THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Monday, May 21, 2012

सत्ता दखल का 'षड्यंत्र' था बोफोर्स

सत्ता दखल का 'षड्यंत्र' था बोफोर्स



बोफोर्स दलाली कांड में आज तक न ही कोई गिरफ्तारी हो सकी न ही किसी व्यक्ति को जेल जाते देखा गया, न ही किसी पर कोई प्रतिबंध लगाए जाने के समाचार प्राप्त हुए. हां उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय द्वारा इस मामले को बंद किए जाने की खबरें ज़रूर सुनाई दीं...


तनवीर जाफरी

बहुचर्चित कथित बोफोर्स तोप दलाली कांड को 25 वर्ष बीत चुके हैं. इसके बावजूद अब भी जब कभी इस प्रकरण से संबंधित कोई नया खुलासा होता है तो यह मुद्दा पुन: सुर्खियों में छा जाता है. दरअसल बोफोर्स तोप सौदा या इस सौदे में कथित रूप से ली गई दलाली का मुद्दा केवल दलाली की लेन-देन जैसे आरोपों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह एक ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण प्रकरण था जिसने देश की राजनीति की दिशा ही बदल डाली. इस मुद्दे को सुनियोजित ढंग से इस हद तक उछाला गया कि राजीव गांधी के नेतृत्व में चल रही तत्कालीन केंद्र सरकार को सत्ता गंवानी पड़ी.

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उसी समय से देश गठबंधन सरकार के गठन को मजबूर हो गया. गठबंधन सरकारों के दौर का वह सिलसिला आज भी जारी है. इस प्रकरण में आश्चर्यचकित करने वाली बात यह भी है कि जिस बोफोर्स तोप की कथित दलाली के मुद्दे ने अमिताभ बच्चन जैसे सांसद को संसद से त्यागपत्र देने के लिए मजबूर कर दिया तथा सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी को सत्ता से हटा दिया व उसके पश्चात विश्वनाथ प्रतापसिंह को भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से प्रधानमंत्री पद तक पहुंचा दिया. उस बोफोर्स दलाली कांड में आज तक न ही कोई गिरफ्तारी हो सकी न ही किसी व्यक्ति को जेल जाते देखा गया, न ही किसी पर कोई प्रतिबंध लगाए जाने के समाचार प्राप्त हुए. हां उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय द्वारा इस मामले को बंद किए जाने की खबरें ज़रूर सुनाई दीं.

गौरतलब है कि भारत सरकार द्वारा 1986 में स्वीडन की ए बी बोफोर्स कंपनी से 155 एम एम की 410 पोवित्ज़र बोफोर्स तोपे खरीदी गई थी. यह पूरा सौदा 1437 करोड़ का था. इसी सौदे को लेकर वीपी सिंह के नेतृत्व में यह इल्ज़ाम लगाया गया था कि इस सौदे में राजीव गांधी के परम मित्र व इलाहाबाद से तत्कालीन सांसद अमिताभ बच्चन व उनके भाई अजिताभ बच्चन ने बोफोर्स कंपनी से दलाली ली है. 

विपक्ष विशेषकर वीपी सिंह द्वारा यह आरोप भी लगाया जा रहा था कि इस कथित दलाली प्रकरण में राजीव गांधी की भी अहम भूमिका है. इस प्रकार के बेबुनियाद आरोपों से न केवल गांधी-नेहरू परिवार बुरी तरह आहत हुआ था बल्कि अमिताभ बच्चन की साख को भी गहरा धक्का पहुंचा था. परिणामस्वरूप अमिताभ बच्चन ने लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देते हुए स्वयं को धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति से भी किनाराकश कर लिया था. इस प्रकरण के चर्चा में आने के बाद हुए आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी की पराजय हुई थी तथा विश्वनाथ प्रताप सिंह देश की पहली गठबंधन सरकार के पहले प्रधानमंत्री बने थे. 

देश को उस समय वी पी सिंह से इस बात को लेकर बड़ी उम्मीदें थी कि बोफोर्स दलाली प्रकरण को लेकर राजीव गांधी, अमिताभ बच्चन तथा कांग्रेस पार्टी के मुंह पर कालिख पोतने वाले वीपी सिंह व उनका साथ देने वाले विपक्षी नेता अवश्य ही इस प्रकरण का पटाक्षेप करेंगे तथा इस सैन्य खरीद सौदे में हुए घोटाले में शामिल लोगों को बेनकाब करेंगे. परंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

सवाल यह है कि बोफोर्स तोप सौदे को लेकर गांधी परिवार, बच्चन परिवार तथा कांग्रेस पार्टी पर लगाया जाने वाला यह आरोप क्या महज़ एक बड़ी राजनैतिक साजि़श का हिस्सा था? क्या यह भारतीय राजनीति के उस बदनुमा चेहरे का ही एक भाग था जिसमें कि एक-दूसरे को अपमानित, कलंकित व बदनाम कर सत्ता हथियाने की साजि़श रची जाती है? और यदि ऐसा कुछ नहीं था तो तीसरे मोर्चे की सरकारें तथा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकारों के दौर में बोफोर्स दलाली कांड में शामिल चेहरों का सप्रमाण खुलासा क्यों नहीं किया जा सका? 

