THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Monday, February 27, 2012

विदेशी निवेशकों की मर्जी से तय होती नीतियां!

विदेशी निवेशकों की मर्जी से तय होती नीतियां!

आम हड़ताल का भी कारोबार पर होने लगा असर!महंगा होगा पेट्रोल, डीजल!


सब्सिडी में कटौती और डीजल डीकंट्रोल भी आगामी बजट का घोषित लक्ष्य है। दावा है कि इसके जरिए राजकोषीय घाटा पाटा जा सकेगा।

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

जैसी कि आशंका थी खुले बाजार के खेल के मुताबिक मुनाफावसूली से कारोबार मुंह के बल गिरा है।आम बजट से पहले एक दफा फिर​ ​ विदेशी  निवेशक आर्थिक सुधारों के लिए दबाव बनाते हुए मुंह फेरने लगे हैं। मुनाफा वसूली, आम हड़ताल और ईंधन संकत के त्रमुखी मार से त्रस्त केंद्र सरकार ने ओएनझीसी की हिस्सेदारी पर आज होने वाली बैठक टाल दी है।ब्याज दरों में कटौती होने की उम्मीद खत्म होने से बाजार में लगातार चौथे दिन गिरावट रही।विधानसभा चुनावों के बाद पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ सकते हैं। पेट्रोल की कीमतों में 4 रुपये प्रति लीटर और डीजल के दाम 2 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ाए जा सकते हैं।सब्सिडी में कटौती और डीजल डीकंट्रोल भी आगामी बजट का घोषित लक्ष्य है। दावा है कि इसके जरिए राजकोषीय घाटा पाटा जा सकेगा।माना जा रहा है कि बजट के तहत वित्तीय घाटे को कम करने के लिए मजबूत रोडमैप का ऐलान संभव है। वित्त वर्ष 2012 में वित्तीय घाटा 5.9 फीसदी रहने की आशंका है। बजट के तहत काफी नई सर्विसेज इस साल टैक्स नेट में आ सकती हैं।तिमाही नतीजों के साथ बाजार के लिए नजर अब बजट पर टिकी है। बजट के तैयारियों की औपचारिक शुरुआत आज से होने जा रही है।वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी का कहना है कि बजट में किसी एक सेक्टर पर फोकस नहीं किया गया है। बजट में हर सेक्टर की जरूरतों को देखते हुए कदम उठाए गए हैं।

हड़ताली यूनियनें  ठेके पर काम न कराए जाने, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू करने और सभी के लिए पेंशन सुनिश्चित करने की मांग कर रही हैं।37 करोड़ असंगठित मजदूरों में न तो कोई कानून बनाया जा रहा है और न ही इनके पेंशन, इलाज और न्यूनतम मजदूरी के लिए कोई कल्याण कोष बनाया जा रहा है। सरकार को बीमार किंगफिशर के पुनर्वास पैकेज की चिंता है पर करोड़ों मजदूरों के घर का चूल्हा जले इसकी कोई चिंता नहीं है।

विदेशी निवेशकों का भारतीय शेयर बाजारों में निवेश लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इस साल की शुरुआत के दो महीनों में विदेशी निवेशकों ने अब तक 5.5 अरब डॉलर का निवेश किया है। शेयर बाजार के जरिए विदेशी निवेशकों की भारतीय अर्थ व्यवस्था के साथ साथ भारत सरकार पर भी पकड़ मजबूत हुई है। नीति निर्धारण ​​के मामलों में सरकार उनके हित और दबाव की अनदेखी नहीं कर सकती। विदेशी निवेशकों के बाजार से निकलते ही नीति निर्धारकों में त्राहि त्राहि मच जाती है। मजदूर संगठनों की आम हड़ताल में चूंकि वामपंथी ट्रेड यूनियनों के साथ साथ कांग्रेस और भाजपा के मजदूर संगठन भी मैदान​ ​ में आ गये हैं, इसके साथ साथ जो मांगें पेश की गयी है, उससे सुधार प्रक्रया के लंबित होने की आशंका से विदेशी निवेशक कुछ भी कर सकते हैं। अगले हफ्ते बाजार का हाल देखकर बताया जा सकेगा कि हड़ताल का क्या असर होगा। पर ओएऩजीसी की बैठक टोलकर सरकार ने अपनी राजनीतिक मजबूरी जगजाहिर कर दी। प्रणव मुखर्जी की अनुपस्थिति में क्या सरकारी कामकाज रुक जाता है?


