गोसाईं ने हड़ताल खुलवाने के दौरान वेतन न काटे जाने का भरोसा दिया था, लेकिन बाद में वेतन काट दिया(दैनिक भास्कर,जालंधर,28.10.11)।

बिहारःमाध्यमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा अब जनवरी में

Posted: 28 Oct 2011 06:10 AM PDT

राज्य के माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की भर्त्ती के लिए होने वाले शिक्षक पात्रता परीक्षा जनवरी माह में होगी। मानव संसाधन विकास विभाग के मंत्री पीके शाही की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में यह फैसला लिया गया। बैठक में तिथि तय नहीं हो पायी है। इसके लिए चार लाख इक्यावन हजार अभ्यर्थियों के आवेदन आये हुए हैं। बैठक में शारीरिक एवं सगीत शिक्षकों लेकर मामला उलझा रहा। पात्रता परीक्षा की तिथि तय करने और संगीत और शारीरिक शिक्षकों के मामले को लेकर फिर से बैठक कर तय किया जायेगा। मंत्री ने बताया कि केन्द्र के गाइडलाइन के अनुसार प्रारंभिक विद्यालयों में पार्ट टाइम तथा माध्यमिक विद्यालयों में फुल टाइम शारीरिक शिक्षकों को बहाल किया जाना है। परीक्षा देने और न देने को लेकर भी भ्रम की स्थिति है। वही संगीत शिक्षकों की नियुक्ति के लिए प्रायोगिक परीक्षा लिये जाने को लेकर भ्रम बनी रही। उन्होंने कहा कि इन कठिनाईयों पर फिर से विचार किया जायेगा। हालांकि इस बात पर यह सहमति बन गयी है कि शिक्षकों की पात्रता परीक्षा डेढ़-डेढ़ घंटे की दो अलग-अगल पालियों में होगी। सरकार ने शिक्षक पात्रता परीक्षा के लिए अपनी पृष्ठ भूमि तैयार कर ली है। प्रारंभिक पात्रता परीक्षा की तरह ही माध्यमिक पात्रता परीक्षा के भी प्रश्न बहुविकल्पीय होंगे। प्रत्येक प्रश्न एक अंक का होगा। निगेटिव मार्किग नहीं होगी। पात्रता परीक्षा में सामान्य को 60 प्रतिशत,अनु.जाति एवं विकलांग को 55 प्रतिशत अंक उत्तीर्णता के लिए रखी गयी है। पात्रता परीक्षा में उत्तीर्ण उम्मीदवारों को अधिकतम सात वर्षो तक पात्रता परीक्षा के आधार पर शिक्षक बनने के योग्य माना जायेगा। राज्य के बाहर तैयार कराये जा रहे प्रश्न पत्र को भी केन्द्रीय पैटर्न के समकक्ष तैयार कराया जा रहा है। इस परीक्षा में हर पत्र डेढ़ सौ अंक के होंगे और इसके लिए डेढ़ घंटे का समय दिया जायेगा। सरकार का मानना है कि प्रश्न पत्र के स्तर उच्च कोटि का होने से योग्य शिक्षकों के चयन प्रक्रिया में यह एक प्रभावी कदम होगा। बैठक मे बाद मंत्री ने बताया कि राज्य के प्रारंभिक विद्यालयों में करीब एक लाख शिक्षकों की बहाली के लिए 3 एवं 4 दिसम्बर को ही प्रारंभिक शिक्षक पात्रता परीक्षा होगी। इसके लिए अभ्यर्थियों को 21 से 25 नवम्बर तक एडमिट कार्ड का वितरण किया जायेगा। प्रारंभिक शिक्षक पात्रता परीक्षा के लिए कुल 26 लाख आवेदन आये हैं(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,28.10.11)।

