THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Monday, April 29, 2013

गोरखा अस्मिता भी सत्ता की भागेदारी में निष्णात है तो इससे बेहतरीन मौका सुबास बाबू के लिए हो ही नहीं सकता कि वे गुमशुदगी की गुफा से बाहर निकले!

गोरखा अस्मिता भी सत्ता की भागेदारी में निष्णात है तो इससे बेहतरीन मौका सुबास बाबू के लिए हो ही नहीं सकता कि वे गुमशुदगी की गुफा से बाहर निकले!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


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गोरखा जननेता सुबास घीसिंग पहाडों के नायक रहे हैं और अब लंबे अंतराल के बाद वे फिर पहाड की तरफ निकल पड़े हैं।वे वामसासनकाल में दामाद जैसे सममानित रहे हैं। लेकिन इंडियन आइडल प्रशांत तमांग को लेकर पहाड़ अग्निगर्भ हो गया और देखते देखते दार्जिलिंग की मिल्कियत घीसिंग के हाथों से छिनकर उनके ही अनुयायी विमल गुरुंग के हाथों में चली गयी। यकबयक पहाड़ से बेदखल हो गये सुबास घीसिंग।२०९ में विदेश दौरे से लौटकर वे फिर पहाड़ में दाखिल नहीं हो सके।तभी वे जलपाईगुड़ी के कालेजपाड़ा के एक किराये के मकान में डेरा डालकर ठहर गये।शुक्रवार को जलपाई गुड़ी छोड़कर फिर पहाड़ निकल पड़े घीसिंग।विमल गुरुंग खुलेाम सुबास गीसिंग को रा का आदमी बता रहे हैं।घासिंग की सक्रियता से पहाड़ और गोरखालैंड की राजनीति फिर गरमाने का अंदेशा है। दीदी की पहल पर जिन्हें पहाड़ में मुस्कान के फूल​

​ खिलते नजर आ रहे थे, अब उन्हें क्या नजर आयेगा, आने वाला वक्त ही बतायेगा।'धीरे चलो' की नीति पर जीएनएलएफ सुप्रीमो सुबास  घीसिंग अपने संगठन को मजबूत कर रहे हैं। फरवरी से 23 मार्च तक दार्जिलिंग, कर्सियांग, कालिंपोंग में मोरचा से हजारों समर्थकों को फिर से जीएनएलएफ में वापस लाकर घीसिंग ने 700 से भी ज्यादा जीएनएलएफ विलेज कमेटी का गठन किया है।


यह 13 अप्रैल 1986 की बात है, जब अलग गोरखालैंड की मांग करने वाले सुबास घीसिंग ने कहा था- " मेरी पहचान गोरखालैंड है।"22 साल बाद जब गोरखालैंड की मांग अपने चरम पर पहुंची और दार्जिलिंग, कर्सियांग, मिरिक, जाटी और चामुर्ची तक ताबड़तोड़ रैली और विशाल प्रदर्शन होने लगे, तब सुबास घीसिंग का कहीं अता-पता नहीं था। पहाड़ से तो घीसिंग का जैसे नामोनिशान मिट गया। पूरे पहाड़ में विमल गुरुंग और रोशन गिरि की आवाज की गूंज थी।कभी बेहद आक्रमक नेता रहे गुरुंगने बेहद विनम्रता के साथ कहा "सुभाष घीसिंग ने जनता के साथ धोखा किया। मैं अपने खून की आखरी बूंद तक लड़ूंगा। मैं मार्च 2010 तक अलग गोरखालैंड अलग करके दम लूंग।."अब 2010 की सीमा कब की बीत चुकी। रुरुंग भी सत्ता की राजनीति में तिरोहित होने लगे। पहाड़ में अब अमन चैन कायम है यानी गोरखालैंड की मांग पर आंदोलन नहीं चल रहा है। विवाद है सत्ता में भागेदारी लेकर। जीटीए और लेप्चा विकास परिषद के अंतर्विरोधों में अस्मिता का सवाल गुम हो गया है। गोरखा अस्मिता भी सत्ता की भागेदारी में निष्णात है तो इससे बेहतरीन मौका सुबास बाबू के लिए हो ही नहीं सकता कि वे गुमशुदगी की गुफा से बाहर निकले। इसलिए वे फिर पहाड़ी पगडंडियों की टोह लेने निकल पड़े।


