THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Sunday, May 4, 2014

क्या अविवाहित होना कोई अतिरिक्‍त गुण है?

क्या अविवाहित होना कोई अतिरिक्‍त गुण है?

Author:  Edition : 

ले. : पंकज बिष्‍ट

नरेंद्र मोदी ने अब भी यह बात इसलिए मानी क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने हर उम्मीदवार के लिए गत वर्ष सितंबर से यह आवश्यक कर दिया है कि वह नामांकन फार्म का कोई भी स्थान खाली न छोड़े। उम्मीदवार अपने बारे में पूरी और सही-सही जानकारी दे। मोदी को निश्चय ही डर था कि कहीं उनका वह विवाह जिसे वह सप्रयास दशकों से छिपाए हुए हैं उनके संसद में जाने की राह में रोड़ा न बन जाए। देखने की बात यह है कि वह अब तक तीन विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं और उन्होंने किसी में भी अपनी वैवाहिक स्थिति के बारे में सही घोषणा नहीं की। क्या यह अपने ही तरह की बेईमानी नहीं है?

भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के विवाह और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की यौन नैतिकता को लेकर समयांतर के अप्रैल अंक में कुछ आधारभूत सवाल 'ब्रह्मचर्य, नैतिकता और राष्ट्रवाद' शीर्षक लेख में उठाए गए थे। यहां ध्यान देने की बात यह है कि मोदी पिछले 45 वर्षों से, गत माह तक, अपने विवाह को छिपाते रहे थे। स्थितियों ने ऐसा रुख लिया कि उन्हें सच्चाई को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना ही पड़ा। वैसे उनके विवाह होने का सत्य एक दशक पहले ही सामने आ चुका था। पर मोदी ने, सत्ता के अपने सुपरिचित दुरुपयोग के चलते, उसे सामने नहीं आने दिया। उन पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को डराया जो इस बात की जांच करना चाहते थे।

इंटरनेशनल न्यूयार्क टाइम्स में इसी माह छपी एलन बेरी की रिपोर्ट में इस किस्से को इस तरह बयान किया गया है: ''चिमनलाल (जसोदाबेन के पिता) का पता लगाने वालों में दर्शन देसाई पहले थे जो उन दिनों इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर थे। चिमनलाल एक कमरे के घर में रहते थे जिसमें न तो स्नानागार था और न ही शौचालय। उसका मासिक किराया सौ रुपए था। देसाई ने बतलाया कि उन्हें आक्रामक ग्रामीणों की एक भीड़ से जान बचाने के लिए चलती गाड़ी में दौड़ कर चढऩा पड़ा था। वे इस बात से नाराज थे कि वह (देसाई)  चिमनलाल को खोज रहे हैं। देसाई ने बतलाया कि वह जैसे ही घर लौटे उसके कुछ ही मिनट बाद मोदी का उन्हें फोन आया और उन्होंने पूछा, 'तुम्हारा एजेंडा क्या है?'''

नरेंद्र  मोदी ने अब भी यह बात इसलिए मानी क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने हर उम्मीदवार के लिए गत वर्ष सितंबर से यह आवश्यक कर दिया है कि वह नामांकन फार्म का कोई भी स्थान खाली न छोड़े। उम्मीदवार अपने बारे में पूरी और सही-सही जानकारी दे। मोदी को निश्चय ही डर था कि कहीं उनका वह विवाह जिसे वह सप्रयास दशकों से छिपाए हुए हैं उनके संसद में जाने की राह में रोड़ा न बन जाए। देखने की बात यह है कि वह अब तक तीन विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं और उन्होंने किसी में भी अपनी वैवाहिक स्थिति के बारे में सही घोषणा नहीं की। क्या यह अपने ही तरह की बेईमानी नहीं है?

