THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Sunday, April 12, 2015

किसानों और महिलाओं की चीखों को दबाना चाहता है शासन-प्रशासन

किसानों और महिलाओं की चीखों को दबाना चाहता है शासन-प्रशासन
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उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का नारा देने वाली समाजवादी पार्टी
की सरकार में ठीक विपरीत परिणाम आता नजर आ रहा है। अपराध और भ्रष्टाचार
के बिन्दुओं पर तुलना की जाये, तो आज उत्तर प्रदेश बिहार से ज्यादा बदनाम
नजर आ रहा है। कानून व्यवस्था को लेकर हालात इतने दयनीय हो चले हैं कि आम
आदमी को कोई सांत्वना तक देने वाला नजर नहीं आ रहा, लेकिन खास लोगों के
अहंकार को ठेस न पहुंचे, इसका पूरा ध्यान रखा जा रहा है। फेसबुक की
मामूली पोस्ट को लेकर इतने बड़े स्तर पर कार्रवाई की जाती है कि उच्चतम
न्यायालय ने आईटी एक्ट की धारा- 66(ए) समाप्त करना ही उचित समझा, इसके
बावजूद सरकार की कार्यप्रणाली में कोई अंतर आता नजर नहीं आ रहा। प्रदेश
के अधिकाँश जिलों के हालात लगभग एक समान ही हैं। यौन शोषण, हत्या, लूट,
राहजनी जैसी जघन्यतम वारदातों को लेकर प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में
आम आदमी दहशत में हैं। बारिश और तेज हवाओं के प्रकोप से प्रदेश के किसान
तबाह हो चुके हैं और लगातार आत्म हत्या कर रहे हैं। महिलायें घर के
दरवाजे से बाहर कदम रखने से डरने लगी हैं। एसिड अटैक के मामलों में उत्तर
प्रदेश का देश में पहला नंबर है, यहाँ वर्ष- 2014 में 185 बेकसूर
महिलायें एसिड अटैक का शिकार हो चुकी हैं। बाल शोषण की भी ऐसी ही स्थिति
है, अर्थात प्रदेश का हर वर्ग पूरी तरह त्रस्त नजर आ रहा है, लेकिन दबंग,
माफिया व अपराधी मस्त नजर आ रहे हैं, वहीं सरकार खेल में व्यस्त है।
आयोजन सरकारी नहीं है, फिर भी सरकार राजधानी लखनऊ में चल रहे इंडियन
ग्रामीण क्रिकेट लीग (आईजीसीएल) को बड़ी उपलब्धि मान रही है, जबकि सवाल यह
है कि जीवन रहेगा, तभी तो कोई विकास करेगा? हाल-फिलहाल प्रदेश के हालत
ऐसे हैं कि यहाँ लोगों का जीवन ही दांव पर लगा हुआ है, जिसे बचाने को
सरकार को जैसे प्रयास करने चाहिए, वैसे प्रयास करती सरकार नजर नहीं आ
रही।

असलियत में सरकार को जनता के हितों और उसकी भावनाओं से बहुत ज्यादा
लेना-देना नहीं है। प्रदेश जब दंगों की आग में झुलस रहा था और प्रदेश के
साथ समूचे देश में आलोचना हो रही थी, तब भी सब कुछ नजर अंदाज़ करते हुए
सरकार सैफई महोत्सव का आनंद लेती नजर आ रही थी, इसलिए इंडियन ग्रामीण
क्रिकेट लीग (आईजीसीएल) में व्यस्तता पर आश्चर्य नहीं होता, लेकिन स्तब्ध
कर देने वाली बात यह है कि सरकार की राह पर ही प्रशासन भी चल पड़ा है।
बदायूं में हाहाकार मचा हुआ है और बदायूं का जिला प्रशासन बदायूं महोत्सव
आयोजित कर शोषित वर्ग की चीखों को दबाने का प्रयास करता नजर आ रहा है।

सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और उनके परिजन इटावा के बाद बदायूं जिले
को अपना दूसरा घर मानते हैं। मुलायम सिंह यादव सहसवान व गुन्नौर विधान
सभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। वे व प्रो. रामगोपाल यादव संभल
लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी रह चुके हैं। वर्तमान में बदायूं लोकसभा
क्षेत्र से उनके भतीजे धर्मेन्द्र यादव सांसद हैं, उन्होंने 11 अप्रैल को
जिला प्रशासन द्वारा आयोजित तीन दिवसीय बदायूं महोत्सव का दीप
प्रज्ज्वलित कर शुभारंभ किया। इससे पहले शासन-प्रशासन की मदद से अफसरों
और कर्मचारियों के साथ जिले भर के धनपतियों, माफियाओं और व्यापारियों से
बड़े स्तर पर उगाही की गई। विभिन्न सरकारी मदों और उगाही से मिले धन से
खेल-कूद, कुश्ती, निशानेबाजी, रंगोली, साईकिल मैराथन, मुशायरा, कवि
सम्मेलन और म्यूजिकल नाइट के नाम पर चंद लोग तीन दिन जमकर मस्ती करेंगे।
हालाँकि महोत्सव को प्रशासन साहित्यिक आयोजन करार देता है, लेकिन महोत्सव
में शकील बदायूंनी का जिक्र तक नहीं किया जाता, जबकि दुनिया के तमाम
देशों में बदायूं को विश्व प्रसिद्ध गीतकार शकील के कारण जाना जाता है,
इसी तरह शौकत अली फानी का भी कोई नाम नहीं लेता और हाल ही के वर्षों में
शरीर त्यागने वाले विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. ब्रजेन्द्र अवस्थी के
नाम तक का कोई उल्लेख नहीं करता, ऐसे में बदायूं महोत्सव को साहित्यिक
आयोजन कैसे कहा जा सकता है?