इतने अरसे बाद पहाड़ लौटने के बावजूद सीधे सुबासघीसिंग दार्जिंलिंग में अपने घर नहीं जा रहे हैं।फिलहाल जीएनएलएफ सुप्रीमो ने सिलिगुड़ी से ही पार्टी चलाने की मंशा जतायी है।हालंकि घीसिंग ने यह माना कि ममता के सौजन्य से पहाड़ में सांति लौटी है, लेकिन उन्होंने जीटीए को सिरे से खारिज कर दिया।पत्रकारों के मुखातिब घीसिंग ने दावा किया कि विकास तो उनके जमाने में जीजीएचसी के कार्यकाल के दौरान ही हुआ।उनके मुताबिक जीटीए  के माध्यम से न कुछ हो रहा है और न होना संभव है।


गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा (गोरामुमो) के प्रमुख सुभाष घीसिंग अब से सिलीगुड़ी के निकट माटीगाढ़ा के लिचू बागान इलाके में रहेंगे। इतने दिनों तक पहाड़ से जलपाईगुड़ी के कॉलेजपाड़ा में निर्वासित जीवन जी रहे पहाड़ के कद्दावर नेता के स्थान परिवर्तन की राजनीतिक हलकों में खासी चर्चा है। शुक्रवार को इस संबंध में प्रेस से मुखातिब सुभाष घीसिंग ने एक बार फिर जीटीए समझौते को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि यह मामला हाई कोर्ट में विचाराधीन है। इसलिए वह इस बारे में कोई मंतव्य नहीं करेंगे। उन्होंने पूर्व ही कहा था कि डीजीएचसी निकाय 15 साल तक चलेगा। ऐसा हुआ भी। 2005 में गोरखा हिल काउंसिल (जीएचसी) का प्रस्ताव विधान सभा में पारित हुआ लेकिन वह लागू नहीं हो सका। नाम नहीं लेते हुए गोजमुमो पर निशाना साधते हुए कहा कि पहाड़ में 'ब्लैक पावर' सत्ता में है। लेकिन जल्द ही वहां 'ग्रीन पावर' यानी कि गोरामुमो सत्ता में आएगा। ग्रीन पावर के लिए विलेज कमेटी गठित की गई है। गांवों में ग्राम प्रमुख बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि वह कुर्सी की राजनीति नहीं करते हैं। जीटीए पर मंतव्य करते हुए कहा कि पहाड़ की कुर्सी हल्की है। स्थान परिवर्तन के बाबत कहा कि जलपाईगुड़ी शहर से सांगठनिक काम काज का संचालन करना मुश्किल हो रहा था। इसीलिए उन्होंने माटीगाढ़ा में रहने का निश्चय किया है।


ज्ञात हो कि पहाड़ से गोजमुमो के सामाजिक बहिष्कार के बाद से सुभाष घीसिंग जलपाईगुड़ी रहकर दलीय संगठन का काम देख रहे थे। फरवरी 2009 से वह वहीं पर रह रहे थे। केवल पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बलों की मौजूदगी में उन्होंने मिरिक व कई अन्य स्थानों में सभाएं की थीं। 40 रोज तक पहाड़ में डेरा जमाने के बाद वे फिर जलपाईगुड़ी वापस आ गए थे। उन्होंने बताया कि जलपाईगुड़ी को वह कभी नहीं भूल पाएंगे जिसने उन्हें इतना सारा प्यार व स्नेह दिया है। यह शहर काफी शांत है। घीसिंग ने कहा कि हाल में काफी संख्या में गोजमुमो छोड़कर उनके कार्यकर्ता व समर्थक गोरामुमो में शामिल हुए हैं। इससे वह उत्साहित हैं। माटीगाढ़ा जाने के पीछे यह भी एक वजह है जहां से वह सांगठनिक गतिविधियां सही तरीके से चला सकेंगे।




