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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Sunday, May 20, 2012

बहुगुणा चले गैरसैंण की राह

वैसे भी मेकअप से लदी दुल्हन कुछ दिन तक तो लुभाती है, लेकिन जब असली रूप सामने आता है तो कई बार पति भी दुल्हन को पहचानने से इंकार कर देता है, इसलिए जरूरी नहीं कि उत्तराखंड की जनता को उसके सपनों की राजधानी मिल ही जाए...

मनु मनस्वी

कांग्रेसी महारानी सोनिया द्वारा उत्तराखंड की छाती पर मूंग दलने के लिए बिठाये गए विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री की गद्दी संभालते ही कांटों के दर्द को महसूस करने लगे हैं. जैसे-तैसे सरकार तो बन गई है, लेकिन अपनों से पार पाना बहुगुणा के लिए आसान नहीं लगता. सो मुंबई हाईकोर्ट में जज पद से वीआरएस लेकर राजनीति का ककहरा पढ़ने वाले बुद्धिजीवी बहुगुणा ने दिन-रात सोच-विचार कर एक नई राह निकाली- गैरसैंण.

 gairsainराज्य गठन के बाद से ही सभी सरकारें गैरसैंण को राजधानी बनाने के नाम पर को आयोग गठित करती रही हैं, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा है. यहां तक कि इस बार राजधानी  गैरसैंण की मांग विधानसभा चुनावों में उठना तो दूर, चर्चा में यह मुद्दा नहीं रहा. बस हुआ ये कि जनता के पैसों पर ऐश करते-करते ये आयोग मुटियाते चले गए. जो जांच रिपोर्ट आई भी, तो सरकारों ने उसे सुदामा की पोटली की तरह दबाकर रख दिया.

मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा  ने भाजपा सहित अपनी ही पार्टी के विरोधियों से निपटने के लिए उनके सामने गैरसैंण प्रेम का चुग्गा डाल दिया है. जिस गैरसैंण मुद्दे को बीच-बीच में उछालकर उक्रांद समेत अन्य क्षेत्रीय दल जब-तब अपने होने का अहसास कराते रहते हैं और जिस मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस ने राज्य की जनता को छला ही है, उसी मर चुके मुद्दे को बहुगुणा ने दोबारा उछालकर नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है. 

हो कसता है कि बहुगुणा इस दांव से अपनी राजनैतिक जमीन मजबूत करने की जुगत में हों. कुछ ही समय बाद बहुगुणा को खुद के लिए विधानसभा उपचुनावों में जीत हासिल करनी है. गौरतलब है कि विजय बहुगुणा उत्तराखंड की टिहरी लोकसभा से सांसद रहे हैं. विधानसभा चुनावों में बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बाद कांग्रेस ने उन्हें अपना मुख्यमंत्री चुना था, अब उन्हें किसी एक विधानसभा से जीतना होगा, तभी उनकी कुर्सी बरक़रार रह सकती है. 

बहुगुणा ने गैरसैंण में विधानसभा सत्र के साथ-साथ मंत्रियों की पंचायत जोड़ने का जो दांव चला है, उससे भले ही उत्तराखंडवासी गदगद हो रहे हों, लेकिन इस दांव के पीछे बहुगुणा ने कास्मेटिक पालिटिक्स खेलकर कांग्रेस का मेकअप कर जो लुभावनी तस्वीर पेश की है, उसने एक न एक दिन धुल ही जाना है. फिर कांग्रेस की जो बदरंग तस्वीर जनता को दिखाई देगी, उससे डरने के अलावा जनता के पास कोई चारा भी  नहीं बचेगा. 

वैसे भी मेकअप से लदी दुल्हन कुछ दिन तक तो लुभाती है, लेकिन जब असली रूप सामने आता है तो कई बार पति भी दुल्हन को पहचानने से इंकार कर देता है. यदि बहुगुणा की यह घोषणा सच भी साबित होती है, तो भी जरूरी नहीं कि उत्तराखंड की जनता को उसके सपनों की राजधानी मिल ही जाए. बहुत हुआ तो गैरसैंण दूसरी राजधानी की भूमिका निभा सकती है, जिसका राज्य को कोई फायदा मिलता प्रतीत नहीं होता है.

manu-manasveeपत्रकार मनु मनस्वी उत्तराखंड में पत्रकार हैं. 

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