इस वर्ष के दो महीनों में विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा किए गए जबर्दस्त निवेश की वजह से कई शेयरों के भाव काफी ऊंचे पहुंच गए हैं जबकि प्रमुख (बेंचमार्क) शेयरों के भाव में भी दोहरे अंक की वृद्धि दर्ज की गई है। अर्थ व्यवस्था के फंडामेंटल में कोई सुधार नहीं हुआ। औद्योगिक उत्पादन में गिरावट दर्ज की गयी। कृषि विकास दर घोषित लक्ष्य के मुकाबले आधी  भी नहीं है। राजकोषीय घाटा बढ़ता जा रहा है। विदेशी कर्ज पर ब्याज का दबाव अलग है। तो विदेशी निवेशकों की भारती. बाजार में इतनी​ ​ दिलचस्पी क्यों है। विदेशी वित्तीय संस्थानों के जरिए कालाधन को सफेद बनाना एक कारण हो सकता है। दूसरा कारण यूरोजोन का संकट।​ ​पर भारतीय अर्थ व्यवस्था में गहरी पैठ के बगैर विदेशी निवेशक जोखिम क्यों उठायेंगे? जोखिम उठायेंगे तो पुरकस मुनाफावसूली भी करेंगे। इसीलिए एक भय का माहौल भी उत्पन्न हुआ है कि यह तेजी अचानक थम भी सकती है क्योंकि यह केवल विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के निवेश की वजह से हुआ है।


किंगफिशर मामले में विदेशी निवेशकों का रवैया गौर करने लायक है तो वेदांता समूह रके एकीकरण से शयरों में गिरावट दर्ज होने का ​​मामला भी बाजार में वर्चस्व की लड़ाई को रेखांकित करते है। संस्थागत और खुदरा निवेशक शेयर बाजार को थाम नहीं सकते बशर्ते कि​ ​ विदेशी निवेशक खुलकर निवेश न करें।यह समीकरण सत्ता वर्ग से बाहर आम जनता जिसे अमूमन नकदी संकट से जूझना होता है और मजदूर वर्ग दोनों के लिए खतरनाक है। ​​मुनाफा वसूली में सरकार की भूमिका बिचौलिये की हो गयी तो जनकल्याण का मुद्दा कहां ठहरता है?पर इसके लिए सभी राजनीतिक दल जिम्मेवार है। आम हड़ताल से िस समीकरण में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। आखिर सब्सिडी हटाये जाने पर नुकसान किसे होगा गैस, पेट्रोल और डीजल की ब​ढ़ती ​ कीमतों का बोझ किसपर आयेगा ? शिक्षा और स्वास्थ्य, ऊर्जा और विनिर्माण में विदेशी निवेशकों को खुली छूट और विकास का पब्लिक प्राइवेट माडल से असलियत का खुलासा हो जाता है।रक्षा, आंतरिक सुरक्षा और अंतरिक्ष अनुसंधान जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में अबाध विदेशी पूंजी प्रवाह से राजनीति और मजदूर आंदोलन दोनों की औकात खुल जाती है। पोपुलिस्ट ममता बनर्जी भी इसी माडल को अपनाती है और मजदूर संगठनों के खिलाफ मोर्चा​ ​ संभालती हैं तो परिवर्तन का असली रंग खिलने लगता है।


बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जब विपक्ष में थीं तो बंद और हड़ताल उनका मुख्य हथियार था, लेकिन अब उन्होंने इससे तौबा कर लिया है। विपक्ष में रहते हुए बंद का आह्वान किए जाने पर ममता ने माफी मांगी है और कहा है कि वह आगे से बंद या फिर हड़ताल में शामिल नहीं होंगी। ममता को अब बंद और हड़ताल जैसी ' गलतियों ' का एहसास हो रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि मंगलवार को 24 घंटे की हड़ताल में शामिल होने पर सरकारी कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। जबर्दस्ती ऑफिस, दुकान बंद नहीं कराने दिया जाएगा।