इस पर तृणमुल कांग्रेस के नेता राजेन मुकिया का कहना है कि मुक्यमंत्री ममता बनर्जी की पहल पर पहाड़ में अमन चैन कायम होने से अब शबी राजनित दलों की गतिविधियां चालू हो गयी हैं।इसी के तहत जीएनएलएफ भी अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश भरसक कर रही है।अब सुबास घीसिंग को भरोसा हो गया है कि पहाड़ और मैदानों में सांति लौट आयी है और इसीलिए वे फिर सक्रिय हो रहे हैं।गौरतलब है कि जीजीएचसी के जमान में भ्रष्टाचार के आरोपों के दम पर विमलगुरुंग और उनके साथियों ने सुबास घीसिंग को पहाड़ से निर्वासित​ ​ कर रखा था।यहांतक कि अपने सहकर्मी के निधन के वक्त भी वे पहाड़ वापस न जा सके।


इसके विपरीत पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने राज्य की मौजूदा सरकार को दार्जीलिंग के मुद्दे पर आड़े हाथों लेते हुए कहा कि वह इस मुद्दे को गलत तरीके से निपटा रही है, जिसके कारण गम्भीर समस्याएं पैदा होंगी। मार्क्सावादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की पोलित ब्यूरो के सदस्य बुद्धदेब ने एक बांग्ला समाचार चैनल के साथ बातचीत में कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा द्वारा अपनी मांगें नहीं छोड़ने के बावजूद गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (जीटीए) समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए, जो गलत है। इससे राज्य के लिए समस्याएं पैदा होंगी। बुद्धदेब ने कहा कि गोरखालैंड के मुद्दे के साथ समझौता कर जीजेएम के साथ राज्य सरकार द्वारा बातचीत करना अनुचित है। अंतिम मसौदे में इसका जिक्र है कि समझौते पर हस्ताक्षर जीजेएम द्वारा गोरखालैंड की मांग छोड़े जाने के बगैर किया जा रहा है। यह भारी भूल है।


कालिम्पोंग में जीएनएलएफ चीफ सुभाष घीसिंग के जलपाईगुड़ी से माटीगाड़ा में रहने पहुंचने की सूचना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए गोजमुमो अध्यक्ष ने कहा कि एक समय तेजिंग नोर्जे ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर नाम कमाया। मगर गोरामुमो सुप्रीमो सुभाष घीसिंग पहाड़ पर चढ़ेंगे तो नाम नहीं होगा। इसलिए वह जल्दबाजी न करें समय आने पर मैं उन्हें खुद लेकर आऊंगा। यह बातें शनिवार को स्थानीय नावेल्टी स्थित मोटर स्टैंड पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि गोरामुमो सुप्रीमो अपने शासन में जो कार्य नहीं कर सके वह अब इतने वृद्ध होने पर कैसे करेंगे। इसलिए अब वह आराम करें। उन्होंने कहा कि 22 साल में पहाड़ में बेरोजगार , विकास की जगह सिर्फ गड्डे भरने का काम हुआ। हम 8 माह से जीटीए चला रहे हैं जो अभी बाल्य अवस्था में है। यहां विपक्षी सिर्फ खिंचाई करता है। गोजमुमो अध्यक्ष ने कहा कि कुछ दिन पूर्व सिक्किम भ्रमण पर आये राष्ट्रपति से उन्होंने भेंट कर जीटीए में केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलने की मांग की थी जिसके लिए राष्ट्रपति ने हामी भरी है। केंद्रीय विश्वविद्यालय तो राज्य को मिलता है पर हम इसे जीटीए में लाने की तैयारी कर रहे। उन्होंने कहा कि उन्हें हर माह 50,000 का वेतन मिलता है जिसमें 2,500 पार्टी फंड में तथा अन्य राशि रेली में वृद्धा आश्रम बनाने के लिए संचय कर रहे।