साफ है कि मोदी ऐसे आदमी हैं जो आसानी से सत्य को स्वीकार नहीं करते। पर यह मसला सिर्फ मोदी का ही नहीं है। बल्कि मोदी के दोमुंहेपन के पीछे उनके उस संगठन का है जो निर्थक किस्म के मूल्यों पर अभी भी अटका हुआ है। और एक मायने मोदी के इस व्यवहार के लिए राष्ट्रीय सेवक संघ ही जिम्मेदार है। समयांतर के पिछले अंक में प्रकाशित लेख में मोदी की पत्नी को छोड़ने की निर्ममता के बारे में चर्चा करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के उस पाखंड को भी उजागर किया गया था जो यौन नैतिकता यानी ब्रह्मचर्य को अनावश्यक महत्त्व देता है। देखा जाए तो ब्रह्मचर्य मूलत: स्त्री विरोधी है। ब्रह्मचर्य को जीवन का बड़ा मूल्य मानने के पीछे यह निहित है कि स्त्री कुल मिला कर जीवन में बड़े आदर्शों को पाने के पीछे बाधा है। जो भी हो इस अदर्श के चक्कर में मोदी ने अपनी पत्नी को ही दगा नहीं दिया बल्कि सीधे-सीधे आरएसएस को भी अंधेरे में रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पर जब 2002 में सत्य सामने आया तब तक मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री होने और उनके कार्यकाल में भारतीय इतिहास में मुसलमानों का सुनियोजित तरीके से कत्लेआम होने के कारण हिंदुत्ववादियों के हीरो बन चुके थे। अपने तौर-तरीकों में वह किसी तानाशाह से कम नहीं रहे हैं, परिणाम स्वरूप किसी की हिम्मत नहीं हुई कि जसोदाबेन से हुए उनके विवाह के बारे में तथ्य को सामने लाया जाए। जहां तक आरएसएस का सवाल था उसके सामने ब्रह्मचर्य के अपने तथाकथित आदर्शों को लेकर चुप रहने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह गया था और आज भी नहीं है।

पर आश्चर्य की बात यह है कि नरेंद्र मोदी द्वारा अपनी असहाय पत्नी को छोडऩे को लेकर न तो नारीवादियों ने और न ही मीडिया ने कोई प्रश्न उठाया। यहां तक कि इस बारे में कोई खोजबीन भी नहीं की गई। अंतत: इसी वर्ष फरवरी में इंडियन एक्सप्रेस ने उनकी पत्नी जसोदाबेन का साक्षात्कार छापा। इसके बावजूद पूरा मीडिया, फिर चाहे भारतीय हो या विदेश, चुप्पी साधे रहा।

पर मोदी द्वारा अपने नामांकन में यह मानने को मजबूर होने पर कि वह विवाहित हैं देशी-विदेशी मीडिया में बड़े पैमाने पर यह समाचार प्रकाशित हुआ। इस बारे में जगह-जगह छापा है। पर इसमें सबसे ज्यादा विस्फोटक रिपोर्ट अंग्रेजी साप्ताहिक द वीक की है। पत्रिका के अनुसार हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं और गुजरात की पुलिस के गुप्तचरों ने मिलकर उसी शाम, जिस दिन मोदी ने अपना नामांकन भरा, जसोदाबेन को अपने भाई के घर से उठाकर बलात चारधाम यात्रा पर भेज दिया। जब पत्रकारों ने जसोदाबेन के भाई आशोकभाई से पूछा कि वह कहां हैं तो उन्होंने बतलाया कि जसोदाबेन चार दिन पहले ही चारधाम यात्रा पर चली गई हैं और 17 मई के बाद ही लौटेंगी। यानी चुनावों के परिणाम आ जाने के बाद। मजे की बात यह है कि इस वर्ष चारधाम यात्रा ने चार मई को शुरू होना है। पत्रिका के अनुसार जसोदाबेन को उंझा से पहले अहमदाबाद लाया गया और फिर वहां से एक चार्टर्ड विमान द्वारा उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सीमा पर औरंगाबाद नामक कस्बे में उतारा गया जहां से ऋषिकेश में रामदेव के एक सुनसान इलाके में स्थित आश्रम में रखा गया है। रामदेव का आश्रम इस तरह के कामों के लिए पहले से ही चर्चित है।

