THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Monday, May 21, 2012

कोई किसी से प्‍यार नहीं करता, सब नाटक करते हैं

कोई किसी से प्‍यार नहीं करता, सब नाटक करते हैं



 uncategorizedनज़रियासिनेमा

कोई किसी से प्‍यार नहीं करता, सब नाटक करते हैं

20 MAY 2012 2 COMMENTS

स्‍त्रीऔर पुरुष के बीच का साहचर्य, रिश्‍ता अब भी उतना ही अनसुलझा है, जितना पहली बार मनुष्‍य की ये दो प्रजातियां एक दूसरे से परिचित हुई होंगी। हां, उस पहली मुलाकात में यह भाव अंतिम बार रहा होगा कि मेरा मुझमें कुछ नहीं जो कुछ है सो तोर। क्‍योंकि न तो तब परिवार की परिकल्‍पना थी, न ही संपत्ति की अवधारणा। सभ्‍यताओं के विकास के साथ ही रिश्‍तों का नामकरण होता गया और उनमें जिम्‍मेदारी, नैतिकता के अर्थ डाले गये। एकनिष्‍ठता भी आधुनिक सामंती समाज के मूल्‍य हैं, मन के नहीं। मन हमेशा ही आदिम होता है, लेकिन उसकी अभिव्‍यक्ति क्‍योंकि सामाजिक होती है, इसलिए वह अक्‍सर संयमित तरीके से हमारे बर्तावों को नियंत्रित करता है।

उपनिषद गंगा की दसवीं कड़ी में विश्‍वास और "काम" के बीच के संवेदना-तंतुओं को टटोला गया और इसे भर्तृहरि की कहानी के माध्‍यम से प्रस्‍तुत किया गया।

द्वारपाल के प्रेम में पागल रानी पिंगला की शिकायत पर राज भर्तृहरि अपने भाई विक्रमादित्‍य को देश निकाला दे देते हैं। मंत्री भट्टारक इस अन्‍याय का पर्दाफाश करने के लिए एक ब्राह्मण का सहारा लेते हैं, जो भर्तृहरि को एक अभिमंत्रित फल देता है। कहता है, जो भी इसे खाएगा, वह चिरयौवन रहेगा। भर्तृहरि सोचते हैं कि रानी पिंगला इसे खाएगी, तो वे आजीवन भोगते रह सकेंगे। रानी पिंगला सोचती है कि द्वारपाल इसे खाएगा, तो उसे बहुत प्‍यार करेगा। द्वारपाल एक दासी से प्रेम करता है और वह अभिमंत्रित फल दासी को दे देता है। दासी उसे सेनापति को दे देती है और सेनापति नगर की खूबसूरत गणिका रसमंजरी को वह अभिमंत्रित फल खिलाना चाहते हैं। रसमंजरी चूंकि राजा भर्तृहरि से प्रेम करती है, इसलिए वह सोचती है कि राजा इसे खाएंगे, तो वह चिर यौवन रहेंगे और राजा का कल्‍याण करेंगे।

राजा भर्तृहरि उस अभिमंत्रित फल देखने के बाद वेदना से भर जाते हैं। उन्‍हें लगता है कि प्रेम और विश्‍वास एक भ्रम है। रिश्‍तों का कोई मोल नहीं होता और हर आदमी एक दूसरे से छल कर रहा है।

मां चिंतमामि सततं मयि सा विरक्ता
साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्ससक्तः
अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या
धिक तां च तं च मदनं च इमां च मां च

अर्थात मैं अपने चित में दिन रात जिसकी याद संजोये रहता हूं, वह स्त्री मुझसे प्रेम नहीं करती। वह किसी और पुरुष पर मोहित है। वह पुरुष किसी दूसरी स्त्री को चाहता है। वह स्त्री, किसी और को प्रेम करती है। धिक्कार है मुझे और धिक्कार है उस कामदेव को जिसने यह माया जाल रचा है। धिक्कार है, धिक्कार है धिक्कार है।

वे भट्टारक को बुलाते हैं और विक्रमादित्‍य से क्षमा मांगने की बात करते हैं। बीस मिनट के इस एपिसोड में कथा से जुड़े घटनाक्रम बहुत तेज हैं, लेकिन अधूरा सा कुछ भी नहीं लगता। रिश्‍तों और संवादों के विस्‍तार में घुसने के बजाय संवेदनशील तरीके से मंच और रीयल प्रपंच को साधा गया है। डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी का यह प्रयोग आने वाले समय में कई निर्देशकों के लिए अनुकरणीय होगा। मुकेश तिवारी अपनी पिछली भूमिकाओं की तरह ही प्रभावशाली नजर आये।

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