उधर, विधायक डा.हर्क बहादुर क्षेत्री ने कहा कि हम उन्हें गाजे -बाजे के साथ पहाड़ पर लायेंगे। उन्होंने यह बातें स्थानीय नावेल्टी स्थित मोटर स्टैंड पर संपन्न कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि घीसिंग का कहना है कि जीटीए असंवैधानिक है। डा.क्षेत्री ने कहा कि हमने सरकार से वार्ता में पहले ही कह दिया था कि हमारा मूल लक्ष्य गोरखालैंड है एवं जीटीए एक अस्थायी बाडी मात्र है। डा.क्षेत्री ने कहा कि सुभाष घीसिंग पहाड़ पर 30 फीसद जनजाति होने पर छठी अनुसूची लाने के प्रयास में थे। डा. क्षेत्री ने सवालिया लहजे में कहा कि समतल में रहकर पहाड़ की राजनीति, रिमोट से पार्टी नही चलती। गोरामुमो सुप्रीमो वृद्ध हो चुके हैं उन्हें अब आराम करना चाहिए।




इसी के मध्य गोरखा जनमुक्ति मोर्चा की ओर से एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाने की तैयारी शुरू हो गई है। चौक बाजार पर गोजमुमो श्रमिक संगठन द्वारा आयोजित मुख्य कार्यक्रम को पार्टी प्रमुख विमल गुरुंग संबोधित करेंगे। इस मौके पर महारैली का आयोजन होगा। जगह-जगह गोजमुमो प्रमुख विमल गुरुंग के पोस्टर चिपकाए जा रहे हैं। पोस्टर में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को सहयोग का आश्वासन देते गुरुंग दिख रहे हैं।


गोजमुमो श्रमिक संठगन की ओर से साजसज्जा शुरू कर दी गई है। कई जगह तोरण द्वार बनाए जा रहे हैं। पोस्टर और झंडे से शहर पट गया है। गोजमुमो श्रमिक संगठन द्वारा मजदूर दिवस को यादगार बनाने की तैयारी चल रही है। पार्टी की ओर से लगाए गए पोस्टर में बाल श्रम रोकने का संदेश विमल गुरुंग दे रहे हैं। उन्होंने समाज के कमजोर वर्ग के उत्थान का संकल्प भी दोहराया है। श्रमिक दिवस को ऐतिहासिक बनाने की तैयारी चल रही है। गोजमुमो कार्यकर्ताओं में गजब का उत्साह देखा जा रहा है।


चिपकाए गए पोस्टर और मजदूर दिवस पर गोजमुमो अध्यक्ष द्वारा दिए संदेश की खिल्ली उड़ाते हुए क्रांतिकारी मा‌र्क्सवादी पार्टी के प्रवक्ता गोविंद क्षेत्री ने कहा कि गोजमुमो को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के वास्तविक अर्थ पता नहीं है। पोस्टर में बाल श्रमिक का उल्लेख हास्यास्पद है। उन्होंने आरोप लगाया कि यहां के चौक बाजार पर क्रामाकपा के कार्यक्रम को रोकने के लिए गोजमुमो कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। क्रामाकपा हिल्स में जोन स्तर पर एक मई को कार्यक्रम का आयोजन करेगा। प्रशासनिक अनुमति नहीं मिलने की वजह से पांच मई को यहां के चौक बाजार में पार्टी की ओर से मजदूर दिवस मनाने की जानकारी उन्होंने दी। उन्होंने सुभाष घीसिंग के गोरखालैंड का गठन कभी नहीं होने के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह पर्वतीय क्षेत्र का दुर्भाग्य है कि कोई पार्टी जीटीए तो काई दागोपाप से ही संतुष्ट हो जाता है। एकमत नहीं होने से गोरखालैंड का गठन आजतक नहीं हुआ। गोरखाओं के लिए यह दुर्भाग्य की बात है। राजनीतिक पार्टियों की यही भूल गोरखाओं के लिए अभिशाप बन गया है।