पिछले 25 वर्षों में समय-समय पर कोई न कोई इस प्रकार की रिपोर्ट ज़रूर आती दिखाई दी जिनसे यही पता चलता है कि इस पूरे प्रकरण में गांधी परिवार व बच्चन परिवार की कोई भूमिका नहीं थी और उनका इस दलाली कांड से कोई लेना-देना नहीं था. गत् माह भी ऐसा एक खुलासा स्वीडन के पूर्व पुलिस प्रमुख स्टेन लिंडस्ट्रोम द्वारा किया गया. लिंडस्ट्रोम बोफोर्स तोप सौदे की जांच करने वाले स्वीडिश पुलिस प्रमुख थे. उन्होंने साफतौर पर यह बात कही कि राजीव गांधी का बोफोर्स तोप सौदे में न तो कोई हाथ है और न ही इसमें ली गई दलाली में उनका कोई किरदार था. लिंडस्ट्रोम ने राजीव गांधी के साथ अमिताभ बच्चन को भी क्लीन चिट देते हुए कहा कि अमिताभ बच्चन को भी इस मामले मे ज़बरदस्ती फंसाया गया था.

सवाल यह है कि गांधी-बच्चन परिवार पर दलाली लेने जैसे गंभीर आरोप लगाकर सत्ता में आने वाली शक्तियां सत्ता में आने के बाद इन परिवारों पर लगने वाले दलाली लेने के आरोपों को साबित क्यों नहीं कर सकीं? बजाए इस कांड पर गंभीरता दिखाने के यह ताकतें मंडल कमीश्न लागू करने व हज़रत मोहम्मद साहब के जन्मदिन पर अवकाश घोषित करने जैसे लोकलुभावने राजनैतिक ड्रामे में ही उलझकर रह गईं. इससे साफ ज़ाहिर होता है कि गांधी-बच्चन परिवार पर विपक्षी दलों द्वारा लगाया जाने वाला दलाली लेने का आरोप महज़ इन परिवारों को बदनाम करने की एक बड़ी साजि़श का अहम हिस्सा था. 

कुछ राजनैतिक शक्तियां यह नहीं चाहती थीं कि गांधी-बच्चन परिवार की मित्रता व देश की राजनीति पर इनकी पकड़ मज़बूत बनी रहे. लिहाज़ा कांग्रेस में रहते हुए वी पी सिंह ने बोफोर्स प्रकरण को बहाना बनाकर स्वयं को ईमानदार नेता के रूप में प्रचारित करते हुए गांधी-बच्चन परिवार पर कीचड़ उछालने का काम किया. परंतु वीपी सिंह दरअसल 'कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना' की कहावत पर अमल करते हुए अपनी कुटिल राजनैतिक चाल चल रहे थे. इसमें उन्हें सफलता भी हासिल हुई. परंतु इस हादसे के बाद देश की रजनीति की दिशा और दशा जिस प्रकार भ्रमित हुई है उसकी जि़म्मेदार भी यही शक्तियां मानी जाएंगी जिन्होंने बोफोर्स सौदे को बहाना बना कर देश की राजनीति को अस्थिर करने का सफल प्रयास किया है.

वास्तव में एक बोफोर्स दलाली प्रकरण ही नहीं बल्कि यदि आप गौर से देखें तो लगभग पूरे देश की राजनीति का मापदंड ही यही दिखाई देता है कि आप अपने प्रतिद्वंद्वी को बदनाम, कलंकित व अपमानित करने में कितने सक्षम हैं? यहां यह भी कोई ज़रूरी नहीं कि अपने प्रतिद्वंद्वी पर लगाए जाने वाले आपके आरोप सही या प्रमाणित हों. बल्कि भारतीय राजनीति के महारथी यह देखते हैं कि कौन से आरोप कितने प्रभावी हो सकते हैं तथा जनता पर इन आरोपों का कितना प्रभाव पड़ सकता है. 

आमतौर पर यही आरोप, इल्ज़ामतराशी तथा दूसरे के मुंह पर कालिख पोतने की कला ही एक पक्ष को सत्ता से हटाने तथा कालिख पोतने वाले को सत्ता में लाने का सबब बन जाती है. भले ही ऐसे राजनैतिक हथकंडों के दुष्परिणाम भारतीय राजनीति को कितना ही नुकसान क्यों न पहुंचाते हों. हमारे देश की राजनीति में सत्ता पर काबिज़ होने का फार्मूला दरअसल अपनी योग्यता या उपलब्धियां बताना नहीं बल्कि दूसरे को बदनाम, कलंकित व अपमानित करना रह गया है. जो भी दल अपने विरोधी दल या विरोधी नेताओं को जितना अधिक बदनाम व रुसवा कर सकता है उसकी जीत की संभावनाएं उतनी ही अधिक बढ़ जाती हैं.

tanveer-jafri-1हरियाणा साहित्य अकादमी के पूर्व सदस्य तनवीर जाफरी राजनीतिक मसलों के वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं.

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