THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Tuesday, May 29, 2012

उपवास करने से ही कोई गांधीवादी नहीं हो जाता! न जन लोकपाल विधेयक पास होगा और न इस बिल की कोई जरुरत है!

उपवास  करने से ही कोई गांधीवादी नहीं हो जाता! न जन लोकपाल विधेयक पास होगा और न इस बिल की कोई जरुरत है!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

मुंबई के मराठा पत्रकार परिषद में एक संवाददाता सम्मेलन में प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता असगर अली इंजीनियर और राम पुनयानी संपादित अन्ना हजारे अपसर्जःए क्रिटिकल एप्राइजल का विमोचन जस्टिस एच सुरेश ने किया। इस अवसर पर असगर अली इंजीनियर ने कहा कि केवल उपवास करने से कोई गांधीवादी नहीं हो जाता। अन्नाब्रिगेड की भाषा और कार्यपद्धति हिंसा से परिपूर्ण है, जबकि गांधीवाद की बुनियाद अहिंसा है। जबकि जस्टिस सुरेश ने साफ शब्दों में कहा कि न जनलोकपाल विधेयक पास होगा और न ऐसे किसी विधेयक की जरुरत ही है।जस्टिस सुरेश ने बल्कि कहा कि संसद को जल्द से जल्द इसके समक्ष लंबित दि राइट्स आफ सिटीजंस फार टाइम बाउंड डेलीवरी आफ गुड्स एंड सर्विसेज एंड रिड्रेसल आफ दिअर ग्रिवांसेज बिल २०११ को पारित कर देना चाहिए। ताकि सार्वजनिक सेवा ज्क्षेत्र में भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम की जा सकें।

गौरतलब है कि अब तक अन्ना आंदोलन पर जो किताबें आयी हैं, उनमें अन्ना को दूसरा गांधी और उनके आंदोलन को आजादी का दूसरा आंदोलन बताया जाता रहा है। यह पहली पुस्तक है , जिसमें देशभर के स्थापित विशेषज्ञों द्वारा अन्ना आंदोलन का पोस्टमार्टम वस्तुनिषठ तरीके से मीडिया रपटों से एकदम अलग तरीके से किया गया है।साहित्य उपक्रम द्वारा प्रकाशित ३०६ पृष्ठ की १६० रुपए मूल्य की इस पुस्तक के लेखकों में प्रभात पटनायक, जोया हसन, ​​सुखदेव थोराट, हर्ष मंदर, प्रफुल्ल् बिदवई, कंच इल्लैया जैसे नाम सम्मिलित हैं।

इंजीनिर ने साफ किया कि पुस्तक में सम्मिलित सभी लेख बड़ी सावधानी से संकलित किये गये हैं और जरूरी नहीं कि वे अन्ना विरोधी हों। हां पर सभी लेखों में आलोचनात्मक डृष्टि​ ​ अपनायी गयी है।उन्होंने कहा कि अन्ना आंदोलन के पीछे की राजनीति को समझना वक्त की जरुरत है।

उन्होंने कहा कि अगर यह भ्रष्टाचार के खिलाफ ईमानदार गांधीवादी आंदोलन होता तो इसके समर्थन का  मतलब है। न अन्ना स्वयं गांधीवादी है और उनका आंदोलन का गांधीवाद से कोई लेना देना है। इस आंदोलन की भाषा और पद्धति भयादोहन और हिंसा की है, जो गांधी का तरीका नहीं है। इस आंदोलन की बागडोर हिंदुत्ववादी ताकतों के हाथों में है। अन्ना कोई सामाजिक कार्यकर्ता नहीं है । उनकी राजनीतिक विचारधारा है जो सिर्फ हिंसा के माध्यम से अभिव्यक्त होती है।

राम पुनयानी ने कहा कि अन्ना को दूसरा गांधी कहना गांधी का अपमान है और उनके आंदोलन को आजादी का दूसरा ​​आंदोलन कहना भारत स्वतंत्रता संग्राम के गौरवशाली इतिहास को नकारना है।य़ह आंदोलन ​शुरू से संघ परिवार के नियंत्रण में है। इस भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का बुनियादी मुद्दों से कुछ लेना देना नहीं है। यह संघ परिवार के भ्रष्टाचार के खिलाफ खामोश है।​
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​कम्मयुनालिज्म कमबैट के सह संपादक जावेद आनंद ने कहा कि कोई भी जनांदोलन समावेशी होता है, पर अन्ना का यह ​​आंदोलन देश के अल्पसंख्यकों के बहिष्कार के सिद्धांत पर चल रहा है।​
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​डोल्फी डिसूजा द्वारा संचालित विमोचन गोष्टी में वक्ताओं ने जेपी आंदोलन और वीपी आंदोलन का हवाला देते हुए कहा कि हर​ ​ बार ऐसे भ्रष्टाचारविरोधी आंदोलन के बाद दक्षिणपंथी सत्ता में आये हैं। कारपोरेट और खुले बाजार की अर्थव्यवस्था के कारण, असमानता और बहुजनों के बहिष्कार के पपीछे जो आर्थिक राजनीतिक भ्रष्टाचार है, उसके खिलाफ अन्ना और उसका आंदोलन खामोश है।

गोष्ठी के संवादसत्र में शिरकत करते हुए कोलकाता से आये सामाजिक कार्यकर्ता पलाश विश्वास ने अनुपम खेर द्वारा अन्ना के मंच से संविधान रद्द करने की मांग और अन्ना को इसे समर्थन का उल्लेख करते हुए कहा कि यह हिंदुत्व का आरक्षणविरोधी सवर्ण ​
​आंदोलन की भ्रष्टाचार विरोध की ब्रांड इक्विटी के साथ रिलांचिंग है।

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