वैचारिक मतभेद को पीछे छोड़कर देश के सभी मजदूर संगठनों ने मंगलवार को यूपीए सरकार के खिलाफ हड़ताल का ऐलान किया है। महंगाई और सरकार की नीतियों के विरोध में वामपंथी, बीजेपी और खुद कांग्रेस के मजदूर संगठन पहली बार एक मंच पर आ गए हैं। रेलवे को छोड़कर सभी सेक्टरों में आम हड़ताल की घोषणा की गई है।हड़ताल करने वालों में बैंक यूनियनें भी हैं। इन्होंने आउटसोर्सिंग के खिलाफ मंगलवार को हड़ताल करने का फैसला किया है।


उन्होंने कहा कि मैं लोगों से हड़ताल पर ध्यान नहीं देने तथा सामान्य दिनों की तरह ऑफिस आने की अपील करती हूं, क्योंकि ट्रेनें, ट्राम तथा बसें चलाने के लिए कदम उठाए गए हैं। उन्होंने हड़ताल समर्थकों से सड़क जाम नहीं करने की अपील की।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को काम से गैरहाजिर रहने की स्थिति में सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भी कठोर कार्रवाई करने की चेतावनी दी है। ममता ने बंद के दौरान सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में सरकार को भी अवगत करा दिया है।


उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी सरकार राज्य में बंद की राजनीति नहीं चलने देगी, यहां पहले राज्य प्रायोजित काफी बंद आयोजित हो चुके हैं। बंद की राजनीति चुनने को लेकर सीपीआई और लेफ्ट पार्टियों पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने पिछले 35 साल के दौरान बंद को जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया के रूप में इस्तेमाल किया।


गौरतलब है कि  शेयर बाजार में पिछले तीन दिन से चल रही गिरावट का सिलसिला और तेज हो गया तथा बंबई शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स में 478 अंक की भारी गिरावट दर्ज की गई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी और अंतरराष्ट्रीय शेयर बाजारों में नरमी से स्थानीय बाजार में बिकवाली का दबाव बढ़ गया था। 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 477.82 अंक टूटकर 17445.75 अंक पर बंद हुआ। चार कारोबारी सत्रों में सेंसेक्स 977.82 अंक टूट चुका है।वेदांता समूह द्वारा सेसा गोवा और स्टरलाइट के विलय की घोषणा के बाद दोनों ही कंपनियों के शेयरों में नुकसान दर्ज हुआ। शेयर बाजारों में सेसा गोवा का शेयर जहां 10.45 प्रतिशत लुढ़क गया, वहीं स्टरलाइट में 2.53 फीसद का नुकसान रहा। बंबई शेयर बाजार में सेसा गोवा का शेयर एक समय 11 प्रतिशत की गिरावट के साथ 202.10 रुपये पर आ गया था। बाद में यह 10.45 फीसद की गिरावट के साथ 203.60 रुपये पर बंद हुआ। भारतीय शेयर बाजार का मूड इस हफ्ते मुख्य रूप से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की खरीदारी पर निर्भर करेगा। यूरोप के केंद्रीय बैंक इसी हफ्ते यूरो जोन के बैंकों की फंडिंग के दूसरे दौर की शुरुआत करेंगे। बाजार के जानकारों के एक तबके का मानना है कि इस साल सेंसेक्स बिना किसी बड़ी खबर के पहले ही 16 फीसदी चढ़ चुका है। ऐसे में बाजार में थकान आने लगी है, जबकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बैंकों को ईसीबी से मिली रकम अपना असर भारतीय बाजार पर दिखा सकती है।