इस वाकये पर एक कड़ी प्रतिक्रिया वरिष्ठ पत्रकार बीजी वर्गीज की है जो भाजपा के नजदीक रहे हैं। डेक्कन हेरल्ड (14 अप्रैल, 2014) में प्रकाशित उनका लेख 'मैरिड बैचलरहुड' (विवाहित कुंवारापन) पढ़ने लायक है। वर्गीज ने मोदी के अपने विवाह को छिपाने को लेकर जो कहा है उसमें से कुछ पंक्तियां प्रस्तुत हैं। लेखक के अनुसार : ''सिवा अपनी छोड़ी हुई पत्नी के गुजरात की सारी महिलाओं को मोदी का पूरा समर्थन है और वह महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए लड़ेंगे परअपनी पत्नी को चुपचाप छोड़े रखेंगे। उनके पूरे जोशो-खरोश से बार-बार दोहराई गई ये सद्इच्छाएं उनकी गुजरात – 2002 के प्रसिद्ध दोमुंहेपन की याद दिलाती हैं।''

''जब उनका विवाह हुआ… मोदी 18 से ऊपर और उनकी पत्नी 17 वर्ष की थीं जो उस समय की न्यूनतम उम्र थी इस पर भी विवाह को क्यों छिपाया गया, जबकि न तो वे कानूनी तौर पर अलग रह रहे थे और न ही तलाक हुआ था और यह चुनावों के कानून के अनुसार अपराध भी था? मोदी भक्त कहेंगे, यह छोटा मामला है, लेकिन यह उनकी पत्नी का विशेषकर और सामान्य तौर पर महिलाओं का घोर अपमान है।''

वर्गीज आगे लिखते हैं : ''अगर जो आदमी स्तब्ध करने की इस हद तक अपनी कानूनी तौर पर विवाहित पत्नी के प्रति निर्ममता और लापरवाही बरत सकता है, उसका एक महिला आर्कीटेक्ट से कथित तौर पर बात करना और उसको लेकर चिंतित होना जिसको पर उसका कहना है कि महिला ने और उसके माता-पिता ने उससे सुरक्षा मांगी थी, को कैसे समझा जा सकता है? यह 'सुरक्षा' सरकारी तौर पर गुजरात के आतंकवाद विरोधी दस्ते और गुप्तचर विभाग द्वारा 24 घंटे नजर रखने और फोन टैपिंग में बदल गई थी।''

पर नरेंद्र मोदी को लेकर इस बीच कई बातें कही जा रही हैं। उदाहरण के लिए पेरिस से प्रकाशित होने वाले इंटरनेशनल न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा है कि भारत में ब्रह्मचर्य एक बड़ा गुण माना जाता है। स्वयं गांधी ने कई वर्ष पहले अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध खत्म कर दिए थे और स्वयं को 'ईश्वर का किन्नर' कहा था। देखा जाए तो भारतीय परंपरा में राजपरिवारों में ब्रह्मचर्य जैसे किसी मूल्य का कोई प्रचलन नहीं था। उल्टा बहुपत्नी प्रथा थी। अगर ब्रह्मचर्य को गांधी ने सार्वजनिक जीवन में महत्त्व दिया तो यह उनका अपना तरीका था। इसमें शंका नहीं कि भारतीय परंपरा में ब्रह्मचर्य का सम्मान रहा है, पर वह गृहस्थ आश्रम में प्रवेश के दौरान नहीं है। जैसा कि अखबार में उल्लेख है, यह ठीक है कि भारतीय परंपरा में जीवन को चार आश्रमों में बांटा हुआ है और गृहस्थ आश्रम के बाद संन्यास और फिर वानप्रस्थ आता है, जिसमें आदमी को सब कुछ छोड़कर जंगलों में चले जाने की सलाह दी गई है पर इसका अर्थ एक मायने में नई पीढ़ी को दायित्व सौंपने से है और स्वयं को अनावश्यक लगावों और विलास से दूर रखने से। और शायद एक मायने में बड़ी उम्र के लोगों से मुक्त होने का भी यह तरीका हो। यह भी सही है कि भारतीय परंपरा में सादगी का महत्त्व है और उसी संदर्भ में भोगविलास से बचने को महिमा मंडित किया गया है। गांधी द्वारा सादगी को जरूरत से ज्यादा महत्त्व देने से हमारे राजनीतिक जीवन में एक जबर्दस्तपाखंड पैदा हो गया। नेता और शासक वर्ग सार्वजनिक तौर पर सादगी का जामा पहनता है और निजी व्यवहार में उतना ही विलासी और लालची है। कांग्रेसी संस्कृति में हम इसे पनपता हुआ देख सकते हैं। यह संस्कृति हमारे राजनीतिक जीवन का हिस्सा हो चुकी है। स्वयं मोदी इसके शिकार हैं।

