THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Monday, April 29, 2013

अब अंडाल विमान नगरी​​ का क्या होगा?


अब अंडाल विमान नगरी​​ का क्या होगा?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


सिंगुर में अनिच्छुक किसानों को जमीन वापस दिलाने की समस्या नया कानून बनाने के बावजूद सुलझती नजर नहीं आ रही है। राज्य में राजनीतिक तनाव और संघर्ष के हालात चरम पर है। नयी सरकार के कार्यकाल के दो साल पूरे होने के बावजूद न जमीन नीति बन पायी है और न उद्योग नीति। सरकारी दावा भूमि बैंक बना लेने का है, उसका कहां अता पता नहीं है। राजकाज दमकल सेवा में तब्दील है। संकट मुकाबला में ही सरकार और प्रशासन की सारी ऊर्जी खप रही है। संसाधन खप रहे हैं। नैनी की गुजरात रवानगी के बाद से लगातार आर्थिक बदहाली बढ़ती जा रही है।कोलकाता वेस्ट परियोजना अंधेरे में​​ डूब गयी है।मेट्रो और रेलपरियोजनाओं में प्रगति खटाई में है। ऐसे में शालबनी से जिंदल की विदाई भी तय हो गयी है। अब अंडाल विमान नगरी​​ का क्या होगा?


याद करें कि  पिछले साल २ फरवरी को बंगाल एयरोट्रोपोलिस प्रोजक्ट लिमिटेड के सीइओ व निदेशक सुब्रत पॉल ने दुर्गापुर में आयोजित दो दिवसीय ऐवएशन सम्मिट टच डाउन एट दुर्गापुर कार्यक्रम के पहले दिन सम्मिट में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए दावा किया था कि साल के अंत तक अंडाल हवाईनगरी से विमान सेवा शुरू हो जायेगी। उन्होंने कहा था कि हवाईनगरी निर्माण कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है।पैसेंजर टर्मिनल बिल्डिंग, सर्विस क्लस्टर ब्लॉक, एयर ट्राफिक कंट्रोल बिल्डिंग, रनवे सहित अन्य इंफ्रास्टक्चर निर्माण का कार्य जोर शोर से चल रहा है।आशा है कि कई एयरलाइंस कंपनियां यहां से विमानों के आवागमन कराने में दिखायेगी।


तो क्या कोयलांचल की उड़ान का सपना पूरा हो गया? दिसंबर कब का बीत गया। अप्रैल खत्म होने को है! विमान नगरी परियोजना की प्रगति अधर में है। इसके पीछे नीति निर्धारण प्रक्रिया में व्याप्त गैगरीन विकलांगता के अलावा सर्वव्यापी सर्वग्रासी राजनीति के अलावा क्या है?इस साल यानी २०१३ में भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी , वित्तमंत्री अमित मित्र औरउद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी अंडाल ग्रीनफील्ड एअर पोर्ट ​​परियोजना की प्रगति का गल्प सुना रहे हैं। जमीन विवाद का हल निकाले बिना।लेकिन हकीकत की जमीन पर कुछ भी नहीं बदला है।इसी बीत राज्य सरकार ने आसनसोल में एक और हवाई अड्डे के निर्माण की घोषणा कर दी है। तो क्या सरकार अंडाल विमान नगरी परियोजना के विसर्जन का मन बना लिया है?हालांकि उद्योगमंत्री लगातार दावा कर रहे हैं कि परियोजना के कार्य में प्रगति तेजी से हो रही है।


अंडाल में निर्माणाधीन विमान नगरी परियोजना के खिलाफ अनिच्छुक कृषकों के संगठन घुपचुडि़या कृषक स्वार्थ रक्षा कमेटी और कृषक खेत मजदूर संग्राम कमेटी के अलावा एसयूसीआइ भी लगातार सक्रिय है। वे एक इंच जमीन देने को तैयार नहीं है और राज्य सरकार भी उनकी हां में हां मिलाती रही है।इसी तरह बर्दवान के कटवा में भी एनटीपीसी की बिजली परियोजना जमीन आंदोलन के बारे में हवा हवाई होने लगी है।


समूचा कोयलांचल बंगाल से लेकर झारखंड बिहार  उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र तक विकास के मामले में सबसे ज्यादा पिछड़ा हैं। काला हीरा पैदा करनेवाली धरती पर विकास के फूल नहीं खिलते। दुर्गापुर और आसानसोल के बीच स्थित अंडाल तो विकास के मामले में हमेशा अनाथ ही रहा है और उसका कोई माईबाप नहीं है।​​भूमिगत आग, दिगंतव्यापी धुंए का महासमुंदर, दमघोंटू प्रदूषण और धंसान की रोजमर्रे की जिंदगी में गुजर बसर करने वाले इस इलाके के मेहनतकश लोगों को अंडाल विमाननगरी से अपनी लगातार उपेक्षा से उबरने के अलावा पूरे कोयलांचल के औद्योगिक आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य के कायाकल्प ​​की उम्मीद है। लेकिन सुरसामुखी भूमि अधिग्रहण विवाद की वजह से, जो राजनीतिक आत्मघाती प्रतिद्वंद्विता की वजह से कभी सुलझ ही नहीं सकता, सिंगुर, कोलकाता पश्चिम और शालबनी की तरह अंडाल का भविष्य भी अधर में लटका हुआ है। राज्य सरकार ने नवंबर, २०११ में ही स्पष्ट कर दिया था कि व‌र्द्धमान जिले के अंडाल में प्रस्तावित विमान नगरी के लिए जमीन अधिग्रहण नहीं होगा। राज्य सरकार तो तब से लेकर अबतक बंगाल एरोट्रोपालिज प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (बीएपीएल) प्रबंधन से विमान नगरी का कार्य से पहले हवाई अड्डे तैयार करने के बारे में पूछताछ कर रही है।इस सिलसिले में अभी तक सरकारी नीत बदलने के संकेत नहीं मिले। जमीन नहीं मिली तो क्या हवा में बनेगी विमान नगरी? विमान नगरी परियोजना में चंगाई एयर पोर्ट की 26 फीसदी हिस्सेदारी है। उद्योग मंत्री कोलकाता में शीतताप नियंत्रित शीश महल में बैठे बैठे जमीन मसला हल किये बिना विदेशी निवेशकों को कब तक सब्जबाग दिखाते रहेंगे, इस पहेली को बूझने की कला कोयलांचलवासियों में नहीं।निवेशकों की आस्था का आलम तो रतन टाटा और  जिंदल के रुख और मिजाज से बंगाल सरकार के अलावा बाकी सारी दुनिया को मालूम है।


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