बदायूं जिले के हालातों की बात करें, तो बदायूं जिला उत्तर प्रदेश के उन
जिलों में शीर्ष पर है, जिन जिलों में कानून व्यवस्था की स्थिति सर्वाधिक
दयनीय है। कटरा सआदतगंज कांड के चलते देश को विश्व पटल पर शर्मसार होना
पड़ा था, इसी तरह थाना मूसाझाग और कोतवाली उझानी परिसर में सिपाहियों
द्वारा किशोरियों के साथ की गई यौन उत्पीड़न की वारदातों से भी प्रदेश की
छवि खराब हो चुकी है, इन चर्चित घटनाओं के अलावा बदायूं जिले में हर दिन
किसी न किसी क्षेत्र में जघन्यतम वारदात घटित होती ही रहती है। चार दिन
पूर्व हुई वारदात के चलते तो जिले भर के लोग दहशत में हैं। बदायूं शहर के
मोहल्ला ब्राह्मपुर में रहने वाले सेवानिवृत अभियंता वीके गुप्ता (72) और
उनकी पत्नी शन्नो देवी (68) के 8 अप्रैल की रात में उनके घर में शव बरामद
हुए थे। पति-पत्नी घर में अकेले रहते थे और दोनों को चाकू व रॉड से गोद
कर मार दिया गया, जिसका खुलासा पुलिस अभी तक नहीं कर पाई है, जबकि मृतक
चर्चित मुकुल हत्या कांड में वादी थे।

बता दें कि 30 जून 2007 को बरेली में एएसपी के पद पर तैनात प्रशिक्षु जे.
रवीन्द्र गौड़ के नेतृत्व में बरेली जिले के फतेहगंज पश्चिमी क्षेत्र में
एक मुठभेड़ हुई, जिसमें बदायूं निवासी एक युवा मुकुल गुप्ता को मार दिया
गया था। पुलिस ने उसे खूंखार अपराधी बताया था, जबकि मुकुल बरेली में
साधारण कम्प्यूटर ऑपरेटर था। पुलिस की कहानी को वीके गुप्ता ने झूठा
बताया था और उन्होंने अदालत में प्रार्थना पत्र देकर मुठभेड़ करने वाले
पुलिस कर्मियों के विरुद्ध एफआईआर लिखाने की गुहार लगाई थी, जिस पर अदालत
ने मुकदमा लिखने का आदेश दे दिया, लेकिन पुलिस ने मुदकमे में फाइनल
रिपोर्ट लगा दी थी, इसके बाद बदायूं शहर के उस वक्त के विधायक महेश चंद्र
गुप्ता ने इस मामले को विधान सभा में उठाया था, जिस पर शासन ने
सीबीसीआईडी जांच कराने के आदेश दे दिए थे, पर सीबीसीआईडी जांच में भी कुछ
नहीं हुआ। हार कर बुजर्ग वीके गुप्ता ने हाईकोर्ट का सहारा लिया था और 26
फरवरी 2010 को हाईकोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच करने के आदेश दिए थे।
सीबीआई ने इस मामले में आईपीएस जे. रविन्द्र गौड़ के साथ दस आरोपी बनाये
और जे. रविन्द्र गौड़ के विरुद्ध सुबूत जुटा कर शासन से अभियोजन की अनुमति
मांगी, लेकिन शासन ने अनुमति नहीं दी है। मृतक अपने बेटे को न्याय दिलाने
की जंग लड़ रहे थे, लेकिन स्थानीय प्रशासन न उनकी सुरक्षा कर सका और न ही
अब तक उनके हत्यारों को खोज पाया है।

बारिश और तेज हवाओं ने समूचे प्रदेश में कहर बरपाया है, लेकिन सर्वाधिक
प्रभावित क्षेत्रों में बदायूं जिला शीर्ष पर है, यहाँ अब तक दस से अधिक
किसान आत्म हत्या कर चुके हैं, जिनके आश्रित जड़वत नजर आ रहे हैं। बर्बाद
किसानों के परिवारों में कोहराम मचा हुआ है, उनकी आँखों का पानी सूख चुका
है और शरीर में इतनी शक्ति नहीं बची है कि मुंह से आह भी निकल सके, उनकी
हालत देख कर हर आँख नम है, लेकिन जिला प्रशासन इतना अमानवीय हो चला है कि
उन्हें सांत्वना देने की जगह जश्न मना रहा है।

बी.पी. गौतम
स्वतंत्र पत्रकार


नोट- बदायूं महोत्सव का दीप प्रज्ज्वलित कर शुभारंभ करते सांसद धर्मेन्द्र यादव।

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