दूसरी बात जिस पर बड़े पैमाने पर बात हो रही है वह यह है कि अविवाहित होना एक बड़ा गुण है। इससे आप भ्रष्ट नहीं होंगे क्योंकि तब आपके पास परिवार नहीं होगा इसलिए आप भ्रष्टाचार नहीं करेंगे या फिर करेंगे भी तो बहुत सीमित करेंगे। राहुल गांधी भी इसी भ्रम के तहत अविवाहित हैं। आइएनटी के अनुसार गत वर्ष राहुल गांधी ने अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा था कि मैं शादी नहीं करूंगा क्योंकि इससे ''मैं यथास्थितिवादी हो जाऊंगा और चाहूंगा कि मेरे बच्चे मेरा स्थान लें।''

इससे ज्यादा भ्रामक बात और कुछ नहीं हो सकती कि अविवाहित लोग भ्रष्ट नहीं होते या अपने लिए संपत्ति नहीं इकट्ठी करते। हमारे सामने उत्तर से लेकर दक्षिण तक कई ऐसे उदाहरण हैं जो अविवाहितों के और भी ज्यादा लालची होने का प्रमाण देते हैं। पर इससे भी बड़ी बात यह है कि अगर आपने सत्ता में बने रहना है तो फिर आपको पैसा तो चाहिए ही और यह पैसा कहां से आएगा? मोदी के प्रचार में जो पैसा लग रहा है वह कहां से आ रहा है? 24 अप्रैल को बनारस में किए गए मोदी के रोड शो में ही सौ करोड़ से ज्यादा खर्च किए गए। वह पैसा कहां से आया? अगर पार्टी ने दिया तो भी कहां से दिया और वह जहां से आया उसका कुछ बदला तो चुकाना ही होगा। हो सकता है मोदी अपने निजी खर्च के लिए पैसे न लें पर उन के प्रचार पर जो खर्च हो रहा है वह कुल मिलाकर भ्रष्टाचार ही तो है? टाइम्स ऑफ इंडिया की 22 अप्रैल की एक रिपोर्ट के अनुसार नरेंद्र मोदी को लाने ले जाने के लिए तीन विमान हर समय तैयार रहते हैं। इन में से एक हैलीकॉप्टर है। मोदी अब तक ढाई लाख किलो मीटर की यात्रा कर चुके हैं। वह इस तरह से हर रोज औसतन 11 सौ किलोमीटर की यात्रा करते हैं। इन में एक ईएमबी नाम का जेट है जो अडाणी समूह की कंपनी कर्णावती एविएशन का है। दूसरा एडब्लू दो इंजनों वाला जहाज है। इन विमानों की प्रति घंटे उड़ान की लागत तीन लाख रुपए बतलाई जाती है। तीसरा है हेलीकॉप्टरजो छोटी यात्राओं में इस्तेमाल होता है। इसकी उड़ान की कीमत एक लाख से एक लाख 20 हजार तक है। यह रीयल एस्टेट कंपनी डीएलएफ समूह का है।

यह बात राहुल गांधी पर भी यथावत लागू होती है। मोदी के बाद सबसे ज्यादा हवाई यात्रा करने वालों में वही हैं। उनके प्रचार में जो खर्च हो रहा है वह कहां से आया है? उनकी पार्टी पर जो भ्रष्टाचार का आरोप है क्या उसकी जड़ें इसी सत्ता नियंत्रण की इच्छा के कारण नहीं हैं?