मीडिया रपटो के मुताबिक तेल कंपनियों को इस समय 4 रुपए प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है। कंपनियों ने पिछले 1 दिसंबर से तेल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया हैं। कंपनियों को 1 दिसंबर से अब तक करीब 900 करोड़ रुपए का नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है।जबकि ओएनजीसी में विनिवेश के लिए एफपीओ लाने की समय सीमा तय करने और रूपरेखा तैयार करने पर चर्चा के लिए आज होने वाली मंत्रिसमूह की बैठक टाल दी गई है और अब यह बैठक अगले सप्ताह हो सकती है। सूत्रों ने कहा कि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह की आज होने वाली बैठक टाल दी गई क्योंकि प्रणव मुखर्जी यात्रा पर हैं।

विदेशी पूंजी के दबाव के आगे भारत सरकार कितनी मजबूर है, यह भोपाल गैस त्रासदी के गुनाहगार डाउ कैमिकल्स के ओलंपिक प्रायोजक बनने के मामले से साफ जाहिर है।भारतीय ओलंपिक संघ के डाउ केमिकल्स को लंदन ओलंपिक खेलों के प्रायोजक से हटाने के लिये अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति को मनाने में असफल रहने के बाद अब निराश भारत सरकार ने आईओसी से तुरंत यह करार रद्द करने के लिये कहा है। खेल मंत्रालय ने आईओसी अध्यक्ष जाक रोगे को भेजे गये पत्र में डाउ केमिकल्स को प्रायोजन से हटाने के लिये कहा है। डाउ के पास अभी यूनियन कार्बाइड का स्वामित्व है जो 1984 के भोपाल गैस कांड के लिये जिम्मेदार रहा है।

आज शुगर डीकंट्रोल के मसले पर रंगराजन कमेटी की पहली बैठक हुई। बैठक में प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु, कृषि सचिव पीके बसु भी शामिल हुए। इस कमेटी की बैठक 1 महीने बाद फिर से होगी। कमेटी के अध्यक्ष सी रंगराजन ने बताया कि चीनी डीकंट्रोल पर रिपोर्ट 6 महीने में सौंप सकते हैं।


वहीं कौशिक बसु ने कहा कि शुगर सेक्टर में सुधार लाने के लिए सरकार गंभीर है। 27 जनवरी को प्रधानमंत्री ने चीनी डीकंट्रोल के मुद्दे पर रंगराजन कमेटी का गठन किया था।


इससे पहले जनवरी में शुगर कंपनियां वित्त मंत्री से सेक्टर में डीकंट्रोल शुरू करने की वकालत कर चुकी हैं। साथ ही राशन की चीनी सस्ते दामों पर देने की सुविधा भी खत्म करने की सिफारिश सेक्टर कर चुका है।



पिछले दो माह में भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्वों में बदलाव भी आया है,ऐसा सरकारी तरफ से जरूर दावा किया जा रहा है। महंगाई जो कि चिंता का एक बड़ा कारण बना हुआ है वह कुछ हद नियंत्रित हुआ है। ताजा आंकड़े के मुताबिक जनवरी में वार्षिक महंगाई दर 6.55 प्रतिशत थी। इसके साथ ही रुपये में दिसंबर में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरावट देखी गई थी जो कि अब स्थिर है।ये कुछ कारक हैं जिसकी वजह से विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार में बड़े निवेश की ओर आकर्षित हुए।


भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने शनिवार को 7.65 करोड़ डॉलर मूल्य के शेयरों की लिवाली की।


विदेशी संस्थागत निवेशकों ने इस साल अब तक 5.55 अरब डॉलर की लिवाली कर ली है। विदेशी निवेशकों ने जनवरी माह में 2.03 अरब डॉलर और फरवरी माह में 23 फरवरी तक 3.51 अरब डॉलर मूल्य के शेयरों की लिवाली की है।


इस दौरान प्रमुख शेयरों में अच्छी खासी वृद्धि दर्ज की गई।


बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स में इस दौरान 2468 अंकों यानी 16 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। पिछले कारोबारी दिवस शुक्रवार को यह 17923.57 पर बंद हुआ। पिछले 30 दिसंबर को यह 15454.92 पर बंद हुआ था।


इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के 50 शेयरों वाले संवेदी सूचकांक निफ्टी में 805 अंकों यानी 17 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। शुक्रवार को यह 5429.3 अंक पर बंद हुआ।


