THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Saturday, February 25, 2012

मुसलिम वोटों के लिए कांग्रेस की राह आसान नहीं

मुसलिम वोटों के लिए कांग्रेस की राह आसान नहीं


Saturday, 25 February 2012 11:57

अंबरीश कुमार 
लखनऊ, 25 फरवरी। छठे और सातवें चरण के चुनाव के लिए मुसलमान खुद एजंडा बन गया है। इस दौर में कुल 128 सीटों पर चुनाव होना है जिसमें पश्चिम के मुसलिम बहुल इलाके शामिल हैं। पर सारे हथकंडे अपनाने के बावजूद कांग्रेस मुसलमानों की पहली पसंद नहीं बन पा रही है। 
जिस तरह पूर्वांचल में बटला कांड का मुद्दा कांग्रेस को भारी पड़ा उसी तरह सच्चर आयोग की सिफारिशो से लेकर पिछड़ों में अल्पसंख्यकों के साढ़े चार फीसद आरक्षण का मुद्दा पार्टी के लिए मुसलमानों का वह समर्थन जुटा नहीं पा रहा है जिसकी अपेक्षा थी। इसके चलते कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं ने बहुत आक्रामक ढंग से मुसलमानों का सवाल उठाया। राहुल गांधी से लेकर सलमान खुर्शीद तक। शुक्रवार को सोनिया गांधी ने भी मुरादाबाद की सभा में कहा कि विरोधियों के प्रचार से लोगों को गुमराह नहीं होना चाहिए। कांग्रेस ने मुसलमानों के लिए बहुत कुछ किया। उन्होंने सच्चर कमेटी का भी नाम लिया पर मुसलमानों को लेकर कांग्रेस की चिंता दिख रही है। वजह की तरफ इशारा करते हुए आल इंडिया मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने कहा -कांग्रेस अभी भी मुसलमानों को सत्तर के दशक का मुसलमान समझ रही है जो उसके रहमो करम पर था। चालीस साल में मुसलमानों की नई नस्ल सामने है जो रहम नहीं अधिकार चाहती है। सात साल से ज्यादा समय से केंद्र की सरकार को भले यह लगे कि उसने मुसलमानों के लिए बहुत कुछ किया पर मुसलमान यह मानने को तैयार नहीं और जो खबरें पश्चिम से आ रही हैं, उसके मुताबिक पूर्वांचल की तरह यहां भी कांग्रेस की तरफ मुसलमानों का झुकाव बहुत कम है, अपवाद चार पांच सीटें हैं। जिलानी की तरह पश्चिम के कुछ मुसलिम नेता भी यह मान रहे हैं कि कांग्रेस बीते लोकसभा के चुनाव को लेकर गलतफहमी में है। बहुत कुछ बदल गया है।
अलीगढ़ विश्विद्यालय के पूर्व अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष हाफिज उस्मान ने कहा - मुसलमानों को राजनीतिक दल नासमझ मान लेते हैं जिसमें कांग्रेस सबसे आगे है। साढ़े चार फीसद आरक्षण वह भी चुनाव से चंद दिन पहले क्या इस तरह के झांसे में लोग आ जाएंगे। बटला कांड में एक नेता निंदा करता है तो गृह मंत्री चिदंबरम उस कांड की कार्रवाई का समर्थन करते हैं जिसके चलते पूर्वांचल में मुसलमान नाराज भी हुआ और उसने कांग्रेस का विरोध किया। पश्चिम में भी यही होने जा रहा है। क्या मुसलमान भूल गए हैं कि बाबरी मामले पर इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले से जब मुसलमान निराश था तब कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष जीत का जश्न मनाती  नजर आई थीं। इन दो टिपण्णी से मुसलिम बिरादरी का मिजाज समझा जा सकता है। खुद इस संवाददाता ने आजमगढ़, गाजीपुर, जौनपुर जैसे कई मुसलिम बहुल इलाकों का दौरा किया तो भी कांग्रेस को कहीं पर भी पूरा समर्थन नहीं दिखा। मुसलिम मतदाताओं का बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी की तरफ था तो उसके बाद कांग्रेस का नंबर था। आजमगढ़ में तो बटला कांड पर कांग्रेस की सियासत से मुसलिम नौजवान बहुत नाराज थे। आजमगढ़ में बीस साल के नौजवान रिजवान ने कहा -बटला का मुद्दा आजमगढ़ और आसपास ज्यादा प्रभाव डाल रहा था पर कांग्रेस ने उसे प्रदेश व्यापी बना दिया। इसका नुकसान उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उठाना पड़ जाए तो हैरान नहीं होना चाहिए। 

दरअसल पिछले लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का बड़ा हिस्सा उन मुलायम सिंह से नाराज था जिन्होंने मंदिर आंदोलन के नायक कल्याण सिंह को आगरा के सम्मेलन में समाजवादी लाल टोपी पहना दी थी। यह सब हुआ था पिछड़ों का एक बड़ा वोट बैंक तैयार करने के लिए पर कल्याण सिंह से मुसलमानों की नाराजगी मुलायम सिंह पर फूटी। जिसमें आजम खान ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी। अब हालात अलग ही नहीं है मुलायम सिंह की नई भूमिका पर भी समर्थन मिल रहा है। कल्याण सिंह की समाजवादी टोपी उतर चुकी है और वे फिर अपने पुराने एजंडे और लोध राजनीति की तरफ जा चुके है। मुसलमानों को लेकर कांग्रेस पर हमला करने में मायावती भी पीछे नहीं हैं। आज की जनसभा में उन्होंने कांग्रेस पार्टी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि यह पार्टी पिछड़ा वर्गों के लिए आबंटित 27 फीसद के आरक्षण में से नौ फीसद आरक्षण का लालच मुसलिम समाज को देकर उनके वोट हासिल करने की साजिश रच रही है। इसके साथ ही वह पिछड़े समाज और मुसलिम समाज को भी आपस में लड़ाना चाहती है।

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