असल में सत्ता के लिए राजनीति विशेषकर ऐसी राजनीति जो सत्ताधारी वर्ग के हित में काम करती हो यानी संस्थागत हो अपने आप में एक बड़ा आकर्षण है। तब आप उस तरह का भी कोई खतरा नहीं उठा रहे होते हैं जैसा कि परिवर्तनकामी राजनेता उठाते हैं। संस्थागत राजनीति करना मूलत: किसी भी परंपरागत पेशे से अलग नहीं है। कांग्रेस या भाजपा के बीच किसी तरह का कोई आधारभूत अंतर नहीं है। उनकी आर्थिक, सामाजिक नीतियां भी लगभग एक-सी हैं सिवाय इस बात के कि एक खुले आम सांप्रदायिक है और दूसरा छद्म धर्मनिरपेक्ष।

ऐसी सत्ता के सर्वोच्च पद पर आने के लिए संघर्ष किसी भी रूप में बलिदान नहीं है। मोदी को ही लें। उनका कहना है कि वह भ्रष्टाचार नहीं कर सकते क्योंकि उनका आगे-पीछे कोई नहीं है। पर यह बात कोई मायने नहीं रखती है। सच यह है कि हमारे समाज में अविवाहित लोग भावनात्मक रूप से ही नहीं बल्कि भौतिक रूप से भी अपने को अत्यंत असुरक्षित महसूस करने लगते हैं और अपने अंतिम दिनों की चिंता में अनावश्यक संपत्ति बटोरते हैं।

पर नरेंद्र मोदी के साथ किस्सा कुछ और ही है। उन्होंने गुजरात में जो किया है वह सब किसी भी रूप में आम जनता के पक्ष में कोई आधारभूत काम नहीं है। अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने पूंजीपतियों को बढ़ावा दिया है और उनसे सबंध बढ़ाए हैं जो उन्हें अब देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचाने में मददगार साबित हो रहे हैं। या कहना चाहिए उनकी मदद से ही वह इस पद पर पहुंचने का सपना देख पाए हैं। क्या यह अपने आप में बड़ा लालच नहीं है? क्या यह अचानक है कि वह अंबानी के बारे में एक शब्द नहीं बोलते?

दूसरे शब्दों में अविवाहित होना कोई बड़ा मूल्य नहीं है तब तक जब तक कि आप के कार्य सिद्ध न कर रहे हों कि आप की मंशा क्या है? आप की जीवन शैली क्या है? आप का तौर-तरीका क्या है? विवाहितों की एक बड़ी संख्या है जिन्होंने समाज के लिए बल्कि कहना चाहिए मानव मात्र के लिए जो किया है वह कम नहीं है। इसलिए चाहे नरेंद्र मोदी हों या फिर राहुल गांधी इस बात से फर्क नहीं पड़ेगा कि वे विवाहित हैं या नहीं हैं। फर्क इस बात से पड़ेगा कि उनमें सत्ता के प्रति मोह कितना है।

अब अगर आप इसे स्थूल रूप से देखने की कोशिश करें तो कुछ और बातें सामने आ जाएंगी। उदाहरण के लिए नरेंद्र मोदी ने 24 अप्रैल को बनारस में अपने नामांकन पत्र में अपनी परिसंपत्तियां 1.65 करोड़ घोषित की (वडोदरा में 9 अप्रैल को उन्होंने अपनी परिसंपत्तियां एक करोड़ 50 लाख 66 हजार ही घोषित की थी।) दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल ने 22 अप्रैल को अपनी कुल निजी परिसंपत्तियां 96.25 लाख की घोषित की थीं जो मोदी से 68.75 लाख कम हैं। सन 2012 में विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपनी कुल परिसंपत्तियां एक करोड़ 33 लाख घोषित की थीं जो पिछले दो साल में 20 लाख बढ़ गई हैं। मोदी की परिसंपत्ति में उनका गांधीनगर में एक करोड़ का मकान शामिल है। सवाल है उन्हें मकान की क्या आवश्यकता है? उन्हें तो गुजरात सरकार की ओर से मुख्यमंत्री पद पर न रहने के बाद भी मकान मिलेगा। अगर वह प्रधानमंत्री बनते हैं तो फिर बात ही दूसरी हो जाएगी। पर इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब उनकी कुल परिसंपत्तियां कितनी थीं?