प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के चेयरमैन सी रंगराजनका कहना है कि वित्त वर्ष 2013 के बजट में सरकार को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। रंगराजन का मानना है कि भारत में निवेश की रफ्तार कम हुई है। इसके अलावा देश का बढ़ता वित्तीय घाटा चिंता का विषय बन गया है। सब्सिडी बोझ के चलते वित्त वर्ष 2012 में वित्तीय घाटा ज्यादा रहने का अनुमान है। लिहाजा सरकार को तेल की कीमतों की फिर से समीक्षा करने की जरूरत है। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के प्रदर्शन से भी निराशा हाथ लगी है। वित्त वर्ष 2012 में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ 3.9 फीसदी रह सकती है। वित्त वर्ष 2012 में सर्विस सेक्टर की ग्रोथ 9.4 फीसदी रहने की उम्मीद है।

बीपीसीएल के सीएमडी आर के सिंह का कहना है कि फिलहाल डीजल पर 10-11 रुपये प्रति लीटर और पेट्रोल पर 4 रुपये प्रति लीटर का नुकसान झेलना पड़ रहा है। ऐसे में अगले 1-2 महीनों के दौरान पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है। ब्रेंट क्रूड 125 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर बना रहा तो डीजल के दाम बढ़ना तय है।


वहीं आर के सिंह का कहना है कि बीपीसीएल की मोजाम्बिक के रोवुमा एरिया के 1 ब्लॉक में हिस्सा बेचने की योजना नहीं है। बीपीसीएल का मोजाम्बिक ब्लॉक के रोवुमा एरिया में 10 फीसदी हिस्सा है, जबकि कोव एनर्जी की रोवुमा एरिया में 8.5 फीसदी हिस्सेदारी है। मोजाम्बिक ब्लॉक में कोव एनर्जी, बीपीसीएल की साझेदार है। कोव एनर्जी की मोजाम्बिक ब्लॉक में अपना हिस्सा बेचने की योजना है।


स्टील सेक्टर के कारोबार को इन दिनों काफी झटका लग रहा है। कच्चे माल की बढ़ती कीमतें और आपूर्ति की कमी जैसी समस्याएं कारोबार में रोड़ा बनती जा रही हैं। वहीं कर्नाटक में माइनिंग पर प्रतिबंध ने इनकी सम्सयाओं पर आग में घी डालने का काम किया है।

कच्चे तेल में तेज उबाल ने आरबीआई की नींद उड़ा दी है। और जैसा कि उम्मीद थी कि ब्याज दरें घटने का सिलसिला मार्च से शुरू होगा, इसकी उम्मीद भी अब खत्म होती दिख रही है।


उधर सरकार की ओर से बैंकों पर ब्याज दरें घटाने का दबाव बन रहा है, सरकार का तर्क है कि बैंकों का मार्जिन काफी ज्यादा है। हालांकि बैंकों के लिए दरें कम करना संभव नहीं है।


देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई को ज्यादा डिपॉजिट की जरूरत है। एसबीआई 7 दिन के डिपॉजिट पर भी 8.5 फीसदी का ब्याज दे रहा है। एसबीआई ने 8.5 फीसदी की सीमा 1 करोड़ रुपये से घटाकर 15 लाख रुपये पर कर दी है। ऐसे में साफ जाहिर है कि बैंकिंग सेक्टर में नकदी की किल्लत है।


अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टीन लगार्ड ने कहा है कि सुधार के संकेतों के बावजूद वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने जोखिम मौजूद है और वह अभी भी खतरे से बाहर नहीं निकली है।

विदेशी निवेशक संकटग्रस्त विमानन कंपनी किंगफिशर से मुंह मोड़ रहे हैं और दिसंबर, 2011 में कंपनी में उनकी कुल हिस्सेदारी घटकर महज आधा प्रतिशत रह गई, जो इससे पिछले तीन महीनों में दो प्रतिशत से ऊपर थी।

इस बीच भारतीय स्टेट बैंक ने मंगलवार को कहा कि बैंकों के लिए कर्ज में डूबी किंगफिशर एयरलाइंस को तब तक और ऋण देने में कठिनाई होगी, जब तक वह बैंक गारंटी बहाल करने के लिए 100 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं करती। विमानन कंपनी के कर्ज के भुगतान में विफल रहने के बाद इस गारंटी राशि का उपयोग कर लिया गया था।

