THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Tuesday, November 10, 2015

हिंदू तालिबान का पुनरुत्थान है, हिंदुत्व का नहीं।अभी अभी हारे हैं और केसरिया इतिहास बनाने वाले अब टीपू की हत्या पर आमादा हैं। पलाश विश्वास


 हिंदू तालिबान का पुनरुत्थान है, हिंदुत्व का नहीं।अभी अभी हारे हैं और केसरिया इतिहास बनाने वाले अब टीपू की हत्या पर आमादा हैं। 

पलाश विश्वास

गोशाला कहीं नहीं है।खेती तबाह कर दी है।कारोबार खत्म कर दिया गया है।उद्योग धंधे,उत्पादन प्रणाली और अर्थव्यवस्था विदेशी पूंजी के हवाले।अर्थव्यवस्था से दिवाली तक ,धर्म कर्म सबकुछ एब एफडीआई है।


बजरंगी मुक्त बाजार  के धर्नेमोन्मादी खुल्ला खेल फर्ऱूखाबादी ने  गाय को बेदखल कर दिया क्योंकि उनके ही अश्वमेध राजसूय से खेती खत्म हैं और किसान आत्महत्या कर रहे हैं।खेत खलिहान बचे नहीं है तो गाय को कौन पूछनेवाला है।

गांवो में तो अब गोबर या गोमूत्र मिलता नहीं है और महानगरों ,शहरी सीमेंट के जंगल में यूरिया कीटनाशक मिला जहर का खुल्ला कारोबार है दूध दही के नाम पर।

ब्रांडिंग है।बंद होगी तो पिर लेदेकर चालू हो जायेगी।
पेय और फास्टफूड का जहरीला फलता फूलता कारोबार और नियंत्रण उदाहरण है।

गोरक्षा अगर  धर्म है तो हमें धर्मभ्रषट किया है इसी राष्ट्रद्रोह ने।गैरमजहबी लोगों के किलाफ मजहबी सियासत तो दरअसल हिंदू ग्लोब के एजंडा के मुताबिक आइसिस की तर्ज पर हिंदू तालिबान का पुनरुत्थान है,हिंदुत्व का नहीं।

गोशाला कहीं बचा भी है कि नहीं।

 उन्ही बेदखल गायों के नाम अरब वसंत का आयात भारत में और गोमांस को लेकर धारिमक ध्रूवीकरण की बेशर्म कोशिश में पूरा देस आग के हवाले।

अभी अभी हारे हैं और केसरिया इतिहास बनाने वाले अब टीपू की हत्या पर आमादा हैं।

हमारे भाई मशहूर पत्रकार दिलीप मंडल ने दो टुक टिप्पणी की है अपने वाल पर।

साझा कर रहा हूं:

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पगला गए हैं जी। टीपू सुल्तान को छेड़ रहे हैं। एक बात बताऊँ। मुझे जीवन में चार टीपू मिले। एक तो मेरे मोहल्ले का है और फिर कॉलेज और फिर पड़ोस में। फिर अखिलेश यादव से मिलना हुआ, जिनका घर का नाम टीपू है। सारे टीपू संयोग से हिंदू मिले। यह नाम बहादुर बच्चों का रखा जाता है, या इस उम्मीद में कि नाम के असर से बच्चा बहादुर बनेगा। टीपू नाम का भारत में अच्छा असर है।

संघ वाले बहुत बडी गलती कर रहे हैं।

अंग्रेजों के खिलाफ सबसे बहादुराना लड़ाई लड़ने वाले शख़्स पर सवाल उठा रहे हैं। टीपू ने ऐसे किसी भी शासक को नहीं बख़्शा जो अंग्रेजों का साथ दे रहे थे। संयोग से उनमें कुछ हिंदू शासक भी थे। यह हिदू बनाम मुसलमान का मामला है ही नहीं।

पब्लिक ने टीपू को सही माना। तभी तो लोग अपने बच्चों का नाम टीपू रखते हैं।

संघियों को कुछ समझ में नहीं आता। मूर्ख कहीं के। यह तो सोच लेते महाराज, कि टीपू सुल्तान का महामंत्री हिंदू था।



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