THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Thursday, May 30, 2013

आदिवासी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो रुक जायेगा खनन और सबसे ज्यादा प्रभावित होगी कोल इंडिया!

आदिवासी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो रुक जायेगा खनन और सबसे ज्यादा प्रभावित होगी कोल इंडिया!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


आदिवासी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो रुक जायेगा खनन और सबसे ज्यादा प्रभावित होगी कोल इंडिया!कोलइंडिया की खानें महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उड़ीशा, बिहार, झारखंड,उत्तरप्रदेश और असम के आदिवासी इलाकों में हैं जहां सर्वत्र माओवादी तत्वों के साथ माफिया नेटवर्क भी प्रबल है। माओवाद के दमन के नाम पर बंगाल में शालबनी में निर्दोष आदिवासियों की गिरफ्तारी के बाद 2009 में बंगाल के तमाम आदिवासी इलाकों में माओवाद कितना व्यापक पैमाने पर फैला, इसका ज्वलंत उदाहरण सामने है। आदिवासी समस्याओं को नजरअंदाज करके न कानून व्यवस्था बहाल हो सकती है और न ही इन हालात में आदिवासी इलाकों में खनन और दूसरी परियोजनाएं संभव हैं।



केंद्रीय ग्रामीण उन्नयन मंत्री जयराम रमेश ने माओवाद प्रभावित आदिवासी इलाका सारंडा इलाके में अगले दस साल के लिए माइनिंग बंद करने कासुझाव दिया है तो केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री किशोरचंद्र देव ने खुलकर कहा है कि सलवा जुड़ुम में हुए आदिवासियों पर निरंकुश अत्याचारों की वजह से ही माओवाद का प्रचार प्रसार हुआ।अभी आदिवीसी माता सोनी सोरी जेल में हैं, उनके खिलाफ जारी फर्जी मुकदमों के फर्जी साबित हो जाने के बाद भी। जेल में उन पर जुल्म ढानेवाले पुलिस अफसर को राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया जा चुका है। जबकि अभी मानवाधिकार संगढनों की ओर से जारी रपट के मुताबिक सलवा जुड़ुम के दौरान आदिवासी महुलाओं पर कम से कम निनानब्वे बलात्कार के मामले हैं, जिनमें एक मामले में भी एफआईआर दर्ज नहीं की पुलिस ने। बल्ताक्र के खिलाफ हाल में संशोधित कानून में भी सेना और पुलिस को बलात्कार के मामलों में रक्षाकवच बदस्तूर जारी है। अभी सुकमा जंगल में कांग्रेसी नेताओं पर माओवादी हमले के बाद सरकार की ओर से आदिवासी इलाकों में माओवाद के खिलाफ सघन अभियान चलाये जाने की प्रक्रिया शुरु हो चुकी है। तमाम राज्यों, जिनमें बंगाल भी शामिल है, के आदिवासी बहुल इलाकों में माओवादी गतिविधियों की सूचना देते हुए सुकमा जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति की आशंका जतायी गयी है।लेकिन आदिवासियों की बुनियादी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास अभी सुरु ही नहीं हुआ है। ज्यादातर आदिवासी इलाकों में माओवाद दमन के नाम पर सैन्य अभियान जारी हैं, जिनमे बंगाल के आदिवासी बहुल तीन जिल मेदिनीपुर, पुरुलिया और बांकुड़ शामिल है। वहां लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली ही नहीं हुई है और न वहा भारतीय संविधान लागू है।


दो दो महत्वपूर्ण केंद्रीय मंत्रियों ने आदिवासी अंचलों की विस्फोटक हालात के बारे में सच को ही उजागर किया है। हाल में आदिवासियों के दुमका में हुए अखिल भारतीय सरनाधर्म सम्मेलन में भी शिकायत की गयी है कि कायदे कानून को ताक पर आदिवासी अंचलों में प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट मची हुई है। संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक आजादी के सात दशक हो चलने के बावजूद आदिवासियों के जल जंगल जमीन और आजीविका के हक हकूक बहाल नहीं हुए हैं।लिहाजा उन्होंने संविधान बचाओ आंदोलन शुरु कर दिया है। वे सरनाधर्म कोड भी लागू करने की मांग कर रहे हैं।उनके संविधान बचाओ आंदोलन के तहत पांचवीं और छठीं अनुसूचियों के लागू न होने तक आदिलवासी इलाकों में खनन रोक देने की घोषणा हुई है।


केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने इच्छा जताई है कि मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार सारंडा में किया जाए और उनका नाम रखा जाए जयराम रमेश मुंडा। झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के घोर नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र सारंडा के दीघा व मनोहरपुर में तिरंगा फहराने के बाद केंद्रीय मंत्री ने यह इच्छा जताई।केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश औसतन हर तीन माह में सारंडा का दौरा करते हैं।केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश नक्सलियों की हिट लिस्ट में आ गए हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी नेताओं पर हुए हमले के बाद रमेश की सुरक्षा को लेकर सीआइडी की ओर से दी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्रीय मंत्री की सुरक्षा में लापरवाही घातक हो सकती है। यात्रा के दौरान सुरक्षा बलों के साथ उनकी मोटरसाइकिल की सवारी को भी हर हाल में रोकने की हिदायत दी गई है। नक्सली हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से नेताओं की सुरक्षा के लिए राज्यों को जारी किए गए अलर्ट के 72 घंटे के अंदर सीआइडी ने अपनी रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय को दी है। लिहाजा वीवीआइपी लोगों की सुरक्षा के लिए संवेदनशील इलाकों में नए सिरे से गाइड लाइन दी जा रही है।


हमारे संविधान की पांचवी अनुसूची धारा २४४(१) भाग ख ४ में यह प्रावधान है कि ऐसे राज्य जिस में अनुसूचित जनजातियाँ हैं, एक जनजाति सलाहकार परिषद् स्थापित की जाएगी और वह राज्यपाल के अधीन होगी और वह ही ऐसे क्षेत्रों का प्रशासन देखेगी और राज्यपाल इस सम्बन्ध में सीधे राष्ट्रपति को ही रिपोर्ट भेजेंगे। मुख्य मंत्री का इन क्षेत्रों के प्रशासन पर कोई नियंत्रण नहीं होगा। इस के अतिरिक्त इस क्षेत्र के संसाधनों जैसे खनिज , जंगल तथा जल आदि पर गांव की पंचायत का नियंत्रण होगा और वह ही इस के उपयोग के बारे में कोई निर्णय लेने के लिए सक्षम होंगे। इस से होने वाले लाभ के वे ही हकदार होंगे।


परन्तु यह बड़े आश्चर्य की बात है कि देश में संविधान को लागु हुए ६२ वर्ष गुजर जाने पर भी इस क्षेत्रों में उक्त संवैधानिक व्यवस्था आज तक लागू नहीं की गयी और वहां पर पार्टियों द्वारा अवैधानिक रूप से शासन चालाया जा रहा है। अतः जब तक इन क्षेत्रों पर यह अवैधानिक शासन चलता रहेगा तब तक आदिवासियों और उन क्षेत्रों की प्राकृतिक संपदा की लूट होती रहेगी जिस के विरुद्ध लड़ने कि सिवाय आदिवासियों के सामने मयोवादियों की शरण में जाने के सिवाय कोई चारा नहीं रहेगा।


अब हमें सोचना होगा कि क्या इन क्षेत्रों में संवैधानिक व्यवस्था लागू करानी है या फिर राजकीय हिंसा और प्रतिहिंसा के खेल में इन आदिवासियों खत्म करना है।


ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा है कि सरंडा जैसे नक्सली इलाकों में अगले 10 साल तक माइनिंग पर पाबंदी लगा देनी चाहिए।जयराम रमेश के मुताबिक खनन की वजह से कुछ लोग अमीर हो जाते हैं संसद में पहुंच जाते हैं लेकिन लाखों लोग गरीब रह जाते हैं। उन्होंने सरकारी नीति पर ही नहीं, नक्सलियों पर भी हमला किया है। उनके मुताबिक नक्सली बच्चों को भर्ती कर रहे हैं जो बहुत ही गलत है।


रमेश का मानना है कि नक्सलवाद अब विचारधारा का नहीं लूट का मामला बन गया है। निजी और सरकारी कंपनियां इन्हें 'हफ्ता' देती हैं। सरकारी ठेकों से भी इन्हें पैसा मिलता है।



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