डीयू: एमबीई व एमएफसी के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू

Posted: 28 Oct 2011 06:07 AM PDT

दिल्ली विविद्यालय के मास्टर इन बिजनेस इकोनॉमिक्स (एमबीई) व मास्टर इन फाइनेंस एंड कंट्रोल (एमएफसी) 2012-13 सत्र में दाखिले के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू हो गई है। पाठय़क्रम दाखिले केिलए ऑनलाइन और ऑफलाइन आवेदन की प्रक्रिया शुरू है। दोनो तरह से आवेदन करने की अंतिम तिथि 12 नवम्बर रखी गई है। उल्लेखनीय है कि डीयू के इन दोनो पाठयक्रमों में आगामी सत्र से दाखिले भारतीय प्रबंध संस्थानो की सामान्य प्रवेश परीक्षा के स्कोर के आधार पर किए जाएंगे। कैट परीक्षाएं शुरु हो चुकीं हैं और यह 18 नवम्बर तक चलेंगी। डीयू में एमबीई के दाखिले के लिए , कुल 82 सीटें और एमएफसी में कुल 46 सीटें तय की गई हैं। एमबीई व एमएफसी की वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है। जबकि प्ठय़ाक्रम में आवेदन के लिए प्रॉस्पेक्टस एक हजार रुपए का शुल्क अदा कर डीयू के साउथ कैंपस स्थित डिपार्टमेंट ऑफ बिजनेस इकोनॉमिक्स विभाग के रूम नंबर 229 से हासिल किए जा सकते हैं। एससी-एसटी और विकलांग वर्ग के लिए एक पाठयक्रम का प्रॉस्पेक्टस एक हजार की जगह 500 रुपए में मिलेंगे। इस प्रकार अनारक्षित वर्ग के लिए दो प्रॉस्पेक्ट का शुल्क 1700 रुपए और आरक्षित वर्ग के लिए 800 रुपए रखा गया है। उल्लेखनीय इन दोनो पाठय़क्रमों में प्लेसमेंट बड़ी आसानी से होता है। अभी तक इन पाठय़क्रमो को करने वाले औसत पैकेज 7.5 लाख रुपए प्रतिवर्ष और अधिकत्तम पैकेज 10.6 रुपए प्रतिवर्ष रहा है। इन पाठयक्रमों में दाखिले के बाद दूसरे सेमेस्टर से ही नौकरी के प्रस्ताव आने शुरू हो जाते हैं(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,28.10.11)।

खो रहा है भाषा का चरित्र

Posted: 28 Oct 2011 05:48 AM PDT

रूसी न्यूज चैनल के संस्कृति विषयक एक प्रसारण में चीन में यह चिंता व्याप रही है कि वहां के छोटी अवस्था के बच्चे अपनी चीनी लिपि लिखनी सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। उस मुश्किल चित्रलिपि लिखनी सीखने की माथापच्ची कोई क्यों करे, बच्चे कंप्यूटर पर उंगलियां थिरका कर बड़ी तेजी से अपनी लिपि में मनचाहा लिख सकने में समर्थ हैं। एक बहुत ही छोटा बच्चा जो चारेक बरस का होगा, जिस फुर्ती और सहजता से कंप्यूटर पर उंगलियां चला रहा है, मानो बच्चों के किसी खिलौने पियानो पर उंगलियों से तरन्नुम से में गा रहा है। कैमरे के फोकस में इससे कुछ और बड़ी आयु के बच्चे आ रहे हैं, वे भी पूर्ण दत्तचित्त होकर कंप्यूटर पर अपनी भाषा में लिख रहे हैं। फिर उद्घोषक कहता है कि चीन में यह माना जाता है कि जो लोग अपनी मातृभूमि को प्यार करते हैं, उसके लिए चीनी लिपि लिखना जानना बहुत जरूरी है। इसीलिए वहां सुलेख शिक्षा यानी केलीग्राफी के स्कूल और उनमें निष्णात शिक्षक हैं जो बड़े मनोयोग से विभिन्न प्रकार के मोटे-पतले ब्रशों द्वारा इस चित्रात्मक लिपि को लिखने का ज्ञान व अभ्यास बच्चों को देते हैं-उनको भी कैमरा दिखा रहा है। यह एक उदाहरण है कि किस प्रकार भूमंडलीकरण हमारी पुरानी से पुरानी भाषाओं को लील रहा है। विज्ञापन का मायावी संसार अपनी तरह से भाषाओं के चरित्र को फूहड़ बना रहा है, गो एक वर्ग ऐसा भी है जो यह मानता है कि इस सबसे भाषा का बंधा हुआ रूप भाषा को एक नया लचीलापन, एक नई छवि तथा लोच प्रदान कर रहा है, बाजार को भाषा के लिए तैयार होना ही है। यह उसके विकास का स्वाभाविक अगला चरण है।


इसका दूसरा पक्ष यह है कि हमारी भाषाओं का चरित्र पूरी तरह विरूपित हो रहा है, वे एक नए प्रकार की विपन्नता प्राप्त कर रही हैं-उनके चारित्रिक विकास में आए कितने ही शब्द विलुप्त हुए जा रहे हैं और हम जबरन उन्हें अपनी स्मृति से इस प्रकार गायब कर रहे हैं कि दस-पांच वर्षों में रोजमर्रा के अनेक हिंदी शब्द केवल कोश की ही शोभा बढ़ा रहे होंगे, प्रयोग उनका बिलकुल नहीं रह जाएगा। होटलों में जाती नई पीढ़ी उड़द की दाल और अरहर की दाल भूलती जा रही है - होटल में बैठकर काली दाल, मक्खनी दाल या पीली दाल का आदेश देती है। ऑर्डर नोट करने वाले बैरे की शब्दावली भी काली दाल या पीली दाल की ही रह गई है, दो-चार साल पहले सुना जाता रहा शब्द मांह की दाल अब सुनने में नहीं आता। नाश्ता सुबह का या कलेवा शब्द धीरे-धीरे गुमनामी में जा रहा है, ब्रेकफास्ट ने उसे धक्का देकर अपनी जगह बना ली है। हमारे कुत्तों तक के पारंपरिक नाम मोटी, झबरा, डब्लू, कालू आदि बिला गए हैं, सिर्फ अंग्रेजी नाम ही रह गए हैं। हमारे अपने बच्चे प्यारे-प्यारे नहीं रहे क्यूट बन गए हैं। 