असल में मोदी की तुलना केजरीवाल से करना कोई बहुत तार्किक नहीं है। उनकी तुलना त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार से की जानी चाहिए। सरकार की कुल परिसंपत्तियां गत वर्ष ढाई लाख की थीं। ध्यान देने की बात यह है कि वह नरेंद्र मोदी से दो साल पहले से मुख्यमंत्री हैं। दूसरा तथ्य यह है कि उनकी इन परिसंपत्तियों में से भी दो लाख 22 हजार का वह मकान है जो उन्हें अपनी मां से विरासत में मिला था और जिसे वह छोड़ चुके हैं। (देखें: समयांतर, अप्रैल 2014), माणिक सरकार को आप कितना जानते हैं? दूसरे अर्थों में उनकी परिसंपत्तियां कुल 30 हजार की भी नहीं हैं। दूसरी ओर मोदी की परिसंपत्तियां गुजरात में रहते हुए 10 लाख रुपए प्रति वर्ष के हिसाब से बढ़ रही हैं। यह देखना कम रोचक नहीं होगा कि जब मोदी 2002 में मुख्यमंत्री बने तब उनकी परिसंपत्तियां कितनी थीं। यह तब है जब मोदी अपने को अविवाहित कहते हैं और कहते हैं कि मेरा आगे-पीछे कुछ नहीं है। दूसरी ओर माणिक सरकार घोषित रूप से विवाहित हैं। वह मोदी से उम्र में कुछ साल बड़े ही हैं। उनकी कोई संतान नहीं है और यह सजग तौर पर है। संतान न होने देने के कम्युनिस्ट नेताओं में और भी कई उदाहरण हैं। इसलिए माणिक सरकार को युवतियों की 'सुरक्षा' के लिए उन पर राज्य सरकार की पुलिस के माध्यम से 24 घंटे नजर रखने की जरूरत नहीं पड़ती। वह कभी नहीं कहते कि मेरा आगे-पीछे कोई नहीं है। उनका अपने परिवार से निकट का संबंध है, पर इसके कारण उन्होंने अपने सामाजिक दायित्वों से कभी मुंह नहीं मोड़ा है। साफ बात यह है कि विवाहित होने या विवाहित न होने से व्यक्ति की ईमानदारी पर कोई असर नहीं पड़ता। विवाह और यौन संबंध एक नैसॢगक जरूरत हैं। परिवार हमें निजी स्तर पर जिम्मेदारी और सहभागिता सिखलाता है। संभवत: उससे भी बड़ी बात है कि यह हमें यौन विकृतियों से भी बचाता है और अवैध संबंध बनाने की जरूरत से मुक्त रखता है।

इस संदर्भ में देखने की बात यह है कि आरएसएस का प्रचार तंत्र किस तरह काम करता है। वह अपने नेता और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है उन आदर्शों को भी ताक पर रखने को जिन्हें वह भारतीय संस्कृति और परंपरा का आदर्श मानता है और उन पर गर्व करने से नहीं थकता है।  देखा जाए तो आरएसएस ने मोदी को झूठ बोलने के लिए दंडित करना चाहिए था पर उल्टा उनका हर तरह से बचाव किया जा रहा है। यह बचाव किस हद तक भौंडा, विकृत और अनैतिक है इसका एक उदाहरण प्रस्तुत है।

समयांतर के पिछले अंक में प्रकाशित लेख 'ब्रह्मचर्य नैतिकता और राष्ट्रवाद' को पढ़ने के बाद एक वरिष्ठ हिंदी लेखक ने इस लेख के लेखक को फोन कर बड़े प्यार से कहा, आपका लेख मैंने पढ़ा। एक जिज्ञासा है, बुद्ध ने भी तो अपने परिवार को छोड़ा था और गांधी जी ने आश्रम से ऐसे लोगों को निकाल दिया था जो वहां प्रेम करते थे जैसे कि जयप्रकाश नारायण और उनकी पत्नी। इस पर आप क्या कहेंगे?