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन प्रतीप चौधरी ने कहा कि किंगफिशर एयरलाइंस अभी गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) है। जब तक कंपनी बकाया भुगतान नहीं करती, बैंकों के लिए उसे कर्ज देना कठिना होगा। अगर किंगफिशर एनपीए बनती है तो हमारे पास कोई विकल्प नहीं है।

किंगफिशर को कर्ज देने वाले बैंकों के समूह के प्रमुख बैंक प्रमुख एसबीआई ने कंपनी को 1457.78 करोड़ रुपए का ऋण दे रखा है। इसके बाद आईडीबीआई का स्थान है, जिसने 727.63 करोड़ रुपए का ऋण है। इसके बाद क्रमश: पंजाब नेशनल बैंक (710.33 करोड़ रुपए), बैंक ऑफ इंडिया (575.27 करोड़ रुपए) तथा बैंक ऑफ बड़ौदा (537.51 करोड़ रुपए) का स्थान है।

शेयर बाजार में सूचीबद्ध तीन विमानन कंपनियों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की शेयरधारिता के ढांचे का अध्ययन करने से पता चलता है कि एफआईआई ने किंगफिशर और स्पाइसजेट में अपनी हिस्सेदारी घटाई है, जबकि जेट एयरवेज में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है।

विदेशी निवेशक पिछली कुछ तिमाहियों से किंगफिशर एयरलाइंस में अपनी हिस्सेदारी घटाते रहे हैं। शेयर बाजारों में उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, विजय माल्या प्रवर्तित किंगफिशर एयलाइंस में एफआईआई की हिस्सेदारी दिसंबर, 2011 के अंत तक घटकर आधा प्रतिशत पर आ गई, जो इससे पिछले महीनों में 2.11 प्रतिशत थी।

जून, 2011 को समाप्त तिमाही में किंगफिशर एयरलाइन्स में एफआईआई की हिस्सेदारी 3.02 प्रतिशत थी। इसी तरह का रुख स्पाइसजेट में भी देखने को मिला है, जहां 31 दिसंबर, 2011 को समाप्त तिमाही में कंपनी में एफआईआई की हिस्सेदारी घटकर 3.81 प्रतिशत रह गई जो जुलाई-सितंबर तिमाही में 6.17 प्रतिशत थी।

हालांकि, देश की सबसे बड़ी विमानन कंपनी जेट एयरवेज में दिसंबर, 2011 के अंत तक एफआईआई की हिस्सेदारी बढ़कर 5.42 प्रतिशत पहुंच गई, जो सितंबर में समाप्त तिमाही में 4.67 प्रतिशत थी।

दो विदेशी कंपनियों से बातचीत जारी : किंगफिशर एयरलाइंस दो विदेशी विमानन कंपनियों से संभावित राहत पैकेज के बारे में बात कर रही है जिनमें ब्रिटिश एयरवेज की मालिक, इंटरनेशनल एयरलाइंस समूह (आईएजी) भी शामिल है। 'द टाइम्स' की एक रिपोर्ट में कहा गया कि इससे आईएजी का इस संकट ग्रस्त कंपनी की अल्पांश हिस्सेदारी खरीदने का रास्ता साफ हो सकता है।

माल्या ने द टाइम्स से कहा कि उन्हें भारत सरकार से कानून में बदलाव के संबंध में आरंम्भिक स्वीकृति मिली है जिससे विमानन कंपनियों में विदेशी स्वामित्व पर लगे प्रतिबंध कम हो सकते हैं। माल्या के पास किंगफिशर की 58 फीसदी हिस्सेदारी है।

उन्होंने दावा किया विदेशी कंपनियां उक्त कानून में बदलाव- जो संभवत: कुछ ही दिनों में होना है- होते ही निवेश के लिए तैयार हैं। हालांकि उन्होंने इन कंपनियों का नाम नहीं बताया।