अपनी जड़ों से काट कर वैश्विक नागरिक बनाना वैश्वीकरण की प्रक्रिया का स्वाभाविक अंग है। क्या इस आंधी को रोकने का कुछ प्रयत्न अब भी किया जा सकता है? वैसे लगता तो नहीं कि यह संभव होगा(पुष्पपाल सिंह,नई दुनिया,दिल्ली,25.10.11)।

शिक्षा क्षेत्र में गिरावट, जिम्मेदार कौन?

Posted: 28 Oct 2011 05:45 AM PDT

"शिक्षा मानव को बंधनों से मुक्त करती है और आज के युग में तो यह लोकतांत्रिक चेतना का आधार भी है। जन्म तथा अन्य कारणों से उत्पन्ना जाति एवं वर्गगत विषमताओं को दूर करते हुए मनुष्य को इनसे ऊपर उठाती है।" पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की ये पंक्तियाँ वर्तमान में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। परंतु सवाल तो यह है कि वह शिक्षा कैसी हो? विद्वानों द्वारा वर्तमान शिक्षा-व्यवस्था पर प्रश्न उठाए जाते रहे हैं। हाल में इंफोसिस से सेवानिवृत्त हुए नारायण मूर्ति ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की शिक्षा-व्यवस्था पर प्रश्न उठाया जिसने इस मुद्दे को बहस की तरफ गति दी है। आज उच्च शिक्षण संस्थाओं में भी कई तरह की समस्याएँ पैदा हो रही हैं।


भारतीय शिक्षा-व्यवस्था में कई तरह की खामियाँ हैं। कई राज्यों में तो पुराने पड़ चुके पाठ्यक्रमों को चलाया जाता है। इससे हमें आधुनिक समस्याओं से लड़ने की सीख दी जाती है। कोई भी आसानी से समझ सकता है कि आधुनिक समस्या का सामना इन पुराने पाठ्यक्रमों से नहीं होने वाला है। देश के नीति-नियंता इस बात से भलीभाँति अवगत हैं कि शिक्षा का स्तर ऊँचा बनाकर ही हम एक स्वस्थ लोकतांत्रिक देश के रूप में प्रतिष्ठित हो सकते हैं। परंतु ठोस इच्छाशक्ति का अभाव व कुछ राजनीतिक स्वार्थ के वशीभूत इसमें सुधार के प्रति इच्छाओं का अभाव दिखता है। 
शिक्षा-व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए कई सरकारी और गैर-सरकारी समितियों का गठन हुआ लेकिन कोई बेहतर परिणाम नहीं निकला। इसके लिए सरकार को ही दोष नहीं दिया जा सकता, बहुत हद तक आम नागरिक भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। हम अपने बच्चों को जैसी प्रारंभिक शिक्षा देते हैं, उसके भविष्य का निर्धारण भी उसी से होता है। जिस प्रकार की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की हम आशा करते हैं, क्या उसी प्रकार की गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा हम अपने बच्चों को देते हैं? हमें सोचना चाहिए। साथ ही सरकार को अपने राजनीतिक स्वार्थों से कि ऐसी चूक हमसे क्यों होती है। इसके लिए हमें अपने निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर देश हित के मुद्दे को प्राथमिकता देनी होगी, तभी हम वैश्विक स्तर पर प्रतियोगिता का सामना कर पाएँगे। बिहार का उदाहरण यहाँ लिया जा सकता है जिसकी कई योजनाओं ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। अभी बिहार सरकार की एक योजना "समझें-सीखें" अस्तित्व में आई है, जिसमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है। 

यह एक अनुकरणीय पहल है जिसका स्वागत किया जाना चहिए। शिक्षा पर हम जितना खर्च कर रहे हैं यदि उसकी गुणवत्ता पर भी उतना ही ध्यान दिया जाए तो हम अपने उद्देश्य में सफल हो सकते हैं और भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। अतः शिक्षा को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ना जरूरी है(गौरव कुमार,नई दुनिया,दिल्ली,26.10.11)।
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Palash Biswas
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