THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Sunday, May 20, 2012

श्रमजीवी मंच का चौथा सम्मलेन देहरादून में

श्रमजीवी मंच का चौथा सम्मलेन देहरादून में


वन एवं वन में रहने वाले श्रमजीवी समुदाय किसके अधीन रहेंगे, भारतीय राजसत्ता के जो कि नवउदारवादी पूंजीवादी शक्तियों के अंतर्गत बड़ी बड़ी कम्पनियों की जकड़न में है या फिर सामुदायिक स्वशासन के अंतर्गत एक जनवादी ढांचे में...

श्रमजीवी मंच का चौथा  राष्ट्रीय सम्मेलन 26 से 28 मई को देहरादून उत्तराखण्ड में आयोजित किया जा रहा है. बीस राज्यों के सदस्य संगठन जो कि पचास से अधिक वनक्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं इस सम्मेलन में भाग लेंगे. मज़दूर संगठनों के राष्ट्रीय महासंघों को भी इस सम्मेलन में आमंत्रित किया जा रहा है.

पड़ौसी देशों जैसे नेपाल, बांग्लादेश व पाकिस्तान से वनाधिकार आंदोलनों के प्रतिनिधिगण और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की भी इस सम्मेलन में नुमाइंदगी रहेगी. दिनांक 26 मई को एक जनसुनवाई कार्यक्रम होगा, जिसका विषय है ''राष्ट्रीय पार्क एवं सेन्चुरी में वनाधिकार कानून की दशा''.  जनसुनवाई सम्पन्न होने के बाद सांगठनिक सम्मेलन की विधिवत शुरुआत की जाएगी. tribals-adivasis-of-india

मौज़ूदा दौर में वनाधिकार आंदोलन एक महत्वपूर्ण दौर से गुज़र रहा है. यह चुनौतीपूर्ण दौर वनाश्रित समुदायों और वनों का भविष्य तय करेगा. अर्थात वन एवं वन में रहने वाले श्रमजीवी समुदाय किसके अधीन रहेंगे, भारतीय राजसत्ता के जो कि नवउदारवादी पूंजीवादी शक्तियों के अंतर्गत बड़ी बड़ी कम्पनियों की जकड़न में है या फिर सामुदायिक स्वशासन के अंतर्गत एक जनवादी ढांचे में. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासी (वनाधिकारों को मान्यता कानून)-2006 के संसद द्वारा पास किए जाने के बाद कहां तो आज़ादी मिलनी थी, लेकिन कहां देशभर के जंगल क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी व अन्य वनाश्रित समुदाय लगातार चारों तरफ से संगठित आक्रमण झेल रहे हैं. 

वनाश्रित श्रमजीवी समुदायों पर वनप्रशासन और उनकी सहयोगी बड़ी कम्पनियां, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाऐं जैसे जाईका, वनमाफिया, सांमती और अन्य निहित स्वार्थी शक्तियां जिस के अंदर गैर कानूनी खनन के ठेकेदार भी शामिल हैं के हमले लगातार बढ़ रहे हैं और प्रमुख राजनैतिक शक्तियां भी इन हमलों को मदद कर रही हैं. इस चैतरफा हमले ने राजनैतिक व सामाजिक संकट को और गहरा दिया है और इससे भी खतरनाक पर्यावरणीय संतुलन के संकट को भी कई गुणा बढ़ा दिया है, जो कि दुनिया को एक भयंकर त्रासदी की तरफ ले जा रहा है. 

मुनाफाखोरी और प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ पर्यावरणीय न्याय का सवाल एक महत्वपूर्ण राजनैतिक मुद्दा बन गया है. लेकिन इस चैतरफा हमले के खिलाफ पूरे देश के पैमाने पर एक शक्तिशाली जनप्रतिरोध आंदोलन भी मजबूती से बढ़ रहा है और कुछ क्षेत्रों में तो इन प्रतिरोध आंदोलनों से मौजूदा प्रभुत्ववादी व्यवस्था के खिलाफ एक वैकल्पिक व्यवस्था बनाने की प्रक्रिया भी चल रही है. वनव्यवस्था  के मुद्दे पर राजसत्ता और समुदायों के बीच एक सीधी टक्कर है.

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