इससे विदेशी कंपनियों को पहली बार भारतीय विमानन कंपनियों की 49 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने की अनुमति मिलेगी। माल्या ने भरोसा जताया कि विदेशी रणनीतिक निवेशक के साथ एक सौदा संभव है। इस रिपोर्ट में मुंबई के वित्तीय सूत्र के हवाले से कहा गया कि इस सौदे में शमिल होने वाली विमानन कंपनियों में एक एआईजी होगी।

विश्व के सबसे अधिक औद्योगिक देशों के समूह 'जी-20' के वित्त मंत्रियों एवं केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की बैठक समाप्त होने के बाद लगार्ड ने यूरो क्षेत्र की अस्थिर वित्तीय स्थिति, प्रमुख औद्योगिक देशों में बढ़ते सार्वजनिक ऋण और तेल की ऊंची कीमतों के कारण सतर्क रहने को कहा है।

आईएमएफ प्रमुख ने पत्रकारों से कहा कि प्रमुख औद्योगिक देशों में वृद्धि अभी भी कमजोर है और उभरते हुए कुछ बाजारों में यह मंद हो रही है। साथ ही कई देशों और खासतौर पर औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में बेरोजगारी दर अत्यधिक बनी हुई है।

'जी-20' की बैठक रविवार को खत्म हुई। बैठक में इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि यूरोजोन संकट से निपटने के लिए प्रतिरोधी उपाय करने के बाद आईएमएफ को संसाधन उपलब्ध कराए। आईएमएफ को यूरोजोन कर्ज संकट से निपटने के लिए 50 अरब डॉलर की आवश्यकता है।

बहरहाल कच्चे तेल (क्रूड) में तेजी को लेकर ग्लोबल बाजारों में चिंता बढ़ने से दलाल स्ट्रीट को भी इस हफ्ते भी बिकवाली का दबाव झेलना पड़ सकता है। क्रूड कीमतों और राजकोषीय घाटे के मद्देनजर मुनाफावसूली बढ़ने से 24 फरवरी को समाप्त कारोबारी सप्ताह में बाजार में सात हफ्ते से जारी तेजी पर ब्रेक लग गया। बंबई शेयर बाजार (बीएसई) का सेंसेक्स 366 अंक लुढ़ककर 18,000 के स्तर से नीचे बंद हुआ। क्रूड की अधिक कीमतें ऊपर जाने के कारण महंगाई बढ़ने की आशंका है। ऐसे में रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती किए जाने की संभावना घट रही है। इसके चलते निवेशकों की धारणा कमजोर हुई है। इसलिए बाजार में कुछ और बिकवाली देखने को मिल सकती है। निवेशकों की नजर सप्ताहांत के दौरान होने वाली जी-20 देशों की बैठक और शुक्रवार को अमेरिका के रोजगार आंकड़ों की घोषणा पर रहेगी। पिछले कुछ हफ्तों के दौरान विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) ने दलाल स्ट्रीट ने बड़ी मात्रा में धन उड़ेला है।


गिरावट वाले बीते सप्ताह में भी एफआइआइ ने अपनी लिवाली जारी रखी। इस दौरान उन्होंने बाजार में 11,793.70 करोड़ रुपये निवेश किया। समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान देश की दस सबसे मूल्यवान कंपनियों में 5 के बाजार पूंजीकरण में 20,409.84 करोड़ रुपये की गिरावट आई। इस दौरान सबसे अधिक नुकसान भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) को हुआ। इसका बाजार मूल्य 13,332 करोड़ रुपये घटकर 1,40,131 करोड़ रुपये रह गया। बैंक के शेयर में बीते हफ्ते 8 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई। सरकारी बिजली कंपनी एनटीपीसी का बाजार पूंजीकरण भी 3,422 करोड़ रुपये घटा। टेलीकॉम कंपनी भारती एयरटेल के बाजार मूल्य में 2,753 करोड़ रुपये की कमी आई। एचडीएफसी बैंक और आइटी कंपनी इंफोसिस की भी बाजार हैसियत में इजाफा हुआ। इनके उलट रिलायंस, टीसीएस, ओएनजीसी, कोल इंडिया और आइटीसी के बाजार पूंजीकरण में बढ़त दर्ज की गई।



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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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