तब यह प्रश्न सहज लगा था। हमने उत्तर में कहा कि गांधी ने अपने आश्रम में महिलाओं को प्रतिबंधित नहीं किया हुआ था जैसा कि आरएसएस ने किया हुआ है। फिर गांधी की अपनी सीमाएं हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह किस्सा लगभग सौ वर्ष पुराना है इस बीच दुनिया कहां से कहां निकल गई है।

जहां तक बुद्ध का सवाल है उन्होंने परिवार ही नहीं छोड़ा था बल्कि महल छोड़ा था, राजपाट छोड़ा था। वह आर्यवर्त का सम्राट बनने जैसी किसी महत्त्वाकांक्षा से पीडि़त नहीं थे। वह राजा के पुत्र थे खोमचेवाले के नहीं, जो अपनी गरीबी से भाग रहा हो। उन्होंने घृणा के रास्तों को बंद किया और दुनिया को अहिंसा सिखलाई। सम्राट अशोक उसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। बुद्ध की प्रतिबद्धता सिर्फ अपने धर्म के लोगों के लिए ही नहीं थी। उसने राष्ट्रों और समाजों की सीमाएं लांघीं। इससे भी बड़ी बात यह है कि बुद्ध ने कभी यह नहीं छिपाया कि वह विवाहित हैं। बुद्ध के संदर्भ में मोदी की बात करना तो निहायत अतार्किक है।

अप्रैल के ही मध्य में नरेंद्र मोदी के एक भाई ने उनके पत्नी छोडऩे के संदर्भ में बुद्धवाला वही तर्क दोहराया है। तब पता चला कि यह तर्क मूलत: आरएसएस का तैयार किया हुआ है और सोशल मीडिया पर जितना हो सके प्रचारित किया जा रहा है।

आरएसएस के प्रोपेगेंडा मशीन की खासियत यह है कि वह हर बात को बिना आधार के प्रचारित करता है, बिना किसी शर्म और झिझक के। हद यह है कि भारतीय संस्कृति का यह स्वयंभू ठेकेदार पूरे समाज को तर्क नहीं कुतर्क करना और एक ऐसी बेशर्मी सिखा रहा है जहां शालीनता, ज्ञान और विश्लेषण के लिए कोई जगह नहीं रही है।

मोदी ने जामनगर गुजरात में भाषण देते हुए 23 अप्रैल को कहा कि वह कांग्रेस से बदला लेंगे। (देखें इंडियन एक्सप्रेस, 24 अप्रैल) वह किस तरह के आदमी हैं, यह भाषण उसका उदाहरण है। इसमें शक भी नहीं है कि उनमें बदले की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के ही सुरेश जोशी के साथ उन्होंने जो बर्ताव किया वह जग जाहिर है। यही नहीं इस बार भावनगर के भाजपा सांसद राजेंद्र सिंह राणा को मात्र इसलिए टिकट नहीं दिया गया क्योंकि उन्होंने मोदी द्वारा दरबदर कर दिए जाने के बाद सुरेश जोशी को दिल्ली में अपने फ्लैट में शरण दी थी। राणा 1996 से सांसद हैं। (देखें: 'द अदर जोशी साइडलाइंड बाई द बीजेपी', इंडियन एक्सप्रेस, 22 अप्रैल, 2014)

मोदी के शासन काल में गुजरात में सन् 2002 में अल्पसंख्यक मुसलमानों के साथ जो हुआ वह भी एक तरह से बदला ही था चाहें तो इसे 'इतिहास से बदला' कह सकते हैं। मनोविश्लेषण के स्तर पर देखें तो बदला मूलत: ऐसी मानसिक स्थिति है जो असुरक्षा और हीनता से पैदा होती है। इस घृणा से उपजी हिंसा और बर्बरता का लाभ मोदी को मिला और हिंदुत्ववादी ताकतें उनके साथ हुईं। सच यह है कि आरएसएस की विचारधारा ही अल्पसंख्यकों के प्रति घृणा पर आधारित है और मोदी उसी विचारधारा की उपज हैं। उनमें यह क्षमता नहीं है कि अपने समाज, धर्म और संस्कृति का वस्तुगत विश्लेषण कर सकें। उसकी कमियों को समझें और उस का विकास करें। गोधरा कांड को उन्होंने जिस तरह से अपने लिए एक अवसर में बदला वह कम भयावह नहीं है।

ऐसे आदमी की आप बुद्ध से तुलना करके जो अनैतिकता और वैचारिक व्यभिचार कर रहे हैं क्या वह अक्षम्य है?

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...