गोरखालैंड लिबरेशन फ्रंट (जीएलओ) सुप्रीमो छत्रे सुब्बा ने शुक्रवार को यहां कहा कि गोरखालैंड के बगैर भारतीय नेपाली गोरखाओं का जीवन अधूरा है। विवेक शून्य राजनीतिज्ञों की वजह से अब तक अलग राज्य की स्थापना नहीं हो पायी।


दार्जिलिंग जिला अदालत में शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई के लिए पहुंचे छत्रे सुब्बा ने कहा कि गोरखा जाति में पूर्ण शिक्षित आइएएस, पीसीएस, चिकित्सक व इंजीनियर रहे हैं। शिक्षित वर्ग की सोच अलग होती है वहीं आंदोलन व राजनीति में पूरे ज्ञान की जरूरत व राजनीतिक विवेकशील होना जरूरी है। गोरखा जाति में आगे का आंदोलन फिर बाद के आंदोलन में राजनीतिक विवेक वाला नेता न होने के कारण कभी दागोपाप, कभी जीटीए स्वीकारने को विवश होना पड़ा। छत्रे सुब्बा ने कहा कि पूर्व में हुए आंदोलन में 90 फीसद जनता ने साथ दिया। अभी भी 99 फीसद लोगों का समर्थन है। इतने भारी जनसमर्थन से सरकार झुक सकती पर विवेकहीन नेता के कारण अलग गोरखालैंड राज्य नहीं बन पा रहा।


गौरतलब हो कि वर्ष 1986 में हुए प्रथम गोरखालैंड आंदोलन में कालिम्पोंग के छत्रे सुब्बा जंगी नेता थे। सुभाष घीसिंग से अनबन के बाद सुब्बा ने जीएलओ गठित किया और जंगी भावना के कारण उनपर हमले का आरोप लगा जिस कारण उन्हें 11 वर्ष तक बिना सुनवाई के जेल में रहने के बाद वह रिहा हुए। गोजमुमो के आंदोलन के समानान्तर छत्रे सुब्बा ने भी आंदोलन शुरू करने की घोषणा की थी मगर अचानक राजनीति से किनारा कर लिया।


छत्रे सुब्बा ने शुक्रवार को स्पष्ट रूप से कहा उनकी सुभाष घीसिंग से अनबन की वजह दागोपाप स्वीकारना थी। मैंने दागोपाप का विरोध किया था और बंगाल सरकार की साजिश के कारण जेल जाना पड़ा। जेल से रिहा होने के बाद जरूरी जनसमर्थन चाहिए। गोरखा के लिए मैंने अपना जीवन समर्पित किया मगर अब मैं निजी जीवन यापन के प्रयास कर रहा।


कर्सियांग में जीटीए सदस्य योगेंद्र राई ने कहा कि आंदोलन से ही गोरखालैंड मिलेगा। इसके लिए सामूहिक होकर प्रयास करने होंगे। यह गोजमुमो के नेतृत्व में ही संभव है। गोजमुमो छोड़कर अन्य दलों में जाने वालों को स्वार्थी बताया। इससे पार्टी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। सभी दलों के कार्यकर्ताओं का गोजमुमो में आना जारी है। इस अवसर पर ग्याल्जेन तमांग, रतन गजमेर, करूणा गुरुंग व अन्य थे।



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