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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Sunday, May 20, 2012

उत्तर भारत में रसोई गैस के लिए हाहाकार

उत्तर भारत में रसोई गैस के लिए हाहाकार



रसोई गैस की किल्लत हड़ताल के पहले से भी लगातार बनी हुई है. विश्लेषकों का मानना है कि जिन देशों से पेट्रो पदार्थों को लेकर करार हैं वह डिस्टर्ब हो गए हैं, खासकर अमेरिकी दबाव में ईरान से . अंतरराष्ट्रीय स्तर की समस्या से आम उपभोक्ता परेशान हो रहा है...

धीरू यादव 

तीन दिन से इंडियन ऑयल कंपनी के इंडेन लिक्विड पेट्रोलियम गैस उपभोक्ताओं और एजेंसी होल्डरों के बीच जूतम-पैजार की नौबत है. इसके पीछे एजेंसी मालिकों की दलील को उपभोक्ता मानने को तैयार नहीं है. वे ब्लैक का आरोप लगाकर झगड़ा कर रहे हैं. इस बारे में खोजबीन हुई तो पता चला कि यह दिक्कत इस समय पूरे उत्तर भारत में है. रिफिलिंग प्लांट के लिए वल्क कैप्सूल में आने वाली गैस ट्रांसपोर्ट ड्राइवरों ने हडताल कर दी है. शुक्रवार शाम तक हडताल खत्म नहीं हुई थी.

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बरेली मंडल समेत उत्तर भारत में सबसे ज्यादा रसोई गैस उपभोक्ता इंडेन के ही हैं. अकेले बरेली में ही करीब साढे तीन लाख उपभोक्ता हैं. जिले में रोजाना करीब साढे+ आठ हजार सिलेंडरों की सप्लाई है. ऐसे में तीन दिन तक गैस न मिलने से उपभोक्ताओं की परेशानी को समझा जा सकता है. वह भी तब जबकि भरपूर आपूर्ति पहले ही नहीं है और 25 दिन बाद गैस बुक कराने पर भी सिलेंडर एक-एक महीने बाद मिल रहा हो. 

ऐसे में सप्लाई न आने से उपभोक्ताओं का गुस्सा एजेंसी मालिकों पर फूटना स्वाभाविक है. रसोई गैस डीलर एसोसिएशन की अध्यक्ष रंजना सोलंकी ने बताया कि तीन दिन में मंडल में इंडेन गैस एजेंसियों का करीब पौने दो करोड़ का कारोबार प्रभावित हो चुका है. यही हालत रही तो समस्या काफी विकराल हो जाएगी. 

इंडेन के सीनियर एरिया मैनेजर मिथलेश  सिन्हा सप्लाई न होने के पीछे का कारण बताने से कतराए. मंडल के फील्ड आफीसर पी प्रकाशन ने हडताल की बात स्वीकारी, लेकिन आधिकारिक बयान देने से मना किया. 

शाहजहांपुर स्थित इंडेन गैस रिफिलिंग प्लांट मैनेजर दिलीप सदीजा ने कहा कैप्सूल में वल्क में आने वाली गैस नहीं आ पा रही है. कैप्सूल लाने वाले ट्रांसपोर्ट ड्राइवरों की हड़ताल से पूरे उत्तर भारत में सप्लाई ठप है. हड़ताल की वजह उन्होंने नहीं बताई. 

सूत्रों का कहना है कि पेट्रो-डीजल पदार्थों की मांग को सरकार पूरा नहीं कर पा रही है. इसी वजह से रसोई गैस की किल्लत हड़ताल के पहले से भी लगातार बनी हुई है. विश्लेषकों का मानना है कि जिन देशों से पेट्रो पदार्थों को लेकर करार हैं वह डिस्टर्ब हो गए हैं, खासकर अमेरिकी दबाव में ईरान से . अंतरराष्ट्रीय स्तर की समस्या से आम उपभोक्ता परेशान हो रहा है. 

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